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This Article is From Feb 08, 2019

प्रधानमंत्री मोदी ने भी 356 लगाकर विरोधी दल की सरकारें गिराई हैं

प्रधानमंत्री मोदी इस आधार पर भाषण की शुरूआत करते हैं कि जनता को सिर्फ वही याद रहेगा जो वह उनसे सुनेगी.

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प्रधानमंत्री मोदी ने भी 356 लगाकर विरोधी दल की सरकारें गिराई हैं

प्रधानमंत्री मोदी इस आधार पर भाषण की शुरूआत करते हैं कि जनता को सिर्फ वही याद रहेगा जो वह उनसे सुनेगी. उनका यकीन इस बात पर लगता है और शायद सही भी हो कि पब्लिक तो तथ्यों की जांच करेगी नहीं, बस उनके भाषण के प्रवाह में बहती जाएगी. इसलिए वे अपने भाषण से ऐसी समां बांधते हैं जैसे अब इसके आर-पार कोई दूसरा सत्य नहीं है. लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण के जवाब में उनका लंबा भाषण टीवी के ज़रिए प्रभाव डाल रहा था मगर इस बात से बेख़बर कि जनता जब तथ्यों की जांच करेगी तब क्या होगा. उनकी यह बात बिल्कुल ठीक है कि कांग्रेस के ज़माने में धारा 365 का बेज़ा इस्तेमाल हुआ. राष्ट्रपति शासन लगाने के संवैधानिक प्रावधानों का इस्तेमाल राजनीतिक दुर्भावना से सरकारें गिराने में होने लगा. लेकिन क्या यह भी सच नहीं कि उनके कार्यकाल में दो दो बार ग़लत तरीके से राष्ट्रपति शासन लगाया गया और कई बार राज्यपालों के ज़रिए वो काम कराया गया या वो भाषा बुलवाई गई जिसे किसी भी तरह से मर्यादा अनुकूल नहीं माना जाएगा.

लोकसभा में राष्ट्रपति शासन को लेकर खुद को महानैतिक बताते हुए उन्हें यह भी याद दिलाना चाहिए था कि मार्च 2016 में उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन क्यों लगा. जब उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राष्ट्रपति शासन को ग़लत ठहराया तब उनकी सरकार सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने गई थी और वहां भी हार का सामना करना पड़ा था. अरुण जेटली तब भी ब्लॉग लिखा करते थे, मगर आज के जितनी उनके ब्लॉग की चर्चा नहीं होती थी. जेटली ने कितने शानदार तर्क दिए थे राष्ट्रपति शासन लगाने के हक में मगर अफसोस अदालत में नहीं टिक पाए. मगर आप पढ़ेंगे तो उसकी भाषा के प्रभाव में एक एक शब्द से हां में हां मिलाते चले जाएंगे. उत्तराखंड ने अपने फैसले में कहा था कि राष्ट्रपति शासन का फैसला कोई राजा का फैसला नहीं है जिसकी समीक्षा नहीं हो सकती है.

पाठकों को यह फैसला देने वाले उत्तराखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के एम जोसेफ के सुप्रीम कोर्ट में प्रमोशन को लेकर विवाद की खबरें फिर से पढ़नी चाहिए. उन्हें कई जगहों पर ज़िक्र मिलेगा कि राष्ट्रपति शासन पलटने के कारण सरकार जस्टिस के एम जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट नहीं आने देना चाहती थी. मगर प्रधानमंत्री को भरोसा है कि लोग ये सब भूल चुके होंगे और वे जो कहेंगे अब उसे ही सत्य मान लेंगे. क्या आपको याद है कि मोदी सरकार ने 26 जनवरी की आधी रात अरुणाचल प्रदेश में एक चुनी हुई सरकार बर्खास्त की थी? क्या गोदी मीडिया अपने चैनलों पर मोदी का लोकसभा में दिया गया भाषण चलाकर अरुणाचल में राष्ट्रपति शासन लगाने का तथ्य सामने रख सकता है? लोग तो भूलेंगे ही, मीडिया भी भुलाने में मदद करेगा तो प्रधानमंत्री का भाषण तथ्यहीन होते हुए भी शानदार नहीं लगेगा तो और क्या लगेगा. आप भूल गए. 26 जनवरी की सुबह संविधान के जश्न की सलामी के लिए निकलने से 6 घंटे पहले राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अरुणचल में राष्ट्रपति शासन लगाते हैं. प्रधानमंत्री मोदी कैबिनेट की सलाह पर. तमाम प्रवक्ताओं और वित्त मंत्री के ब्लाग के बाद भी सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार अपने फैसले का बचाव नहीं कर पाती है. सुप्रीम कोर्ट वापस 15 दिसंबर2015 की स्थिति बहाल कर देती है.

क्या मोदी वाकई दिल्ली आकर दिल्ली की पुरानी बीमारी दूर कर रहे थे या उसका लाभ उठाकर अपनी मनमानी कर रहे थे? अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस के 16 बागी विधायक बीजेपी के 11 विधायक से मिलकर नया मुख्यमंत्री चुन रहे थे. क्या हम इतने भोले हैं कि मान लें कि बिना किसी दबाव और प्रलोभन के कांग्रेस के विधायक बीजेपी से मिलकर सरकार बना रहे थे और उनकी सरकार को दिल्ली में बैठी मोदी सरकार बर्खास्त कर रही थी? उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने के फैसले को मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट में बचा नहीं सकी. अदालत के फैसले में साफ साफ लिखा गया है कि संविधान का दुरुपयोग हुआ है. जम्मू कश्मीर में भी राष्ट्रपति शासन लगाया गया है.

मोदी सरकार के दौर में राज्यपालों की भाषा से लेकर भूमिका संवैधानिक पवित्रता से नहीं भरी हुई थी. तथागत रॉय की भाषा को लेकर कितना विवाद हुआ है. कई मौके आए जब राज्यपालों ने अपनी हदें पार कीं और उसका बचाव करने के लिए कांग्रेसी राज की स्थापित अनैतिकताओं का सहारा लिया गया. गोवा, मणिपुर और मेघालय में सबसे बड़ी पार्टी को सरकार बनाने के लिए नहीं बुलाया गया. बकायदा सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार के धारा 356 के ग़लत इस्तमाल करने पर सख़्त टिप्पणी की है. हां ये और बात है कि उन्हें अभी 55 साल राज करने का मौका नहीं मिला है. मगर यह सही बात है कि 55 महीने के शासन काल में तीन बार राष्ट्रपति शासन लगाए. जिनमें दो बार गलत साबित हुए. दोनों बार उन्होंने विपक्ष की सरकार गिराई. प्रधानमंत्री मोदी जब भी भाषण दें तो एक बात का ख़्याल रखें. सुन लें मगर बाद में चेक ज़रूर कर लें. इससे आपको ख़ुद में भरोसा बढ़ेगा कि आप अपना काम ठीक से करते हैं. किसी पर यकीन करने से पहले चेक कर लेते हैं. प्रधानमंत्री को आप पर भरोसा है. यही कि आप अपना काम ठीक से नहीं करते हैं. उनके भाषण सुनने के बाद ताली ही बजाते रह जाते हैं और तथ्यों को चेक नहीं करते हैं. 

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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