खतरनाक चीजों की सूची

लिखना तो सबसे ख़तरनाक है. आप चाहे जितना डर-डर कर लिखें, सच कहीं न कहीं से झांक जाता है

खतरनाक चीजों की सूची

पिछले कुछ दिनों में भारत में जो 'न्यू नॉर्मल' बनाया गया है, उसका असर बहुत सारी चीज़ों पर पड़ा है. ऐसे में यह ज़रूरी है कि ख़तरनाक चीज़ों की एक सूची बनाई जाए जिनसे हम सब बच सकें. इस सूची में सबसे ताज़ा प्रविष्टि दुनिया के महानतम उपन्यासों में गिने जाने वाले लियो टॉल्स्टॉय के 'वार एंड पीस' की है. इस उपन्यास को महाराष्ट्र पुलिस ने ख़तरनाक माना है. इसे भीमा कोरेगांव केस में गिरफ़्तार किए गए सामाजिक कार्यकर्ता वर्नेन गोंजाल्वेस के ख़िलाफ़ सबूत के तौर पर पेश किया गया है. आदरणीय बॉम्बे हाइकोर्ट ने भी गोंजाल्वेस से पूछा कि वे ऐसी किताब क्यों पढ़ते हैं जो किसी दूसरे देश के युद्ध के बारे में है.

यह सच है कि लियो टॉल्स्टॉय से बहुत लोग डरते थे. व्लादिमीर इल्यीच लेनिन भी डरता था. कहते हैं, लेनिन को दो जारों का सामना करना था. जार निकोलस द्वितीय को उसने हरा दिया. लेकिन रूसी जनता के दिलों पर राज करने वाले दूसरे जार टॉल्स्टॉय के सामने घुटने टेक दिए. टॉल्स्टॉय कम्युनिस्ट नहीं थे, लेकिन लेनिन को मालूम था कि वे रूस की आत्मा हैं. लेनिन ने उन पर कई लेख लिखे. अपने कॉमरेड्स को कहा कि वे उनका सम्मान करें. ऐसे ख़तरनाक आदमी की किताब महाराष्ट्र पुलिस किसी आतंकवादी के खिलाफ़ सबूत की तरह इस्तेमाल क्यों न करे.

इस ख़तरनाक आदमी ने एक दूसरे ख़तरनाक आदमी को भी प्रभावित किया था. वे महात्मा गांधी थे. महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ़्रीका के ट्रांसवाल में जो आश्रम बनाया, उसका नाम टॉल्स्टॉय फॉर्म रख दिया था. टॉल्स्टॉय को चिट्ठी लिखी तो अंत में लिख दिया- आपका आज्ञाकारी सेवक. और टॉल्स्टॉय ने जवाब में जो चिट्ठी लिखी, उसमें अंत में उनको भाई की तरह सम्मान दिया. दोनों ईश्वर और धर्म को अपने भीतर पाते थे. असहमत भी होते थे तो इतने सम्मान से कि दूसरे हैरान रह जाएं. टॉल्स्टॉय ने एक संदेश में पुनर्जन्म के सिद्धांत को ख़ारिज किया. महात्मा गांधी ने लिखा कि ये संदेश वे छापना चाहते हैं, लेकिन इसमें पुनर्जन्म को ख़ारिज करने वाली बात हटा दी जाती तो अच्छा होता. गांधी ने टॉल्स्टॉय से कहा कि वे उनको सहमत करना नहीं चाहते, बस याद दिलाना चाहते हैं कि पुनर्जन्म में करोड़ों भारतीयों की आस्था है और इस ख़याल से उनको तसल्ली मिलती है. लेकिन टॉल्स्टॉय भी कम टेढ़े नहीं थे. उन्होंने लिख दिया कि वे तो नहीं हटाएंगे, लेकिन गांधी जी को यह छूट देते हैं कि वे चाहें तो हटा लें.

महात्मा गांधी भी कम खतरनाक आदमी नहीं हैं. उन्होंने लड़ने के नए-नए तरीक़े निकाले. धर्म की बात की और धर्म के पंडों को ठिकाने लगा दिया. अपनों के ही इम्तिहान लेते थे. उन्हें तीन-तीन गोली मारी गई, लेकिन वे नहीं मरे. रोज़ उन्हें कई लोग मारते हैं- उनके समर्थक भी और विरोधी भी- वे मरने को तैयार नहीं होते. गोडसे की इतनी मूर्तियां बनाई गईं, कही-कहीं मंदिर भी बनाए गए, लेकिन वह ज़िंदा नहीं हो पा रहा और गांधी मर नहीं पा रहे.

गांधी की शिक्षा भी कम ख़तरनाक नहीं थी. वे लोगों को सिविल नाफ़रमानी सिखा गए. जहां बंदूक नहीं चलती, तोप नहीं चलती, टैंक नहीं चलते, वहां सिविल नाफ़रमानी चल पड़ती है. सरकारें सबसे ज़्यादा इससे घबराती हैं. कुछ लोग बता रहे हैं कि कश्मीर में भी सिविल नाफ़रमानी शुरू हो गई है. सच बोलना हमेशा से ख़तरनाक था- इन दिनों और ज्यादा ख़तरनाक हो गया है. कश्मीर को लेकर सच बोलना तो और ज़्यादा ख़तरनाक है. आपको तत्काल देशद्रोही घोषित किया जा सकता है. ऐसे सच का इस्तेमाल पाकिस्तान की सरकार कर लेती है. भारत सरकार इस मामले में पाक-साफ़ है. उसे सच या झूठ से मतलब नहीं है, बस कश्मीर से मतलब है.

वैसे सबसे ख़तरनाक चीज़ उर्दू साहित्य है. वह देवनागरी लिपि में लिखा हुआ तो फिर भी चल जाएगा, लेकिन फ़ारसी में लिखी उर्दू तो बिल्कुल नहीं चलेगी. ऐसी उर्दू में आप क़ुरान रखें, ग़ालिब का दीवान रखें, मीर के दर्दो-ग़म रखें- आप आतंकवादी घोषित किए जा सकते हैं. पिछले दिनों ऐसे कई मामले सामने आए जिनमें किसी को आतंकवादी साबित करने के लिए सबूत के तौर पर उसके घर बरामद उर्दू साहित्य पेश किया गया.

वैसे कुल मिलाकर किताबें ही ख़तरनाक हैं. वे आपको सोचने के लिए मजबूर करती हैं. वे आपमें तर्क करने की आदत डालती हैं, तर्क करने लायक सामग्री मुहैया कराती हैं. वाट्सऐप यूनिवर्सिटी के इस दौर में किताब पढ़ने वालों की इकलौती सज़ा मॉब लिंचिंग ही हो सकती है.

ख़तरनाक चीज़ों की सूची और भी लंबी है. इनमें कंप्यूटर, सीडी, मोबाइल, सिम सब आते हैं. पुलिस किसी को गिरफ्तार कर यह बता देती है कि उसके घर दो कंप्यूटर, तीन मोबाइल और चार सिम निकले हैं. कंप्यूटरों के भीतर क्या निकला है यह बात अमूमन सामने नहीं आती. भीमा कोरेगांव मामले में भी पुलिस ने वर्नेन गोंजाल्वेस के ख़िलाफ़ उनके यहां से बरामद सीडियां पेश कीं. टॉल्स्टॉय को न जानने वाले जज साहब भी जानते थे कि सीडी सबूत नहीं हो सकती, सीडी में होने वाली सामग्री भले सबूत हो जाए. उन्होंने पुलिस से पूछा कि सीडी में क्या है. पुलिस ने कहा कि अभी सीडी देखी नहीं गई है. तो सीडी भी एक ख़तरनाक चीज़ है. इससे बचना चाहिए.

गाय-बैल या जानवरों की ख़रीद-बिक्री या उनको कहीं ले जाना भी खतरनाक है. आपको कभी भी पहलू ख़ान बनाया जा सकता है. रास्ते में पीट कर आपकी जान ली  जा सकती है और आपको कसूरवार ठहराया जा सकता है. आप अगर अपने फ्रिज में गोश्त रखते हैं तो यह भी ख़तरनाक है. आपको इसके लिए घर से निकाल कर अख़लाक की तरह मारा जा सकता है. और तो और, छोटे बच्चों को घुमाना भी खतरनाक है. आप अगर यूपी में हैं और किसी ऐसे बच्चे को लेकर निकले हैं जिसकी शक्ल या जिसका रंग-रूप आपसे नहीं मेल खाते तो भीड़ आपको घेर सकती है, पीट सकती है और आपकी जान ले सकती है.

लिखना तो सबसे ख़तरनाक है. आप चाहे जितना डर-डर कर लिखें, सच कहीं न कहीं से झांक जाता है- वह या तो आपको बेलिबास कर जाता है या जिसके बारे में आप लिख रहे हैं, उसकी असलियत खोल देता है. ऐसे बहुत सारे खतरे हैं जिनके बारे में लिखना कम ख़तरनाक नहीं.

पाश ने जब कहा था कि सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना तो उसे अंदाज़ा नहीं था कि सपनों की सामूहिक हत्या का ऐसा सार्वजनिक उपक्रम कभी सरेआम चलेगा और हम ख़तरनाक चीज़ों की सूची बनाते हुए भी डरेंगे.

प्रियदर्शन NDTV इंडिया में सीनियर एडिटर हैं...

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