यूपी में कानून व्यवस्‍था और अपराध नियंत्रण में पुलिस की नाकामी का सच

यूपी में कानून व्यवस्‍था और अपराध नियंत्रण में पुलिस की नाकामी का सच

यूपी के मथुरा में गोलीबारी और हिंसा का मामला हाल में सुर्खियों में रहा।

उत्तर प्रदेश के बारे में कहीं भी कैसी भी चर्चा हो, उसमें यहां की कानून व्यवस्था की स्थिति और अपराध नियंत्रण पर पुलिस की नाकामयाबी का उल्लेख हावी रहता है। जहां एक ओर सरकार और सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी से जुड़े तत्व यह कहते नहीं थकते कि सरकार ने अपराध नियंत्रण के लिए 1090 वीमेन हेल्पलाइन, आधुनिक पुलिस कंट्रोल रूम, डायल 100, नयी गाड़ियों और मोटर साइकिलों जैसी तमाम व्यवस्थाएं की हैं, वहीं विरोधी और विपक्षी दलों का आरोप है कि ये तो मात्र तंत्र से संबंधित सुविधाएं हैं, असली मर्ज़ तो पुलिस के काम करने के तरीके में है।

सीएम का ध्‍यान हटते ही शुरू हुआ ट्रांसफर-नियुक्तियों का दौर
आखिर उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था का सच क्या है? वर्ष 2012 में जब अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी की सरकार के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी तभी यह दिखने लगा था कि सपा के कार्यकर्ता अपने दल के युवा नेता के मुख्यमंत्री बनने पर अति उत्साहित हैं, और उन्हें उम्मीद थी कि उनकी तमाम आकांक्षाएं पूरी होंगी। लेकिन जैसे-जैसे समय बीता वैसे-वैसे मुख्यमंत्री का ध्यान प्रदेश में नए प्रोजेक्ट शुरू करने पर केन्द्रित हो गया, जिनमें लखनऊ में मेट्रो, आईटी सिटी, विशाल स्टेडियम, अस्पताल, आगरा एक्सप्रेसवे, मेडिकल कॉलेज और एम्बुलेंस योजना आदि हैं। इस बीच सपा नेताओं की शह पर पुलिस बल में ट्रांसफर, प्रमोशन, नियुक्तियां, मनचाही पोस्टिंग आदि का जो सिलसिला शुरू हुआ वह आज तक थमा नहीं है। ऐसे पुलिस और  जिला अधिकारियों की संख्या कम नहीं है जिनका एक महीने या कुछ दिनों के दौरान ही कई बार तबादला किया गया सिर्फ इसलिए कि स्थानीय सपा नेता नहीं चाहते थे।

अपराध नियंत्रण व्यवस्‍था बेपटरी होती लगी
सत्तारूढ़ दल से जुड़े अपराधी तत्वों को पकड़ने या रोकने पर तबादला करना, जातीय आधार पर शिकायत मिलने पर तबादला करना आदि जैसे कई मामले लगातार सुर्ख़ियों में आते रहे। इसी के साथ लखनऊ में ऐसे कई दुस्साहस वाले अपराध हुए, जिनसे संकेत यही गया कि राजधानी में ही अपराध नियंत्रण की व्यवस्था बेपटरी हो चुकी है। इन सबके बावजूद प्रदेशभर में थाना स्तर पर जातिगत आधार पर मनचाही नियुक्ति देने के आरोप भी लगते रहे। ऐसे में पुलिस बल को नई और बड़ी निगरानी गाड़ियां (पट्रोल वैन), मोटर साइकिल, सीसीटीवी कैमरा सिस्टम, 1090 महिला हेल्पलाइन प्रणाली और आधुनिक कंट्रोल रूम भी बनाये गए और ऐसे अवसरों पर बड़ी-बड़ी घोषणाएं भी की गईं। लेकिन इन सभी सुविधाओं का प्रयोग कोई जनता को तो करना नहीं था, इनका इस्तेमाल तो पुलिसवालों को अपराध नियंत्रण और जल्द से जल्द मौका-ए-वारदात पर पहुंचने के लिए किया जाना था, और इन्हें वही पुलिसवाले इस्तेमाल करते जिनकी नियुक्ति या तबादला शायद राजनीतिक कारणों से हुआ था।

लखनऊ में ही खराब पड़े है आधे से ज्‍यादा सीसीटीवी कैमरे
वर्तमान में न केवल लखनऊ जैसे शहर में सीसीटीवी कैमरा सिस्टम में आधे से ज्यादा कैमरे ख़राब पड़े हैं, आधुनिक उपकरणों से लैस पुलिस वैन में से कई ख़राब होने की वजह से और कुछ ड्राइवर की कमी के वजह से सडकों पर नहीं दिखाई दे रहीं, और अधिकतर थानों पर पुलिसकर्मी रिपोर्ट लिखने में आनाकानी करते हैं या शिकायत करने वालों को ही प्रताड़ित करने का प्रयास करते हैं। जब तक ऐसा रवैया नहीं बदलता, पुलिस बल के आधुनिकीकरण का क्या अर्थ रह जाता है?

सपा में 'कौएद' के विलय के प्रस्‍ताव से गया गलत संदेश
हाल ही में मुख़्तार अंसारी और उनके दो भाइयों के कौमी एकता दल (कौएद) को सपा के ही वरिष्ठ नेता और मंत्री ने सपा में विलीन होने का प्रस्ताव दिया जिसे कौएद ने सहर्ष स्वीकार कर लिया, जबकि मुख़्तार और उनके एक भाई का आपराधिक इतिहास किसी से छिपा नहीं है और स्वयं मुख़्तार जेल में हैं। अखिलेश ने अपने स्वभाव और छवि के अनुरूप इस विलय के लिए हामी नहीं भरी और अंततः यह प्रस्ताव ख़ारिज भी हो गया, लेकिन इससे सपा का अपराधिक छवि के लोगों के प्रति नरमी रखने का आरोप और मजबूत ही हुआ। मजे की बात तो यह है कि उसी कौएद के अफज़ल अंसारी ने विलय ख़ारिज होने के बाद लखनऊ में ही प्रेस वार्ता करके सपा और अखिलेश पर जबरदस्त हमला बोलते हुए प्रदेश में कानून-व्यवस्था ध्वस्त होने का आरोप तक लगा दिया, जैसे कि यदि कौएद का सपा में विलय हो जाता तो स्थिति बेहतर हो सकती थी !

कानून व्यवस्‍था के मुद्दे पर बीजेपी है हमलावर
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) इस मुद्दे पर लगातार हमलावर बनी हुई है और पार्टी ने प्रदेश भर में थानों पर प्रदर्शन करने की योजना भी बनाई है। बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) प्रमुख  मायावती, जो अभी तक प्रदेश की राजनीति पर चर्चा करने के नाम पर भाजपा और प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी को ही निशाना बनती रहती थीं, अब सपा के शासन में कानून -व्यवस्था को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहीं हैं, लेकिन अभी भी उनका उद्देश्य भाजपा को ही निशाना बनाना है।

कार्रवाई कर अच्‍छा संदेश दिया जाना था
इस विषय पर प्रदेश की मीडिया में लगातार पुलिस द्वारा जनता से दुर्व्यवहार, आपस में लड़ने, घूस लेने, अपराधियों को संरक्षण देने और अनिच्छा से काम करने की घटनाओं का विवरण आता रहता है, और पिछले चार सालों में दर्जनों पुलिस कर्मी अपराधिक तत्वों द्वारा हमलों में मारे जा चुके हैं या बुरी तरह से जख्मी हो चुके हैं, थानों पर सुनियोजित तरीके से हमले हुए हैं लेकिन इसके बावजूद अपराध नियंत्रण के लिए किसी बड़ी और सांकेतिक कार्रवाई का इंतजार बना हुआ है। अच्छा तो यही होता कि पुलिस को आधुनिक बनाने की घोषणाओं के बजाए अपराधियों को संरक्षण देने वाले पार्टी के कार्यकर्ताओं या नेताओं पर कार्रवाई कर के सन्देश दिया जाता, कि पुलिस अपना काम कड़ाई से करने के लिए स्वतंत्र है।

जाति, धर्म और क्षेत्र के मुद्दों पर बुरी तरह बंटे इस प्रदेश की पुलिस भी इन्ही आधारों पर बंटी हुई है। युवा सोच, युवा नेतृत्त्व और प्रदेश को सँवारने के दावों के साथ पुलिस को रवैया बदलने का सन्देश देना भी जरूरी है...।

(रतन मणिलाल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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