राम मंदिर के लिए कानून! कैसा कानून? कौन सा कानून?

मोदी सरकार का संसद के शीतकालीन सत्र में राम मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने का कोई इरादा नहीं है.

राम मंदिर के लिए कानून! कैसा कानून? कौन सा कानून?

अयोध्या में राम मंदिर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठन चाहे जितना ही शोर मचाए मगर हकीकत यह है कि मोदी सरकार का संसद के शीतकालीन सत्र में राम मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने का कोई इरादा नहीं है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए इंटरव्यू में कहा कि मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और इसकी सुनवाई का इंतजार करना चाहिए. गौरतलब है कि मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने कहा है कि जनवरी में यह तय किया जाएगा कि अयोध्या में विवादास्पद जमीन के टाइटल सूट की सुनवाई कौन सी पीठ कब करेगी. अमित शाह के बयान से साफ हो गया है कि आरएसएस और वीएचपी के तेवर सिर्फ दिखाने के लिए हैं. इनकी रणनीति अगले लोकसभा चुनाव से पहले इस मुद्दे को गर्माने की है. एक मंशा सुप्रीम कोर्ट पर दबाव बनाने की भी हो सकती है. दूसरी कोशिश शिवसेना जैसे सहयोगियों को जवाब देना भी है जो इस मुद्दे पर बीजेपी को घेरने में लगे हैं.

रणनीति का एक हिस्सा कांग्रेस जैसी विपक्षी पार्टियों को एक्सपोज करना भी है जो बीजेपी के मुकाबले के लिए नर्म हिंदुत्व की राह पर चल पड़ी हैं. इसका इशारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान से मिलता है. पिछले साढ़े चार साल में संभवत: यह दूसरा मौका है जब वे राम मंदिर पर बोले हैं. पहली बार गुजरात चुनाव के वक्त और अब राजस्थान चुनाव में उन्होंने राम मंदिर का मुद्दा उछाला. पीएम मोदी ने कानून बनाने का कोई जिक्र नहीं किया. बल्कि चुनावों के बीच उन्होंने राम मंदिर मुद्दे का इस्तेमाल कांग्रेस पर निशाना साधने में किया. वे बोले कि किस तरह से कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद की सुनवाई अगले लोकसभा चुनाव के बाद कराने की अपील की थी. मोदी यहीं नहीं रुके. उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट पर दबाव इस हद तक बनाया गया कि बात महाभियोग तक पहुंच गई. उनका इशारा तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ कांग्रेस की महाभियोग की याचिका की ओर था जिसे उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने खारिज कर दिया था.

दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ही अयोध्या मामले की सुनवाई कर रही थी. पीएम मोदी के इस बयान के तुरंत बाद ही कपिल सिब्बल मैदान में उतर आए. उन्होंने पीएम मोदी के आरोपों को नकार दिया. सिब्बल का कहना है कि ऐसा आरोप लगा कर प्रधानमंत्री सुप्रीम कोर्ट की अवमानना कर रहे हैं. सिब्बल ने पूछा कि क्या कोई पार्टी मुख्य न्यायाधीश को डरा सकती है? उन्होंने बीजेपी और उसके सहयोगी संगठनों पर राम मंदिर के नाम पर सियासत करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि अयोध्या में डर का माहौल बनाया जा रहा है ताकि प्रधानमंत्री उसका राजनीतिक फायदा उठाएं. सिब्बल ने आरोप लगाया कि पीएम राम मंदिर का मुद्दा इसलिए उठा रहे हैं कि क्योंकि चुनाव आ गए हैं. इन सबके बीच आरएसएस और वीएचपी के नेताओं की तीखी बयानबाजी जारी है. रविवार को अयोध्या समेत देश के कई हिस्सों में वीएचपी की धर्म संसद के दौरान अलग-अलग तरह के बयान आए. चाहे संसद में कानून की बात पर अमित शाह कह चुके हों कि सरकार जनवरी में सुप्रीम करो्‌ट में सुनवाई का इंतजार करेगी, लेकिन संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि अब धैर्य का समय समाप्त हुआ.

कल नागपुर में वीएचपी की धर्म संसद में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट पर भी तीखी टिप्पणी की. भागवत ने कहा कि मंदिर के लिए लड़ने की जरूरत नहीं है लेकिन इसके लिए मजबूत होना पड़ेगा. सरकार पर दबाव डालने की भी जरूरत है. जाहिर है अगर संघ की कोशिश कानून बनाने के लिए मोदी सरकार पर दबाव डालने की है तो वह कम से कम अभी कामयाब होती नहीं दिख रही क्योंकि सरकार का ऐसा कोई इरादा नहीं है. प्रधानमंत्री और बीजेपी अध्यक्ष भी फिलहाल इस मुद्दे का इस्तेमाल कांग्रेस को घेरने में ही करते दिख रहे हैं. यही वजह है कि बीजेपी के भीतर राम मंदिर आंदोलन से जुड़े नेता अब बेचैन हो रहे हैं. उन्हें यह समझ नहीं आ रहा कि संघ प्रमुख के बार-बार कहने के बावजूद ऐसी कौन सी ताकत है जो सरकार के हाथ रोक रही है. यह बात सीधे कहने को कोई तैयार नहीं. उमा भारती ने कहा कि "मोहन भागवत हमारे परिवार के मुखिया हैं, हम सब उनकी बातों का अनुसरण करते हैं, लेकिन यह सत्य है कि उत्तर प्रदेश में योगी जी की सरकार है और केंद्र में मोदी जी की सरकार है, अब राम मंदिर नहीं बनाने के लिए हमारे पास कोई बहाना नहीं है."

उमा भारती ने कहा कि बीजेपी का राम मंदिर पर पेटेंट नहीं है. उनका यह जवाब शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के अयोध्या दौरे के बाद आया है. उमा भारती ने कहा कि केवल शिवसेना ही नहीं, सभी पार्टियों को इसके लिए आगे आना चाहिए. लेकिन यह साफ है कि राम मंदिर पर कानून को लेकर सरकार और बीजेपी के भीतर एक तरह का असमंजस भी देखने को मिल रहा है. ऐसा लगता है कि नेतृत्व संघ परिवार से कुछ कह रहा है तो सार्वजनिक रूप से कुछ और. यह बात वीएचपी की धर्म सभा में हिस्सा लेने आए स्वामी रामभद्राचार्य से सामने आई जिन्हें एक केंद्रीय मंत्री ने कह दिया कि 11 दिसंबर को आचार संहिता खत्म होने के बाद राम मंदिर पर पीएम मोदी फैसला करेंगे. हालांकि वीएचपी के तेवर से सब हैरान हैं. राम मंदिर के लिए बेहद आक्रामक रहने वाली वीएचपी अभी मोदी सरकार को संदेह का लाभ देती दिख रही है. अयोध्या में करीब पचास हजार लोगों को जुटाने में कामयाब रही वीएचपी शिवसेना की तरह न तो सरकार पर आक्रामक थी और न ही उसने सरकार से मंदिर बनाने की तारीख पूछी. वीएचपी से जुड़े साधु संत सिर्फ जल्द से जल्द राम मंदिर बनाने की बात कह रहे हैं.

वीएचपी की फिलहाल रणनीति इस मुद्दे को आगे भी उठाते रहने की है. वीएचपी की आगे की रणनीति जरूर सामने आई है जिसमें कहा गया है कि वीएचपी नेता सांसदों से मिल कर संसद में कानून बनाने की मांग करेंगे. यह भी कहा गया है कि इलाहाबाद में कुंभ के दौरान आगे का फैसला किया जाएगा. पर यह साफ दिख रहा है कि कुल मिला कर कोशिश राम मंदिर मुद्दे को फिर से गर्माने की है. वैसे तो कहा जाता है कि काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती. कई बीजेपी नेता पहले कह चुके हैं कि राम मंदिर उस चेक की तरह है जिसे भुना लिया गया है. तो फिर ऐसा क्यों है कि चुनाव आते ही संघ परिवार इसे लेकर आक्रामक हो रहा है. वे शायद शिवसेना के हमले की धार को कुंद करना चाहते हों, लेकिन वह यह भूल जाते हैं कि यह दोधारी तलवार है. इससे चाहे विपक्षी को धराशायी कर दिया जाए लेकिन सरकार, बीजेपी और खुद संघ परिवार की साख को भी गहरी चोट पहुंच रही है.

(अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)

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