अयोध्या के हाशिम अंसारी की व्यथा : राम भी, मस्जिद भी...

अयोध्या के हाशिम अंसारी की व्यथा : राम भी, मस्जिद भी...

अयोध्या में रहने वालों के लिए हाशिम अंसारी जाना-पहचाना नाम है। कोई उन्हें ज़िद्दी कहता है, कोई दिल का अच्छा इंसान, कुछ लोगों के अनुसार वह कट्टरवादी हैं, लेकिन तमाम लोगों का मानना है कि वह पुराने ज़माने के उन लोगों की जमात से हैं, जिनके लिए हिन्दू-मुसलमान के फर्क से ज्यादा सही और गलत का फर्क मायने रखता है।

अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ध्वंस से जुड़े मामले में पैरोकार हाशिम आज अपनी उम्र के 95वें वर्ष में ज़िन्दगी की लड़ाई लखनऊ के अस्पताल के आईसीयू में लड़ रहे हैं, लेकिन पूरी ज़िन्दगी हाशिम एक कट्टरवादी से ज्यादा कानूनी लड़ाई लड़ने वाले नागरिक नज़र आते रहे, जो एक असहज मुद्दे का कानूनी हल चाहते हैं, और कुछ नहीं। उनके तमाम पिछले बयान यह भी दिखाते हैं कि उनके मन में भगवान राम के लिए श्रद्धा में कमी नहीं है, और उन्हें इस मुद्दे पर धर्म और राजनीति के नेताओं के बयान कभी रास नहीं आए। उनके अनुसार, ऐसे बयान देने वाले लोग धर्म की राजनीति करते हैं, और मंदिर-मस्जिद मुद्दे का हल नहीं चाहते।

जनवरी में उत्तर प्रदेश समाजवादी पार्टी के एक नेता बुक्कल नवाब ने बयान दिया कि वह अयोध्या में राम मंदिर बनाए जाने के समर्थक हैं और ऐसा होने पर वह उस मंदिर में सोने का मुकुट चढ़ाएंगे। इस पर अंसारी ने नाराज़ होकर मुलायम सिंह यादव से इस नेता को तुरंत पार्टी से निकाल बाहर करने की मांग की, और कहा कि यदि ऐसा ही होता रहा तो मुसलमान मुलायम से दूर होते चले जाएंगे। वह नेता आज भी पार्टी में बने हुए हैं।

चित्रकूट के जगदगुरु रामभद्राचार्य ने हाल ही में खुले मंच से अयोध्या में मंदिर निर्माण की तारीख घोषित कर डाली, जिससे नाराज़ होकर हाशिम ने कहा कि जो लोग कोर्ट के फैसले से पहले विवादित स्थान पर मंदिर बनाने की बात कर रहे हैं, वे देश के कानून को पैरों तले कुचलने का काम कर रहे हैं और  देश का मुसलमान कभी यह बर्दाश्त नहीं करेगा।

जनवरी ही में अंसारी ने कुछ पत्रकारों से बात करते हुए कहा था कि पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने बाबरी मस्जिद गिराई थी और उन्हें भी इस मामले में दोषी नामित किया जाना चाहिए था। यह बात अलग है कि ऐसा भी नहीं हुआ है।

पिछले वर्ष फरवरी में उन्होंने एक प्रस्ताव रखा कि हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के लोग या उनके प्रतिनिधि यदि चाहें तो इस मामले को आपसी बातचीत से भी सुलझा सकते हैं, और उन्होंने विवादित स्थल पर मंदिर और मस्जिद दोनों बनाने का सुझाव भी दिया, लेकिन उनके प्रस्ताव को बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी और विश्व हिन्दू परिषद ने सिरे से खारिज कर दिया। इस पर अंसारी ने फिर कहा कि कुछ लोग इस मुद्दे को सुलझाने के बजाए अपने राजनीतिक हित के लिए इसे ज़िन्दा बनाए रखना चाहते हैं। अंसारी ने यह भी कहा कि वह इस मामले में हैदराबाद के असदुद्दीन ओवैसी से भी बात करेंगे और जानने की कोशिश करेंगे कि उनकी इस मामले में क्या राय है।

वर्ष 2014 में हाशिम अंसारी ने अयोध्या में विवादित ढांचे को ध्वस्त किए जाने की 22वीं बरसी से पहले उस स्थान पर राम मंदिर निर्माण किए जाने की वकालत करते हुए खुद को मुकदमे से अलग करने का ऐलान किया था। उन्हीं के अनुसार ऐसा उन्होंने मामले के लगातार हो रहे राजनीतिकरण की वजह से कहा था। इसी दौरान, उन्होंने इस मसले का राजनीतिक फायदा उठाने के लिए उत्तर प्रदेश के मंत्री आजम खां की आलोचना भी की थी। उन्होंने कहा था कि आज़म खान पहले बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक थे, लेकिन बाद में इससे अलग होकर वह राजनीतिक लाभ के लिए मुलायम सिंह यादव से जुड गए। अब यदि आज़म खान को मस्जिद गिरने की इतनी ही चिंता थी, तो वह भी मुकदमे के पैरोकार क्यों नहीं बन जाते।

यही नहीं, अपनी निराशा के चलते अंसारी ने यहां तक कहा था कि वह भी चाहते हैं कि विवादित स्थल पर भव्य राममंदिर बने, "यह कैसे हो सकता है कि लोग तो लड्डू खाएं और रामलला को इलाइची दाना मिले... लोग महलों में रहें और भगवान अस्थायी तम्बू के नीचे..."

अंसारी ने कहा कि यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हस्तक्षेप करें तो वह इस जटिल मसले के सौहार्दपूर्ण हल के लिए मदद करने को तैयार हैं। उनका कहना था कि उन्हें मौत का इंतजार तो है ही, लेकिन वह चाहते हैं कि अपनी मौत से पहले मस्जिद और राम जन्मभूमि मामले का फैसला भी देख लें।

इस बयान के तुरंत बाद कहा गया कि उन्होंने ऐसा भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं से मिलने के बाद कहा, लेकिन पार्टी ने इस बात को पूरी तरह खारिज कर दिया। बाद में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के कुछ सदस्यों ने उनसे आग्रह किया कि वह अपने को इस मामले से अलग न करें, जिसे उन्होंने मान लिया था।

अब यह तो समय ही बताएगा कि हाशिम की इच्छा पूरी होगी या नहीं, लेकिन उन्हें जानने वाले लोग यही मनाते हैं कि अयोध्या में दोनों समुदायों के बीच सौहार्द बना रहना ही सबसे बड़ी बात है।

रतन मणिलाल वरिष्ठ पत्रकार हैं...

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