बजट की इस बोर दुपहरी में झोला उठाने का टाइम आ गया है...
भारत के किसानों ने आज हिन्दी के अख़बार खोले होंगे तो धोखा मिला होगा. जिन अखबारों के लिए वे मेहनत की कमाई का डेढ़ सौ रुपया हर महीने देते हैं, उनमें से कम ही ने बताने का साहस किया होगा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उनसे झूठ बोला गया है.