रवीश कुमार का ब्लॉग : प्राइवेट स्कूल-कॉलेज और उनके शिक्षकों की समस्या

प्राइवेट स्कूलों और कॉलेजों के शिक्षक परेशान हैं. उनकी सैलरी बंद हो गई. हमने तो अपनी बातों में स्कूलों को भी समझा है.

रवीश कुमार का ब्लॉग : प्राइवेट स्कूल-कॉलेज और उनके शिक्षकों की समस्या

प्राइवेट स्कूलों और कॉलेजों के शिक्षक परेशान हैं. उनकी सैलरी बंद हो गई. हमने तो अपनी बातों में स्कूलों को भी समझा है. हमेशा कहा है कि ऐसे वक्त में डेटा सही होना चाहिए. पता चलना चाहिए कि कितने मां बाप फीस नहीं दे पा रहे हैं. उसी अनुपात में सैलरी का वितरण हो सकता है. दूसरा जिनकी नौकरी हैं उन्हें फीस देनी ही चाहिए. जिनकी चली गई वो टर्मिनेशन लेटर जमा करें और रियायत पाएं. लेकिन हमारा समाज बेईमानी और अविश्वास के सिस्टम से चलता है. रही बात इसमें सरकार की किसी भूमिका की तो सरकार ने ऐसा कोई संकेत भी नहीं दिया है. अब लगता नहीं कि वह कुछ करेगी. इसलिए इस बात को लेकर सरकार को सुनाने के आग्रह भी बेतुके और व्यर्थ हैं. लोगों को थाली बजाने की सुनहरी एकजुटता के सपने देखने चाहिए. कुछ हो नहीं सकता. मुझे अनेक पत्र आते हैं. क्या करूं मैं उसका? कई बार प्रोग्राम में कहा भी तो क्या हो गया? इसका मतलब कुछ नहीं होगा. अब जो यह पत्र आया है निजी स्कूल समाज की तरफ़ से आप पढ़ें. शिक्षक से लेकर तमाम लोगों को रोज़ी रोटी बंद हो गई. मैं नहीं कहता और न कभी कहा है कि निजी स्कूलों की समस्या नहीं है लेकिन खुद को ही पीड़ित के रूप में पेश करना थोड़ा अजीब है. बहुत से स्कूल सक्षम हैं वो भी सैलरी नहीं दे रहे हैं. बहरहाल आप पढ़ें और थाली ज़रूर बजाएं. बहुत तकलीफ़ हो तो गोदी मीडिया के चैनल लगा कर दिन भर देखें. काफ़ी सकारात्मकता आएगी. आप देख भी रहे थे और देख भी रहे होंगे. जब सब सत्यानाश हो गया तो हमको क्यों पत्र लिखते हैं? मुझे ख़ुद अफ़सोस है कि जो पांच साल से कह रहा था वही बातें सच हो रही हैं. काश नहीं होती. जनता ने ही जनता का अस्तित्व समाप्त कर दिया.

रविश जी
नमस्कार,

प्रत्येक सिक्के के दो पहलू होते है एक पहलू तो मीडिया मे ज़ोरों से चलाया जा रहा है सोचा दूसरा पहलू कैसे चेलेगा फिर ज़ेहन में आपका खयाल आया सोचा अपनी बात आपसे साझा करूं.

​​मेरा नाम निजी विद्यालय है और मै देश के प्रत्येक राज्य/जिला/शहर/गांव का रहने वाला हूं. फिलहाल मैं बिहार के पटना जिला के एक गांव से अपने विचार रख रहा हूं. अगर दूसरे शब्दों में अपना परिचय दूं तो हम लोग सबसे उपेक्षित क्षेत्र जिसे हम शिक्षा विभाग कहते हैं से जुड़े हुए हैं. शिक्षा विभाग के भी उस वर्ग से आते हैं जिसे निजी विद्यालय (लुटेरा, गरीबों का खून चूसने वाला, मनमानी करने वाला, शिक्षा का व्यापार करने वाला और ना जाने कितने नामों से जाना जाता है) कहते हैं. तो क्या हुआ पिछले कई वर्षों से हम लोग गांव - देहात के बच्चों को एक बेहतरीन शिक्षा प्रदान करते चले आ रहे हैं और अपना सबकुछ लगा देते हैं इन बच्चों के भविष्य के लिए. उनमें से तो कई नौकरी भी करने लगे है, किन्तु हैं तो हम लोग लुटेरे ही. हमारे लूटने का आंकड़ा भी देख लीजिये. हमारे जैसे गांव-देहात के स्कूल नर्सरी मे 400/- प्रति माह से लेकर दसवीं मे 750/- प्रति माह का फी लेते है और नामांकन के समय 2000/- इस आंकड़े से तो समझ गए होंगे की हम लोग कितने बड़े लुटेरे हैं. और तो और किसी महीने भी 60 से 70 प्रतिशत से ज्यादा फी कलेक्शन नहीं होता है.

​​अभी कुछ दिन पहले बिहार के एक निजी स्कूल का स्टिंग ऑपरेशन चलाया गया जिसमें यह दिखाया गया कि स्कूल शिक्षा का व्यापार चला रहा है, आम गरीब जनता को लूटा जा रहा है. ऐसे स्टिंग ऑपरेशन मे स्कूल तो बड़े-बड़े दिखाये जाते हैं लेकिन वहां पढ़ने वाले बच्चों को आम गरीब जनता के बच्चे बताया जाता है जोकि कहीं से भी सही नहीं है. जो स्कूल AC Class Room, AC Bus इत्यादि की सुविधा प्रदान करते हैं और अधिक फीस डिमांड करते है तो वहां बच्चे भी उन्हीं लोगों के पढ़ते हैं जोकि सक्षम है और नामांकन के समय सारी चीजों को समझ-बूझ कर अपनी स्वेच्छा से नामांकन कराते हैं और समाज मे इसे अपना स्टेटस सिम्बल समझते हैं तो आज उन्हें ये स्कूल लुटेरे कैसे लगने लगे. ये तो ठीक उसी प्रकार है कि अगर आपको पटना से दिल्ली जाना है और आप ट्रेन में जनरल से जाते है तो 500/- किराया, स्लीपर में 1000/- और AC में हो सकता है 2000/- लगे. अगर कहीं हवाई-जहाज से जाते हैं तो 3000-5000 भी लग सकते है तब तो इनके हिसाब से हवाई जहाज वाले लुटेरे हुए. यही बात हर जगह लागू होती है चाहे वो आपके कपड़े हों , होटल हो , रेस्टोरेंट हो या कुछ और लेकिन लूटते सिर्फ स्कूल वाले है.

​​अब बात करते हैं निजी स्कूल की कुछ निजी समस्याओं की जिनपर ना तो किसी अभिभावक का ध्यान जाता है और ना की किसी मीडिया का. हमारे जैसे 80% निजी स्कूल कर्ज में डूबे रहते है. जमीन के लिए कर्ज, बिल्डिंग बनाने के लिए कर्ज, स्कूल बस के लिए कर्ज इत्यादि. दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर एक झूठी खबर चलती है कि लॉकडाउन में स्कूल का 3 महीने का फीस नहीं लगेगा. बस फिर क्या अभिभावक गांठ बांधकर बैठ गए कि साहब हम तो फीस नहीं देंगे. तो क्या हुआ अगर आप ऑनलाइन क्लास ले रहे हैं, तो क्या हुआ पिछले 4 महीनों से आप शिक्षकों की सैलरी नहीं दे पाए हैं, तो क्या हुआ बैंक अपनी कर्ज कि किस्त माफ नहीं करने वाली है, तो क्या हुआ कि शिक्षक किराए का मकान छोड़कर अपने गांव चले गए, तो क्या हुआ आपको अपने स्कूल बिल्डिंग का किराया देना है, तो क्या हुआ स्कूल के ड्राईवर/प्यून/खलासी आज दो वक्त कि रोटी के लिए भी सोच रहे हैं.

जहां तक सरकार का सवाल है, वो हम निजी स्कूल पर क्यों ध्यान देगी. ना तो उनको हमसे कोई बहुत बड़ी रकम राजस्व के तौर पर मिलता है और ना ही स्कूल में पढ़ रहे बच्चे उनका वोट बैंक हैं. तो क्या हुआ शिक्षा के स्तर को बनाए रखने में निजी स्कूल की एक अहम भूमिका है, तो क्या हुआ कि सरकार निजी स्कूल का प्रयोग वहां पढ़ रहे बच्चों के सिर्फ आंकड़ों के लिए करती है, तो क्या हुआ सभी नेता/बड़े ऑफिसर/यहां तक की सरकारी स्कूल के शिक्षक के भी बच्चे निजी स्कूल में ही पढ़ते हैं.

​​नैतिकता का पाठ भी हम निजी स्कूल वाले को ही पढ़ना है. नैतिकता के आधार पर हमें फीस माफ कर देना चाहिए या फीस कम कर देना चाहिए. तो क्या हुआ सरकार अपना राजस्व जुटाने के लिए रोज पेट्रोल/डीज़ल का दाम बढ़ा सकती है. तो क्या हुआ राजस्व के लिए सबसे पहले शराब की दुकान खुलती है. हम लोगों की मंशा कतई ये नहीं कि स्कूल खोल दिया जाए क्योंकि बच्चों की सुरक्षा सर्वोपरि है. किन्तु सरकार के तरफ से ये पहल होनी चाहिए कि टीवी के माध्यम से अखबार के माध्यम से अभिभावक को ये समझाने का प्रयास करें कि उन्हें बच्चों की फीस जमा करना चाहिए. अगर सरकार को ऐसा लगता है कि इससे जनता नाराज़ हो जाएगी और वोट बैंक की राजनीति प्रभावित होगी तो सरकार खुद सामने आए और हम निजी स्कूल वालों की मदद करे.

​रवीश जी उम्मीद है आप हम लोगों की मनोदशा समझने का प्रयास करेंगे और इन बातों को अपने अंदाज़ मे एक बार NDTV पर जरूर रखेंगे ताकि आम जनता सिक्के के दूसरे पहलू के बारे में भी सोचे. और अगर लगे की ऊपर लिखी बातें बकवास है तो इसे कचरे के डिब्बे में डाल दीजियेगा.

​धन्यवाद ​

​​​​​​​​​​आपका
निजी स्कूल समाज

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