योग करते होंगे पर योगी नहीं हैं हमारे नेता, बल्कि वे भी हैं रोगी

योग को लेकर व्यर्थ के विवाद हो रहे हैं। इस मौके के बहाने सार्वजनिक रूप से योग को लेकर सार्थक बहस होती तो आम जनता योग के बारे में ज़्यादा जानती और समझती। रामदेव के उभार का दौर याद कीजिए, तमाम बड़े नेता योग करने लगे थे। इसके कारण रामदेव कई दलों के बड़े नेताओं के बीच स्वीकृत हो गए और फिर उसके बाद उन्होंने ख़ुद को भारतीय जनता पार्टी के एक प्रचारक के रूप में स्थापित कर लिया। रामदेव ने योग के ज़रिये राजनीति को साधा तो राजनीति ने भी योग के ज़रिये अपने हित को साधा। राजनेताओं को लगा कि योग से वे दीर्घजीवी हो जाएंगे और पिचके तोंद के दम पर जनता के बीच अपार ऊर्जा के धनी किसी चमत्कारी राजनेता के रूप में स्थापित हो जाएंगे। योग के किसी भी पैमाने से देखिये तो कोई भी राजनेता खरा नहीं उतरेगा। खरा छोड़िये, योग की मूल भावना के आस-पास भी नहीं दिखेगा। नेता ही नहीं योग को तोंद पिचकाऊ अभ्यास समझने वाले हम सबकी भी यही हालत है।

ज़रूरी है कि हम योग के बारे में ज़्यादा से ज़्यादा से पढ़ें। योग की जानकारी हमें अभ्यास से ज़्यादा योग के मूल उद्देश्य साधना और समाधि की ओर ले जाएगी। पातंजल योगदर्शन स्वामी हरिहरानन्द आरण्य की एक किताब है, जिसे मोतीलाल बनारसीदास से छापा है। एक और अच्छी पुस्तिका है, यौगिक जीवन जिसे स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने लिखी है। बिहार के मुंगेर स्कूल का योग दुनिया में प्रसिद्ध है। इसके मौजूदा संचालक स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने बेहद सरल तरीके से यौगिक जीवन के बारे में बताया है।

उनकी कुछ बातों को मैं बिन्दुवार रख रहा हूं ताकि हम और आप आज योग की बात करने वाले नेताओं को रखकर देख सकें। सभी दलों के बड़े नेता योग करते हैं, मगर उन सभी का आचरण योग की मूल भावना के खिलाफ ही जाता है। मेरी कोशिश यह है कि हम योग ज़रूर करें, मगर योग को लेकर, जो भ्रांतियां फैलाईं जा रही हैं, उससे भी बचने का प्रयास करें। योग तो आपको चित्त और मन की भ्रांतियों से दूर करता है, लेकिन मौजूदा दौर में योग ही भ्रांतियों का शिकार हो गया है। निरंजनानंद सरस्वती की बातों के नज़रिये से देखेंगे तो योग का नाम जपने वाले हमारे आज के नेता भी उतने ही ढोंगी हैं, जितने योग का कारोबार करने वाले चंद लोग, जो ख़ुद को महात्मा कहते हैं।

1.“योग का प्रयोजन बताते हुए निरंजनानंद सरस्वती लिखते हैं कि योगियों ने अपने आपसे पूछा कि क्या सभी को इसी तरह का जीवन जीना पड़ेगा? कभी किसी से दोस्ती तो कभी किसी से दुश्मनी, कभी किसी की प्रशंसा तो कभी किसी की निंदा। क्या जीवन का यही प्रयोजन है? योगियों ने कहा ‘नहीं’। जीवन जीने का बेहतर तरीका होना चाहिए। योग के द्वारा जीवन की विक्षिप्त अवस्थाओं को एकाकार कर सकते हो। योग ईश्वर दर्शन या मोक्ष नहीं है।"

अब इस प्रमेय के हिसाब से आप देखेंगे तो कोई भी राजनेता जो योग करता है, सुबह योगाभ्यास के बाद ठीक उल्टा आचरण करता है। वो घर से निकलते ही प्रशंसा और निंदा के बयान देता और कई तरह के विवादों में घिरा रहता है। उसके किसी आचरण से व्यापक जन को संतोष नहीं पहुंचता। वो अपने जीवन की विक्षिप्त अवस्थाओं को एकाकार करने की जगह अपने कर्मों और बयानों से सामान्य जन को और भी विक्षिप्त कर देता है। वे अपने बयानों से एक समुदाय को डराते हैं तो एक को भड़काते हैं। योग करने वाला नेता ऐसा हो ही नहीं सकता।

2.“कमरतोड़ काम करने को ही कर्मयोग नहीं कहते हैं। सुबह से शाम तक व्यस्त रहने को कर्मयोग नहीं कहते हैं। वास्तविक कर्मयोग तब संपन्न होता है जब तुम अपने पूर्वाग्रहों और प्रतिक्रियाओं से मुक्त होते हो। तब कर्म केवल कर्तव्य के रूप में किया जाता है। दिन में चौबीस घंटे काम करना और फिर यह कहना कि मैं कर्मयोग करते-करते थक गया हूं, वास्तव में कर्मयोग नहीं है।''

इसके ठीक उल्टा कई नेता इस बात का प्रचार करते हैं कि वे कर्मयोगी हैं। कोई विपश्यना सीख आता है तो कोई पब्लिक में आसन लगाकर साधारण जन में ऐसी छवि बनाता है कि वो सिर्फ नेता ही नहीं, असाधारण मनुष्य है। अपनी इस छवि के प्रचार के लिए वे लोगों को बताते हैं कि योग से शक्ति आती है, जबकि निरंजनानंद सरस्वती के अनुसार, यह योग का स्वरूप ही नहीं है। हो सकता है कि कोई प्रतिक्रिया में और पूर्वाग्रह के अनुसार, कर्म नहीं करता हो, वो कर्म में डूबा हुआ है, लेकिन नेताओं के बयान सुनकर तो नहीं लगता कि उनमें पूर्वाग्रह की कोई कमी है। इसलिए वे काम करते होंगे मगर कर्मयोगी नहीं हैं। योग आपको मौजूदा काम के अत्यधिक तनावों से दूर करता है, न कि कोई ऐसी शक्ति देता है कि आप योग करने के बाद फिर से उसी तनाव में जाकर रम जाएं। योग के नाम पर नेता खुद को ईश्वरीय शक्ति का अवतार बताते हैं। यह कुछ और नहीं, योग के नाम पर ठगी है।

3. "आजकल जब लोग योग की और आकृष्ट होते हैं तो क्यों? बीमारी के कारण। आजकल की जीवनशैली में आदमी अपने लिए समय नहीं खोज पाता है। योग में हर बीमारी का उपचार नहीं है। अगर कोई ऐसा कहता है तो गलत कहता है, क्योंकि योग कोई उपचारात्म विज्ञान या विषय नहीं है। हमारा अनुभव रहा है कि अगर जीवनशैली ठीक हो जाएगी तो रोग अपने आप दूर हो जाएंगे। इसलिए हम योग को वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति नहीं मानते जैसे आज का समाज मानता है। हम योग को मात्र अभ्यास नहीं मानते हैं। निरंजनानंद योग संहिता में योग की चार श्रेणियां हैं- अभ्यास, साधना, जीवनशैली और संस्कृति। आज जितने भी योग के केंद्र हैं, योगाभ्यास के केंद्र हैं, योग साधना के केंद्र नहीं हैं। विदेशी लोग तो ऐरोबिक के रूप में योगाभ्यास करते हैं।"

निरंजनानंद जी आपको योग करने से मना नहीं कर रहे हैं, बल्कि चाहते हैं कि आप योग करते हुए उसके मूल मार्ग से न भटकें। एक यौगिक जीवन संस्कृति का विकास करें न कि प्रदर्शन करने योग्य किसी क्षमता का विकास। इसलिए योग करने वाले भी कई बार बीमारी का शिकार हो जाते हैं। हमारे आस-पास ऐसे कई योगी ठग आ गए हैं, जो बीमारी दूर करने के लिए आसनों का प्रचार कर रहे हैं। योग हमें बीमारियों से दूर करता है, बीमारी दूर नहीं करता। इसलिए इसे पैकेज मत बनाइए।

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योग से जीवन का समाधान नहीं है, बल्कि इस पर आधारित जीवन शैली हमें एक संतुलित जीवन का रास्ता बताती है। हम उस पर तो चलते नहीं, योगाभ्यास समाप्त होते ही मन वचन और कर्म से दूसरे को परास्त करने के खेल में लग जाते हैं। योगी किसी के बारे में कटु बात कर ही नहीं सकता। क्या योग करने वाले नेता ऐसा कर सकते हैं। इसलिए वे नेता हैं, योगी नहीं।