क्या सरकार दमन का टूलकिट तैयार कर रही है?

जो टूलकिट बताया जा रहा है, वह अधिकतम किसान आंदोलन की जानकारी देने, उसमें शामिल होने का न्योता देने या इसका तरीक़ा बताने का टूलकिट लगता है, किसी हिंसा, हत्या, देशद्रोह की साज़िश का टूलकिट नहीं.

क्या सरकार दमन का टूलकिट तैयार कर रही है?

टूलकिट केस में पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि की गिरफ्तारी बेंगलुरू से की गई

पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि की गिरफ़्तारी के पूरे एक दिन बाद जब दिल्ली पुलिस ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस की तो यह उम्मीद थी कि वह उस ख़ौफ़नाक 'टूलकिट' के बारे में कुछ रहस्योद्घाटन करेगी जिसके लिए दिशा रवि को गिरफ़्तार किया गया और दो युवाओं शांतनु और निकिता जैकब की तलाश जारी है. लेकिन दिल्ली पुलिस के संयुक्त आयुक्त बस यह बता सके कि टूल किट को संपादित किया गया था, कि टूल किट में 26 जनवरी से पहले ट्विटर स्टोर्मिंग की बात कही गई थी, कि टूल किट में किसान आंदोलन को और बढ़ाने के उपाय सुझाए गए थे. 

दिल्ली पुलिस ने जितनी जानकारी दी, उससे कहीं किसी हिंसा की बात सामने नहीं आई. '26 जनवरी को दिल्ली में गड़बड़ी फैलाने' की धुंधली सी बात से यह स्पष्ट नहीं होता कि इसका क्या मतलब है. बल्कि उस दिन जिस शख़्स पर सबसे ज़्यादा गड़बड़ी फैलाने का इल्ज़ाम आया, उस दीप सिद्धू तक पहुंचने में दिल्ली पुलिस को 10 दिन लग गए और इस दौरान वह फेसबुक पर अपने वीडियो अपलोड करता या कराता रहा. दिल्ली पुलिस से ही मिली सूचना के मुताबिक, यह काम भी उसने कनाडा में बैठी एक मित्र के ज़रिए किया. फिर इस दीप सिद्धू की तस्वीरें प्रधानमंत्री और बीजेपी के बड़े नेताओं के साथ मिलीं. जाहिर है, किसान आंदोलन के दौरान दिल्ली और लाल क़िले में उस दिन जो कुछ हुआ, वह चाहे जितना दुर्भाग्यपूर्ण हो, उसकी योजना उस तरह संभव ही नहीं थी जिस तरह वह दिल्ली की सड़कों पर घटित होती दिखी. बल्कि ऐसी योजना के लिए दिल्ली पुलिस की मिलीभगत भी ज़रूरी थी जिसके लिए निश्चय ही दिल्ली पुलिस तैयार नहीं होती.  

तो जो टूलकिट बताया जा रहा है, वह अधिकतम किसान आंदोलन की जानकारी देने, उसमें शामिल होने का न्योता देने या इसका तरीक़ा बताने का टूलकिट लगता है, किसी हिंसा, हत्या, देशद्रोह की साज़िश का टूलकिट नहीं. 'ट्विटर स्टोर्मिंग' ऐसी चीज़ नहीं है जिससे ख़ून-ख़राबा होता हो. बेशक, फ्राइडे फॉर फ़्यूचर मुहिम के तहत एक बार तत्कालीन पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को स्टोर्मिंग का मजा चखाया गया था जब पर्यावरण क़ानूनों के ख़िलाफ़ इस समूह ने ईमेल्स की ऐसी बौछार की कि पर्यावरण मंत्री को इसकी शिकायत करनी पड़ी.  

फिर दिल्ली पुलिस पीछे से पार होते हाथी को अनदेखा कर सामने से गुज़र रही मक्खी पर तलवार लेकर वार करने में क्यों जुटी हुई है? इसकी तीन वजहें हो सकती हैं. पहली तो यही कि 26 जनवरी के हंगामे में उसका तन और मन दोनों घायल हैं. यह सही है कि पहली बार वह इस क़दर असहाय दिखी. राजनीतिक दबाव के तहत वह कार्रवाई करने की भी आदी है और रोकने की भी, लेकिन लाल क़िले जैसा मंज़र उसके सामने पहले नहीं आया था. तो अब प्रतिशोध में उसकी लाठी उसी पीठ पर पड़ेगी जिस पर किसी सत्ताधारी नेता का हाथ नहीं होगा. 

लेकिन दूसरी वजह ज़्यादा संगीन लगती है. यह भारतीय राष्ट्र राज्य की प्रकृति को बदलने की कोशिश का प्रमाण है. बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और अब मार्गदर्शक मंडल में धकेल दिए गए लालकृष्ण आडवाणी अक्सर यह शिकायत करते थे कि भारतीय राष्ट्र राज्य बहुत नरम है, इसे सख़्त होना चाहिए. यह अलग बात है कि जब ऐसा करने का अवसर आया तो अटल-आडवाणी की सरकार सख़्त या नरम नहीं, लचर नज़र आई. यह देश की अब तक की इकलौती सरकार है जिसने 2000 के कंधार विमान अपहरण कांड में अपने विदेश मंत्री को तीन खूंखार आतंकियों को सीमा पार सुरक्षित पहुंचाने की ज़िम्मेदारी दी. जाहिर है, यह राष्ट्र राज्य न उदार है न नरम है, बस ढुलमुल है. मोदी सरकार भी इसे सख़्त नहीं बना पा रही. सख़्ती बरतने के लिए भी चुस्ती और ईमानदारी चाहिए, कौशल और सरोकार चाहिए. इसमें नाकाम रहने वाली सरकार अब एक क्रूर राष्ट्र राज्य बना रही है. वह अपने नागरिकों को आंदोलन करने नहीं देती, प्रतिरोध करने नहीं देती, जो ऐसा करने निकलते हैं, उन्हें देशद्रोही, नक्सली, आतंकवादी, ख़ालिस्तानी, कुछ भी बता डालती है. वह अपने नौजवानों को फ़र्ज़ी आरोपों में गिरफ़्तार करती है, वह हिंसा और दंगों की जांच को मनमाने ढंग से बदलती है और बीमार बुज़ुर्गों को जेल में डालती है, वह नागरिकों को दंगाइयों में बदलती है और दंगाइयों को शह देती है. भीमा कोरेगांव की हिंसा और दिल्ली के दंगों की जांच में जो कुछ हो रहा है, उसे आप किसान आंदोलन और दिशा रवि जैसे युवाओं के साथ सरकार के सलूक के साथ जोड़ कर देख सकते हैं. लेकिन क्रूरत ताक़त नहीं, कमज़ोरी से पैदा होती है और अंततः कमज़ोर बनाती है. सरकार यह नहीं समझ रही कि इससे भारतीय राष्ट्र राज्य अपनी नैतिक शक्ति खो रहा है. यही वजह है कि दुनिया भर से ग्रेटा थनबर्ग जैसी जलवायु कार्यकर्ता से लेकर रिहाना जैसी कलाकार भी किसान आंदोलन के पक्ष में आवाज़ उठा रही है. 

तीसरी बात यह कि इस कार्रवाई से सरकार दो और लक्ष्य हासिल करना चाहती है. वह यह संदेश देना चाहती है कि अगर आप किसी सरकारी क़दम या किसी सरकारी क़ानून का विरोध करते हैं तो इसकी सज़ा भुगतने को तैयार रहें. हरियाणा में आंदोलन में शामिल होने वाले सरकारी कर्मचारियों पर कार्रवाई किए जाने की ख़बर है. वैसे दिशा रवि जैसी लड़की पर कार्रवाई का एक और मतलब है. पर्यावरण या जलवायु से जुड़े आंदोलन सरकार का सरदर्द होने जा रहे हैं. युवा पीढ़ी को ये मुद्दे बहुत तेज़ी से आकर्षित करते हैं. इनके आधार पर किसी भी तरह की गोलबंदी आसान है. जब यह पर्यावरण आंदोलन किसान आंदोलन से जुड़ेगा तो दोनों की धार कुछ और तीखी हो जाएगी. दिशा रवि जैसे युवाओं की गिरफ़्तारी इसे रोक सकती है. 

टूल किट पर लौटें. कोई भी आंदोलन, संस्थान या समूह अपने लक्ष्यों के लिए टूल किट बना सकता है. पहले भी ये टूल किट बनते रहे हैं. लेकिन ग्रेटा थनबर्ग द्वारा ट्वीट किया गया टूल किट आने पर सरकार ऐसे चौंक रही है जैसे पहली बार उसने इसका नाम सुना हो. यह नादानी से ज़्यादा सयानापन है- टूल किट जैसे किसी दस्तावेज़ को जबरन आतंक और अलगाववाद का दस्तावेज़ साबित करने का सयानापन. दरअसल अब प्रतिरोध के तमाम आंदोलनों से निबटने के कई गुर सरकार ने विकसित कर लिए हैं और उन्हें लगभग एक ही तरह से अमल में लाया जाता है. क्या यह दमन का वह टूल किट है जिसे सरकार ने इन वर्षों में तैयार किया है? 

प्रियदर्शन NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...

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