आंदोलनकारी किसानों को गद्दार, खालिस्तानी बताने वाले कौन?

एक तरफ गृह मंत्री अमित शाह किसानों से बात कर रहे हैं तो दूसरी तरफ मंत्रिमंडल में उनके सहयोगी राव साहब दानवे पाटिल का बयान आता है कि यह किसानों का आंदोलन नहीं है, इसके पीछे चीन और पाकिस्तान का हाथ है. इसी तरह का बयान हरियाणा के कृषि मंत्री जेपी दलाल भी दे चुके हैं.

Farmers Protest: किसान आंदोलन में आतंकवादी, खालिस्तानी, पाकिस्तानी होने के बयान अभी तक आए जा रहे हैं. इसी साल जनवरी में ठीक यही हो रहा था जब लाखों लोग नागरिकता कानून के विरोध में दिल्ली और देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रदर्शन कर रहे थे. बीजेपी के नेता, मंत्री, प्रवक्ता, कार्यकर्ता गोली मारने के नारे लगाने लगे और पाकिस्तानी और गद्दार बताने लगे. गोदी मीडिया के स्टूडियो में घंटों चलने वाले डिबेट के दम पर इन नारों के सहारे मिडिल क्लास इंडिया के बीच एक सहमति बनाई गई और उसकी आड़ में आंदोलन को कुचल दिया गया. आंदोलन में शामिल लोगों पर ही दंगों के आरोप में आतंकविरोधी धाराएं लगा दी गईं. फ्लैश बैक में आपको ले जाना चाहता हूं. फ्लैशबैक के बग़ैर न फ्यूचर दिखता है न प्रजेंट समझ आता है. आप वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर और सांसद प्रवेश वर्मा के भाषणों के अंश को सुनिए. 

क्या ऐसा ही कुछ इस बार हो रहा है? एक तरफ गृह मंत्री अमित शाह किसानों से बात कर रहे हैं तो दूसरी तरफ मंत्रिमंडल में उनके सहयोगी राव साहब दानवे पाटिल का बयान आता है कि यह किसानों का आंदोलन नहीं है, इसके पीछे चीन और पाकिस्तान का हाथ है. इसी तरह का बयान हरियाणा के कृषि मंत्री जेपी दलाल भी दे चुके हैं.

इस क्रोनोलोजी को समझिए. गोदी मीडिया से मंत्री, मंत्री से प्रवक्ता, प्रवक्ता से आईटी सेल, आईटी सेल से व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी. आप जो सुनेंगे, वही देखेंगे और वही पढ़ेंगे. किसान आंदोलन और उनकी मांगों का जितना कवरेज़ नहीं हो रहा है उससे ज्यादा इन बातों का हो रहा है. इस तरह से आपको एक समानांतर यथार्थ लोक तैयार कर दिया जाता है जिसकी एंट्री फ्री है लेकिन बाहर निकलने का रास्ता बंद है. केंद्रीय मंत्री के इस बयान की दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने निंदा की है.

गोदी मीडिया के पत्रकारों और ऐसे बयान देने वाले नेताओं को जब भूख लगती होगी तो वे रोटी किसकी खाते होंगे. आटे की या चांदी की. अब हम आपको एक किसान संगठन के बारे में बताना चाहते हैं. अगर गोदी मीडिया ने किसान आंदोलन में आए संगठनों का इतिहास जानने का प्रयास किया होता तो पता चलता कि पंजाब के किसान संगठन कितने अलग हैं. खेती किसानी को लेकर उनकी समझ धरातल से कितनी जु़ड़ी है.


आंदोलन के दौरान बहुत सी तस्वीरें सामने आईं. मैं भी नहीं जानता था कि ये कौन लोग हैं. आप भी नहीं जानते होंगे. जब जाना तो पता चला कि ये सिर्फ तस्वीरें नहीं हैं. ये वो लोग हैं जिन्होंने खालिस्तान का विरोध करते हुए अपनी जान दी. जिन्हें खालिस्तानियों ने मार दिया. गोदी मीडिया ने अपने स्‍टुडियो के आरामगाह से इन्हें कितनी आसानी से खालिस्तानी कह दिया. ये सभी तस्वीरें पंजाब के एक संगठन कीर्ति किसान यूनियन के नेताओं और कार्यकर्ताओं की हैं. इस संगठन के तीन-तीन अध्यक्ष खालिस्तान से लड़ते हुए शहीद हुए हैं. मार्च 1988 में जयमल सिंह पड्डा, मई 1990 में सरबजीत सिंह भिट्टेवड, नवंबर 1992 में ज्ञान सिंह गंगा की खालिस्तानियों ने हत्या कर दी थी. इसके अलावा दर्जन भर कार्यकर्ता भी खालिस्तान से लड़ते हुए शहीद हुए हैं.

कीर्ति किसान यूनियन ने खालिस्तान का ही नहीं, स्टेट के आतंकवाद का भी विरोध किया है. आतंकवाद के दौर में पुलिस की गोली से कई निर्दोष आतंकवादी बताकर मार दिए गए तो उसका भी विरोध किया. यही नहीं, कीर्ति किसान यूनियन हर तरह की सांप्रदायिकता का विरोध करता है. सिख सांप्रदायिकता का भी करता है. मानता है कि धर्म का स्थान व्यक्तिगत है. सार्वजनिक नहीं है. 

अगर व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी ने आपके सोचने समझने की क्षमता पूरी तरह से नष्ट नहीं कर दी है तो कीर्ति किसान यूनियन के उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह जी को सुनिए. एक जानकारी और. आपने अवतार सिंह पाश का नाम सुना होगा. नहीं सुना होगा तो कोई बात नहीं. अभी इंटरनेट पर सर्च करें उनकी कविता सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना. पाश की हत्या के बाद खालिस्तानियों ने चुनौती दी कि इनकी ज़मीन कोई नहीं जोतेगा. कीर्ति किसान संगठन ने इस चुनौती को स्वीकार कर लिया और पाश की ज़मीन पर खेती की. ये मैं इसलिए नहीं बता रहा कि किसी को शर्म आएगी. उन्हें शर्म फिर भी नहीं आएगी. सत्ता होती है तो शर्म नहीं आती है.

कीर्ति किसान यूनियन के राजेंद्र सिंह दीप सिंह वाला सबसे कम उम्र के किसान नेता हैं. सरकार से बातचीत करने जाने वाले किसान नेताओं में से. कानून की पढ़ाई करने वाले राजेंद्र की उम्र 37 साल की है. उनका संगठन किसान आंदोलनों में युवाओं की भागीदारी पर विशेष ध्यान देता है.

1973 में यह संगठन वजूद में आया. मालवा से शुरू होकर दोआबा और माझा में फैल गया. यह संगठन छोटे किसानो की लड़ाई लड़ता है. इनके उपाध्यक्ष ने कहा कि हम 10 एकड़ से अधिक के मालिक किसानों की बात नहीं करते. हमारे सारे सदस्य 10 एकड़ से कम ज़मीन वाले हैं. आंदोलन से पहले इसके सदस्यों की संख्या 30,000 थी लेकिन आंदोलन के दौरान नए नए लोग जुड़ने लगे हैं. जिस गांव में 10 मेंबर थे वहां अब 100 हो चुके हैं. सदस्यता के लिए साल की फीस 10 रुपये है. राज्य के स्तर पर 11 सदस्यों की कमेटी संगठन चलाती है. 13 ज़िलों में कीर्ति किसान यूनियन दखल रखता है. मुक्तसर और मोगा में महिला विंग भी है जिससे 700 से 1000 महिलाएं जुड़ी हैं. किसान संगठन में अक्सर बूढ़े होते हैं, इस धारणा को तोड़ने के लिए यूथ विंग बनाए गए. 8 ज़िलों में इसका यूथ विंग भी काम करता है.


इस तरह का संगठन यूपी, बिहार में नहीं मिलेगा. लेकिन इन संगठनों के बारे में जानेंगे तो पता चलेगा कि किसान आंदोलन और किसान संगठन के बीच क्या रिश्ता है. इन संगठनों ने क्या तैयारी की है. कीर्ति किसान यूनियन के राजिंदर सिंह ने बताया कि ब्लाक से लेकर ज़िला स्तर के 100 कार्यकर्ताओं का चुनाव किया गया जो अच्छा बोलते हैं. उन्हें दो दिन तक लगातार कानून की ट्रेनिंग दी गई ताकि ये गांव गांव जाकर इसके बारे में समझा सकें. बहुत से कार्यकर्ता दो महीने से घर तक नहीं गए हैं. जब पंजाब के गांवों में मशाल जुलूस से लेकर अलग अलग तरह के प्रदर्शन हो रहे थे तब गोदी मीडिया आपको रात दिन सुशांत सिंह राजपूत के बहाने फर्जी न्यूज़ और डिबेट दिखा रहा था.

कीर्ति किसान यूनियन को समझने के लिए ज़रूरी है कि इसकी मांगों को भी देखिए. जैसा कि यह संगठन छोटे किसानों की बात करता है तो इसका एक सुझाव है. छोटे किसानों के खेत बिखरे होते हैं. इससे लागत बढ़ जाती है. अगर 3 एकड़ वाले 100 किसानों के खेत एक जगह हो जाएं और सरकार सिंचाई की व्यवस्था कर दे तो इनकी खेती की लागत कम हो जाएगी. ट्यूबवेल लगाने का ढाई लाख बच जाएगा और इतना ही कर्ज़ा कम हो जाएगा. यह संगठन 10 एकड़ से कम की ज़मीन वाले किसानों के लिए कर्ज़ माफी की मांग करता है. 10 एकड़ से अधिक की ज़मीन वाले बड़े किसानों की कर्ज़ माफी की मांग नहीं करता है. 

पंजाब के गायक कलाकार अपने वीडियो के ज़रिए इन बातों का जवाब देने लगे हैं. कंवर ग्रेवाल का नया वीडियो आप सुन सकते हैं. जिसमें कहा जा रहा है कि हम किसान हैं, आतंकवादी नहीं. और हां हमें अंग्रेज़ी भी आती है. इस वीडियो के ज़रिए कंवर ग्रेवाल उस खूबसूरत एकता की तस्वीर बना रहे हैं जिसे गोदी मीडिया ने ध्वस्त कर दिया है. अलग-अलग किसान यूनियनों के झंडे हैं. छात्र संगठन हैं. खालसा एड है. मुसलमान खाना परोस रहे हैं. निंहग हैं. लड़कियां हैं. जवानी के गाने में बुज़ुर्ग भी हैं. कंवर ग्रेवाल गा रहे हैं कि कोई हमें आतंकवादी कहता है, कोई अलगाववादी कहता है, दरअसल ऐसा कहने वालों को नानक के ख़्वाब से डर लगता है.

गाने के बोल हैं कि जो लोग इन युवाओं को नशेड़ी कहा करते थे वही लोग अब इन युवाओं को सलाम कर रहे हैं क्योंकि वे अब आंदोलन कर रहे हैं. लड़ रहे हैं. ट्रॉलियों में गुड़ भर के आए हैं. बिना फैसले के नहीं जाएंगे. 10 केंद्रीय मज़दूर संगठनों ने कहा है कि वे 12 और 14 दिसंबर के किसान आंदोलन को सपोर्ट करेंगे. किसान आंदोलन हर दिन साहस का नया प्रदर्शन कर रहा है.


हाथों में ये पोस्टर उन लोगों के हैं जिनका नाम आते ही गोदी मीडिया आक्रामक होने लगता है. भीमा कोरेगांव केस से लेकर दिल्ली दंगों में कथित रूप से आरोपी बनाए इन लोगों में से कइयों को कई कई महीनों और साल से ज़मानत नहीं मिली है. इन सभी विचाराधीन कैदियों की रिहाई की मांग की गई. पंजाब किसान यूनियन के सुखदर्शन नट ने कहा किसी को भी गलत तरीके से फंसा कर जेल भेजा गया है हम उनकी रिहाई की मांग करते हैं. पंजाब से आई महिला किसानों ने इनकी तस्वीरों को पोस्टर बना हाथों में उठा लिया. वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, शरज़ील इमाम, उमर खालिद, गौतम नवलखा, सुरेन्द्र गाडलिंग, ख़ालिद सैफ़ी. स्टैन स्वामी, गौतन गिलानी, नताशा नरवाल, देवंगाना कालिता. नताशा नरवाल के पिता महावीर नरवाल को किसानों ने मंच पर भी बुलाया.

किसानों ने सरकार के प्रस्ताव को ठुकरा दिया. कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह ने प्रेस कांफ्रेंस की और सरकार का पक्ष रखा. सरकार अपना पक्ष रख रही है. पहले दिन से रख रही है. किसान सरकार की बातों को ठुकरा रहे हैं. इस आंदोलन के दौरान कई किसानों की मौत की भी ख़बरें आ रही हैं. मौत के कारण अलग अलग हैं. 
- 24 नवंबर को बरनाला के कहान सिंह का निधन हो गया

- 27 नवंबर को चहलांवाली के धन्ना सिंह का निधन हो गया

- 28 नवंबर को भंगु खटरा के गज्जन सिंह का निधन हो गया

- 29 नवंबर को बरनाला के जनक राज का निधन हो गया

- 30 नवंबर को अट्टर सिंघवाला के गुरदेव सिंह का निधन हो गया

- 2 दिसंबर को मानसा के गुरजंत सिंह का निधन हो गया

- 3 दिसंबर को मोगा के गुरबचन सिंह सिबिया का निधन हो गया

- 3 दिसंबर को ही लुधियाना के बलजिंदर सिंह का निधन हो गया

- 4 दिसंबर को बठिंडा के लखवीर सिंह का निधन हो गया

- 7 दिसंबर को संगरुर के करनैल सिंह का निधन हो गया

- 7 दिसंबर को बरनाला की राजिंदर कौर का निधन हो गया

- 8 दिसंबर को गुरमैल कौर, मेवा सिंह, अजय कुमार और लखवीर सिंह का निधन हो गया

अब हम बात करेंगे एक प्रचार युद्ध की. भारत सरकार और बीजेपी बार बार एक पोस्टर ट्वीट कर रहे हैं जिसमें लिखा होता है कि इस साल धान की खरीद अधिक हुई है और जितनी खरीद हुई है उसमें से सबसे अधिक पंजाब से खरीद हुई है, 60 प्रतिशत. क्या इसका संबंध आंदोलन से है? क्या सरकार जानती थी कि पिछले कुछ महीनों से पंजाब में क्या चल रहा है तो इसे काउंटर करने का एक ही तरीका है कि धान की खरीद बढ़ा दी जाए? इसके बाद भी क्यों नहीं आंदोलन शांत हुआ? पंजाब से धान की खरीद अगर ज्यादा हुई तो क्या हरियाणा और तेलंगाना में कम खरीद हुई? कृषि मंत्री अपने ट्वीट में यह क्यों नहीं बताते कि इस साल पंजाब की तरह हरियाणा और तेलंगाना से भी धान की खरीद अधिक हुई है.

जिस पोस्टर को कृषि मंत्री ने ट्वीट किया था, उस पर लिखा है कि कृषि सुधार कानूनों के बाद देश में धान की रिकार्ड ख़रीद हुई है. अब तक 65,111 करोड़ रुपये मूल्य के धान की सरकारी ख़रीद हो चुकी है जिससे लगभग 35.03 लाख किसान लाभान्वित हुए हैं. फिर भी आंदोलन जारी है! विस्मयादीबोधक चिन्ह का इस्तमाल किया गया है. इसमें विस्मय या चकित होने की बात नहीं है.

इस पोस्टर में दिखाया गया है कि इस साल 345 लाख मिट्रिक टन से अधिक धान की खरीद हो चुकी है जिसमें से 202.77 लाख मिट्रिक टन धान की ख़रीद अकेले पंजाब से हुई है. और यह भी बताया गया है कि पिछले साल की तुलना में इस साल अब तक 22 प्रतिशत अधिक धान की खरीद हो चुकी है.

क्या वाकई ये रिकार्ड ख़रीद है? कृषि मंत्री ने धान का डेटा दिया है लेकिन सरकारी वेबसाइट पर आपको चावल का मिलेगा. इससे कंफ्यूज़ होने की ज़रूरत नहीं है. भारत सरकार के मानक के अनुसार एक क्विंटल धान में 67 किलोग्राम चावल होता है. तो आप चावल से धान और धान से चावल का हिसाब निकाल सकते हैं. कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की तरह ही केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने 5 दिसंबर की बातचीत से पहले ट्वीट किया था. क्या हर साल भारत में होने वाली खरीद में पंजाब का हिस्सा 60 प्रतिशत होता है? अब एक डेटा देखें तो पता चलेगा कि क्यों इस साल पंजाब से धान की डबल खरीद हुई है. हमने FCI की वेबसाइट पर जा कर इस साल की अब तक की चावल की ख़रीदी का डेटा चेक किया. इस साल 231.17 लाख मेट्रिक टन की सरकारी ख़रीद हुई है. इसमें से 135.86 लाख मेट्रिक टन पंजाब से ख़रीद गया जो कि कुल ख़रीद का 58.77% है. क्या हर साल पंजाब से इतनी ही खरीद होती है? 17 मार्च 2020 को लोकसभा में महाबली सिंह के पूछे गए सवाल के जवाब में कृषि मंत्री ने लिखित तौर पर कहा था कि 2017-18 में 382 LMT चावल की ख़रीद हुई. इसमें से पंजाब से सबसे ज़्यादा चावल आया - 118 LMT. यानी कुल ख़रीद का 31%. 2018-19 में 448 LMT चावल ख़रीद गया. इसमें से 114 LMT पंजाब से था. यानी 25.5%. 2019-20 में 416 LMT चावल की ख़रीदी हुई. पंजाब से फिर 114 LMT ख़रीद गया. ये कुल ख़रीद का 27.4% है.

तो इस हिसाब से देखें तो पंजाब में पिछले तीन साल से 27 से 31 प्रतिशत चावल खरीदा गया. इस बार सरकार 60 प्रतिशत धान खरीदने का दावा कर रही है. क्या यह डबल खरीद इसलिए हुई ताकि वहां हो रहे किसान आंदोलन की मांग को काउंटर किया जा सके? पंजाब के किसानों के जवाब आपने सुने होंगे. वे यही कह रहे हैं एक दो साल खरीद होगी लेकिन धीरे धीरे इस कानून के ज़रिए बंद होने लगेगी.

अभी देश भर में खरीद की प्रक्रिया चल रही है. ये आंकड़े आगे जाकर बदल जाएंगे. तब देखा जाएगा कि पिछले साल की तुलना में इस साल सरकार ने धान की खरीद ज्यादा की है या कम की है. अभी तो आपको यही बताया जा रहा है कि जितनी खरीद हुई है उसमें से 60 परसेंट पंजाब से हुई है. अब दूसरा सवाल. देश में अभी तक हुई खरीद का 60 परसेंट पंजाब से है. तो क्या दूसरे राज्यों में भी खरीद इसी तरह बढ़ी है? हरियाणा और तेलंगाना के अभी तक के आंकड़े बताते हैं कि अभी तक धान की खरीद घट गई है. धान का उदाहरण देता हूं. तेलंगाना में पिछले साल 111.26 लाख मिट्रिक टन धान की ख़रीद हुई थी. FCI के मुताबिक़ तेलंगाना से इस साल अभी तक मात्र 22.81 लाख मिट्रिक टन धान की खरीद हुई है. क्या पंजाब में अधिक ख़रीद की कीमत तेलंगाना को चुकानी पड़ रही है?

कृषि मंत्री हरियाणा और तेलंगाना में हुई धान खरीद का डेटा क्यों नहीं ट्वीट करते हैं? वहां के किसान भी तो आंदोलन में हैं. आप भारत सरकार की डिपार्टमेंट ऑफ फूड एण्ड पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन की बेबसाइट पर जाएंगे तो पता चलेगा कि सरकार कभी भी चावल की पैदावार का 50 प्रतिशत भी नहीं खरीदती है. उसकी खरीद 45 प्रतिशत से कम ही होती है.

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

कृषि मंत्री यही बता देते कि पंजाब से जो धान की खरीद हुई है उसमें 6 परसेंट यूपी बिहार से लाई गई धान है. तो यूपी और बिहार में पंजाब की तरह मंडी होनी चाहिए कि नहीं. अगर आपने अपना जीवन व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी और गोदी मीडिया के राष्ट्रवाद के लिए समर्पित कर दिया है तो कोई बात नहीं. लेकिन कुछ तो सोचिए. एक और डेटा दिलचस्प है. मध्य प्रदेश में इस साल चुनाव होने थे जिस पर राज्य सरकार का भविष्य टिका था. मध्य प्रदेश से केंद्र सरकार हर साल 60-65 लाख मिट्रिक टन गेहूं की खरीद करती है. इस साल 129 लाख मिट्रिक टन गेहूं की ख़रीद हुई. इस साल पिछले साल के मुक़ाबले क़रीब दुगनी ख़रीद हुई है. क्या इसका संबंध वहां हुए चुनावों से है? आप कहते हैं तो मान लेता हूं कि चुनाव से संबंध नहीं है. वैसे खुद से की जाने वाली घर की बात में मैं कभी नहीं मानूंगा. घर की बात मेरा पर्सनल स्पेस है. आपको एतराज़ भी नहीं होना चाहिए.