रवीश कुमार का ब्लॉग : राजस्थान मरुधरा ग्रामीण बैंक के कर्मचारियों का विरोध सभी बैंकरों के लिए सबक है

20 लाख लोगों को ग़ुलाम बनाया जा सकता है. सत्याग्रह करें. अपने जीवन को पीड़ा मुक्त करें. सरल और सहज बनाएं. मुझसे आपकी तकलीफ देखी नहीं जाती है. 

रवीश कुमार का ब्लॉग : राजस्थान मरुधरा ग्रामीण बैंक के कर्मचारियों का विरोध सभी बैंकरों के लिए सबक है

राजस्थान के दस शहरों में 4 अक्तूबर से ‘क्रॉस सेलिंग' के ख़िलाफ़ राजस्थान मरुधरा ग्रामीण बैंक के कर्मचारी प्रदर्शन कर रहे हैं. ‘क्रॉस सेलिंग' के खेल को समझना ज़रूरी है. बीमा कंपनी जब अपना उत्पाद बेचेगी तो उसके लिए कर्मचारी रखेगी, एजेंट रखेगी, रोज़गार भी बढ़ेगा. मगर अब इसकी जगह बैंक के कर्मचारी से कहा जाता है कि आप बैंक की सहयोगी कंपनी के बीमा प्रोडक्ट बेचें. बैंक का मैनेजर या कर्मचारी इस कार्य में सक्षम नहीं होता है. उसका काम बैंक का काम करना है. आपके खाते को संभालना, कर्ज़ देना वगैरह. लेकिन इसके साथ अब उसे बीमा उत्पाद बेचने का टारगेट दिया जा रहा है. इस टारगेट को पूरा करने के लिए बैंक कर्मी ग्राहकों से झूठ बोलते हैं. बग़ैर उसकी जानकारी के बीमा कर देते हैं क्योंकि अमुक संख्या में बीमा न करें तो उनका जीवन दूभर हो जाता है. उन्हें अपमानित किया जाता है. बैंक के लोगों ने इस अमानवीय व्यवस्था को स्वीकार कर लिया. क्रास सेलिंग ने बैंक कर्मियों को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया है. अगर सत्याग्रह पर चलते हुए किसी ग़लत का विरोध नहीं करते हैं तो इसी स्वीकारना ही कहा जाएगा. जब तक आपके भीतर अनैतिकता का अनुपात अधिक होगा, आप किसी भी शोषण से मुक्त हो ही नहीं सकते हैं.

अब बड़े-बड़े बैंकों के कर्मचारी अधिकारी चुप ही रहे लेकिन राजस्थान मरुधरा ग्रामीण बैंक के कर्मचारियों ने विरोध करना शुरू कर दिया है. यह एक दिलचस्प घटना है. इसके लिए उन्होंने कीमत भी चुकाई है. भारतीय स्टेट बैंक ने सात कर्मचारियों को निलंबित कर दिया है. मरुधरा ग्रामीण बैंक का संरक्षण भारतीय स्टेट बैंक ही है. प्रबंधन ने हर ब्रांच को टारगेट दिया है कि साल में 6 लाख एस बी आई लाइफ(बीमा प्रोडक्ट) बेचना ही है.  25 लाख म्यूचुअल फंड बेचने हैं. चार लाख से अधिक एसबीआई जनरल के दोनों प्रोडक्ट बेचने हैं. एक दुर्घटना बीमा है और एक स्वास्थ्य बीमा है. 

ऐसे बैंक के ज़्यादातर ग्राहक साधारण आर्थिक पृष्ठभूमि के होते हैं. वैसे बड़े बैंकों के भी होते हैं. अब बैंकरों से कहा जाता है कि जब किसान लोन लेने आए तो उसका ज़बरन बीमा करो. एसबीआई जनरल के स्वास्थ्य बीमा का एक साल का बीमा 10502 रुपये है. हो सकता है कि किसान का काम आयुष्मान बीमा से चल जाए तो उसे क्यों यह बीमा लेना चाहिए? पर बैंकर अपना टारगेट पूरा करने के लिए उसे फुसला कर बीमा कर देते हैं और लोन की राशि से पहला प्रीमियम काट लेते हैं. लेकिन जब दूसरा प्रीमियम देने की बारी आती है तो वह नहीं दे पाता है. साथ ही लोन की राशि भी कम हो जाती है जो वह नहीं चुका पाता है. किसान को भी धोखा मिलता है और बैंक का भी एनपीए हो जाता है क्योंकि उसका दिया गया लोन वापस नहीं आता है.

क्रास सेलिंग के ज़रिए बैंकों ने भारत के किसानों को बड़े पैमाने पर लूटा है. वो तो कहिए कि उन्हें या किसी को भी लगातार धार्मिक राष्ट्रवाद के झोंके में रखा जाता है इसलिए पता नहीं चलता है. आप बैंक पैसा निकालने गए हैं. लोन लेने गए हैं. बीमा का फैसला भी नहीं किया है. सोचा भी नहीं है. लेकिन आप पर कोई पालिसी थोप दी जाती है. बैंकर टारगेट पूरा करने के लिए अपने दोस्त रिश्तेदारों को भी पालिसी बेच रहे हैं. 

यही हाल सरकार की बीमा योजनाओं का हुआ. किसी तरह बेचा गया ताकि सरकार सफल होने का दावा करे और आपसे यह नहीं बताया गया कि दूसरा या तीसरा प्रीमियम भरा गया कि नहीं. बैंकर अपने बैंक के प्रोडक्ट तो बेच ही रहे हैं, सरकार के प्रोडक्ट भी बेच रहे हैं. पहले बैंकरों को इसके लिए कमीशन का लालच दिया गया. रिज़र्व बैंक ने साफ साफ कहा है कि कमीशन नहीं दिए जा सकते हैं फिर भी यह काम चल ही रहा है. 

क्रास सेलिंग ग़लत परंपरा है. 2016 में अमरीका के एक बड़े बैंक वेल्स फारगो में इसका मामला आया था तब बैंक के उस प्रेसिडेंट को इस्तीफा देना पड़ा था. क्रास सेलिंग को फ्राड माना गया था. बैंक पर सैकड़ों करोड़ का जुर्माना लगा था. भारत में भी  Moneylife क्रास सेलिंग के खिलाफ अभियान चलाया है.

इंडस इंड बैंक ने 79 साल के एक बुज़ुर्ग की फिक्स डिपाज़िट तुड़वा दिया और ग़लत तरीके से मजबूर किया कि वे दूसरे प्रोडक्ट में निवेश करें. समय-समय पर रिज़र्व बैंक के बड़े अधिकारी कह चुके हैं कि बैंकों को इस तरह के प्रोडक्ट नहीं बेचने चाहिए. मरुधरा बैंक के कर्मचारियों की मांग बिल्कुल सही है कि टॉप मैनेजमेंट के खातों की जांच होनी चाहिए ताकि पता चले कि उन्हें कमीशन के तौर पर कितना मिल रहा है. इसे कहते हैं राजनीतिक चेतना. 

इस संदर्भ में राजस्थान मरुधरा ग्रामीण बैंक के कर्मचारियों का प्रदर्शन महत्वपूर्ण है. कम से कम उन्होंने अपने और दूसरों के लिए विरोध तो किया. उम्मीद है उनकी लड़ाई कमीशन हासिल करने की नहीं होगी बल्कि ग्राहक पर ज़बरन बीमा या वेल्थ प्रोडक्ट थोप कर कमाने की अनैतिक प्रवृत्ति के ख़िलाफ़ होगी. इस ज़ुल्म से परेशान दूसरे बैंकों के कर्मचारियों को भी आगे आकर मरुधरा ग्रामीण बैंक के कर्मचारियों का समर्थन करना चाहिए. 

निजी स्तर पर भी बैंकरों को साफ साफ बताना चाहिए कि उनके बैंक में कितने ऐसे ग्राहक हैं जिन पर बीमा थोपा गया, वो एक दो प्रीमियम के बाद नहीं चुका पाए।. उसका लाभ किसे अधिक मिला. दो प्रीमियम चुकाने के कारण किसानों के कर्ज़े पर क्या असर पड़ा. बैंकरों को चुपके से ये बात सभी को बताना चाहिए. वे शादी में जाएं, बस में चल रहे हों तो लोगों को बताते चलें. अनाम पोस्टर बनाकर जगह जगह लगा दें. लोगों के इनबाक्स में चुपचाप इस तरह के डिटेल डाल दें. बैंकरों को नैतिक बल अर्जित करना ही होगा. इतने लाचार और भोले नहीं हैं.

बैंक की नौकरी के बाद दहेज़ मांगने में तो बड़े बहादुर नज़र आते हैं, अब क्या हो गया. महिला बैंकरों को भी इनबाक्स में पोल खोल देनी चाहिए कि उन्होंने जब एक बैंकर से शादी की तो दहेज़ लिया था या नहीं. पुरुष बैंकर भी सत्याग्रह करें. बताएं कि लोन देते वक्त कितना कमीशन लिया जाता है, क्यों लोग इसकी शिकायत करते हैं? इन सब बहसों से ही हम सभी के भीतर नैतिक बल आएगा और हमारे जीवन में पीड़ा कम होगी.  वर्ना रवीश कुमार के पोस्ट लिखने या टीवी पर दिखाने से बदलाव नहीं आएगा. जिसकी उनमें घोर कमी है. 

वे इन बातों से परेशान तो हैं मगर इसे मिटाने के लिए ईमानदार नहीं हैं. जो अपने मुद्दों के प्रति ईमानदार नहीं है उससे दूर रहना चाहिए. इसलिए मैंने बैंक सीरीज़ बंद कर दी. आपका कोई जानने वाला बैंक में काम करता है, तो उससे इस बारे में पूछे.

अनैतिकता पर चुप्पी बैंकरों पर ही भारी पड़ रही है. दो साल हो गए मगर उनकी सैलरी अभी तक नहीं बढ़ी. बेहद कम सैलरी में बड़े-बड़े शहरों में काम करने के लिए मजबूर हैं. उनके जीवन में बहुत पीड़ा है. बैंकों के भीतर अधिकारियों से कहा जा रहा है कि वे एक लाख दो लाख या पांच लाख के शेयर ख़रीदें. उन्हें मजबूर किया जा रहा है कि लोन लेकर अपने बैंक के शेयर ख़रीदें. 

किसी भी परिभाषा से यह दासता ही है. बैंकरों को पता है कि ग़लत हो रहा है. चूंकि ज़्यादातर लोगों की (सिर्फ बैंकरों की नहीं) राजनीतिक चेतना भ्रष्ट हो गई है इसलिए वे हर ग़लत को अब सहने लगे हैं. अंध राष्ट्रभक्ति में फंसे लोग भावुक और झूठी बातों पर भुजाएं तो लहरा देते हैं मगर अपने साथ हो रहे इस तरह के शोषण के ख़िलाफ़ बुदबुदा नहीं पाते हैं. जब बैंकर ही अपने आत्मसम्मान की चिन्ता नहीं करेंगे तो दूसरा कौन करेगा? क्यों करेगा? वे अकेले नहीं हैं. उनकी संख्या लाखों में हैं. वे काउंटर पर ग्राहक का ख़ून चूस रहे हैं और बैंक उनका ख़ून चूस रहा है. शर्मनाक है. 

यह बताता है कि 20 लाख लोगों को ग़ुलाम बनाया जा सकता है. सत्याग्रह करें. अपने जीवन को पीड़ा मुक्त करें. सरल और सहज बनाएं. मुझसे आपकी तकलीफ देखी नहीं जाती है. 

नोट- बहुत से लोग बताते हैं कि उनकी कंपनी ने तीन महीने से सैलरी नहीं दी है. मुझे इसका डिटेल भेजें. मैं सैलरी नहीं दिलवाने जा रहा. बल्कि मैं अध्ययन करना चाहता हूं कि एक कश्मीर पर झूठ परोस कर आपसे कितनी बड़ी कीमत वसूली जा रही है. आप कैसे डिटेल भेजेंगे, यह आपको बताने की ज़रूरत नहीं है. मेरा पता मालूम चल जाएगा. डिटेल ठीक से दें और ईमानदारी से. 

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