नई दिल्ली: 'जिंदगी में बड़ी शिद्दत से निभाओं अपना किरदार कि परदा गिरने के बाद भी तालियां बजती रहे।' 42 राष्ट्रीय राइफल्स के कर्नल एमएन राय ने व्हाट्स-एप पर यह स्टेट्स शायद इसी दिन के लिए छोड़ा था। उन्हें बस एक दिन पहले ही वीरता सम्मान मिलने की घोषणा हुई थी, लेकिन कर्नल राय ने सम्मान से पहले शहादत का तमगा पहन लिया।
सेना को पुलवामा के हदोड़ा में आतंकियों के छुपने की खबर मिली। पूरे इलाके की घेराबंदी कर तलाशी अभियान शुरू कर दिया गया। इस दौरान सेना को खबर मिली कि आतंकी एक घर में छिपे हैं। एक घंटे तक मिली सेना और आतंकियों के बीच मुठभेड़ चली जिसमें दोनों आतंकियों को मार गिराया गया। मुठबेड़ के दौरान कर्नल राय गंभीर रूप से घायल हो गए। गोली सर में लगने की वजह से मैदान-ए-जंग में जीतने वाला जाबांज जिंदगी की जंग हार गया।
बाद में पता यह लगा कि मारे गए आतंकी हिजबुल मुजाहिदीन का एरिया कमांडर था और उसका इरादा गणतंत्र दिवस पर आतंकी हमला करने का था, लेकिन भारी सुरक्षा के चलते वह अपने नापाक मंसूबे में कामयाब नही हो पाया।
कर्नल राय को जानने वाले कहते हैं कि वह एक बहादुर ऑफिसर थे, जो पिछले दो वर्षों से लगातार दक्षिण कश्मीर में आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई में शामिल थे। उन्होंने हमेशा से ही ऑपरेशन में आगे बढ़कर लीड किया। उनकी बहादुरी को देखते हुए इसी गणतंत्र दिवस को उन्हें सेना मेडल देने का ऐलान हुआ।
कर्नल राय अपने भाइयों से सबसे छोटे थे, बड़ा भाई फौज में तो दूसरा भाई सीआरपीएफ में। साल 2002 में इसी तरह के आतंकी हमले में बड़े भाई भी घायल हो गए थे, लेकिन उनकी जान बच गई। कर्नल राय अपने बड़े भाई की तरह किस्मत वाले नही थे। कर्नल राय का एक भाई जो कि सीआरपीएफ में है, वह माओवादियों के खिलाफ मोर्चा ले रहे हैं।
कर्नल राय पांच सिंतबर, 1997 को सेना में कमीशन हुए थे और 5 मई 2013 को ही 42 राष्ट्रीय राइफल्स की कमान संभाली थी। ऐसी मिसालें बहुत कम देखने को मिलती हैं कि कोई सम्मान के साथ अपनी शहादत को गर्व से भी जोड़ लेता है। सलाम ऐसे शूरवीरों को... जिनके बदौलत हम महफूज हैं।