किसानों को मनाने की सरकार की कोशिशें नाकाम

प्रस्ताव में लिखा है कि सरकार बिजली संशोधन विधेयक 2020 नहीं लाएगी और बिजली बिल भुगतान की मौजूदा व्यवस्था चलती रहेगी. यह भी किसानों की कई मांगों में से एक अहम मांग थी. इसके तहत सरकार एक इलेक्ट्रिसिटी कांट्रेक्ट एनफोर्समेंट अथॉरिटी बनाने जा रही थी जिसे सिविल अदालत की शक्ति होती.

किसानों को मनाने की सरकार की कोशिशें नाकाम

आंदोलनरत किसान तीनों कृषि कानून वापस लेने की अपनी मांग पर अडिग हैं

सरकार की तरफ से प्रस्ताव तो आ गया मगर किसानों(farmers)  ने उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया. प्रस्ताव ही नहीं ठुकराया बल्कि आंदोलन के अगले चरण का एलान भी कर दिया. किसानों ने कहा है कि 14 दिसंबर को सभी ज़िला मुख्यालयों का घेराव करेंगे. रिलायंस के माल, उनके उत्पाद के बहिष्कार का भी एलान किया है. 9 दिसंबर की दोपहर सरकार ने 20 पन्नों का प्रस्ताव भेजा. प्रस्ताव तो एक दो पंक्ति में लिखा था मगर भूमिका से पन्ने भरे हुए थे. सरकार ने अपने लिखित प्रस्ताव में कहा कि वे समर्थन मूल्य पर लिखित आश्वासन देने के लिए तैयार हैं. किसानों की मांग यह भी थी कि समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी का कानून बनाया जाए. लेकिन किसान आंदोलन सिर्फ MSP को लेकर नहीं हो रहा है. सरकार ने तीनों कानूनों (Farm Laws) को वापस लेने के बजाए एक नए बनने वाले कानून को वापस लेने की बात ज़रूर कह दी.

प्रस्ताव में लिखा है कि सरकार बिजली संशोधन विधेयक 2020 नहीं लाएगी और बिजली बिल भुगतान की मौजूदा व्यवस्था चलती रहेगी. यह भी किसानों की कई मांगों में से एक अहम मांग थी. इसके तहत सरकार एक इलेक्ट्रिसिटी कांट्रेक्ट एनफोर्समेंट अथॉरिटी बनाने जा रही थी जिसे सिविल अदालत की शक्ति होती.

किसानों की आशंका थी कि ऐसा कानून बना तो बिजली कंपनियां उन्हें अपना गुलाम बना लेंगी. लेकिन अब यह विधेयक नहीं आएगा. इसके अलावा किसानों को इस प्रस्ताव में कुछ भी ठोस नहीं लगा. कानून वापस लेने की जगह संशोधन और कंफ्यूज़न दूर करने का भाव ही नज़र आया.

किसानों से खरीदने वाले को फर्मों के पंजीकरण कराने की ज़रूरत नहीं थी. उन फर्मों के पंजीकरण का नियम बनाने की शक्ति राज्य सरकार को दी जा सकती है. राज्य सरकारें चाहें तो पंजीकरण अनिवार्य कर सकती हैं. कॉन्ट्रैक्ट कानून में स्पष्ट कर देंगे कि किसान की जमीन या बिल्डिंग पर ऋण या गिरवी नहीं रख सकते. ज़मीन कुर्की नहीं होगी. प्रस्ताव में एक और अहम बिन्दु यह था कि राज्य सरकारें प्राइवेट मंडियों पर सरकारी मंडी के बराबर टैक्स लगा सकेंगी. सिविल न्यायालय में जाने का विकल्प किया जा सकता है. किसान और कंपनी के बीच कॉन्ट्रैक्ट की 30 दिन के अंदर रजिस्ट्री होगी. किसान की भूमि पर बनाई हुई स्पॉन्सर की किसी भी संरचना पर किसी तरह का ऋण नहीं लिया जा सकेगा ना ही ऐसी संरचना उसके द्वारा बंधक रखी जा सकेगी. एनसीआर में प्रदूषण वाले कानून पर किसानों की आपत्तियों को समुचित समाधान किया जाएगा.

इस प्रस्ताव के आने के बाद किसानों की बैठक भी हुई जिसके बाद इसे रद्द कर दिया गया. किसानों का एलान बता रहा है कि अब उन्हें लंबी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार रहना होगा. 12 दिसंबर को जयपुर-दिल्ली हाईवे जाम करने के अलावा सारे टोल नाके फ्री कर देंगे. ये सरकार से सीधी लड़ाई का एलान है. 14 दिसंबर को ज़िला मुख्यालयों पर प्रदर्शन होगा लेकिन सबसे अहम है रिलायंस के सभी माल के बहिष्कार का एलान. किसान शुरू से अडानी अंबानी के खिलाफ नारे लगा रहे हैं लेकिन सरकार से लड़ने के साथ साथ उन्होंने रिलायंस के साथ भी मोर्चा खोल दिया है.

रिलायंस के माल के बहिष्कार के एलान के साथ किसान आंदोलन एक बड़ी राजनीतिक लड़ाई में प्रवेश कर रहा है. किसान नेताओं का कहना है कि सरकार अभी तक गोलमोल ही बात कर रही है. 8 दिसंबर को अमित शाह के साथ अनौपचारिक बैठक हुई थी. किसान नेताओं ने बताया कि उन्होंने गृहमंत्री से कहा कि कानून बनाने से पहले ही बात करनी चाहिए थी तो अमित शाह ने माना कि गलती हुई थी अब आगे मिलकर बात करेंगे. लेकिन इस प्रस्ताव ने किसानों का भरोसा मज़बूत होने के बजाए कमज़ोर ही हो गया. वे अमित शाह को भी बोल आए थे कि पांच बार बात कर चुके हैं. आगे बात करने का इरादा भी नहीं है आप कानून वापस लें. किसानों ने कहा कि सरकार दोबारा प्रस्ताव भेजे तो विचार करेंगे.

किसानों का कहना था कि उन्हें तीनों कानूनों की वापसी से कम पर कुछ भी मंज़ूर नहीं है. किसान कानून के ज़रिए MSP की गारंटी चाहते थे जो सरकार ने नहीं दी. लिखित आश्वासन की बात कही. वैसे किसानों का यह आंदोलन केवल MSP तक ही सीमित नहीं है. सरकार लिखित रूप से MSP का आश्वासन देना चाहती है. जिसका हश्र न्यूनतम मज़दूरी के कानून जैसा ही होता. जिसके बढ़ने की घोषणा तो अख़बारों में हेडलाइन बन कर छप जाती है मगर मिलती नहीं है. सरकार के प्रस्ताव में कई संशोधन सुझाए गए थे उसे क्यों किसान नेताओं ने ठुकरा दिया. 

अब जब किसान आंदोलन रिलायंस के माल का बहिष्कार करेगा, जियो के सिम और अन्य उत्पाद का बहिष्कार करेंगे तब क्या विपक्ष भी उसी तरह खुल कर उनके साथ आएगा? स्टैंड लेगा? बहरहाल, जिस वक्त किसान नेता सरकार के भेजे प्रस्ताव पर विचार करने के बाद प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे उसी वक्त शाम पांच बजे पांच विपक्षी दलों के नेता राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात करने जा रहे थे. 

शरद पवार ने 8 दिसंबर को ही इस मुलाकात की सूचना दी थी और कहा था कि वे APMC में सुधार की बात तो अब भी करते हैं लेकिन सरकार जो लेकर आई है उसमें उसकी नीयत ठीक नहीं है. शरद पवार के साथ कांग्रेस सांसद राहुल गांधी, सीपीएम नेता सीताराम येचुरी, सीपीआई महासचिव डी राजा और डीएमके नेता टी के एस इलेनगोवन मौजूद थे. कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने किसानों के आंदोलन को अपना समर्थन दिया है और तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की है.

विपक्ष को इन औपचारिकताओं से आगे आकर किसान आंदोलन (farmers Agitation) को लेकर अपना रुख साफ करना होगा. किसान आंदोलन ने बड़ी लड़ाई का एलान कर दिया है. इस लड़ाई के निशाने पर सिर्फ सरकार ही नहीं बल्कि रिलायंस भी है. बातचीत से पहले ही प्रस्ताव का गिर जाना आंदोलन के लंबा चलने का संकेत है. क्या सरकार ने अपने प्रस्ताव के ज़रिए पहला पत्ता फेंका है, वो किसानों के इरादे का इम्तहान लेना चाहती है या सरकार इससे अधिक अब कुछ नहीं कहेगी? किसानों के पास प्रस्ताव के पहुंचते ही कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ट्वीट करने लगे कि मंडी और एमएसपी खत्म नहीं होगी.

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (Narendra singh tomar)ने उस समय भी ट्वीट किया था जब किसान सरकार के प्रस्ताव का इंतज़ार कर रहे थे. सरकार की इन दलीलों को वे पहले दिन से सुनते आ रहे हैं. इसका किसानों पर कोई फर्क नहीं पड़ा है. अब सवाल है कि यह बातचीत किस तरह से आगे बढ़ेगी? इस बीच इंडियन नेशनल लोकदल के नेता अभय चौटाला पहुंचे तो मंच पर नहीं चढ़ने दिया गया. टिकरी बार्डर किसानों के आंदोलन को समर्थन देने के लिए शहीद भगत सिंह की भांजी गुरजीत कौर आ गईं. उनका कहना है कि प्रधानमंत्री को सख्त नहीं होना चाहिए, किसानों की मांगें मान लेनी चाहिए.

पंजाब और हरियाणा की मंडियों से जुड़े आढ़ती भी किसान आंदोलन में आने लगे हैं. आढ़ती का कहना है कि उन्हें बिचौलिया कहा जा रहा है जो ठीक नहीं है. बिहार और गुजरात में आढ़ती को खत्म किया गया इसलिए वहां के किसानों की हालत खराब है.

बीजेपी के कई नेताओं के पुराने बयान मिलेंगे इन्हीं आढ़तियों के पक्ष में कि ये कैसे सेवा करते हैं. कैसे इनके कारण किसानों का भला होता है लेकिन इस कानून के समर्थन में यह दलील भी बड़ी बताई जा रही है कि नए कानून बिचौलियों को खत्म कर देंगे. इनकी संख्या कोई 100-200 नहीं है. हरियाणा में ही तीस हज़ार आढ़ती हैं. एक आढ़ती के पास कम से कम 10 मज़दूर काम करते हैं. इस ठंड में किसान आंदोलन में रात काटना आसान नहीं. ज़रूरत से कम सामान लेकर किसान रात काट रहे हैं. अजय मोरे नाम के एक किसान की ठंड लगने से मौत की ख़बर है.

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छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि बातचीत का नतीजा निकलने में देरी ठीक नहीं है. इस कानून को वापस ही लिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, 'इस कानून को वापस लिया जाए. बीजेपी दो बिंदुओं के बारे में बात करती है. जबकि हम 22 बिंदुओं के बारे में बात करते हैं. जनता ने हमको मैंडेट दिया ही नहीं. जनता ने मैंडेट बीजेपी को दिया है. उनके घोषणा पत्र में क्या था यह तो बताएं, विजन डॉक्यूमेंट में क्या है, क्या यही बातें कही थी, अगर कही थी तो लागू करने में विरोध क्यों कर रहे हैं. किसानों के समर्थन में यह कानून लागू नहीं किया जा रहा है. पूंजीपतियों के फायदे के लिए इस कानून को लाया जा रहा है.'