इमेज बनाम इमेज : कांग्रेस देखो तो बीजेपी, बीजेपी देखो तो कांग्रेस

अनैतिकताओं के मामले में कोई दल किसी से कम नहीं है. आप चाहें कितना भी समय बर्बाद कर लें, आपको अनैतिकताओं के इन्हीं छोटे-बड़े समूह में से किसी एक का चुनाव करना पड़ता है.

इमेज बनाम इमेज : कांग्रेस देखो तो बीजेपी, बीजेपी देखो तो कांग्रेस

इसे एक प्रयोग की तरह पढ़िए. इसे पढ़ते हुए आपके ज़हन में तुरंत दूसरे ऐसे अनेक उदाहरण उभरने लगेंगे जो दूसरे दलों से संबंधित होंगे. इस लेख का इमेज आपके दिमाग़ में तुरंत एक काउंटर इमेज पैदा करता है. इमेज का ही सारा खेल है. शब्दों और तर्कों का काम रह गया है. कारण कि शब्दों और तर्कों ने भी यही किया या उनसे यही हो गया.

अनैतिकताओं के मामले में कोई दल किसी से कम नहीं है. आप चाहें कितना भी समय बर्बाद कर लें, आपको अनैतिकताओं के इन्हीं छोटे-बड़े समूह में से किसी एक का चुनाव करना पड़ता है. राजनीतिक दलों ने आपको इज़ इक्वल टू की बंज़र ज़मीन पर ला खड़ा किया है. बीजेपी का निकालिए तो कांग्रेस का भी निकल आता है. उसके बाद क्या? उसके बाद आपके दिमाग़ में जिसका इमेज रह जाता है, आप उसी के हो जाते हैं. सोचिएगा कि इसे पढ़ते हुए आप बीजेपी को लेकर ज़्यादा सवाल कर रहे थे या बीजेपी को बचाने के लिए कांग्रेस, सपा, बसपा से कुछ खोज रहे थे ताकि आप इज़ इक्वल टू कर सकें.

कर्नाटक चुनाव में रेड्डी बंधुओं को दो टिकट दिए गए हैं. खनन माफिया जी जनार्दन रेड्डी का प्रभाव कम नहीं हो सका. इन बंधुओं के एक भतीजे को टिकट दिया गया. यही नहीं इनके सरगना जी जनार्दन रेड्डी को बेल्लारी में घुसने पर रोक है. अदालत ने रोक लगाई है. उन पर अवैध खनन के केस चल रहे हैं. मगर जी जनार्दन रेड्डी बगल के क्षेत्रों में प्रचार कर रहे हैं. एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार मोलाकलमुरू विधानसभा के लिए जब श्रीरामुलु पर्चा भरने गए तो उनके साथ जनार्दन रेड्डी और मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिव राजसिंह चौहान भी गए. जनार्दन रेड्डी ने येदियुरप्पा के साथ मंच भी साझा किया. जनार्दन रेड्डी साढ़े तीन साल तक जेल में रहने के बाद बेल पर बाहर हैं.

2008 में बीजेपी की सरकार बनने में रेड्डु बंधुओं के बाहुबल और धनबल का बड़ा रोल था. दो दो मंत्री थे. कर्नाटक के लोकायुक्त संतोष हेगड़े बेलारी को रिपब्लिक ऑफ बेलारी कहते थे. मतलब वहां भारत का कानून नहीं चलता था. रेड्डी बंधुओं का चलता था. अब आप इस पर जितना भी सर धुन लें, राजनीति की हकीकत यही है. कांग्रेस में भी यही है और बीजेपी में भी यही है. कुछ तर्कों से बीजेपी कमज़ोर पड़ती है, कुछ से कमज़ोर. मगर उस बहस का समाधान नहीं होता है. बतकही में हार और जीत होती है.

सलमान ख़ुर्शीद ने कहा है कि कांग्रेस के हाथ पर मुसलमानों के ख़ून के धब्बे हैं. यशवंत सिन्हा ने कहा है कि मोदी सरकार ने जो हालात पैदा किए हैं वो आपातकाल से भी बदतर हैं. बहस के लिए आप किसी के भी बयान को चुन लें. आपके दिमाग़ में दो इमेज हैं. आपका काम एक इमेज का बचाव करना है. इसलिए दूसरे इमेज को आप चुन लेंगे. दंगों के मामले में कांग्रेस और बीजेपी इस बयान को लेकर संत बनेंगे. आपातकाल के मामले में कांग्रेस और बीजेपी यही करेंगे.

इन सबके बीच डाक्टर कफ़ील और कोरेगांव की एकमात्र गवाह की सड़क दुर्घटना में मौत पर कभी चर्चा नहीं होगी. क्या चर्चा ही इस देश में अब एकमात्र सिस्टम बची है? सिस्टम कहां हैं?

हम इसमें अनंत पहर लगा सकते हैं. ज़मीन पर जाकर देखिए, आदमी बेतहाशा परेशान हैं. उसे लेकर कहीं बहस नहीं है. वो क्या बहस करेगा, मीडिया और राजनीतिक दल तय करते हैं. अपवाद को छोड़ दें तो मुख्यरूप से यही होता रहेगा. अब आप मीडिया के भीतर का मानवसंसाधन नहीं बदल सकते हैं. वह अपनी वर्ग, जातिगत और धार्मिक चेतना से बाहर आ ही नहीं सकता है. जो आ पाते हैं वो अपवाद हैं और उनकी न तो भूमिका बची है, न ही महत्व. उन पर समय क्या बिताना. आप एक दर्शक या पाठक के रूप में पिंजड़ें में बंद हैं. रहेंगे.

बैंकर परेशान हैं कि ग्राहक ने उनके साथी पर तेज़ाब फेंक दिया. बिहार में एक बैंकर की मौत हो गई तो उनके ही संगठन के लोग नहीं बोल रहे हैं. एक नौजवान के सर्टिफिकेट में मां के नाम में त्रुटि थी, तो सरकारी नौकरी नहीं मिली. उसकी सुनवाई करने वाला कोई नहीं है. ऐसे हज़ारों लोग भटकते रहेंगे. उन्हें कोई नहीं सुनेगा. क्योंकि वे भी अभी तक यही कर रहे थे.  इसके बाद भी यही करेंगे. जो पढ़ेंगे उन्हें वो कभी नहीं दिखेगा. उन्हें वो दिखेगा जो पढ़ते हुए उनके दिमाग़ में इमेज उभरेगा. जिसे उन्हें अपने तर्कों से जल्दी ध्वस्त करना है. इस प्रक्रिया में ख़ुद भी ध्वस्त हो जाना है. आइये हम सब अपना समय बर्बाद करें क्योंकि बर्बाद करने के लिए हमारे पास एक बीजेपी है. एक कांग्रेस है. दोनों के हवाले से हमारे पास असंख्य टॉपिक हैं.

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