रवीश कुमार : क्या आम नागरिक को पता हैं स्टिंग के जोखिम या तरीके?

नई दिल्ली : किसी भी सरकारी दफ्तर में चले जाइए, उनकी बनावट ही आम जनता को सरकार से दूर करती है। जहां-जहां आम जनता को जाना पड़ता है, वहां सरकार ने काउंटर बनवा रखे हैं। ई-गवर्नेन्स के नाम पर अब इस काउंटर को आपके फोन या डेस्कटॉप पर भेज दिया गया है। आम नागरिक इस लाइन से बाहर निकलकर अधिकारी के कमरे तक नहीं पहुंच पाता है। उन तक पहुंच मध्यस्थ किस्म और दबदबे वाले लोगों की ही होती है। ऐसे लोग अधिकारियों से दफ्तर के अलावा अन्य जगहों पर मिलते रहते हैं। एक अफसर और उसके दफ्तर का लोगों के साथ कैसा रिश्ता होता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि लोगों की हैसियत क्या है।

आज एन्ड्रॉयड फोन के जरिये हर आदमी हर किसी के साथ बातचीत रिकॉर्ड कर रहा है। यह निजता का खतरनाक उल्लंघन है, जिसके बारे में हम या आप किसी ने कोई समझ नहीं बनाई है। कब कौन-सी बातचीत किस न्यूज़ चैनल पर चलने लगे और आपकी ज़िन्दगी तबाह हो जाए, पता नहीं। अगर आपको इसके खतरों के बारे में जानना है तो अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से संबंधों के कारण चर्चा में आई मोनिका लेविंस्की के भाषण को ज़रूर पढ़ना चाहिए। दुनिया भर में निजता के पक्ष पर बहस हो रही है और रोज़ कानून बन रहे हैं। भारत में यह बेहद सीमित है।

1031 पर किसी भ्रष्ट अधिकारी की सूचना देना और फिर उसके बाद रिश्वत लेते हुए स्टिंग करना एक ऐसी स्थिति है, जिसके लिए आम नागरिक को भी विशेष तैयारी करनी होगी। एक पत्रकार को स्टिंग करने से पहले कई तरह के ख़तरों का अनुमान लगाना होता है। स्टिंग से जुड़े जोखिम को समझना बहुत ज़रूरी है। सिर्फ आवाज़ रिकॉर्ड कर लेना काफी नहीं होता। बातचीत का कौन-सा हिस्सा या वीडियो रिकॉर्डिंग के समय क्या-क्या होना चाहिए, इसकी समझ जनता के पास नहीं होगी, लेकिन जब सरकार उसकी सूचना पर जाल बिछाएगी, तब की स्थिति अलग होगी।

अगर ऐसा होगा तो ज़रूर कुछ भय का माहौल बनेगा, पर इसके लिए एन्टी-करप्शन ब्यूरो के अधिकारी को विशेष प्रशिक्षण देने की आवश्यकता होगी। सीबीआई, सीआईडी की टीम भ्रष्ट अधिकारियों को पकड़ने के लिए ये सब करती रहती है। 'रंगे हाथ पकड़ना' मुहावरा स्टिंग का ही आरंभिक रूप है। स्टिंग ही अपने आप में अंतिम सबूत नहीं होगा। इसके बाद अदालती और कानूनी प्रक्रिया शुरू होगी, जिसमें स्टिंग करने वाले या शिकायतकर्ता को वादी बनना होगा। उसे अदालतों के चक्कर लगाने पड़ेंगे। यह सब वह अपने खर्चे पर करेगा या सरकार के, साफ नहीं है। इसके लिए उसे दफ्तर से छुट्टी लेनी होगी या दुकान बंद करनी पड़ेगी। क्या दिल्ली सरकार ने इन सब बातों को स्पष्ट किया है। सरकार अगर वकील देगी तो क्या सरकार यह भी सुनिश्चित करेगी कि वह वकील भ्रष्ट को बचाने के लिए केस कमज़ोर नहीं करेगा। इन सबके लिए सरकार के पास एक ठोस और विश्वसनीय सिस्टम का होना ज़रूरी है।

अब आते हैं सरकारी दफ्तरों की बनावट पर। मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा है कि सभी दफ्तरों में सूचना के पोस्टर लगेंगे कि फोन लेकर आने की अनुमति है। पहले भी फोन के साथ अंदर आने की अनुमति थी। यह साफ नहीं है कि अगर अधिकारी ने एक बार पूछ ही दिया कि आपका फोन ऑन तो नहीं है तो क्या उसकी भी शिकायत होगी और क्या हम मान लें कि रिश्वत देने वाला यह कह दे कि हां, फोन ऑन है तो वह रिश्वत मांगेगा। इस मुद्दे पर प्राइम टाइम में बहस करते-करते मैं इस सवाल पर पहुंच गया कि अगर स्टिंग इतना ही कारगर है तो क्यों न सरकारी कर्मचारियों को भी स्टिंग करने की अनुमति मिले। जब अंदर योजनाएं बन रही होती हैं या कोई किसी पर दबाव डाल रहा होता है या लालच दे रहा होता है, जिसमें चीफ सेक्रेट्री से लेकर चपरासी तक शामिल हो सकते हैं, तब क्यों न ये लोग एक-दूसरे का स्टिंग कर लें। कहीं ऐसा तो नहीं कि स्टिंग की स्थिति गहरे अविश्वास का कारण बन जाएगी। इस भय से अगर भ्रष्टाचार दूर होता है तो शायद 'आप' सरकार खुश ही होगी, लेकिन इसका इस्तेमाल चुन-चुनकर अपने हिसाब से काम न करने वाले भ्रष्ट लोगों को फिक्स करने के लिए भी किया जा सकता है। सिस्टम में भ्रष्ट के भी कई वर्ग होते हैं। एक भ्रष्ट सरकार का करीबी होता है तो दूसरा नहीं होता है।

चालाक अफसरों और कर्मचारियों ने इससे बचने के कई तरीके निकाल लिए हैं। वे किसी के जरिये ये सब काम करते हैं और जब मिलते हैं तो इस बात का पूरा ध्यान रखते हैं कि फोन वहां न हो। ऐसी स्थिति में स्टिंग करना मुश्किल होता है। स्टिंग करने वाले पत्रकार बताते हैं कि ऐसे अधिकारियों तक पहुंचना और उन्हें ट्रैप करना इतना आसान नहीं होता है। इसमें कई दिन लग जाते हैं। क्या किसी के पास इतना वक्त होगा। एक कमज़ोर औरत या आदमी के लिए संभव नहीं होगा। बातचीत रिकॉर्ड करते समय आप अपना सब कुछ दांव पर लगाते हैं। भ्रष्ट अधिकारी अपने आप में एक तंत्र होता है। पार्षद, विधायक, सांसद, ठेकेदार, बदमाश और बिजनेसमैन इन सबसे घिरा होता है। एक बार रिकॉर्डिंग करते वक्त पहचान ज़ाहिर हो गई तो आम नागरिक कई प्रकार के खतरों से घिर जाएगा। आखिर लोगों को क्यों नहीं कहा गया कि आप पार्षदों और विधायकों का भी स्टिंग कीजिए। उनकी संपत्तियों और दादागिरियों का स्टिंग कीजिए और हर मामले में सरकार नागरिक की रक्षा करेगी। भारत की हर सरकार ऐसे जुझारू लोगों को सुरक्षा देने में असफल रही है।

क्या दिल्ली सरकार ने ऐसी परिस्थितियों के बारे में सोचा है। क्या लोगों को इन खतरों या इसके तरीकों के बारे में अवगत कराया गया है। क्या सरकार के पास ऐसा कोई जरिया है, जिससे वह इतनी बड़ी संख्या में लोगों को सुरक्षा उपलब्ध करा सकती है। अगर कोई अपनी तरफ से स्टिंग करने में सफल भी हो गया तो वह उस स्टिंग को कैसे भेजेगा। क्या हर कोई व्हाट्सऐप के जरिये वीडियो या ऑडियो भेजने में दक्ष होता है। क्या सरकार यह मानकर चलती है कि उसके नागरिकों की तकनीकी क्षमता या फोन इस्तमाल करने की क्षमता एक ही है। हकीकत में ऐसा कहां होता है।

हेल्पलाइन सिस्टम की शुरुआत आपातकालीन सुविधा के तौर पर 1939 में ब्रिटेन में हुई थी। अमेरिका में 1969 में 911 सिस्टम लागू किया गया। अमेरिका में तो बाकायदा कानून है कि दर्ज होते ही 10 मिनट के भीतर शिकायतकर्ता के पास पुलिस को पहुंचना होगा। 2013 में आंध्र प्रदेश की सरकार ने पूरे राज्य के लिए 100 नंबर लागू किया था, जिसे एक कमांड से जोड़ा गया है। गूगल पर मिले रपटों के अनुसार 10 सेकंड के भीतर केंद्रीय कक्ष से शिकायत को संबंधित विभाग के पास भेज दिया जाता है। इन सब उपायों से जनता को कितना राहत मिल रही है, किसी के पास ठोस जानकारी नहीं है। 131 नंबर से रेल के आने की सूचना तो मिल जाती है, लेकिन क्या रेल समय पर चलने लगती है या सबके लिए टिकट उपलब्ध हो पाता है। दिल्ली में कई लोग 100 नंबर की तारीफ करते हैं, मगर 100 नंबर से अपराध तो नहीं रुका। दिल्ली पुलिस ने भी ऑडियो और वीडियो स्टिंग की मांग की है, एक नंबर तय किया है, लेकिन अगस्त 2014 से मार्च 2015 के बीच क्या इससे रिश्वतखोरी पर लगाम लगी है, हम ठोस रूप से नहीं जानते हैं। कुछ भ्रष्ट सिपाहियों के निलंबित होने की जानकारी तो मिल जाती है, पर ऐसा तो पहले भी होता था, जब इस तरह की हेल्पलाइन नहीं होती थी।

कुल मिलाकर, क्या 1031 जैसे नंबरों से भ्रष्टाचार खत्म होगा, इसे लेकर ठीक से सोचा जाना चाहिए। सरकार बेशक यकीन करती है कि होगा, मगर आम नागरिक को इसकी संभावना और आशंका के बारे में ठीक से जानकारी ले लेनी चाहिए। सरकार का काम है एक ऐसा सिस्टम देना, जिसमें भ्रष्टाचार की कम से कम गुंजाइश हो। इसके लिए सरकार के पास एक विशाल तंत्र होता है। अगर कानून और अधिकारों से लैस पुलिस से लेकर सीबीआई तक भ्रष्टाचार नहीं रोक पा रहे हैं तो 1031 से कैसे रुक जाएगा।

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गवर्नेन्स और राजनीति में रोज़ ऐसी चीज़ें हो रही हैं, जिन्हें उसी रफ्तार से समझना मुश्किल हो गया है। जैसे कि हम मुकम्मल तरीके से नहीं जानते या कोई समझ नहीं बना पाते कि मिस्ड कॉल की सदस्यता से राजनीति के अलावा हमारी-आपकी निजता पर क्या असर पड़ेगा। किसी पार्टी या सरकार के पास सदस्यता के नाम पर इतना बड़ा डाटा हासिल हो जाए तो वह क्या करेगी। उसके लिए घर बैठे-बैठे पार्टी चलाना कितना आसान हो जाएगा और सब कुछ व्हाट्सऐप पर भेजी गई चमकीली तस्वीरों की तरह खूबसूरत लगने लगेगा। इस तरह से मिस्ड कॉल, ई-गवर्नेन्स और हेल्पलाइनों के जरिये सरकार के नए-नए दावों का गहन परीक्षण होते रहना चाहिए। आप भी करते रहिए।