9 अगस्त से रेलवे की परीक्षा शुरू हो रही है. अस्सिटेंट लोको पायलट और टेक्निशियन के 26,502 पदों के लिए परीक्षा हो रही है. इसमें 47 लाख से अधिक छात्र भाग लेंगे. रेल मंत्रालय की तरफ से दावा किया गया है कि रेलवे दुनिया की सबसे बड़ी ऑनलाइन परीक्षा कराने जा रहा है, क्योंकि इस परीक्षा में करीब एक लाख पदों के लिए दो करोड़ से अधिक छात्र हिस्सा लेंगे. यही हेडलाइन भी अख़बारों में छपता है ताकि फुल प्रोपेगैंडा हो सके.
अब जब छात्रों ने 9 अगस्त की परीक्षा के लिए एडमिट कार्ड डाउनलोड किए हैं तो उन्हें पता चल रहा है कि किसी का सेंटर बेंगलुरु है तो किसी का सेंटर चेन्नई है. पटना का छात्र जबलपुर जा रहा है तो कटिहार का मोहाली. आरा का हैदराबाद तो बक्सर का चेन्नई. राजस्थान और उत्तर प्रदेश के छात्रों के सामने भी यही चुनौती है. बिहार के छात्रों ने ज़्यादा मैसेज किए हैं इसलिए उनके उदाहरण ज़्यादा हैं, मगर बाकी राज्यों के छात्र भी काफी परेशान हैं. कइयों ने तो रेल मंत्री को ट्वीट करते हुए रो ही दिया है कि उनका इम्तेहान छूट जाएगा. प्लीज़ ऐसा न करें. वे इतना पैसा ख़र्च कर परीक्षा देने नहीं जा सकते हैं.
टिकट के लिए भी छात्रों को समय कम मिला है. किसी ट्रेन में वेटिंग लिस्ट है तो किसी में टिकट ही नहीं है. ज़्यादातर छात्र जनरल बोगी से जा रहे हैं. वे खड़े-खड़े या लदा-फदा कर आरा से हैदराबाद की यात्रा करेंगे तो आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि परीक्षा देने वक्त उनकी क्या स्थिति होगी. किसी का टिकट पर खर्चा 1500 आ रहा है तो किसी का 3000. परीक्षा के लिए तीन चार दिन पहले भी निकलना होगा, क्योंकि ट्रेन समय पर पहुंचती नहीं है. होटल और खाने-पीने का खर्चा अलग. क्या ये इन छात्रों के साथ ज्यादती नहीं है.
बहुतों को लग सकता है कि तीन हज़ार या पांच हज़ार का खर्च कोई बड़ी बात नहीं है. रेलवे की परीक्षा देने जा रहे ज़्यादातर छात्र ग़रीब और निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों से आते हैं. किसी के मां बाप चौकीदार हैं तो किसी के सिपाही, तो किसी के ठेला चलाते हैं. इनके लिए दो हज़ार और तीन हज़ार बड़ी बात है. ऊपर से टिकट मिलने में भी परेशानी हो रही है. कई छात्रों ने रेल मंत्री को ट्वीट भी किया है. छात्रों के दूसरे इम्तेहान भी आस-पास होते हैं. उन पर भी असर पड़ने वाला है.
अब आते हैं एक मूल सवाल पर. जब परीक्षा ऑनलाइन है तो इसके लिए कटिहार से मोहाली भेजने का क्या मतलब है. ये कौन सी ऑनलाइन परीक्षा है जिसके लिए छात्रों को 1500 किमी की यात्रा तय करनी पड़ेगी. क्या यही ऑनलाइन का मतलब है? जब कंप्यूटर पर ही बैठकर देना है तो आस-पास के केंद्रों में यह व्यवस्था क्यों नहीं हो सकती है? छात्रों ने इस परीक्षा के लिए चार-चार साल तैयारी की है. उनके साथ यह नाइंसाफी नहीं होनी चाहिए.
रेलमंत्री को सबको फ्री टिकट देना चाहिए ताकि एक भी ग़रीब छात्र की परीक्षा न छूटे या फिर परीक्षा केंद्र को लेकर बदलाव करने पर विचार करना चाहिए. उसका समय नहीं है. उस बहाने परीक्षा और टल जाएगी. बेहतर यही होगा कि रेल मंत्री फ्री टिकट का एलान कर दें. बहुत से छात्र यह भी पूछ रहे हैं कि फॉर्म भरे जाने के समय एलान हुआ था कि जिन लोगों ने 500 भर दिए हैं, उनका 400 वापस होगा. यह पैसा कब वापस होगा? प्राइम टाइम में हमने उठाया था कि यूपीएससी की परीक्षा के फॉर्म के लिए 100 रुपये और रेलवे के ग्रुप-डी की परीक्षा के फॉर्म के लिए 500 रुपये लिए जाएं उचित नहीं है. सरकार ने बात मान ली और 400 से 100 कर दिया मगर तब तक कई लाख छात्र फॉर्म भर चुके थे. सरकार को बताना चाहिए कि उनके 400 रुपये कब वापस होंगे?
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