अफसरों के भरोसे यूपी में चुनाव जीतेगी सपा ?

अफसरों के भरोसे यूपी में चुनाव जीतेगी सपा ?

यूपी के सीएम अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव (फाइल फोटो)

उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी चिंता में है। विधानसभा चुनाव करीब एक साल बाद होने हैं, एक सर्वे में सपा को तीसरा स्थान मिलता बताया जा रहा है।जिलों से आने वाली खबरें भी पार्टी के लिए बहुत उत्साहजनक नहीं बताई जा रही हैं। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अब विपक्षियों पर हमला करने में कुछ बचाव की मुद्रा में नजर आते हैं और उनके एक वरिष्ठ मंत्री कहते पाए गए कि इस बार चुनाव नहीं जीते तो अगली बार जीतेंगे।

प्रदेश में तमाम मेगा परियोजनाओं को शुरू करने के बावजूद भी सपा सरकार का आकलन अपराध और कानून-व्यवस्था की चिंताजनक स्थिति पर ही हो रहा है और लोगों के बीच तमाम चर्चाएं भी इसी मुद्दे के इर्द-गिर्द आकर रुक जाती हैं। वर्ष 2012 में सरकार बनने के बाद से ही पार्टी नेताओं पर अपने कार्यकर्ताओं पर लगाम न लगा पाने के आरोप लगते रहे हैं और राजधानी लखनऊ समेत लगभग सभी जिलों से खबरें आती रहीं हैं कि पार्टी के छुटभैये नेताओं ने मनमानी करने से रोकने पर पुलिस सब-इंस्पेक्टर से लेकर जिला अधीक्षक तक को वर्दी उतरवा लेने की धमकी दे डाली।

परियोजनाओं के बजाए अखिलेश का जोर दूसरे विषयों पर
अब, चुनाव कुछ महीने बाद होने हैं और अखिलेश इंफ्रास्ट्रक्चर की परियोजनाओं के बजाए पर्यावरण, गौरैया संरक्षण, खेल, फिल्में, साहित्य, कला आदि विषयों पर जोर देते नजर आ रहे हैं। प्रदेश के सर्वोच्च यश भारती सम्मान से रिकॉर्ड 46 लोगों को नवाजा गया, जिनमे फिल्म जगत, क्रिकेट, कला, साहित्य आदि से जुड़े लोग हैं। ये वही सम्मान हैं जिनमे 11 लाख रुपये की सम्मान राशि के अलावा रु 50,000 के जीवन पर्यंत पेंशन भी शामिल है। सम्मान देने के एक दिन पहले तक इस लिस्ट में नाम जोड़े जाते रहे और उनमे कई विभूतियां प्रदेश के बाहर की भी हैं।

अधिकारियों से यह बोले मुख्यमंत्री अखिलेश
इस समारोह के एक दिन पहले अखिलेश ने आइएएस सप्ताह के दौरान प्रदेश के प्रशासनिक अधिकारियों के साथ परम्परागत क्रिकेट मैच खेला जिसमे पिछले कई वर्षों की तरह अधिकारी हारे और मुख्यमंत्री की टीम जीती। अखिलेश ने बाद में अपने संबोधन में अधिकारियों से उम्मीद जताई कि जैसे उन्होंने क्रिकेट मैच में मुख्य मंत्री को जिताकर उनका साथ दिया, वैसे ही आगामी चुनाव में भी भी वे उनका साथ देंगे। इसके पहले भी वे कई बार अधिकारियों को स्पष्ट तौर पर कह चुके हैं कि चुनाव जिताने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है और यदि वे हारे तो इसे याद रखेंगे।  

मुलायम बोले, सम्मान पाने वालों में अधिकारी क्‍यों नहीं  
लेकिन इस ज्यादा महत्वपूर्ण वह बयान है जो मुलायम सिंह यादव ने यश भारती सम्मान समारोह के बाद दिया। उन्होंने कहा कि सम्मानित होने वालों में कोई अधिकारी क्यों नहीं है, और अगर कोई अधिकारी अच्छा काम करता है तो उन्हें भी उत्साहित भी किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि वे अपने समय में ‘अच्छे’ अधिकारियों को सम्मान देते रहे हैं।
एक ओर तो अधिकारियों को अपरोक्ष रूप से सत्तारूढ़ पार्टी को जिताने की सलाह दी जा रही है, वहीँ ओर यह भी कहा जा रहा है कि जो अधिकारी सहयोग कर रहे हैं उन्हें सम्मानित किया जाना चाहिए।

अधिकारियों को साधने का यह मन्त्र कोई नया नहीं है, लेकिन उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से अफसरशाही का राजनीतिकरण हुआ है यह उसे और मजबूत करने का ही संकेत है। अपने पसंद के अधिकारियों को सेवा निवृत्त होने के बाद सेवा विस्तार देकर अपने पदों पर बनाये रखना, मुश्किल पैदा कर रहे अधिकारियों को हाशिये पर रखना या निलंबित करना, कुछ वरिष्ठ अधिकारियों को रिटायर हो जाने के बाद राजनीतिक पदों पर नियुक्त करना आदि कुछ ऐसे कदम हैं जो हर पार्टी की सरकार उठाती रही है, लेकिन वर्तमान सरकार ने जिस तरह जनता में अपने प्रति असंतोष के भाव को अधिकारियों के सिर मढने की कोशिश की है उससे तो यही लगता है कि यदि समाजवादी पार्टी फिर से सत्ता में आती है तो उसका श्रेय अफसरशाही को ही जाना चाहिए।

चर्चा का केंद्र बनी जस्टिस विष्णु सहाय जांच आयोग की रिपोर्ट
इसी के बीच  मुज़फ्फरनगर दंगों पर आई जस्टिस विष्णु सहाय जांच आयोग की वह रिपोर्ट भी है जिसमे दंगों के लिए किसी राजनीतिक व्यक्ति को दोषी न पाते हुए सिर्फ पुलिस के कुछ अधिकारियों को दोषी बताया गया है। उन दंगों के पहले जिस तरह से एक सामान्य सी छेड़छाड़ की घटना पर तुरंत और प्रभावी कार्यवाही न कर के दो समुदायों के बीच तनाव बढ़ने दिया गया, उसके लिए सिर्फ मध्यम स्तर के पुलिस अधिकारियों को जिम्मेदार माना गया है, और किसी भी प्रकार के राजनीतिक दबाव या दखलंदाजी का कोई ज़िक्र नहीं है।

प्रदेश के आईपीएस अधिकारियों की एसोसिएशन ने पहले तो इस रिपोर्ट पर ऐतराज किया लेकिन शीर्ष स्तर के नेताओं के बयान आने के बाद उनके तेवर भी नर्म पड़ गए। पहले इस रिपोर्ट को नामंज़ूर करते हुए एसोसिएशन ने सवाल उठाया कि जब दंगे मुज़फ्फरनगर के बाद शामली, सहारनपुर और बागपत में फैल गए थे फिर भी सिर्फ एक अधिकारी को ही दोषी बताया गया, और जब कोई फैसला लेने से पहले कई अधिकारियों को बताया जाता है, तो सिर्फ इलाके के इंस्पेक्टर को ही जिम्मेदार क्यों बताया गया। इस मामले में मुख्य मंत्री से मिलने के लिए समय लेने की बात कही गयी। लेकिन इसके एक दिन बाद ही एसोसिएशन के तेवर नर्म पड़ गए और मुख्यमंत्री से मिलने की बात को टाल दिया गया। ज़ाहिर है कि पुलिस अधिकारियों को भी संकेत समझ गए कि सत्तारूढ़ दल के साथ सहयोग करने में ही उनकी भलाई है।

....तो अधिकारियों से क्या अपेक्षा की जाए
लेकिन फिर सवाल यही उठता है कि यदि इस तरह से पुलिस या प्रशासन के अधिकारियों को ही किसी भी अप्रिय घटना के लिए जिम्मेदार ठहराकर भी उनके ही बदौलत ही चुनाव जीतने की बात कही जाए, तो अधिकारियों से क्या अपेक्षा की जा सकती है? क्या वे सत्ता से जुड़े किसी व्यक्ति पर एक्शन लेने की कभी सोच भी पाएंगे? और फिर जब इसके चलते अपराध बढ़ेंगे और कानून-व्यवस्था की स्थिति ख़राब हुई तो उन्हें ही जिम्मेदार बताया जायेगा, और इसके कारण चुनाव हारने पर भी उन्हें ही दोष दिया जायेगा ! कौन कहता है कि सरकारी अधिकारी बनने के बाद ज़िन्दगी आराम की होती है?

रतन मणिलाल वरिष्ठ पत्रकार हैं...

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