भारत माता की नहीं, तो अब किसकी जय बोलेंगे असदुद्दीन ओवैसी...?

भारत माता की नहीं, तो अब किसकी जय बोलेंगे असदुद्दीन ओवैसी...?

असदुद्दीन ओवैसी (फाइल फोटो)

असदुद्दीन ओवैसी फिर ख़बरों में हैं। अपने विवादस्पद बयानों से सुर्ख़ियों में बने रहने के आदी हो चुके ओवैसी को एक बार फिर उत्तर प्रदेश सरकार ने लखनऊ में कोई सार्वजनिक कार्यक्रम करने की इजाज़त देने से इंकार कर दिया है। जहां एक ओर प्रदेश सरकार का कहना है कि ओवैसी के सार्वजनिक कार्यक्रमों में दिए गए भाषणों से कानून व व्यवस्था की स्थिति को खतरा हो सकता है, वहीं ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम का आरोप है कि प्रदेश में सतारूढ़ समाजवादी पार्टी ओवैसी से डरती है, इसीलिए पिछले तीन साल में एक बार भी ओवैसी को सार्वजनिक सभा करने की अनुमति नहीं दी गई।

आखिर इतने महत्त्वपूर्ण कैसे हो गए हैं ओवैसी...? कुछ साल पहले तक सिर्फ हैदराबाद तक सीमित रहने वाले ओवैसी की पार्टी को आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के पिछले विधानसभा चुनाव में जैसा समर्थन मिला, उससे उन्हें यह लगा कि वह अब देशभर के मुसलमान समुदाय का नेता बन सकते हैं। हालांकि बिहार विधानसभा चुनाव में अच्छा-खासा माहौल बनाने के बावजूद उनकी पार्टी कोई भी सीट नहीं जीत पाई थी, लेकिन पिछले महीने उत्तर प्रदेश में हुए उपचुनाव में फैजाबाद जिले की बीकापुर सीट पर उनके प्रत्याशी को अच्छा जनसमर्थन मिला, जबकि वह प्रत्याशी मुसलमान नहीं, एक दलित हिन्दू था। प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार पर वह लगातार हमला करते रहते हैं और उनका बड़ा आरोप है कि यह सरकार मुस्लिम समुदाय के लिए सिर्फ घोषणा करती है और ज़मीनी स्तर पर मुसलमानों के लिए कुछ भी नहीं किया गया है।

उत्तर प्रदेश में 2017 में विधानसभा चुनाव होने हैं और उनकी पार्टी का इरादा इस चुनाव में बड़े स्तर पर हिस्सा लेने का है। बीकापुर उपचुनाव के प्रचार के दौरान भी उन्होंने ऐसे संकेत दिए और अपनी सभाओं में बहुजन समाज पार्टी के अलावा सभी राजनीतिक दलों की जमकर आलोचना भी की। यही नहीं, उन्होंने मुसलमानों और दलितों से साथ मिलकर बदलाव लाने का आह्वान किया।

अब यह भी संयोग है कि एक हालिया सर्वेक्षण के मुताबिक वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी को सीटों के क्रम में पहला स्थान मिल सकता है, हालांकि इस सर्वेक्षण में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने की आशंका जताई गई है। ऐसे में ओवैसी समर्थक यह दावा कर रहे हैं कि बीएसपी की संभावित बढ़त के पीछे ओवैसी की पार्टी का अघोषित समर्थन भी एक कारण हो सकता है।

लखनऊ में ओवैसी के कार्यक्रम में एक सभा को संबोधित करने के अलावा आजमगढ़ यात्रा भी शामिल थी, लेकिन लखनऊ प्रशासन ने उन्हें कोई भी सार्वजनिक सभा करने की अनुमति न दिए जाने के साथ यह भी शर्त लगा दी थी कि वह किसी प्रकार का रोड-शो भी नहीं कर सकते हैं और उनकी सभा या बैठक में 30 से ज्यादा लोग नहीं होने चाहिए।

इन शर्तों के बाद उनकी यात्रा ही स्थगित कर दी गई और उनकी पार्टी के प्रवक्ता का कहना है इन 'इमरजेंसी' जैसी स्थितियों से पता लगता है कि समाजवादी पार्टी ओवैसी से कितना घबराती है। पार्टी के नेता का कहना है कि वे जल्द ही ओवैसी के प्रति समाजवादी पार्टी के रवैये के खिलाफ प्रदर्शन करेंगे। उनका यह भी कहना है कि समाजवादी पार्टी मुस्लिम और दलित समुदाय के साथ आने से भी घबराई हुई है।

ओवैसी पिछले वर्ष जुलाई में उत्तर प्रदेश की यात्रा में मेरठ और आगरा आए थे और तब भी उन्हें सार्वजनिक सभाएं करने की अनुमति नहीं मिली थी। दोनों शहरों में उन्होंने सीमित स्तर की सभाएं की थीं, जिन्हें निजी स्थानों पर आयोजित किया गया था। उनसे मिलने और उन्हें देखने के लिए युवाओं का भारी हुजूम दोनों जगहों पर मौजूद था और संभव है कि ऐसा उनके ऊपर लगे प्रतिबन्ध के कारण हुआ होगा।

इसके अलावा भी, ओवैसी जिस हैदराबादी अंदाज़ में बातें करते हैं, उसे वर्षों से कई फिल्मी कलाकारों, जैसे महमूद, जगदीप, कादर खान आदि ने लोकप्रिय बनाया हुआ है। टेलीविज़न पर दिखाई देता है कि वह महाराष्ट्र और आन्ध्र प्रदेश में जब सभाओं को संबोधित करते हैं तो सामने इकठ्ठा हुए लोग जोरशोर से उनका स्वागत करते हैं और उनके वादों और नारों पर उत्साह से तालियां बजाते हैं। स्वाभाविक है कि ओवैसी अपने को मुसलमानों के एक बड़े वर्ग का प्रतिनिधि और नेता मानते हैं। जिस अंदाज़ में उन्होंने कहा कि अपनी गर्दन पर छुरी रखने के बाद भी वह 'भारत माता की जय' नहीं बोलेंगे और जवाब में उन्हें तालियां मिलीं, उससे भी उनमें यह धारणा बनना स्वाभाविक था कि उनके ऐसे बयानों को लोग पसंद करते हैं।

प्रदेश में यह राजनीतिक चर्चा जोर पकड़ रही है कि उनकी पार्टी बीएसपी के साथ किसी प्रकार का गठबंधन कर सकती है। मायावती को अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए प्रदेश में दलितों और मुस्लिम समुदाय का समर्थन चाहिए और ऐसा कुछ सीमा तक शायद ओवैसी के साथ आने पर संभव भी हो। लेकिन क्या ओवैसी और उनके समर्थक 'भारत माता की जय' की जगह 'जय भीम' का नारा लगाएंगे, यह देखना अभी बाकी है।

रतन मणिलाल वरिष्ठ पत्रकार हैं...

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