प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दूसरा कार्यकाल शुरू

पीएम मोदी ने 2014 में शिक्षक दिवस के मौके पर एक छात्र के सवाल के जवाब में कहा था कि 2024 तक तो वही प्रधानमंत्री रहेंगे. बहुत कम लोग होते हैं जो सत्ता के बारे में इस तरह का राजनीतिक दावा पूरा कर देते हों.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दूसरा कार्यकाल शुरू

नई दिल्ली:

मोदी सरकार का शपथ ग्रहण हो गया. उन्होंने 2014 में शिक्षक दिवस के मौके पर एक छात्र के सवाल के जवाब में कहा था कि 2024 तक तो वही प्रधानमंत्री रहेंगे. बहुत कम लोग होते हैं जो सत्ता के बारे में इस तरह का राजनीतिक दावा पूरा कर देते हों. प्रधानमंत्री नरेंद मोदी का दूसरा कार्यकाल औपचारिक रूप से शुरू हो गया. कृषि प्रधान भारत देश में आज का दिन ईवेंट प्रधान रहा. ये तो कहिए कि मंत्रियों को फोन आने लगे वरना एंकरों के हलक सूखने लगे थे कि किनका नाम चलाएं और किनका नाम नहीं. मगर सबका ध्यान इस बात पर था कि इस मंत्रिमंडल की सबसे बड़ी ख़बर की घोषणा कब होगी. अटकलें चल रही थीं मगर कोई नहीं चला पा रहा था अमित शाह के शामिल होने की घोषणा कब होगी. तभी पौने पांच के आस पास गुजरात से एक ट्वीट आता है. गुजरात बीजेपी के अध्यक्ष जीतू बघानी ट्वीट करते हैं कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद मोदी जी के नेतृत्व में केंदीय मंत्रि‍मंडल में मज़बूत साथी के रूप में शामिल होने पर हमारे पथदर्शक मार्गदर्शक श्रद्धेय श्री अमित शाह जी से शुभेच्छा मुलाकात की और शुभकामनाएं दीं.

बस ख़बर ब्रेक हो गई. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह मोदी सरकार का हिस्सा बनेंगे. जिन लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह के बीच प्रतिस्पर्धा को देखा वो दोनों की साथ शुरू हुई यात्रा को नहीं देख पाए. कई बार हम जिन नेताओं को दिन रात टीवी पर देखते हैं, लगने लगता है कि हम सब कुछ उनके बारे में जानते हैं. मगर एक बार फिर से अमित शाह के बारे में जानने की ज़रूरत है. प्रधानमंत्री से 14 साल छोटे हैं. इस वक्त 54 साल उम्र है. अमित शाह और प्रधानमंत्री के रिश्ते को समझना है तो कुछ तस्वीरें दिखाना चाहता हूं.

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राजनीति रिश्तों का यह विज़ुअल ऑर्डर है. आप जब भी अमित शाह को प्रधानमंत्री का स्वागत करते देखें एक किस्म की औपचारिकता दिखेगी और वो हर बार दिखेगी. प्रधानमंत्री कार से उतरते हैं और अमित शाह चुपचाप एक सामान्य कार्यकर्ता की तरह अंग वस्त्र पहनाकर गुलदस्ता देते हैं. आप कभी भी इसमें हेरफेर नहीं देखेंगे. जब भी देखेंगे एक ही किस्म की औपचारिकता नज़र आएगी. अमित शाह और नरेंद्र मोदी 1987 से एक दूसरे को जानते हैं. उनके रिश्ते में कितनी अनौपचारिकता होती होगी, लेकिन बाहर यानी कैमरे के सामने इस तरह की तस्वीर को देखकर आप समझ सकते हैं कि दोनों में बॉस कौन है. नेता कौन है. मैंने यह तस्वीर आपको इसलिए दिखाई क्योंकि पिछले पांच साल में मैंने हमेशा यह नोटिस किया है कि अमित शाह नरेंद्र मोदी का स्वागत औपचारिक तरीके से ही करते हैं. यह विजुअल कुछ ही सेकेंड का होता है और हमेशा इस स्वागत के बाद की बड़ी घटनाओं के कवरेज में ग़ायब हो जाता है लेकिन मैंने हमेशा देखा है कि दुनिया की नज़र में बराबर देखे जाने वाले इन दो में नेता कौन है. इस मुलाकात की एक ख़ास बात यह भी है. प्रधानमंत्री भी ऐसे मिलते हैं जैसे अमित शाह को नहीं जानते हों. अमित शाह भी ऐसे स्वागत करते हैं जैसे प्रधानमंत्री से डरते हों. राजनीति और मीडिया के छात्र इसे अलग से नोट करें कि पब्लिक लाइफ में किस हद तक औपचारिक और अनुशासित होना पड़ता है. इसीलिए शुरूआत में मैंने इसे विज़ुअल ऑर्डर कहा यानी दृश्य व्यवस्था. दोनों एक दूसरे के लिए जो भी हैं मगर कैमरे के सामने वे हमेशा इसी तरह से दिखेंगे.

अमित शाह और नरेंद्र मोदी की खास बात यह भी है कि दोनों एक दूसरे का रास्ता क्रॉस नहीं करते हैं. आपको क्या याद है कि अमित शाह अमरीका गए हों, लंदन गए हों और वहां भाषण दे रहे हों. पिछले 5 साल में क्या आप एक भी ऐसी घटना बता सकते हैं. अमित शाह को पता है कि उनकी हद क्या है. उन्हें जानने वाले कहते हैं कि वे मुग़ालता नहीं पालते हैं. उन्हें याद रहता है कि वे अमित शाह हैं. नरेंद्र मोदी उनके नेता हैं.

1987 से अमित शाह और नरेंद्र मोदी एक दूसरे को जानते हैं. अहमदाबाद के गांधी रोड़ पर चंदरविलास रेस्त्रां दोनों की स्मृतियों में आज भी याद होगा. 120 साल पुराना है chandravilas रेस्त्रां. इस रेस्तरां में महात्मा गांधी और सरदार पटेल के आने की तस्वीर है. राजकूपर भी. आग लग जाने के कारण पुराने जैसा तो नहीं रहा, मगर इस रेस्त्रां की इनकी ज़िंदगी में एक छोटी सी जगह है. यहां की चाय और जलेबी के बीच अमित शाह ने एक दिन नरेंद्र मोदी से कहा था कि आप भारतीय जनता पार्टी के भविष्य हैं. एक दिन आप भारत के प्रधानमंत्री बनेंगे. उस वक्त नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री भी नहीं बने थे. बातचीत वाली ये जानकारी मैंने शीला भट्ट के लेख से ली है. ये दोनों तभी से गुजरात के बाहर की दुनिया को समझने लगे थे. जब तक आडवाणी 2009 में नाकाम नहीं हुए दोनों ने अपने नेता का रास्ता नहीं काटा. उनके नाकाम होने के बाद से ही मोदी शाह की जोड़ी भाजपा की राजनीति में उभरने लगती है. सुशील मोदी को याद होगा. राजकोट में जयप्रकाश नारायण की सभा में सुशील मोदी आए थे. अमित शाह अहमदाबाद से बस पकड़ कर राजकोट गए थे जेपी को देखने.

स्मृतियों की भी अपनी सीमा होती है. इंटरनेट पर अमित शाह के बारे में काफी कुछ पढ़ने को मिलेगा. इंडियन एक्सप्रेस में 25 जनवरी 2016 के दिन छपा शीला भट्ट का लेख आप पढ़ सकते हैं. शीला भट्ट ने उस लेख में लिखा था कि अमित शाह को बीजेपी का अध्यक्ष इसलिए बनाया गया क्योंकि वे हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद को लेकर संकोच नहीं करते. पीछे नहीं हटते हैं. 2016 के बाद की राजनीतिक घटनाओं से आप इस बात का मिलान भी कर सकते हैं.

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अमित शाह एक समृद्ध परिवार से आते हैं. मांसा में उनका पुश्तैनी घर हेरिटेज माना जाता है. 1980 में राजनीति में आने से पहले उनका पीवीसी पाइप का बिजनेस था, जिसे राजनीति में आने के बाद छोड़ दिया. अमित शाह के दादा स्टॉक मार्केट से जुड़े थे. सन 2000 में अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट कोपरेटिव बैंक लिमिटेड का अध्यक्ष बने और उसे सफलतापूर्वक चलाया. शायद बिजनेस के इन अनुभवों के कारण भी वित्त मंत्रालय पर उनकी दावेदारी बताई जाने लगी है. अमित शाह खुद को चिपकू कहते हैं वो इसलिए कि अपने लक्ष्य से चिपक जाते हैं. शीला भट्टा ने लिखा है कि अमित शाह मानते हैं कि अगर 2010 में कांग्रेस ने उन्हें जेल नहीं भेजा होता तो वे राजनीति के केंद्र में नहीं आते. जेल में उन्होंने कांग्रेस को हराने का प्रण लिया. और इस वादे को पूरा करने के लिए यूपी को चुना. 2014 में जब सब बीजेपी को यूपी में 40 सीट तक दे रहे थे अमित शाह 73 ले आए. अमित शाह गांधीनगर में आडवाणी के इलेक्शन एजेंट थे. जिस सीट पर आडवाणी को लड़ाते रहे, उसी सीट से इस बार सांसद बनकर राष्ट्रपति भवन के शपथ ग्रहण समारोह में पहुंच गए.

सोहराबुद्दीन तुलसीराम प्रजापति केस और जज लोया केस के संबंध में कितना कुछ लिखा गया है. इस केस में अमित शाह बरी कर दिए गए हैं. सीबीआई की स्पेशल कोर्ट के इस फैसले को आगे भले न चुनौती दी गई हो मगर इस केस की अमित शाह के राजनीतिक जीवन में बड़ी भूमिका है. शीला भट्ट वाले लेख में उन्होंने कहा है कि जब भी उनके बारे में लिखा जाएगा इस केस के बारे में लिखा जाएगा. सोहराबुद्दीन तुलसीराम प्रजापति केस उनकी छवि का हिस्सा है जिसकी परवाह नहीं करते. वे अपना काम करते रहते हैं.

2007 का साल था. मैं नया नया रिपोर्टर था. गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजे आ रहे थे. मेरी तैनाती अमित शाह के घर पर हुई थी. 2014 के बाद से मेरी अमित शाह से कोई मुलाकात नहीं. इस बार जब 2019 में नतीजे आ रहे थे जब बीजेपी ने चैनलों में भेजने के लिए 48 प्रवक्ताओं के जो रोस्टर बनाए थे उसमें एक भी प्रवक्ता का नाम मेरे कार्यक्रम के लिए नहीं था मगर मैं 2007 के साल में अमित शाह के घर में था. बिल्कुल भीतर. उसी लाल माइक के साथ. अमित शाह जब अपनी मां का आशीर्वाद लेकर मतगणना केंद्र जा रहे हैं, उनके पांव छू रहे हैं तब मैं अमित शाह के घर के भीतर था. मैं आपको दिखाना चाहता हूं. रिजल्ट से पहले अमित शाह ने कहा था कि बीजेपी को दो तिहाई सीटें आएंगी और रिज़ल्ट भी ऐसा ही हुआ था.

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न मैं बदला न अमित शाह. अमित शाह के इस जवाब से आप उनकी राजनीति की शैली को समझ सकते हैं. शायद प्रायश्चित की कोई जगह नहीं. लेकिन अमित शाह को मैंने दिल्ली के विधानसभा चुनावों में 100-50 कार्यकर्ताओं को संबोधित करते देखा था. मुझे लगा था कि राष्ट्रीय अध्यक्ष इतनी कम भीड़ देखकर लौट जाएंगे मगर अमित शाह ने दक्षिण दिल्ली के इलाके का अपना कार्यक्रम पूरा किया था. अमित शाह सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं. गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के भी अध्यक्ष रह चुके हैं. एक राजनेता की जीवन यात्रा दिलचस्प होती है. वह कब किताब बन जाए और कब किताब का फुटनोट्स कोई नहीं जानता. जो नेता होता है वह फुटनोट्स में भी रहता है और किताब भी बन जाता है.

अमित शाह ने बीजेपी को भी बदल दिया है. दर्जनों ज़िलों में बीजेपी का नया दफ्तर बनाया गया. अमित शाह ने इनकी योजना बनाई और अपना कार्यकाल खत्म होने से पहले देश के कई ज़िलों में बीजेपी का नया दफ्तर बन कर तैयार हो गया. दूसरी पार्टी के नेताओं के बारे में हमने सुना है कि पार्टी का पैसा लेकर दूसरे दल में भाग गए मगर अमित शाह के निर्देशन में बीजेपी के कई नए दफ्तर बने. दिल्ली का मुख्यालय भव्य तो है ही. इन दफ्तरों से भी एक नई राजनीतिक व्यवस्था का अंदाज़ा हो जाना चाहिए था. अमित शाह ने कार्यकर्ताओं से कहा कि अपने प्रदर्शनों, गतिविधियों का पूरा रिकॉर्ड रखें. ताकि आने वाली पीढ़ि के लोग उसे देख सकें. रिसर्च कर सकें क्योंकि ज़ुबानी इतिहास पर कोई यकीन नहीं रखता. शीला भट्ट के लेख में ये लाइन पढ़कर हैरानी भी हुई. इतिहास के मूल विषयों को ज़ुबानी तौर पर बदल देने वाले अमित शाह अपनी पार्टी के इतिहास में तथ्यों और सोर्स को कितनी गंभीरता से लेते हैं. 

शपथ ग्रहण समारोह का अपना जलवा होता है. आम लोगों के जीवन से जुड़े मंत्रालयों को हम मीडिया वाले कितना महत्व देते हैं. देश भर में सूखा है मगर जल संसाधन मंत्रालय किसे मिला इस पर नज़र कम रहती है, गृह मंत्रालय किसे मिला इसके चक्कर में ही सभी रहते हैं. सत्ता हमारी सोच पर हावी होती है. उस सोच तक सत्ता पहुंचती है कैसे इसकी एक मिसाल है शपथ ग्रहण.

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हज़ारों मेहमानों से भरे राष्ट्रपति भवन का यह प्रांगण किसी टीवी सीरीयल के सेट की तरह भव्य लग रहा था. उदारीकरण के दौर में हमने जिस भारत को टीवी सीरीयलों के ज़रिए देखना शुरू किया था वह भारत आज राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में सेट की तरह ही तो भव्य नज़र आ रहा है. यहां आने वाली हस्तियां शपथ ग्रहण समारोह को किस्से कहानियों में बदल रही थीं. अनेक चैनलों के ज़रिए दूर दराज के इलाकों में बैठे लोग जब इन हस्तियों को देख रहे होंगे तो वहां तक पहुंचने का सपना भी देख रहे होंगे. सत्ता की भव्यता आम घरों में इसी तरह देवत्व लिए प्रवेश करती है. सपना बनती है. कोई राजू प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहा होगा. कोई सुनिता प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रही होगी. राजनीति और मीडिया के इस मोदी सिस्टम दौर में आप विज़ुअल ऑर्डर को नहीं समझेंगे तो मोदी दौर को समझ ही नहीं सकते. सब कुछ कैमरे की निगाह से भव्य है. इस भव्यता के दो छोर हैं. एक छोर पर प्रधानमंत्री मोदी हैं और दूसरे छोर पर वो तमाम विशिष्ट लोग जो आज के दिन खुद को ख़ास समझ रहे हैं मगर उन्हें कैमरा आम लोगों की तरह दिखा रहा है. सबकुछ कितना करीब का लग रहा है मगर तब भी दूरी का हिसाब ठीक से लगाया गया है. भारत अपनी नियति को दर्ज कर रहा है. उसने देखा तो बहुत कुछ है मगर ऐसा बहुत दिनों बाद देखा है. बहुत कुछ पहली बार देख रहा है. लोकतंत्र का पर्व ख़त्म हो गया है. अब एक और पर्व शुरू हो रहा है. दिल्ली की तपती दोपहरी से गर्म हुई हवा जाने क्या जादू लेकर शाम को बहने लगी होगी जब खुले आसमान के नीचे बैठे ये आम लोग, तेज़ गरमी की शिकायत किए बग़ैर अपने आप को ख़ुशकिस्मत समझते रहे. मोदी सिस्टम का विज़ुअल ऑर्डर. ताकतवर गाड़ियों से आती सत्ता. आती तो हर बार थी मगर अब इन गाड़ियों के आने का अंदाज़ बदल गया है. सत्ता के दिखने का तरीका बदल गया है. भारत को देखने का तरीका बदल लीजिए. यह नया भारत है. नया-नया दिख रहा है. आम से लेकर ख़ास लोग प्रधानमंत्री के स्वागत में खड़े हो गए हैं. कैमरे ने सबको दर्ज कर लिया है. शपथ ग्रहण पांच साल में एक बार आता है. अब शुरू होता है शपथ ग्रहण समारोह. जिसकी बात ब्रेक के बाद करेंगे. महामहीम राष्ट्रपति जी पधार रहे हैं.

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