जमकर हो रही है कर चोरी, जीएसटी के बाद भी, राज्यों का राजस्व घटा

यह भी देखा जा रहा है 1 करोड़ से अधिक टर्नओवर वाले जिन व्यापारियों ने कंपोजिशन स्कीम में पंजीकरण कराया था वो टैक्स नहीं दे रहे हैं.

जमकर हो रही है कर चोरी, जीएसटी के बाद भी, राज्यों का राजस्व घटा

जमकर हो रही है कर चोरी, जीएसटी के बाद भी, राज्यों का राजस्व घटा (प्रतीकात्मक फोटो)

क्या जीएसटी के कारण राज्यों का औसत राजस्व घटा है? दावा था कि राज्यों का राजस्व बढ़ेगा. बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का कहना है कि ज़्यादातर व्यापारी 20 लाख से कम टर्नओवर वाले हो गए. इसके लिए सुशील मोदी ने suppression of turnovers शब्द का इस्तेमाल किया है. साफ शब्दों में व्यापारी टैक्स चोरी करने के लिए अपना टर्नओवर 20 लाख से कम दिखा रहे हैं. इसके कारण उन्हें जीएसटीएन में पंजीकरण की ज़रूरत नहीं होती है. यह भी देखा जा रहा है 1 करोड़ से अधिक टर्नओवर वाले जिन व्यापारियों ने कंपोजिशन स्कीम में पंजीकरण कराया था वो टैक्स नहीं दे रहे हैं.

हमें तो यही बताया गया था कि जीएसटी लागू होने के बाद कोई टैक्स चोरी कर ही नहीं सकेगा तो फिर ये suppression of turnover कैसे हो रहा है सर. क्या जीएसटी के बाहर कोई दूसरा नेटवर्क बन चुका है जिससे कारोबार चल रहा है और चलने दिया जा रहा है.

राज्य सरकार के कर्मचारी ही बता सकते हैं कि सैलरी समय पर मिल रही है या नहीं, बिल का पेमेंट हो रहा है या नहीं. कोई सुनने वाला नहीं तो मैं हूं न!

अख़बार ने लिखा है कि जीएसटी आने के बाद राज्यों का औसत राजस्व नवंबर और दिसंबर 2017 में 20 प्रतिशत कम हो गया है. अगर यह जारी रहा तो केंद्र सरकार को भरपाई करनी होगी. सितंबर के बाद फिर से पेट्रोल के दाम 70 रुपये प्रति लीटर के पार जा चुके हैं. कई शहरों में 80 रुपये प्रति लीटर हो गया है. भोपाल में 76 रुपये प्रति लीटर से ज़्यादा पर पेट्रोल मिल रहा है. वो भी क्या दौर था जब 60-65 होने पर ख़ूब प्रदर्शन होता था, अब 75 और 80 पर भी शांति है.

यह बताता है कि लोग अभी 100 रुपये प्रति लीटर तक देने की स्थिति में आ गए हैं! काश कहीं चुनाव हो जाए, दाम अपने आप कम हो जाएं. 500 अरब उधारी का इरादा था मगर अब 200 अरब ही उधारी लेगी सरकार. ख़बर सुनकर नाचा बाज़ार. सेंसेक्स झम से पहुंचा 35,000 पार. मगर इससे नहीं मिलता रोज़गार.

अब आपको इस ख़बर का गेम समझाते हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया ने जहां इस ख़बर को डाला है उसी के बगल में एक और ख़बर है. आप यह न समझें कि सरकार ने कुछ अच्छा किया इसलिए अब वह 50,000 करोड़ की उधारी नहीं लेगी, 30,000 करोड़ की उधारी ही लेगी.

बगल में खबर है कि सरकार इस वित्त वर्ष के आखिर तक अपनी हिस्सेदारी बेचकर 90,000 करोड़ जुटाएगी. आमतौर पर इसे विनिवेश कहते हैं जिसकी सब तारीफ करते हैं मगर ज़रा सोचिए. आप अपने भविष्य के लिए कुछ हिस्सा रखते हैं, क्या उसे बेचना हमेशा ही अच्छा होता है.

सरकार ने हिन्दुस्तान पेट्रोलियम, ओएनजीसी में अपनी हिस्सेदारी बेच दी है. पिछले साल सरकार ने 46,000 करोड़ की हिस्सेदारी बेची थी, इस साल 90,000 करोड़ तक पहुंचने के आसार दिख रहे हैं. फिर सरकार का कौन सा वित्तीय प्रबंधन है कि सब कुछ बेच ही रहे हैं. अगले वित्त वर्ष में सरकार अपना हिस्सा बेचकर 1 लाख करोड़ रुपये जुटाएगी. हिस्सा का मतलब है सरकार की पूंजी. संपत्ति. पहले के विनिवेश से मुल्क के आर्थिक जीवन में और आपके जीवन में क्या बदलाव क्या आया है, इसे कोई नहीं बताता है. बस सब कहेंगे अच्छा हुआ, अच्छा हुआ. बात समझो न बच्चा, कि क्या अच्छा हुआ.

हुज़ूर को विदेशी निवेश से हो रहा प्यार है. मेक इन इंडिया नहीं चला तो 100 परसेंट एफ डी आई की पतवार है. उम्मीद बिकती है बाज़ार में, वोटर ख़रीदार है. रिटेल में 100 परसेंट, प्राइवेट बैंक में 74 परसेंट से बढ़कर 100 परसेंट.

बस मत समझना बैंकों में बढ़ रहीं नौकरियां हैं. ज़रा अख़बार पढ़ना सीख लो, पता कर लो, बड़े बैंकों का क्या हाल है. जर्मनी का एक बड़ा भारी बैंक है डोएचे बैंक. आर्थिक और तकनीकी कारणों से यह बैंक 2015 से लेकर 2019 के बीच करीब 20,000 लोगों को निकाल देगा. अभी ख़बर आई है कि नीचे के 20 प्रतिशत कर्मचारियों को भी निकालेगा. 2007 की मंदी में बैंक ही तो डूबे थे.

केंद्र सरकार के पास प्रत्यक्ष करों का जमावड़ा बढ़ा है. सोमवार तक 18.7 प्रतिशत बढ़ा है. बजट में अनुमान था कि 9.8 खरब जमा होगा और यह 6.89 खरब हो गया. बिजनेस स्टैंडर्ड ने लिखा है कि 1.22 खरब रिफंड भी करना है. उसे लौटाने की गति धीमी है. क्या असर पड़ेगा, किस पर असर पड़ेगा, इसका ज्ञान हमको नहीं है. फिलहाल अखबार ने लिखा है कि प्रत्यक्ष करों का जमा होना बता रहा है कि कई सेक्टर में प्रगति दिख रही है.


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