प्रियंका गांधी वाड्रा: अपना भी टाइम आएगा

उत्तर प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर की माने तो प्रियंका ने पूर्वी उत्तर प्रदेश के चार हजार कार्यकत्ताओं से मुलाकात कर इन ईलाकों के लिए एक खाका तैयार कर लिया है.

प्रियंका गांधी वाड्रा: अपना भी टाइम आएगा

प्रियंका गांधी का लखनऊ में रोड शो.

प्रियंका गांधी वाड्रा का लखनऊ दौरा को कई मायनों में कांग्रेस के लिए एक गेम चेंजर या कहें कई समस्याओं के हल के रूप में देखा जा रहा है. तीन दिनों के अपने लखनऊ प्रवास के दौरान प्रियंका ने दिन रात बैठकें करके करीब चार हजार कांग्रेस कार्यकर्ताओं से मुलाकात की. यदि उत्तर प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर की माने तो प्रियंका ने पूर्वी उत्तर प्रदेश के चार हजार कार्यकत्ताओं से मुलाकात कर इन ईलाकों के लिए एक खाका तैयार कर लिया है और उनके पास एक रणनीति भी है जो कांग्रेस को इन ईलाकों में फिर से जिंदा कर सकती है.

कांग्रेसी ये मानते है कि 2009 में कांग्रेस को 21 जगहों पर सफलता मिली थी तो फिर उसे 2019 में क्यों नहीं दोहराया जा सकता है. कांग्रेसी ऐसा इसलिए भी कह रहे हैं कि प्रियंका का चार हजार कार्यकर्ताओं से मिलने का मतलब है पूर्वी उत्तरप्रदेश के हर विधानसभा क्षेत्र के कम से कम 10 से 15 कार्यकर्ताओं से मुलाकात होना, उनकी बात सुनना और फीडबैक लेना. यदि इन जानकारियों और सूचनाओं को अच्छे से इकट्ठा किया जाए तो एक ऐसा पुलिंदा तैयार किया जा सकता है जो प्रियंका के लिए एक गाईड बुक की तरह काम करेगा.

ऐसा नहीं था कि प्रियंका से मिलने जो लोग लखनऊ पहुंचे थे उसमें केवल विधायक या पूर्व विधायक या सांसद या निगम पार्षद ही थे. जी नहीं, लखनऊ में हमें ढेरों युवा तो दिखे ही मगर ऐसे लोग भी हमें मिले जो इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के समय के थे मगर पिछले एक दशक से घर बैठ गए थे मायूस हो कर कि अब इस पार्टी का कुछ नहीं हो सकता. मगर प्रियंका के इस दौरे ने उनके अंदर एक उम्मीद पैदा की है उनको भी अहसास होने लगा है कि अपना भी टाईम आएगा. कई बुजुर्गों ने हमसे कहा कि 'बिटिया ने बुलाईन हैं इसलिए आए हैं'. इसलिए उनमें एक उत्साह तो जरूर था कि चलो कोई तो मेरी बात सुन रहा है. 

यही वजह है कि लखनऊ के प्रियंका के रोड शो में जो भीड़ उमड़ी थी, उसने लखनऊ को पाट दिया है. इसमें लखनऊ के ही नहीं पूरे उत्तरप्रदेश के कार्यकर्ता शामिल थे. मगर वहां आए लोग यह भी कह रहे थे कि केवल इस एक मीटिंग से कुछ नहीं होगा प्रियंका को अब लखनऊ में बैठना पड़ेगा. उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रियंका को भी इसका अहसास होगा. मगर यदि प्रियंका कुछ ठान लें तो कांग्रेस यहां कुछ कर सकती है क्योंकि यही वो क्षेत्र है जहां से 2009 में कांग्रेस को सबसे ज्यादा सफलता मिली थी. इन इलाकों में कांग्रेस का वोट या कहें समर्थक मौजूद है. मगर वह घर बैठा है. जरा सोचिए बनारस जैसी जगह पर 2014 में प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ कांग्रेस उम्मीदवार को करीब लाख वोट मिले थे जबकि अरविंद केजरीवाल भी चुनाव मैदान में थे एक वोटकटवा की भूमिका में.

यही नहीं पूर्वी उत्तरप्रदेश का यह इलाका सर्वणों खासकर ब्राह्मण और भूमिहारों के दबदबा वाला जाना जाता है. साथ ही यहां मुस्लिम आबादी भी खासी संख्या में है और कांग्रेस की रणनीति भी यही होगी कि इनको वो अपने वोट में तब्दील करें क्योंकि दो दशक पहले तक तो ये कांग्रेस के साथ थे फिर बीएसपी के उदय के बाद दलित उनसे अलग हो गया. बाबरी कांड के बाद मुस्लिम उनसे छिटक गया मगर अब प्रियंका के सामने चुनौती है कि इन्हें कैसे कांग्रेस के पाले में लाया जाए. 

प्रियंका में एक अपील तो है और लोगों से जुड़े की कला भी. मगर राजनीति में इससे बहुत कुछ अधिक चाहिए होता है. प्रियंका को कांग्रेस को हर गांव, कस्बा, शहर और जिलों में खड़ा करना होगा क्योंकि पिछले दो दशकों में उसका संगठन गायब-सा हो गया है. जब तक हर बूथ पर कांग्रेस का कार्यकर्ता नहीं होगा, तब तक पूर्वी उत्तरप्रदेश में कांग्रेस को सफलता मिलना एक सपने से कम नहीं है. मगर उन कांग्रेसियों को क्या कहें जो प्रियंका के आने के बाद से कह रहे हैं कि अपना भी दिन आएगा.

(मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल न्यूज़' हैं...)

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