लप्रेक- तुम बैंक की क़तार में कितनी कातर लगती हो...

लप्रेक- तुम बैंक की क़तार में कितनी कातर लगती हो...

प्रतीकात्मक तस्वीर

तुम बैंक की क़तार में कितनी कातर लगती हो.

मतलब?

मैंने देखा है तुम्हें स्कूटी चलाते हुए, तुम्हारे टर्न, तुम्हारे कट, तुम्हारा कॉफिडेंस. ऐसा लगता है तुम देश चला रही हो. इंडिया को स्पीड का रोग लग गया है. लेकिन जब तुमको लाइन में देखता हूं, लगता है तुमको लाइन मार गया है. तुम ठहर सी गई हो.

समर... मज़ाक मत करो. चार दिन हो गए. आठ घंटे के हिसाब से बत्तीस घंटे. मैं कातर नहीं हूं. मैं लाचार भी नहीं हूं. क्या हम देश के लिए बत्तीस घंटे लाइन में नहीं लग सकते?

तो तुम्हारी स्कूटी भी देश के लिए बत्तीस घंटे से खड़ी है? और वह बूढ़ी भी! और वह बाप भी! वह नौजवान भी!

समर, तुम बिटर हो चुके हो. तुम हिस्टेरिकल हो चुके हो. तुम थियेटरिकल हो गए हो. समर, तुम थियोरिटिकल हो गए हो. आखिर हमने कब देश के लिए कुछ किया. आज मौका आया है. पिछली बार अण्णा आंदोलन के वक्त बोर्ड का इम्तहान चल रहा था. वर्ना मैं तो जंतर मंतर भी जाने वाली थी.

रागिनी तुम लाइन की बात सुनते ही भड़क क्यों जाती हो? मैंने तो सिर्फ इतना कहा कि तुम क़तार में कातर लगती हो.

समर कातर मैं नहीं लग रही. तुम लग रहे हो. नब्बे परसेंट से हटकर जो लोग अलग चलते हैं, उनका यही हाल होता है. वह पागल होकर मरते हैं. मुझे भीड़ से अलग नहीं रहना है. नहीं सोचना है कुछ भी अलग. क्या इतने लोग गलत हो सकते हैं? देखो, मुझे फिर से लाइन में लगने जाना है. कुछ और बात करने के लिए नहीं है.

बिल्कुल है. यही कि तुम जिस लाइन में लगी हो, उसी लाइन में आज मैं भी हूं. तुम्हारी जगह मैंने रोक रखी है. मैं नब्बे परसेंट हो गया हूं. अब हमें पागल होने का कोई ख़तरा नहीं है.

उफ्फ इस व्हाट्स ऐप के झगड़े ने हमें क्या बना दिया है समर. यू आर सो नाइस. आय अम टच्ड.

जब से तुम लाइन में लगी हो, तुम्हें देख देखकर मैं भी लाइन हो गया हूं.

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