शिवसेना ने दिखाया कि बीजेपी को सहयोगी दलों को धोखा देना कितना महंगा पड़ेगा...

भले ही शिवसेना और कांग्रेस पहली बार गठबंधन सरकार चलाने के लिए साथ आई हों, लेकिन दोनों के बीच यह सहयोग इतिहास में दर्ज हो गया है.

शिवसेना ने दिखाया कि बीजेपी को सहयोगी दलों को धोखा देना कितना महंगा पड़ेगा...

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद जिस तरह के घटनाक्रम सामने आए, उससे ये साफ है कि ये ऐसा राज्य है जो केंद्र द्वारा इसके लिए निर्धारित हर मानदंड को धता बताता रहा है और अपने लोगों के हितों की रक्षा के लिए हर संस्था को चुनौती देता रहेगा. इस पूरे संदर्भ और गौरव गाथा को समझने के लिए हमें याद रखना होगा कि किस तरह से छत्रपति शिवाजी के दृढ़ निश्चय की बदौलत दिल्ली के शासकों का प्रभुत्व कमजोर पड़ गया था.

2014 के बाद मोदी और शाह के नेतृत्व में बीजेपी का उदय अभूतपूर्व रहा है. 2019 के चुनावों में पार्टी ने अपनी पकड़ और मजबूत बनाई है. केंद्र में भाजपा के उदय के पीछे कमजोर विपक्ष तो वजह था ही. साथ ही पार्टी के खुद के सहयोगियों  ने भी इसकी कीमत चुकाई, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों के ठीक बाद हुए विधानसभा चुनावों से यह साफ हो गया कि जनता को किसी भी एक दल का प्रभुत्व स्वीकार नहीं है.  बीजेपी हरियाणा और महाराष्ट्र में क्लीन स्वीप का दावा कर रही थी, लेकिन नतीजे इससे उलट रहे.  महाराष्ट्र की बात करें तो यहां बीजेपी की राह में चुनौती खुद लंबे समय तक उसकी सहयोगी रही शिवसेना बनी. 

mrqh1qngशिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस महाराष्ट्र में कल सरकार बनाएंगे. 

बीजेपी और शिवसेना करीब तीन दशक तक साथ रहे. हर उतार-चढ़ाव में दोनों दलों का साथ बना रहा. सत्ता में रहे हों या नहीं. उन दिनों भी, जब लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में पार्टी राज्य में अपनी जगह बनाने में जुटी थी और बाला साहब ठाकरे की शिवसेना समर्थन में थी और तब भी जब अमित शाह और उद्धव ठाकरे के रूप में दोनों दलों को नया नेतृत्व मिला.  हालांकि दोनों दलों के नेतृत्व परिवर्तन के बाद स्थितियां भी बदलीं और 2014 में शिवसेना ने अलग राह पकड़ी. हालांकि चुनाव के बाद वह फिर एनडीए में लौट आई.  हालांकि, राज्य में सत्ता का बंटवारा बराबर नहीं था, जो गठबंधन में दरार की वजह बना. लेकिन शिवसेना ने गठबंधन के रूप में मिले जनादेश को स्वीकार करते हुए महाराष्ट्र के लोगों के हित को सर्वोपरि रखा और इसे इसी रूप में स्वीकार किया.  

kc71jb6gसीएम पद का उम्मीदवार घोषित होने के बाद उद्धव ठाकरे ने अपने पिता बाला साहब ठाकरे को याद किया. 

एक ऐसी क्षेत्रीय पार्टी, जिसके वोट शेयर में लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बढ़ोतरी हुई, जो अपनी क्षेत्रीय आकांक्षाओं को मजबूत करते हुए गठबंधन से परे आगे बढ़ना चाहती थी, उसे हर कदम पर नाकामी नसीब हुई. ऐसे में शिवसेना के लिए यही सही समय था अपनी जगह बनाने और इसे और मजबूत करने का. ऐसा प्रतीत हो रहा था कि इस गठबंधन का उद्देश्य बीजेपी के लिए एक क्षेत्रीय पार्टी को समाप्त करना और राज्य में प्रभुत्व जमाना भर रह गया था.  हालांकि तमाम असहमतियों के बावजूद, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के उद्धव ठाकरे को इस वादे के साथ कि शीर्ष पद समेत सत्ता का बंटवारा बराबर होगा, दोनों दलों के बीच चुनाव पूर्व गठबंधन हुआ. बीजेपी की राज्य इकाई के अनुरोध पर शिवसेना कुछ सीटों पर अपना दावा छोड़ने को भी तैयार हो गई. हालांकि इसके बावजूद चुनाव नतीजे न तो बीजेपी की अपेक्षाओं के अनुरूप रहे और न ही शिवसेना के. इसके बाद देवेंद्र फडणवीस ने बगैर शिवसेना से बात किये और तमाम वादों को दरकिनार करते हुए खुद को मुख्यमंत्री घोषित कर दिया, जो 'ताबूत में आखिरी कील' साबित हुआ. इससे यह भी साफ हो गया कि बीजेपी शिवसेना के साथ सत्ता का बंटवारा तो चाहती थी, लेकिन गठबंध धर्म और जिम्मेदारी निभाने को तैयार नहीं थी. इसके साथ ही यह भी साफ हो गया कि इस बार शिवसेना किसी तरह की बेइज्जती बर्दास्त करने के मूड में नहीं है. 

h1fqbv7gबीजेपी और शिवसेना का गठबंधन करीब तीन दशकों तक चला.

इसके बाद ऐसी घटनाएं हुईं, जिसकी कोई स्क्रिप्ट राइटर कल्पना तक नहीं कर सकता था. बीजेपी, जिसने पहले राज्यपाल को सूचना दी थी कि वह न तो सरकार बनाएगी और न ही किसी गठबंधन में शामिल होगी, ने अचानक यू-टर्न ले लिया और सत्ता तक पहुंचने के लिए शरद पवार की पार्टी एनसीपी में दरार डालने की कोशिश की. सत्ता तक पहुंचने की इतनी जल्दी थी कि राज्यपाल और राष्ट्रपति कार्यालय को रबर स्टैंप बना दिया. हालांकि उन्हें इस बात की जरा भी उम्मीद नहीं थी कि शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस से इस हद तक टक्कर मिलेगी. तीनों दलों ने संवैधानिक नियम-कायदों को ताक पर रखकर बनी इस सरकार से निपटने के लिए पूरे जी-जान के साथ रणनीति बनाई. एक तरफ एनसीपी अपने सारे विधायकों को एकजुट करने में लगी थी, तो दूसरी तरफ शिवसेना विधायकों को सुरक्षित रखने के लिए इंतजामात में जुटी थी. वहीं दूसरी तरफ, कांग्रेस ने पूरे दमखम के साथ सुप्रीम कोर्ट में यह लड़ाई लड़ी. 

b6ogiprgशिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के विधायकों ने शक्ति प्रदर्शन किया.

बीजेपी की अगुवाई में तमाम संवैधानिक प्रक्रियाओं को ताक पर रखकर सत्ता हासिल करना आदर्श बन गया है और इस तरह के जुए को 'मास्टरस्ट्रोक' कहा जाने लगा है. खासकर मृतप्राय मीडिया को इस तरह की किसी भी हरकत को 'चाणक्य नीति' कहने से पहले संयम बरतने की जरूरत है. देश की जनता ने अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, मेघालय और कर्नाटक में देखा है कि किस तरह जरूरी संख्या न होने के बावजूद बीजेपी सत्ता की कुर्सी तक पहुंची. महाराष्ट्र इस तरह के किसी भी कदम के आगे झुकने वाला नहीं था और सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि संविधान सर्वोपरि बना रहे.  


ckn1vmjoउद्धव ठाकरे और उनकी पत्नी रश्मि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के साथ...

महाराष्ट्र की इस लड़ाई ने भारत की शक्ति की गतिशीलता में एक ऐतिहासिक और अहम बदलाव देखा है. भले ही शिवसेना और कांग्रेस पहली बार गठबंधन सरकार चलाने के लिए साथ आई हों, लेकिन दोनों के बीच यह सहयोग इतिहास में दर्ज हो गया है. शरद पवार की पार्टी एनसीपी और शिवसेना जैसी दो अहम क्षेत्रीय पार्टियां साथ आई हैं, ताकि महाराष्ट्र को ऐसा शासन मिल सके, जिसका वो हकदार है. वे लोग, जो यह कह रहे हैं कि यह गठबंधन ज्यादा दिन चलेगा, वे एक बार फिर गलतियों का 'मास्टरस्ट्रोक' चल रहे हैं. इस गठबंधन को मजबूत बने रहना होगा, ताकि लोकतंत्र के सिद्धांतों को और मजबूत किया जा सके और सत्ता संतुलन बना रहे. वहीं, दूसरी तरफ विभिन्न राज्यों की सत्ता की भागीदारी में दिसंबर 2017 में 71 प्रतिशत से नवंबर 2019 में 40 प्रतिशत तक खिसक चुकी बीजेपी को निश्चित तौर पर अपनी उन रणनीतियों और राजनीतिक युद्धाभ्यासों के बारे में दोबारा सोचने की जरूरत है, जिनकी वजह से वह अपने तमाम वादों और सहयोगियों से अलग हो रही है.

हमारे शहर की शान बॉलीवुड के शब्‍दों में उन सभी लोगों के लिए एक सलाह है जिन्‍हें शिवसेना के बारे में लिखने की जल्‍दी रहती है... ''पिक्चर अभी बाकी है, क्योंकि टाइगर जिंदा है''

(प्रियंका चतुर्वेदी शिवसेना की उपनेता और राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं.)  

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