नई दिल्ली:
साढ़े चार साल जेल में बंद हुर्रियत के कट्टरपंथी नेता मर्सरत आलम की रिहाई से बीजेपी और पीडीपी गठबंधन में तूफान आ गया है। बंवडर इतना बड़ा है कि वह थमने के बजाय बढ़ता जा रहा है।
ऐसा नही है पीडीपी के नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद ने साझा सरकार में ऐसा विवादस्पद फैसला पहली बार लिया है। करीब 13 साल जब 2002 में कांग्रेस के सहयोग से मुफ्ती मुख्यमंत्री बने थे तब भी हफ्तेभर के अंदर ही कई आतंकियों को रिहा कर कांग्रेस के सामने मुश्किल खड़ी कर दी थी। एक बार फिर से उन्होंने वही सियासी पैतरा अपनाकर बीजेपी का जीना हराम कर दिया है।
हालत यह है कि रियासत में बीजेपी सरकार में साझेदार है फिर भी पीडीपी उसकी बात सुनने को तैयार नहीं है। तभी तो बीजेपी मर्सरत की रिहाई के खिलाफ राज्य में नारेबाजी से लेकर प्रदर्शन कर रही है। बीजेपी कह रही है कि मर्सरत के रिहा करने को लेकर पीडीपी ने उससे कोई चर्चा नहीं की, जबकि पीडीपी कह रही है कि यह जम्मू-कश्मीर में शांति बहाली के लिए उठाया गया अहम कदम है।
राज्य के उप मुख्यमंत्री निर्मल सिंह ने तो यहां तक कह दिया है सरकार में बने रहना है या नहीं यह फैसला अब केंद्रीय नेतृत्व को करना है। सिंह को यह डर सता रहा है कि अगर पीडीपी ऐसे ही मनमाने फैसले लेते रही तो राज्य में बीजेपी के लिए अस्तित्व का संकट ही खड़ा हो जाएगा। बीजेपी कह रही है कि सरकार चलाने के लिए साझा न्यूनतम कार्यक्रम बना है, उसमें आतंकियों के रिहाई जैसे विवादस्पद मुद्दे हैं ही नहीं। उधर गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार मर्सरत की रिहाई को लेकर रिपोर्ट मांगी है।
मर्सरत वही मुस्लिम लीग के प्रमुख हैं, जिन पर आरोप है कि उन्होंने 2010 में कश्मीर में भारत विरोधी हिंसा फैलाई। पत्थरबाजी की इन घटनाओं मे 112 लोगों की मौत हुई थी।