प्रचार के मैदान में जंग छिड़ी है, विकास के आसमान से झांकती ग़रीबी है

41 साल बाद भारतीय हॉकी टीम ने ओलिंपिक में पदक जीता है. 1980 में भारत ने स्वर्ण पदक जीता था. उसके बाद से 40 साल तक कोई पदक नहीं जीता. 41वें साल में टोक्यो ओलंपिक में भारत ने जर्मनी को 5-4 से हराकर कांस्य पदक जीता है. भारत की टीम आज जर्मनी पर हावी रही खासकर दूसरे हिस्से में और भी हावी हो गई लेकिन इस जीत के बाद प्रचार के स्पेस में हावी होने की होड़ शुरू हो गई.

41 साल बाद भारतीय हॉकी टीम ने ओलिंपिक में पदक जीता है. 1980 में भारत ने स्वर्ण पदक जीता था. उसके बाद से 40 साल तक कोई पदक नहीं जीता. 41वें साल में टोक्यो ओलंपिक में भारत ने जर्मनी को 5-4 से हराकर कांस्य पदक जीता है. भारत की टीम आज जर्मनी पर हावी रही खासकर दूसरे हिस्से में और भी हावी हो गई लेकिन इस जीत के बाद प्रचार के स्पेस में हावी होने की होड़ शुरू हो गई. जीत या हार के बाद खिलाड़ियों से बात करना उनका हौसला बढ़ाना, अच्छा है लेकिन इस अच्छाई में कुछ और भी दिख रहा है, जो अच्छा लगते हुए भी वैसा अच्छा नहीं लग रहा है जैसा अच्छा लगना चाहिए.

जिस समय व्हाट्सएप के इनबाक्स में एक वीडियो छलांग लगाता हुआ आया कि प्रधानमंत्री मोदी ने जीत के बाद हॉकी के खिलाड़ियों से बात की है उसी समय एक और वीडियो छलांग लगाता हुआ बैकवर्ड से फार्वर्ड प्वाइंट पर आ गया कि ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने भी खिलाड़िओं से बात की है. आज उनका वीडियो भी पूरी तैयारी से दिल्ली के मीडिया में लांच कर जाता है. हम प्रधानमंत्री का वीडियो नहीं दिखा पा रहे हैं क्योंकि इंटरनेशनल ओलिंपिक कमेटी के नियम के अनुसार खेल के मैदान में कोई रिकार्डिंग नहीं हो सकती है और न चैनल दिखाई जा सकती है. लगता है प्रधानमंत्री की टीम से यह चूक हो गई. नवीन पटनायक का इसलिए दिखा रहे हैं कि उन्होंने खेलगांव में खिलाड़ियों से बात की है. धीर गंभीर पटनायक ने इस मामले में कोई चूक नहीं की. नवीन पटनायक ट्वीटर पर ट्रेंड करने लगे.

एक चीज़ और बदल रही है. यह प्रक्रिया पहले भी मौजूद थी लेकिन अब इसका स्वरुप बड़ा हो गया. मैच देखते हुए दर्शकों की जगह मैच देखते हुए राजनीतिक कार्यकर्ताओं और नेताओं ने ले ली है. विशुद्ध दर्शक की जगह किसी और ने ले ली है. वही दर्शक है औऱ वही राजनेता है और मंत्री है.

खिलाड़ी की एक ही जाति होती है खेल की लेकिन जब वह समाज में रहता है और खेल के मैदान से समाज में लौटता है तब उसकी एक जाति होती है. धर्म भी होता है. समाज कभी नहीं भूलता है. बुधवार को जब महिला हॉकी टीम की खिलाड़ी वंदना कटारिया मैदान पर संघर्ष कर रही थीं तो हरिद्वार में उनके घर पर परिवार के सदस्य उनकी जीत की कामना कर रहे थे. पूरा परिवार उस देश की कल्पना में समाहित था जहां हर तरह की पहचान मिट कर एक भारतीय की पहचान हो जाती है लेकिन तभी कोई आया और उस पहचान से निकाल कर उन्हें बाहर कर गया. बता गया कि उनकी जाति क्या है. हमारे सहयोगी राहुल ने बताया है कि टीम के हार जाने के बाद बाहर कुछ लोग पटाखे छोड़ने लगे. कहने लगे कि इसलिए हारी क्योंकि टीम में बहुत दलित खिलाड़ी थीं. जाति को लेकर गालियां दीं और परिवार का अपमान किया. वंदना कटारिया के भाई चंद्रशेखर कटारिया ने पुलिस को शिकायत कर दी.

ट्वि‍टर पर रहने वाले जिन लोगों को लगता है कि भारत में जाति का भेदभाव खत्म हो गया है वो अपने घर और समाज में पता कर सकते हैं. बुधवार के प्राइम टाइम में जब मैं कह रहा था कि यह समाज लड़कियों की झूठी तारीफ करता है भीतर भीतर उनसे दहेज़ लेने की प्लानिंग करता है तो मुझे पता नहीं था कि यह समाज इस बात को भी साबित करना चाहता है कि बेटियों को ताने मारने के अलावा वो बेटियों को जाति के भी ताने मारता है. बरसों से पटाखे छोड़ने के नाम पर इस देश में एक समुदाय को कंलकित किया गया उसके प्रति सांप्रदायिक द्वेष फैलाया गया. पाकिस्तान की जीत पर पटाखे के नाम पर न जाने कितने मुस्लिम लड़के जेल गए और मुकदमों में उलझे लेकिन यह सच्चाई कभी सामने नहीं आई जो हरिद्वार से आई है.

इस घटना को शर्मनाक मत कहिए क्योंकि जिन्हें शर्म आनी चाहिए उन्हें फिर भी नहीं आएगी. वो इस जातिवाद के साथ दिन रात जीते हैं और ट्वि‍टर पर कुछ समय के लिए भारतीय बन कर इंडिया इंडिया करते हैं. शाहरुख ख़ान ने हाकी टीम के कोच की ट्वीट पर इतना लिख दिया कि एक अरब के परिवार के लिए गोल्ड जीत कर लाना तो इस बात पर उन्हें ट्रोल कर दिया गया और सांप्रदायिक बातें लिखी गईं. हम जिसे शर्मनाक कहते हैं उसे इस देश के करोड़ों लोग गर्व के साथ जीते हैं. दूसरों की जाति और धर्म नहीं भूलते.

विपक्ष वाकई दिखाई नहीं दे रहा है और न कुछ कर रहा है, इस तरह की धारणा के बीच जंतर मंतर पर यूथ कांग्रेस ने एक बड़ी सभा की. बेरोज़गारी, महंगाई और पेगासस जासूसी कांड को लेकर यूथ कांग्रेस संसद तक मार्च करना चाहता था जिसकी इजाज़त नहीं मिली. 74 साल के दिग्विजय सिंह बैरिकेड से कूद गए. यहां काफी लोग तो दिख रहे हैं लेकिन कोविड उचित व्यवहार नहीं दिख रहा है. मास्क नहीं दिख रहा है. हम अभी-अभी कोरोना की दूसरी लहर से उबरे हैं. यह अच्छा नहीं है. अगर इन बातों को ख्याल नहीं रखा जाएगा तब तो एक समस्या के लिए लड़ते-लड़ते दूसरी हज़ार समस्याएं पैदा हो जाएंगी. बड़ी तादाद में पुलिस बल भी तैनात किया गया था. यूथ कांग्रेस को रोकने के लिए पानी की बौछारें की गईं और कार्यकर्ताओं को हिरासत में भी लिया गया. इस सभा को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि लोकसभा में सासंद विरोध करते हैं तो लोकसभा टीवी नहीं दिखाता है. दिल्ली में बलात्कार की खबर मीडिया नहीं दिखा रहा है.

बेरोज़गारी पर सरकार अधिकृत तरीके से कोई आंकड़ा जारी नहीं करती है. श्रम पर संसदीय समिति की रिपोर्ट आई तो उसमें भी निजी संस्था CMIE ज़िक्र है. जिसके अनुसार जुलाई महीने में 32 लाख लोगों की नौकरी चली गई. सरकार बेरोज़गारी के आंकड़े नहीं बताती है. लेकिन आई टी मंत्री अश्विनी वैश्नव मनीकंट्रोल की खबर को ट्वीट करना नहीं भूलते कि आईटी सेक्टर की दस बड़ी कंपनियों ने छह महीनों में सवा लाख लोगों को रोज़गार दिया है जो पांच साल में रिकार्ड है. जब सरकार आईटी सेक्टर में रोज़गार की संख्या बता सकती है तो दूसरे सेक्टर में कितनों को रोज़गार मिला और कितनों की नौकरी चली गई क्यों नहीं बताती है.

जुलाई में 32 लाख लोगों की नौकरी चली गई, खबर यह भी छपी है लेकिन आईटी मंत्री या कोई भी मंत्री इस खबर को ट्वीट नहीं करेंगे. मार्च 2020 से मार्च 2021 के बीच कितने लोगों की नौकरी गई यह आंकड़ा सरकार के पास नहीं है. लेकिन भारत की गरीबी और आर्थिक तंगी के आंकड़े उसी सरकारी कार्यक्रम से बाहर आ जा रहे हैं जिनका आयोजन सरकार अपनी कामयाबी के लिए करती है.

अंग्रेज़ी के अखबार में अन्न महोत्सव का विज्ञापन छपा है. हर विज्ञापन का एक टारगेट ऑडिएंस होता है. अंग्रेज़ी के पाठक विज्ञापन के टारगेट हो सकते हैं लेकिन मुफ्त अनाज के हैं या नहीं यह जानकारी मिलती तो उस सच्चाई को बल मिलता कि इस वक्त भारत की आम जनता खाने पीने को लेकर संकट में है. इस विज्ञापन में यहां सबसे किनारे लिखा है कि 15 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज योजना का लाभ मिलेगा. लाभार्थी की संख्या इस विज्ञापन में सबसे कम महत्वपूर्ण है. उससे पहले यह बताया गया है कि पचीस किलो भार क्षमता वाले थैले में अनाज का वितरण होगा. थैले पर प्रधानमंत्री की तस्वीर है. साथ में मुख्यमंत्री की भी.

यूपी में 15 करोड़ लोग मुफ्त अनाज पर आश्रित हैं. यह आंकड़ा काफी है विकास के सभी दावों को चुनौती देने के लिए. इसका मतलब है कि विकास के साथ लोगों की आमदनी का स्तर नहीं बढ़ा है. आगरा में इस कार्यक्रम के लिए राशन की दुकानों को विशेष रूप से सजाया गया है. प्रधानमंत्री के कट आउट लगाए गए. मुफ्त अनाज के लिए लंबी लाइन लगी है. यहां लाइन में हर किसी की अलग कहानी है, नौकरी जाने और पहले की तरह मज़दूरी न मिलने की कहानी. अगर यह योजना न होती तो वाकई लोग भूख और बीमारी के शिकार हो जाते. स्मृति ईरानी ने राज्यसभा में बताया है कि यूपी में करीब चार लाख बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं. भारत में करीब साढ़े नौ लाख कुपोषित बच्चों की संख्या है इसमें से 40% कुपोषित बच्चे यूपी के हैं. ये बच्चे छह महीने से छह साल की उम्र के हैं. अन्न महोत्सव को महोत्सव तब कहा जाता जब जनता के घर में पैसा होता, अन्न होता.

प्रधानमंत्री अन्न महोत्सव का शुभारंभ कर रहे थे, उन्हें अंदाज़ा था कि संसद में और दिल्ली में विपक्ष बेरोज़गारी, महंगाई और पेगासस जासूसी कांड को लेकर सवाल उठा रहा है. प्रधानमंत्री ने कहा कि देश सिद्धियां प्राप्त कर रहा है और विपक्ष सेल्फ गोल कर रहा है.

“एक तरफ हमारा देश, हमारे युवा भारत के लिए नई सिद्धियां प्राप्त कर रहे हैं, जीत का Goal कर रहे हैं तो वहीं देश में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो राजनीतिक स्वार्थ में Self Goal करने में जुटे हैं.” “ये लोग देश को, देश के विकास को रोकने की कितनी भी कोशिश कर लें, ये देश इनसे रुकने वाला नहीं है.”

विकास किसी के रोके नहीं रुक रहा है, उसके बाद यह हाल है कि 23 करोड़ की आबादी वाले राज्य यूपी में 15 करोड़ लोग मुफ्त अनाज की योजना पर जी रहे हैं. यह तो अनाज का आंकड़ा है. इसके अलावा सरकार नगद पैसे भी देती है. इसका मूल्यांकन करना चाहिए कि इतना बड़ा सपोर्ट लोगों के किसी तरह पेट भरने तक के लिए ही है या इसके कारण उनके जीवन स्तर में सुधार भी होता है. आर्थिक स्तर बेहतर होता है. यूपी को अब से आप एक टीवी स्क्रीन की तरह देखिए. जहां तरह-तरह के विज्ञापन तेज़ी से बदलते नज़र आएंगे. कौन कितना दिखता है इसका जवाब तो रिसर्च से ही दिया जा सकता है. लेकिन दिखने की होड़ तो ज़बरदस्त मची है.

विपक्ष भी दिखाई दे इसलिए भी समाजवादी पार्टी ने साइकिल यात्रा निकाली, अब कितना दिखाया गया इस पर आप दर्शक ही बेहतर टिप्पणी करें. सपा कार्यलाय से जनेश्वर मिश्रा पार्क तक दस किलोमीटर की यात्रा थी. अखिलेश यादव ने भी साइकिल चलाई. सपा के लिए यह 2022 के चुनावी अभियान की शुरूआत भी है. इस यात्रा से पहले प्रेस को संबोधित करते हुए अखिलेश यादव ने कहा कि यूपी अब दूसरे मामलों में नंबर वन है. अमित शाह ने कहा था कि विपक्ष हार के लिए तैयार हो जाए तो अखिलेश ने कहा कि जनता इतनी नाराज़ है कि सपा 400 सीटें न जीत ले. यूपी कुपोषण, गंगा में लाशें बहाने और चिता जलाने में नंवबर है. विशेष जाति और धर्म पर अत्याचार के मामले में नंबर वन है. इतनी बड़ी संख्या में सपा के कार्यकर्ता साइकिल लेकर आए हैं. यहां भी मास्क और कोविड उचित व्यवहार नहीं है. इन तस्वीरों को देखते हुए, दिखाते हुए बार बार याद करना और याद दिलाना ज़रूरी है. तीसरी लहर की आशंका के बीच ये तस्वीरें डराने वाली भी हैं. बंगाल में प्रधानमंत्री की रैली को लेकर इसी तरह की आलोचना हुई थी.

जब लखनऊ में सपा की साइकिलों की भीड़ दिख रही थी तभी अयोध्या में योगी आदित्यनाथ पूजा कर रहे थे. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राम मंदिर परिसर में चार घंटे बिताए. पिछले साल इसी 5 अगस्त को भूमिपूजन हुआ था. सूत्रों के हवाले से खबरें भी छपी हैं कि 2025 तक मंदिर निर्माण का कार्य पूरा हो जाएगा लेकिन दिसंबर 2023 से ही दर्शन के लिए खोल दिया जाएगा. अखिलेश साइकिल पर हैं और योगी जी मंदिर में. चुनाव में सियासी संग्राम किन प्रतीकों के आधार पर होने जा रहा है बहुत तेज़ी से साफ हो रहा है. क्या बेरोज़गारी और आर्थिक संकट का मुद्दा राम मंदिर के सामने टिक पाएगा?

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यूपी को यहीं रहने देते हैं. मध्य प्रदेश चलते हैं. यहां ग्वालियर चंबल संभाग भीषण बाढ़ की चपेट में है. दो दिन के भीतर 3000 करोड़ की लागत से बने छह पुल बह गए हैं. हमारी बात दिखने की होड़ से शुरू हुई थी. पेगासस की खबर दिखनी बंद हो गई है लेकिन इस खबर का अस्तित्व मिटा नहीं है. पेगासस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. अदालत ने जासूसी को गंभीर तो माना लेकिन कई सवाल भी पूछे. सभी पक्षों को सुनने के बाद कहा कि याचिकाकर्ता अपनी याचिकाएं केंद्र सरकार को भी दें और केंद्र का पक्ष सुनने के लिए दस अगस्त को बुलाया है.