आक्रोश जायज़ है पागलपन नहीं

ज़ाहिर है जानकारियां बदलेंगी. कई एजेंसियां जांच कर रही हैं. एजेंसियों के सामने सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि एक चाक चौबंद हाईवे पर विस्फोटक से भरी गाड़ी कैसे आ गई.

आक्रोश जायज़ है पागलपन नहीं

केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल ने शहीदों की सूची जारी की है. एक तरफ शहीदों के नाम हैं. बगल में गांव, कस्बे और ज़िले का पता है. सबसे किनारे उन पत्नियों के नाम हैं जिनके फोन नंबर हैं. इन्हीं नंबरों पर पतियों के होने का फोन आता रहा होगा, इन्हीं नंबरों पर अंतिम बार सूचना आई होगी. इससे पहले कि चैनलों की बंज़र ज़मीन हथियारबंद सैनिकों की कदमताल करती तस्वीरों से भर जाएं, हम उन नामों को आपके लिए पढ़ना चाहते है जिनके घर में अब फौजी बूट की कदमताल अब कभी सुनाई नहीं देगी. शाज़िया क़ौसर, सुखजीत कौर, सरबजीत कौर, सावित्री देवी, कर्मेला सोरेंग, शीना बी, सुष्मा एस राजपूत, ममता रावत, नीरज देवी, रूबी देवी मीना गौतम, मीता सांतरा, संमति बसुमतारी, सरिता देवी, शकुंतला देवी, गीता देवी. आज से ये औरतें एक नई जंग की तरफ प्रस्थान करती हैं. शायद उनके अकेले की जंग अब शुरू होती है. इन औरतों के शोक में एक बार आप शामिल होकर देखिए, आपके भीतर का गुस्सा आपसे एक सवाल करेगा. क्या ये गुस्सा वाकई औरतों के लिए है? जब ये औरतें आपसे एक सवाल करेंगे कि क्या आपका गुस्सा उनके लिए ही था, तब आप क्या जवाब देंगे? आक्रोश जायज़ है. आक्रोश के नाम पर उन्माद जायज़ नहीं है. होश खो देने का विकल्प इनके पास नहीं है. होश में बने रहने का विकल्प हमारे पास है. एक दिन ये औरतें हमसे पूछेंगी कि जब हमारे पास होश खोने का विकल्प नहीं था तब हमने उन्माद सनक पागलपन के हालात क्यों पैदा किए. सीमा के भीतर और सीमा पर तनाव क्यों पैदा किए.

इन औरतों के सवालों के जवाब दुनिया में किसी के पास कभी भी नहीं थे. कभी होंगे भी नहीं. हमले को लेकर नई-नई जानकारियां आ रही हैं. पहले जानकारी थी कि 350 किलो विस्फोटक से भरी स्कोर्पियो बस से टकरा गई थी मगर अब जानकारी आ रही है कि 60 किलो विस्फोटक था और वो कार थी. इतना ताकतवर था कि जिस्म 80 मीटर दूर तक जा गिरा था. यह भी जानकारी आई है कि कार बस से टकराई नहीं गई बल्कि उड़ाई गई थी. धमाके का दायरा 150 मीटर तक था.

ज़ाहिर है जानकारियां बदलेंगी. कई एजेंसियां जांच कर रही हैं. एजेंसियों के सामने सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि एक चाक चौबंद हाईवे पर विस्फोटक से भरी गाड़ी कैसे आ गई. उसे उड़ाने के पीछे तैयारी की थी, इस तैयारी में कौन कौन लोग शामिल रहे होंगे. राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने प्राइम टाइम में कहा था कि सूचना थी कि पाकिस्तान बड़ा एक्शन करेगा. खुफिया एजेंसियों के पास भी जानकारी थी. बिना चेकिंग के ही विस्फोटक से भरी गाड़ी कैसे चली गई. ये कहीं न कहीं चूक है. 2500 जवानों का काफिला चलना ही चूक है. आतंकवादी हमारी एजेंसियों की जानकारी के बाद भी घटना को अंजाम देकर गए, इसलिए यह छोटी घटना नहीं है. उनकी रणनीति को नए सिरे से समझना ही होगा. यह तभी हो सकता है जब हम चूक को लेकर ईमानदार रहें. हमारे सहयोगी ऑनिन ने कुछ सवाल तैयार किए हैं.

- आत्मघाती हमले के लिए भारी मात्रा में विस्फोटक कैसे जुटाए गए होंगे
- क्या यह ISI या पाकिस्तान के स्टेट एक्टर के बग़ैर हो सकता है
- क्या बिना स्थानीय सपोर्ट के ऐसे आतंकी हमले को अंजाम दिया जा सकता है
- सुरक्षा जांच के बाद गुज़रे काफिले की जानकारी उन तक पहुंची होगी
- जब एजेंसियों के पास सूचना थी तब किस तरह का एलर्ट जारी किया गया

गृहमंत्री राजनाथ सिंह श्रीनगर गए. वहां सुरक्षा तैयारियों का जायज़ा लिया. ज़ाहिर है इन कारणों पर भी बात हुई होगी. दो दशकों में इस तरह की आतंकी कार्रवाई नहीं देखी गई. क्या इसके लिए सुरक्षा एजेंसियों को भी बदलना होगा.

गृह मंत्री राजनाथ सिंह के लिए आज का दिन मुश्किलों भरा रहा. शहीदों को न सिर्फ श्रद्धांजलि और सलामी दी बल्कि उनके पार्थिव शरीर को कंधा भी दिया. गृहमंत्री के चेहरे पर तनाव साफ देखा जा सकता था. अपने जवानों को खोना और उन्हें कंधा देना उनके लिए आसान तो नहीं रहा होगा. उनके साथ कंधा देने वालों में जम्मू कश्मीर पुलिस के प्रमुख दिलबाग सिंह भी थे. राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने भी श्रद्धांजलि दी. सीआरपीएफ के डीजी आर आर भटनागर भी थे. इसके बाद गृहमंत्री सेना के बेस अस्पताल गए जहां घायलों का इलाज चल रहा था.

गृहमंत्री ने एक बैठक भी बुलाई जिसमें राज्यपाल, गृह सचिव, जम्मू कश्मीर के मुख्य सचिव, पुलिस प्रमुख और सेना कमांडर और अन्य अधिकारी मौजूद थे. गृहमंत्री ने कहा कि उनेक अधिकारियों का हौसला बुलंद हैं. वे हताश नहीं हुए हैं. उन्होंने यह भी कहा कि जम्मू कश्मीर की जनता हमारे साथ है. गृह मंत्री ने सीआरपीएफ के काफिले को लेकर भी नए निर्देश दिए हैं.

सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने पर गृहमंत्री ने प्रमुखता से ज़ोर दिया. सयंम और ग़म से भरी भाषा में वे बार-बार इसके खतरे की चेतावनी देते रहे. आप सभी को भी गृहमंत्री की इस बात पर ध्यान देना चाहिए. आतंकी हमला हुआ है. इसका मतलब नहीं है कि कानून व्यवस्था को हाथ में लेने की छूट मिल गई है. हमें ध्यान रखना चाहिए कि आतंकी हमले का एक मकसद यह भी होता है कि जज़्बात में भीड़ अराजकता पैदा कर दे जिसका लाभ वे उठाने लगे. दुनिया भर में आतंकवाद पर रिसर्च करने वालों ने इसकी चेतावनी दी है. ऐसी घड़ी में भी राज्य को कानून के दायरे में काम करना होता है और नागरिकों को भी कानून के दायरे को बनाए रखना होता है.

सोशल मीडिया पर तेज़ी से भाषाएं संयम खो रही हैं. इस घटना के बहाने एक खास किस्म का माहौल बनाने का प्रयास दिख रहा है. भाषा में ऐसी सनक की कोई जगह नहीं होनी चाहिए. चैनलों के एंकर ललकारने की भाषा बोलकर सोशल मीडिया की इस भाषा को मान्यता दे रहे हैं. दोनों एक दूसरे के पूरक हो गए हैं. एक दूसरे को जनभावना का प्रतिनिधि बताने लगे हैं. जनभावना में संयम से काम लेने वालों की भावना भी है. जनभावना में मिलकर एक्शन लेने की भावना भी है. किसी लेखक, पत्रकार या विपक्ष के नेता को निशाना बना कर, उन्हें गालियां देकर, उन्हें मारने तक की बातें कर हम जनभावना को आवाज़ नहीं दे रहे हैं. आपको भी व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में जेएनयू से लेकर तमाम संगठनों के बारे में अनाप शनाप मेसेज मिले होंगे. ऐसे संदेशो पर ध्यान न दें. किसी ने सरकार की आलोचना की है तो इसका मतलब नहीं कि वह पुलवामा की घटना से आहत नहीं है. पुलवामा की घटना के नाम पर आलोचकों को ठिकाने लगे और उनके पीछे भीड़ को उकसाने की कोशिश ही वह खतरनाक इरादा है जिसकी तरफ राजनाथ सिंह इशारा कर रहे हैं. हमें चेतावनी दे रहे हैं कि सांप्रदायिक सौहार्द नहीं बिगड़ने देना है. ट्वि‍टर से लेकर फेसबुक पर जाकर देखिए, गाली देने वाले अभद्र तरीके से बोलने वाले कौन लोग हैं. विपक्ष के नेताओं को गालियां दी जा रही हैं. यहां तक की प्रधानमंत्री के बारे में भी अशोभनीय भाषा का इस्तमाल हुआ है. सोशल मीडिया की यह फितरत है. कोई नई बात नहीं है मगर हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम शोक में हैं. शोक की अपनी एक मर्यादा होती है. इसी मर्यादा के पालन की बात गृहमंत्री राजनाथ सिंह कर रहे हैं.

भारत ने आज पाकिस्तान को दिया मोस्ट फेवर्ड का दर्जा वापस ले लिया. भारत ने 1996 में पाकिस्तान को यह दर्जा दिया था. इसके तहत आश्वासन दिया जाता है कि एक दूसरे के साथ व्यापार में कोई भेदभाव नहीं होगा.

भारत ने पाकिस्तान के उच्चायुक्त को बुलाकर इसकी जानकारी दे दी. उच्चायुक्त सोहैल महमूद को बुलाकर कड़ा एतराज़ जताया. पाकिस्तान में भारत के राजदूत अजय बिसारिया को भी दिल्ली बुलाया गया. उनसे भी बातचीत हुई है. सरकार फिर से मसूद अज़हर को संयुक्त राष्ट्र की आतंकी सूची में नाम डलवाने के लिए प्रयास करने जा रही है. अमरीका ने भी पाकिस्तान से कहा है कि आतंकियों को समर्थन देना बंद करे. हमारे सहयोगी उमा शंकर सिंह ने जानकारी दी है कि भारत ने कई देशों के राजदूतों को बुलाकर कई बातं बताई हैं. भूटान, स्पेन, दक्षिण कोरिया, स्वीडन और फ्रांस के राजदूतों को बुलाकर ब्रीफ किया है. जर्मनी, हंगरी, इटली, यूरोपीय संघ, कनाडा, ब्रिटेन, रूस, आस्ट्रेलिया, जापान के राजदूतों को भी बैठक में बुलाया गया था. ये कूटनीतिक प्रयास किस दिशा में जा रहे हैं, अटकलें लगाना ठीक नहीं है. चीन ने भी इस घटना की निंदा की है. भारत में विपक्षी पार्टिआं भी सरकार के साथ खड़ी हैं.

लोग व्यथित हैं. मगर संयमित हैं. कई लोग कविताएं भी लिख रहे हैं. कुछ दूसरों की लिखी कविताओं को फार्वर्ड कर रहे हैं. यह भी देखना चाहिए कि ऐसे वक्त में लोग किस किस तरीके से अपनी व्यथा ज़ाहिर करते हैं.

आज लखनऊ में किसान जमा हुए थे, गन्ना आयुक्त का घेराव करने के लिए. मगर किसानों ने अपने प्रदर्शन को श्रद्धांजलि सभा में बदल दिया. ये किसान पश्चिम यूपी से लखनऊ गए थे, कोर्ट के आदेश के अनुसार अपने बकाये के भुगतान के लिए. मगर अपना दर्द भूल कर जवानों की शहादत को याद किया. जामिया शिक्षक संघ ने भी घटना की निंदा की है और श्रद्धांजलि अर्पित की है. 15 तारीख की शाम यहां पर छात्रों ने मोमबत्तियां जलाकर जवानों को श्रद्धांजलि दी. बड़ी संख्या में छात्र शाम के वक्त मौजूद थे. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों ने भी श्रद्धांजलि दी. वाराणसी में भी नागरिकों ने शहीदों को याद किया. भोपाल में भी नागरिकों ने जवानों को याद किया है. बिहार के वैशाली में भी नागरिकों ने प्रदर्शन किया. आप देखिए कि किस तरह से नागरिकों ने अपने स्तर पर इस घटना के प्रति नाराज़गी ज़ाहिर की है. पटना हैदराबाद, सिलीगुड़ी कहां नहीं प्रदर्शन हुआ, कहां नहीं लोग निकले. प्रवीण खंडेलवाल ने कहा है कि व्यापारी वर्ग भी इस घटना के खिलाफ भारत बंद करेंगे 18 फरवरी को. अहमदाबाद का सबसे ऐतिहासिक पुराना बाज़ार ढालगरवाड और कालूपुर फ्रूट मार्केट शहीद सैनिकों के सम्मान में 16 फरवरी को बंद रहेगा.

सीआरपीएफ के जवान अपने साथियों की शहादत से आहत हैं. उनका हौसला कम नहीं हुआ है. ये बड़ी जांबाज़ फोर्स है. फिर भी उन्हें चिन्ता है कि शहीद जवानों के परिवार वालों के भविष्य का क्या होगा. हालांकि राज्य सरकारों ने मदद राशि और परिवार के सदस्य को नौकरी देने की बात कही है. फिर भी जवानों को भी लगता है कि उन्हें भी कुछ करना चाहिए.

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जो सूची हमें दी गई है उसमें 33वें नंबर पर देवरिया के विजय कुमार मौर्य का नाम है. 92 बटालियन के सदस्य रहे हैं विजय. उनके साथियों ने बताया कि विजय हाल ही में 9 फरवरी को छुट्टी से वापस लौटे थे. अपने पिता के इलाज को लेकर चिन्तित थे. छोटे बच्चों के भविष्य के लिए इन साथियों ने एक फंड बनाया है. सरकार तो मदद कर ही रही है फिर भी इनकी भावनाओं को समझा जाना चाहिए.