पचास लाख नौकरियां गईं हैं टेक्सटाइल में?

टेक्सटाइल फैक्ट्रियों में 50 लाख लोगों का रोज़गार चला गया, अब यह ख़बर हमें विज्ञापन से पता चलती है

पचास लाख नौकरियां गईं हैं टेक्सटाइल में?

क्या पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम गिरफ्तार किए जा सकते हैं? दिल्ली हाई कोर्ट के जज सुनील गौड़ ने  INX Media केस में अग्रिम ज़मानत देने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि जांच एजेंसियों ने जो सामग्री प्रस्तुत की है, उसकी भयावहता और विशालता को देखते हुए अग्रिम ज़मानत नहीं दी जा सकती है. चिदंबरम को हाई कोर्ट से पिछले साल राहत मिली थी, तब कोर्ट ने कुछ सवालों के जवाब एजेंसियों से मांगे थे. जिस तरह से प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई दिल्ली के जंगपुरा में उनके घर पर दबिश दिए बैठी है उससे गिरफ्तारी की आशंका बेमानी नहीं लगती है.

हाई कोर्ट से जमानत न मिलने के बाद कपिल सिब्बल, सलमान ख़ुर्शीद और अभिषेक मनु सिंघवी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. तब तक कोर्ट उठ चुकी थी. उसके बाद ज्वाइंट रजिस्ट्रार के पास गए, जहां उन्हें कहा गया कि बुधवार को वरिष्ठ जस्टिस के यहां मेंशन करें, गुहार लगाएं. चीफ जस्टिस अयोध्या की सुनवाई कर रहे हैं इसलिए सीनियर जस्टिस के पास जाने के लिए कहा गया है. इस बीच जब सुप्रीम कोर्ट से बेल नहीं मिली तब पहले सीबीआई की टीम उनके घर पहुंच गई. उसके कुछ देर बाद प्रवर्तन निदेशालय की टीम पहुंच गई. दोनों ही एजेंसियों ने कोर्ट में कहा था कि चिदंबरम की गिरफ्तारी जरूरी है. इस केस में पिछले साल उनके बेटे कार्ति चिदंबरम गिरफ्तार किए जा चुके हैं और 23 दिनों तक हिरासत में थे. तभी यह आशंका मजबूत हुई है कि चिदंबरम की कभी भी गिरफ्तारी हो सकती है हालांकि आधिकारिक तौर पर कुछ भी नहीं कहा गया है. चिदंबरम अपने घर पर नहीं हैं. उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा है. चिदंबरम पर हवाई जहाज की खरीद और एयरसेल के मामले में भी अलग से केस हैं.

चिदंबरम ख़ुद और उनके वकील कहते रहे कि मोदी सरकार राजनीतिक विरोध के कारण उन्हें निशाना बनाती रहती है. लेकिन सरकार का पक्ष हमेशा इस बात से इनकार करता रहा है. इस संयोग की चर्चा हो रही है कि जब अमित शाह की गिरफ्तारी हुई थी तब चिदंबरम गृह मंत्री थे और अब जब अमित शाह गृहमंत्री हैं तो चिदबंरम के घर दो-दो एजेंसियां दबिश दे रही हैं. वैसे हाई कोर्ट ने अपने फैसले में राजनीतिक बदले की कार्रवाई की बात को खारिज कर दिया और कहा कि यह कहना ठीक नहीं रहेगा. यह मनी लांड्रिंग का क्लासिक केस है.

इस केस में जब एफआईआर हुई थी जब चिदबंरम का नाम आरोपी के तौर पर नहीं था. उनसे मंत्रालय के अज्ञात अधिकारियों और व्यक्ति के नाम की श्रेणी में उनकी भूमिका की जांच हो रही है. जांच एजेंसियों ने कहा कि उन्होंने ठीक से जवाब नहीं दिए इसलिए हिरासत जरूरी है. इसी साल फरवरी में ईडी ने पी चिदंबरम से पांच घंटे की पूछताछ की थी. जांच एजेंसियां दावा करती रही हैं कि 2007 में जब चिदंबरम वित्त मंत्री थे तब उन्होंने पीटर और इंद्राणी मुखर्जी की टीवी कंपनी को मंज़ूरी दिलाई जिसके बाद इस कंपनी में कथित रूप से 305 करोड़ का विदेशी फंड आया. जबकि अनुमति मिली थी मात्र पांच करोड़ के निवेश की, लेकिन आईएनएक्स मीडिया में 300 करोड़ से अधिक का निवेश हुआ. और अपने को बचाने के लिए आईएनएक्स मीडिया ने कार्ति चिदंबरम के साथ साज़िश की और सरकारी अफसरों को प्रभावित करने का प्रयास किया. एजेंसी का दावा है कि चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम ने रिश्वत ली थी. हाई कोर्ट के जज ने कहा कि यह आर्थिक अपराध है इससे सख़्ती से निपटा जाना चाहिए. जांच एजेंसियों के हाथ इस तरह से बांधे नहीं जा सकते, वो भी इतने बड़े आर्थिक अपराध में. पहली नज़र में तथ्य बता रहे हैं कि याचिकाकर्ता यानी चिदंबरम इस केस में किंग पिन हैं, यानि मुख्य सूत्रधार हैं, साज़िशकर्ता हैं. यह नहीं भूला जाना चाहिए कि वित्त मंत्री रहे हैं. वे एक सांसद हैं इसलिए अग्रिम ज़मानत मिले यह ज़रूरी नहीं है.  

अग्रिम ज़मानत के फैसले में टिप्पणियां काफी सख़्त हैं, जजमेंट की तरह ध्वनित होती हैं. यह टिप्पणी सीबीआई और ईडी को राजनीतिक बदले की कार्रवाई के आरोपों से बचने में मदद करेगी. मीडिया में इस बात को रेखांकित किया जा रहा है कि जज सुनील गौड़ 48 घंटे में रिटायर होने वाले हैं. रिटायरमेंट के आखिरी लम्हे तक जज फैसला देते हैं, यह सामान्य बात है. हां यह ज़रूर संयोग है कि इसी 15 अगस्त को पहले कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि मैं एक नया ट्रेंड देख रहा हूं. कुछ जज अपने रिटायरमेंट के दो दिन पहले ऐसे जजमेंट देते हैं जिनकी कानूनी वैधता पर सवाल उठता है और फैसले देने के बाद जज टीवी डिबेट में बैठकर सही बताने लगते हैं, जो सही नहीं है. रविशंकर प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट के बार एसोसिएशन के एक समारोह में यह बात कही थी. मैंने सिर्फ एक मिसाल दी, दोनों बातों की तुलना नहीं की. कानूनविद ज़रूर सुप्रीम कोर्ट में अपने आधार पर हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देंगे. वो कह सकते हैं कि इस केस में सारे सबूत दस्तावेज़ों पर आधारित हैं और आरोपी भाग नहीं सकता है तो बेल मिल सकती है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट का क्या फैसला होगा, ये कैसे अनुमान लगाया जा सकता है. पी चिदंबरम कांग्रेस के सांसद हैं. कांग्रेस पार्टी आज चुप है, उनके वकील बोल रहे हैं.

19 अगस्त के प्राइम टाइम में हम एक संख्या पर ठिठक गए थे. जब टेक्सटाइल एसोसिएशन के एक सदस्य ने कहा कि 25 से 50 लाख के बीच नौकरियां जा चुकी हैं. टेक्सटाइल सेक्टर में बिक्री 30 से 35 परसेंट घट गई है. निर्यात 30 प्रतिशत से अधिक कम हो गया है. जिस सेक्टर में 10 करोड़ से अधिक लोग रोजगार और कारोबार पाते हों उनकी स्थिति ठीक नहीं हैं. हमने कई लोगों से बात की. मंदी और नुकसान के बीच साहस की भी मंदी आ गई है. बहुत कम लोग कैमरे पर आकर बात करना चाहते हैं. करोड़ों के बिजनेस मैन हैं. टीवी के लिए बाइट मांगिए तो किनारा कर लेते हैं. इसलिए आर्थिक मंदी के साथ-साथ बोलने के साहस की मंदी भी आई हुई है.

ऑफ रिकार्ड सुगबुगाहट से यही सुनाई दे गया कि ऐसी मंदी उन्होंने कभी नहीं देखी. उतार-चढ़ाव तो देखा है मगर ऐसा सन्नाटा कभी नहीं देखा-सुना. लेकिन मंगलवार की सुबह थोड़ी अलग रही. इंडियन एक्सप्रेस में एक विज्ञापन छपता है. यह विज्ञापन पेज नंबर तीन पर छपता है और आधे पन्ने का छपता है. अंग्रेज़ी में छपे इस विज्ञापन में कहा गया है कि भारत का कताई उद्योग सबसे बड़े संकट का सामना कर रहा है, जिसके कारण भारी संख्या में नौकरियां जा रही हैं. विज्ञापन में स्केच से दिखाया गया है कि लोग कतार में खड़े हैं और नो जॉब की तख़्ती टंगी है. कताई क्षमता का एक तिहाई बंद हो चुका है. करोड़ों का नुकसान हुआ है. कताई मिलें भारत के किसानों से कपास ख़रीदने की स्थिति में नहीं हैं. इसका असर कपास के किसानों पर भी पड़ने वाला है. अगले सीज़न में 80,000 करोड़ के कपास उत्पादन की आशा है. अगर यह कपास नहीं बिका तो टेक्सटाइल का संकट खेती तक पहुंचेगा. खेती के बाद रोज़गार के सबसे बड़े सेक्टर की यह हालत है.

यह विज्ञापन नार्दन इंडिया टेक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन की तरफ से छापा गया था. क्यों छापा गया था, इसका जवाब भी लिखा है कि भारत का टेक्सटाइल उद्योग सरकार का तवज्जो चाहता है. क्या एक साल से संकट से गुज़र रहे टेक्सटाइल उद्योग की तरफ किसी का ध्यान नहीं गया कि विज्ञापन निकलवाकर अपनी व्यथा किसी को कहनी पड़ी. बिजनेस अख़बारों में टेक्सटाइल उद्योग के संकट पर ख़बरें और विश्लेषण छप रहे हैं, इसके बाद भी इंडस्ट्री को विज्ञापन देना पड़ गया कि सरकार का ध्यान चाहिए. ज़रूर हिन्दी के अख़बारों में इतने बड़े संकट की ख़बर ज़िला संस्करण में ही दबा दी जाती हो और उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर लाने की कोई ज़हमत न उठाता हो. हिन्दी चैनलों की तो बात ही छोड़ दीजिए.

यहां मशीन से कपास की कताई हो रही है जिसके बाद धागा बनेगा. भारत में करीब साढ़े तीन करोड़ स्पिंडल हैं जिन पर कपास की कताई होती है. क़रीब 60 लाख  स्पिंडल बंद हैं. जहां कताई चल रही है वहां भी काम काफी कम हो गया है. 6-7 महीने पहले तक इन मशीनों पर सातों दिन और चौबीसों घंटे काम चलता था, अब हफ्तों में एक या दो दिन मशीनें बंद होने लगी हैं. कताई के सेक्टर में 6 करोड़ लोगों के जुड़ने की बात कही जाती है. हम बार-बार चेक करते रहे कि क्या वाकई 50 लाख लोगों का काम छिन गया है तो यही जवाब मिलता रहा कि हां 50 लाख के करीब अस्थाई रूप से लोगों का काम छिन गया है. जिनका काम छिन गया है वे ज़्यादातर मज़दूर हैं और महीने की उनकी औसत कमाई 10 से 12 हज़ार है. इस काम में अधिकतम सैलरी 15000 की है. इन लोगों के पास ट्विटर अकाउंट नहीं होंगे इसलिए ट्विटर पर ट्रेंड नहीं कर रहा होगा, आजकल ट्विटर पर जब तक ट्रेंड नहीं करता है तब तक मीडिया के लिए ख़बर नहीं बनती है. वैसे ट्रेंड होने के बाद भी कुछ नहीं होता है. अगले दिन कुछ और ट्रेंड करने लगता है. सोचिए इन फैक्ट्रियों से 50 लाख लोगों का रोज़गार चला गया अब यह ख़बर हमें विज्ञापन से पता चलती है. महीने भर से आटो इंडस्ट्री का संकट मीडिया में छाया हुआ है. दस लाख लोगों की नौकरियां जाने की आशंका ज़ाहिर की जा रही है. 19 अगस्त के प्राइम टाइम में हमने टेक्सटाइल सेक्टर के संकट पर बात की थी, इंडियन एक्सप्रेस में विज्ञापन आने से ठीक एक रात पहले. सबसे दुख की बात है कि विज्ञापन देने के बाद भी विज्ञापन देने वालों के बयान ऑन रिकार्ड नहीं मिल पाए. हमें ये सारी जानकारी संगठन के किसी से आफ दि रिकार्ड मिली है. करोड़ों का नुकसान, लाखों की नौकरी जाए और ऑन रिकार्ड बोलने का ख़तरा इतना बड़ा हो जाए तो फिर इस बात को भी यहीं दर्ज कर चलना चाहिए.

तो 50 लाख मज़दूरों का काम छिना है. कताई मिलें अपना कर्ज़ चुकाने में असमर्थ हो रही हैं. कुछ लोग कहते हैं कि इनका प्रोडक्ट अच्छा नहीं है और ये कंपीट यानि प्रतिस्पर्धा में टिक नहीं पा रहे हैं. यह सही नहीं है. समस्या का कारण कहीं और है. बड़ा कारण है कि बाज़ार में मांग नहीं है. जब आप कपड़ा नहीं ख़रीदेंगे तो कपड़े की मांग नहीं होगी, कपड़े की मांग नहीं होगी तो धागे की मांग नहीं होगी, धागे की मांग नहीं होगी तो कपास की मांग नहीं होगी.

अप्रैल से जून 2018 के बीच भारत ने 1064 मिलियन अमरीकी डॉलर का निर्यात किया था. अप्रैल से जून 2019 के बीच भारत ने 695 मिलियन अमरीकी डॉलर का ही निर्यात कर पाया. यानि एक साल के भीतर निर्यात में ही 35 प्रतिशत की कमी आ गई. यह सब हम कंफेडरेशन आफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री की रिपोर्ट से बता रहे हैं जो 16 अगस्त 2019 को वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल को सौंपी गई थी. यह रिपोर्ट 16 पन्नों की है. आपको जानकर हैरानी होगी कि अप्रैल से लेकर जून 2019 के बीच बांग्लादेश से आयात 40 प्रतिशत बढ़ गया है. यानि भारत के टेक्सटाइल मार्केट में बांग्लादेश ने अपनी बढ़त बना ली है. यही नहीं चीन ने भारत का धागा लेना कम कर दिया है. वह भारत की जगह वियतनाम से धागा ख़रीदने लगा है. भारत 2013 से 2018 के बीच चीन को जितना निर्यात कर रहा था उसकी तुलना में 37 फीसदी निर्यात कम हो गया है. इस बीच वियतनाम ने चीन को धागा निर्यात करने के मामले में 139 प्रतिशत की बढ़त हासिल की है. यही नहीं जब वियतनाम, इंडोनेशिया, पाकिस्तान और कंबोडिया से धागा का निर्यात होता है तब चीन उनसे कोई आयात शुल्क नहीं लेता है मगर भारत से 3.5 फीसदी से लेकर 14 फीसदी तक आयात  शुल्क वसूलता है. इस कारण भारतीय धागे चीन के बाज़ार में टिक नहीं पा रहे हैं. जो लोग व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी के चक्कर में भारतीय उत्पादों की गुणवत्ता को दोषी ठहरा रहे हैं वे टेक्सटाइल इंडस्ट्री की बात को सुन सकते हैं.

परिमल हमारे सहयोगी हैं उन्होंने शिशिर जयपुरिया से बात की जो निटमा के पूर्व अध्यक्ष हैं. वही निटमा जिसने आज के इंडियन एक्सप्रेस में टेक्सटाइल इंडस्ट्री के खस्ता हाल का विज्ञापन दे दिया था. निटमा का पूरा नाम है नार्दन इंडिया टेक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन. शिशिर जयपुरिया इस वक्त फिक्सी में टेक्सटाइल और टेक्निकल टेक्सटाइल कमेटी के अध्यक्ष भी हैं. इसलिए उनकी बात इंडस्ट्री की आवाज़ के तौर पर सुनी जा सकती है. उनका कहना है कि कई कारणों से अब फायदा इसी में है कि मिल बंद कर दें.

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मरियम हमारी सहयोगी गुरुग्राम के लेबर चौक पर गईं. सबसे ज्यादा मार कैजुअल काम करने वालों पर पड़ी है. उन्हें कहा जाता है कि अस्थायी रूप से काम बंद है लेकिन काम मिल नहीं रहा है. मज़दूरों ने मरियम को बताया कि उन्हें दूसरा काम भी नहीं मिला. ये आटो सेक्टर से जुड़े मज़दूरों की कहानी है. 10 से 15 हज़ार कमाने वालों की नौकरी जा रही है. उनका कोई संगठन नहीं है. इसलिए उनकी आवाज़ भी नहीं है. उनके पास शायद ही स्मार्ट फोन हो और ट्विटर पर एकाउंट हो, लिहाज़ा वे टीवी में भी नहीं हैं. 50 लाख लोगों का रोज़गार किसी न किसी रूप में चला गया है. टीवी अपने नेशनल सिलेबस पर कायम है.