क्या सुरक्षित मातृत्व को गंभीरता से नहीं लेतीं सरकारें

देशवासियों का गुणवत्तापूर्ण जीवन सेहत और स्वास्थ्य इसमें बहुत महत्वपूर्ण हैं और यह तभी संभव है जब विकास की दिशा सही तय हो.

क्या सुरक्षित मातृत्व को गंभीरता से नहीं लेतीं सरकारें

अब से तकरीबन 12 साल बाद जब देश में मातृत्व स्वास्थ्य की समीक्षा की जाएगी तो यह देखा जाएगा कि इस संबंध में देश ने अपना आंकड़ा कितना दुरुस्त किया. उसके लिए यह भी जरूरी होगा कि इस विषय पर लगातार और गंभीर काम किए जाएं. आखिर देश में विकास के मानक केवल जीडीपी से ही नहीं तौले जाने चाहिए. देशवासियों का गुणवत्तापूर्ण जीवन सेहत और स्वास्थ्य इसमें बहुत महत्वपूर्ण हैं और यह तभी संभव है जब विकास की दिशा सही तय हो.

घोषणाओं में देश से यह वायदा तो कर लिया जाता है कि 2022 तक किसानों की आय को दोगुना कर दिया जाए. 2025 तक टीबी का खात्मा कर दिया जाए. 2030 तक मातृत्व और शिशु मृत्यु में आमूलचूल सुधार ला दिया जाएगा पर कैसे. देश में भाषण और नीतियों का फर्क किए बिना क्या यह संभव है. इसका एक ताजा उदाहरण प्रधानमंत्री की ओर से घोषि‍त प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना योजना है.

नोटबंदी के फैसले के बाद उसकी तमाम आलोचना समालोचना हुई और उसके परि‍णामों पर तरह-तरह की बातें जब कही जा रही थीं उसी वक्‍त में प्रधानमंत्री 31 दिसम्बर 2016 को टीवी स्‍क्रीन पर एक बार फि‍र आए. इस बार उन्‍होंने देश के 125 करोड़ लोगों को संबोधित करते हुए योजना के बारे में भी बताया. प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के नाम से घोषि‍त इस योजना में महिलाओं के पंजीयन टीकाकरण पोषण आहार आदि के लिए 6000 रुपये की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की गई. यह राशि गर्भवती महिलाओं के खातों में सीधे भेजने की योजना के बारे में बताया. यह मातृत्व स्वास्थ्य के लिए एक बेहतर कदम माना गया. यहां तक की सरकार के आलोचकों तक के लि‍ए इसमें तुरत-फुरत मीन-मेख नि‍कालने जैसा कुछ नहीं था, लेकि‍न घोषणा के दो बजट नि‍कल जाने के बाद भी यह योजना इसलि‍ए ज्‍यादा प्रभावी नहीं हो पाईए क्‍योंकि केन्‍द्रीय स्‍तर पर भी इसके लि‍ए जि‍तना वि‍त्‍तीय प्रावधान कि‍या जाना थाए वह नहीं हो पाया. तकरीबन देश की 50 लाख से अधि‍क महि‍लाओं को इसके तहत लाभ दि‍या जाना चाहि‍ए था, लेकि‍न बाद में जब स्‍वास्‍थ्‍य संगठनों ने इसकी समीक्षा कर गुणा भाग लगाया तो पाया कि इसके लि‍ए पर्याप्‍त बजट का आवंटन नहीं कि‍या गया. 

केन्‍द्र ने जो कि‍या वह तो कि‍या ही लेकि‍न कृषि कर्मण के क्षेत्र में अवार्ड प्राप्‍त करने वाले मध्यप्रदेश में एक मजाक बनकर रह गई. इस योजना के लि‍ए भारतीय जनता पार्टी के शासन वाले इस राज्य ने अपने बजट में महज एक हजार रुपये का आवंटन किया है. जबकि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने इसी योजना के लि‍ए अपने बजट में 291 करोड़ रुपये और गुजरात सरकार ने 220 करोड़ रुपये का आवंटन किया है. मध्यप्रदेश सरकार के इस कारनामे से लोग हैरान हैं कि आखिर जिस योजना में खुद प्रधानमंत्री का नाम जुड़ा होए उस योजना को मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार महज एक हजार रुपये में कैसे लाभ दिलाएगी. मध्यप्रदेश सरकार अपने यहां की तकरीबन 310095 हितग्राही महिलाओं का बिना बजट आवंटन के कैसे भला करेगी. बाद में जब इसकी पड़ताल की गई तो पता चला कि यह योजना यहां महि‍ला एवं बाल वि‍कास वि‍भाग ने स्‍वास्‍थ्‍य वि‍भाग को स्‍थानांति‍रत कर दी. स्‍वास्‍थ्‍य वि‍भाग तक यह पहुंची नहीं तो उसने महज एक हजार रुपये ही इसमें डाल कर मीडि‍या वालों को मसाला दे दि‍या.

दो वि‍भागों के बीच फुटबॉल बनी प्रधानमंत्री जी की योजना एक साल तक एक हजार रुपये में कैसे चलाई जाएगी. इस योजना के तहत यदि वास्तव में सभी माताओं को लाभ दिलाया जाना था तो इसके लिए मध्यप्रदेश सरकार को कम से कम 186 करोड़ रुपयों का बजट आवंटित किया जाना था. हो सकता है कि यह दो विभागों की गफलत में हुई गलती हो, क्योंकि यह योजना एक विभाग से दूसरे विभाग को अंतरित की गई है. लेकिन अब सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री की इस महत्वाकांक्षी योजना को शिवराज सरकार संशोधित करते हुए जब पुनरीक्षित बजट पेश करेगी. तो क्या इस गलती को दुरुस्त करेगी. आखिर इस साल के अंत में उसे चुनाव का सामना करना होगा. इस गफलत को विपक्ष निशाना बनाने की भरपूर कोशिश करेगा और इस बात का भी हिसाब मांगेगा कि मध्यप्रदेश में कितनी महिलाओं को इस योजना का लाभ दिलाया गया है. आखि‍र देश में मात़़त्‍व स्‍वास्‍थ्‍य की बेहतरी एक चुनौती है. मातृत्व मृत्यु दर के मामले में भारत की स्थिति गंभीर है. 

वर्तमान में यह 167 है. इसका मतलब है कि प्रति एक लाख जीवित जन्मों में 167 माताओं की मृत्यु हमारे देश में हो जाती है. सतत विकास लक्ष्यों के तहत वर्ष 2030 तक मातृत्व मृत्यु दर को 70 से कम लाने का लक्ष्य का निर्धारित किया गया है. सतत वि‍कास लक्ष्‍यों के तहत देश की मात़ म़त्‍यु दर कम करने की दि‍शा में यह बेहतर कदम हो सकता था. आखि‍र देश में गर्भवती महि‍लाओं की अपनी समस्‍याएं यथावत हैं. बाल वि‍वाह जल्‍दी गर्भावस्‍थाएं एनीमि‍या से होता हुआ प्रसव संबंधी जटि‍लताओं का यह चक्र बावजूद टूटता नहीं दि‍खाई दे रहा है.

राकेश कुमार मालवीय एनएफआई के पूर्व फेलो हैं, और सामाजिक सरोकार के मसलों पर शोधरत हैं...

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