गोडसे को हीरो बताने के पीछे राजनीति क्या है?

ऐसे तत्व हैं जो गोडसे को ज़िंदा करते रहते हैं. गांधी की हत्या पर जश्न मनाने वाले ये कौन लोग हैं. ये हमेशा बीजेपी के पाले से ही क्यों निकल आते हैं.

इस बात को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए. सोचा जाना चाहिए और पूछा जाना चाहिए कि वो कौन सी शक्तियां हैं, वो कौन से लोग हैं और वो लोग किस राजनीतिक खेमे के साथ नज़र आते हैं जो बार-बार गांधी के हत्यारे को अवतार बताने चले आते हैं. पहली बार नहीं हुआ है जब गोडसे को देशभक्त बताया गया है. भोपाल से बीजेपी की उम्मीदवार प्रज्ञा ठाकुर ने कहा है कि नाथूराम गोडसे देशभक्त है. आतंकवादी नहीं है.

2014 में बीजेपी के सांसद साक्षी महाराज ने महाराष्ट्र के एक कार्यक्रम में कहा था कि गोडसे राष्ट्रवादी था. गोडसे के जन्मदिवस को महाराष्ट्र में शौर्य दिवस के रूप में मनाया जा रहा था. तब बीजेपी ने साक्षी महाराज के बयान से किनारा कर लिया था. साक्षी महाराज इस चुनाव में फिर से यूपी के उन्नाव से चुनावी मैदान में हैं. इसके बाद भी बीजेपी के भीतर से गोडसे के समर्थक निकल आते हैं.

प्रज्ञा ठाकुर कोई साधारण उम्मीदवार नहीं हैं. मालेगांव बम धमाके में आरोपी होने के बाद भी बीजेपी से लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने प्रज्ञा ठाकुर की उम्मीदवारी का बचाव किया था. जब प्रज्ञा की उम्मीदवारी पर सवाल उठे तब प्रधानमंत्री मोदी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि प्रज्ञा को उतारने का फैसला उन लोगों को करारा जवाब है जिन्होंने धर्म और संस्कृति को आतंकवाद से जोड़ा है. कांग्रेस ने बिना सबूत के दुनिया में पांच हज़ार साल तक, जिस महान संस्कृति और परंपरा ने वसुधैव कुटुंबकम का संदेश दिया, सर्वे भवन्तु सुखिन का संदेश दिया, ऐसी संस्कृति को आतंकवादी कह दिया, उन सबको जवाब देने के लिए ये एक प्रतीक हैं जो कांग्रेस को महंगा पड़ने वाला है. यानी प्रधानमंत्री मोदी के लिए प्रज्ञा ठाकुर सामान्य उम्मीदवार नहीं थीं. इस प्रज्ञा ठाकुर ने यहां तक कह दिया कि मुंबई हमलों में आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद होने वाले हेमंत करकरे की मौत उनके शाप के कारण हुई थी. तब हंगामा हुआ कि क्या आतंकवादी हमला प्रज्ञा ठाकुर के शाप के कारण हुआ था, प्रज्ञा ठाकुर ने कसाब को शाप नहीं दिया, हेमंत करकरे को क्यों शाप दिया. सवाल उठा तो प्रज्ञा ठाकुर को बयान वापस लेना पड़ा था. महाराष्ट्र के नेताओं ने इस बयान की आलोचना की थी. मुख्यमंत्री देवेंद फड़णवीस ने प्रज्ञा ठाकुर के बयान की आलोचना की थी. हेमंत करकरे को जाबांज़ पुलिस अफसर बताया था. मगर देवेंद्र फड़णवीस के बयान से अलग सुमित्रा महाजन का बयान था. उन्होंने कहा कि हेमंत करकरे शहीद हैं मगर एटीएस चीफ के तौर पर उनकी भूमिका संदिग्ध हैं. ज़ाहिर है हेमंत करकरे को लेकर महाराष्ट्र में कुछ सोचा जा रहा है, मध्य प्रदेश में कुछ सोचा जा रहा है. इस बयान के बाद भी प्रज्ञा ठाकुर गोडसे को देशभक्त बता रही हैं. अचानक निकला हुआ बयान तो नहीं हो सकता है. जो सोच विचारधारा में हैं, वही सोच बयानों में उतर ही आती है. कमल हसन के बयान की आलोचना के नाम पर गोडसे को देशभक्त बताना सामान्य घटना नहीं है.

गांधी की हत्या के 71 साल बाद भी गोडसे की मूर्ति बन रही है, जयंती मन रही है, देशभक्त बताया जा रहा है. गांधी के हत्यारे को देशभक्त बताने की जल्दी क्या है. कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने प्रज्ञा ठाकुर के इस बयान की कड़ी आलोचना की है और अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी से जवाब मांगा है.

पिछले साल अभिनव भारत के पंकज फड़नीस सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाते हैं कि गोडसे की सज़ा पर फिर से सुनवाई हो. सुप्रीम कोर्ट ने इस केस को सुनने से मना कर दिया था. लेकिन इसके बाद भी गोडसे के समर्थकों की कमी नहीं है. गोडसे जयंती मनाने वालों की भी कमी नहीं है. मेरठ में 2 अक्तूबर 2016 के दिन जिस दिन महात्मा गांधी का जन्मदिन होता है, उसी दिन गोडसे की मूर्ति का अनावरण किया गया था. अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के लोगों ने गांधी दिवस को धिक्कार दिवस के रूप में मनाया था. वो चाहते थे कि मेरठ का नाम बदलकर गोडसे के नाम पर रख दिया जाना चाहिए. 2017 में हिन्दू महासभा के लोग ग्वालियर में गोडसे के लिए मंदिर बनाना चाहते थे, प्रशासन ने अनुमति नहीं दी. हमारे बीच ऐसे तत्व हैं जो गांधी की हत्या को फिर से जीना चाहते हैं. हत्या की सनक को राष्ट्रभक्ति में बदल देना चाहते हैं.

अखिल भारतीय हिन्दू महासभा की राष्ट्रीय सचिव है पूजा शकुन पांडे. 30 जनवरी 2019 का यह वीडियो है. इसमें पूजा शकुन पांडे गांधी की तस्वीर पर गोली चला रही हैं और ख़ून निकल रहा है. कुछ तो है कि कुछ लोग गांधी की हत्या को जीना चाहते हैं. उसका सुख लेना चाहते हैं. यह गांधी का हत्या का मंचन नहीं है बल्कि समाज में हत्यारे पैदा करने का अभ्यास है जिन्हें लगे कि गांधी से लेकर किसी को भी मारना जायज़ है. हत्या के बाद मिठाई बांटी गई थी. इस वीडियो में पूजा शकुन पांडे अकेले नहीं हैं. उनके साथ कई लोग हैं. ये वो लोग हैं जो गांधी की हत्या को जायज़ ठहराने का अभिनय कर रहे हैं. जी रहे हैं. आपको लगेगा कि प्रज्ञा ठाकुर से लेकर पूजा शकुन पांडे का बयान और अभिनय सामान्य घटना है मगर ये इतने भी कम नहीं हैं. आए दिन गोडसे को महान बताने वाला कोई हमारे सामने आ जाता है. पूजा शकुन पांडे की गिरफ्तारी हुई थी. फिलहाल पूजा शकुन पांडे जेल से बाहर हैं.

ऐसे तत्व हैं जो गोडसे को ज़िंदा करते रहते हैं. गांधी की हत्या पर जश्न मनाने वाले ये कौन लोग हैं. ये हमेशा बीजेपी के पाले से ही क्यों निकल आते हैं. कमल हसन के बयान का सहारा लेकर प्रज्ञा ठाकुर गोडसे को देशभक्त बता रही हैं. कोई आतंकवादी कहा जा सकता है या नहीं इस पर बहस हो सकती है लेकिन उसके सहारे गोडसे को देशभक्त बताने का तुक क्या कह रहा है. कमल हसन के बयान पर बीजेपी चुनाव आयोग गई शिकायत लेकर, प्रज्ञा ठाकुर के बयान को लेकर भी क्या बीजेपी चुनाव आयोग जाएगी. हेमंत करकरे की शहादत को अपने श्राप का अंजाम बताने वाली प्रज्ञा ठाकुर का यह बयान अचानक तो नहीं निकला होगा. उनकी सोच बता रही है कि वे गोडसे के बारे में क्या सोचती हैं, हेमंत करकरे के बारे मे क्या सोच रही हैं.

क्या गांधी की हत्या को लेकर एक विचारधारा के खेमे में कोई कन्फ्यूजन है. गांधी की हत्या को जायज़ ठहराने की जल्दी है. प्रज्ञा ठाकुर और साक्षी महाराज के बयानों से सतर्क रहना चाहिए. गांधी की हत्या पूरी मानवता पर एक दाग़ है. राजनीतिक सत्ता के दम पर उनकी हत्या को जायज़ ठहराने का इंतज़ार करने वाले नहीं जानते कि यह गांधी की ताकत ही है जिनकी तस्वीर प्रधानमंत्री को अपने दफ्तर में रखनी पड़ती है. दिखाई देना पड़ता है गांधी के साथ. अब आते हैं बंगाल पर. यहां विद्यासागर की मूर्ति तोड़े जाने की घटना ने दोनों राजनीतिक दलों को भिड़ा दिया है. कोलकाता की घटना के कुछ और वीडियो सामने आए हैं. एक वीडियो हमें व्हाट्स एप से मिला है. इस वीडियो से ज़ाहिर है कि बीजेपी के कार्यकर्ता विद्यासागर गेट पर हमला कर रहे हैं. ढाई मिनट का यह वीडियो है आप पूरा देखिए. इसे भी चुनाव आयोग के पास जमा कराया गया है.

तृणमूल नेता डेरेक ओ ब्रायन ने कई वीडियो ट्विट किए हैं और चुनाव आयोग को भी जमा कराया है. आज भी डेरेक ओ ब्रायन ने एक वीडियो ट्विट किया है यह साबित करने के लिए कि बीजेपी के नेता हिंसा कर रहे हैं. हम जो वीडियो दिखा रहे हैं उससे लगता तो है कि बीजेपी ने हिंसा की है मगर एक बात का ध्यान रखिएगा. कालेज के भीतर से क्या हुआ, इसका वीडियो हमारे पास नहीं है. जरूर पुलिस और चुनाव आयोग के कैमरामैन के पास होना चाहिए.

हमने कई वीडियो में देखा कि बीजेपी के लोग कालेज पर हमला कर रहे थे और अपने मोबाइल से वीडियो भी बना रहे थे. इसके बाद हमने बंगाल बीजेपी के चीफ दिलीप घोष के ट्विटर अकाउंट पर जाकर देखा कि क्या उनके पक्ष को साबित करने वाला वीडियो है. जिसमें तृणमूल के कार्यकर्ता गुंडागर्दी करते हुए दिखा दे रहे हों या कालेज के भीतर से पत्थर चल रहा हो. हमने बंगाल बीजेपी के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय के ट्विटर हैंडर पर जाकर चेक किया. वहां एक न्यूज़ चैनल का वीडियो है जिसमें कुछ लोग कालेज के गेट पर हमला कर रहे हैं मगर उसी वीडियो डेरेक ओ ब्रायन ने दिखाया था कि बीजेपी के कार्यकर्ता तोड़ रहे हैं. कैलाश विजयवर्गीय के ट्विटर हैंडल में एक वीडियो अपलोड किया है. यह वीडियो उनकी पार्टी के प्रचार का है.

यह वीडियो बांग्ला में है. इसमें धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल किया गया है. पता चलता है कि अमित शाह के रोड शो में धार्मिक झांकी निकाली गई. राम और लक्ष्मण बने हुए हैं, राम की बड़ी सी प्रतिमा लेकर रोड शो में गए हैं. जय श्री राम के नारे लग रहे हैं. ममता बनर्जी को एक खास धार्मिक समुदाय का समर्थक दिखाया गया है. उन्हें हिन्दुओं को मारने वाला बताया है. यह वीडियो पूरी तरह से सांप्रदायिक है. अगर वाकई चुनाव आयोग होता तो कार्रवाई करता. इस वीडियो में विद्यासागर कालेज पर हमला करते पुलिस से जूझते कार्यकर्ताओं को भी दिखाया गया है. इसमें हिन्दू वोटर की बात की गई है और अंत में जय श्री राम का नारा लगता है और अमित शाह का चेहरा आक्रामक रूप से लाल हो जाता है.

ऐसा वीडियो किसी दूसरी पार्टी के प्रचार के लिए बनता तो चुनाव आयोग को अपने नियम याद आ जाते मगर बीजेपी के इस प्रचार वीडियो में जिस तरह से धार्मिक प्रतीकों और नारों का इस्तेमाल हुआ है उससे लगता है कि चुनाव आयोग अपने काम का चुनाव सावधानी से कर रहा है. यह वीडियो कैलाश विजयवर्गीय के ट्विटर हैंडल पर मौजूद हैं. आज ममता बनर्जी ने एक व्यक्ति राकेश सिंह का वीडियो जारी किया है. इस वीडियो में राकेश सिंह बीजेपी के टीशर्ट में है और हिंसा की बात कर रहा है. हिंसा के लिए तैयार रहने की बात कर रहा है.

ममता बनर्जी यह दिखा कर आरोप लगा रही हैं कि बीजेपी के नेता हिंसा की तैयारी कर रहे थे. बंगाल के बीजेपी चीफ दिलीप घोष ने राकेश सिंह के बयान का बचाव किया है. कहा है कि अगर कोई पार्टी कार्यकर्ता अपनी सुरक्षा की बात कर रहा है तो इसमें कोई हर्ज नहीं है. बूम लाइव को दिए बयान में राकेश सिंह ने कहा है. राकेश सिंह पर कई आपराधिक मामले दर्ज हैं. राकेश सिंह पहले कांग्रेस का उम्मीदवार रहा है. विधानसभा चुनाव के बाद राकेश सिंह बीजेपी में आ गया.

कोलकाता की सड़क पर ईश्वरचंद्र विद्यासागर बनकर कृष्णचंद वैरागी दिखे. बीजेपी के समर्थक हैं. कृष्णचंद वैरागी कहते हैं कि तीस साल से वे बंगाल के अलग अलग महापुरुषों का भेष धारण करते रहे हैं. बीजेपी का उम्मीदवार अब कृष्णचंद वैरागी को विद्यासागर बनाकर कोलकाता में घुमा रहे हैं कि उनकी पार्टी विद्यासागर का कम सम्मान नहीं करती है. वैरागी जी ने कहा कि कल रात यानी 15 मई की रात ही उन्हें बीजेपी पकड़कर लाई है. किराये पर विद्यासागर बीजेपी तो ले आई मगर मामला मूर्ति तोड़े जाने को लेकर है. इसका असर आज प्रधानमंत्री की सभा पर भी पड़ा. प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी पार्टी विद्यासागर की ऊंची प्रतिमा बनवाएगी. उसी जगह पर.

ममता बनर्जी ने तो 15 मई को ही विद्यासागर के सम्मान में मार्च कर दिया था. उनके मार्च में कार्यकर्ता बंगाल के महापुरुषों की तस्वीरें ले आए. ममता कहती हैं कि प्रधानमंत्री को समर्पित एक काली प्रतिमा होनी चाहिए जो आपातकाल की याद दिलाए. ममता ने यह नहीं कहा कि प्रधानमंत्री की मूर्ति लगनी चाहिए बल्कि भाषा का खेल यहां देखिए. कहती हैं कि प्रधानमंत्री को समर्पित एक काली मूर्ति होनी चाहिए.

ममता बनर्जी की डायमंड हार्बर में रैली थी. जहां एक दिन पहले प्रधानमंत्री की रैली थी. डायमंड हार्बर की रैली में ममता ने अपना पूरा भाषण बंगाल के गौरव से भर दिया. ममता ने कहा कि जब भारत को आज़ादी मिली तब गांधी बंगाल में थे. राष्ट्रगान बंगाल की देन है. जय हिन्द और वंदेमातरम बंगाल की देन है. नेताजी ने इंडियन नेशनल आर्मी बनाई. ईश्वरचंद्र विद्यासागर ज्ञान के सागर थे. ममता ने कहा कि तृणमूल ने मूर्ति नहीं तोड़ी है. तृणमूल ऐसा काम नहीं करती है. ममता का भाषण आक्रामक था. हदें भी टूट रही थीं. कहा कि नरेंद्र मोदी जी आप ममता बनर्जी को कितना जानते हैं. उसका सारा जीवन गोली और बंदूक से लड़ते हुए गुज़ारा है.

प्रधानमंत्री मोदी की कोलकाता में रैली थी. दमदम में रैली करते हुए उन्होंने धार्मिक मुद्दा उठा दिया. अब चुनाव खत्म हो रहा है. चुनाव आयोग क्या संज्ञान लेगा. बंगाल का चुनाव है इसलिए घुसपैठिए की बात आ गई. फिर बीजेपी और प्रधानमंत्री को बताना चाहिए कि सिटिजन अमेंडमेंट बिल पास क्यों नहीं कराया. हालांकि इस बिल को लेकर सांप्रदायिक आधार पर नागरिकता की व्याख्या की आलोचना की गई थी मगर असम और पूर्वोतत्र में इस बिल के खिलाफ हुई हिंसा को देखते हुए सरकार ने इसे राज्य सभा से पास नहीं कराया. क्या एक समुदाय विशेष को टारगेट करने के लिए घुसपैठियों का मुद्दा बनाया जा रहा है. फिर भारत सरकार के गृह मत्रालय और असम सरकार को नेशनल रजिस्टर का काम पूरा न करने को लेकर फटकार क्यों सुननी पड़ी. सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बारे में इंटरनेट सर्च कीजिए. इस चुनाव में एक चुनाव चुनाव आयोग को लेकर भी हो रहा है. कोलाकाता में अमित शाह के रोड शो के दौरान हुई हिंसा के बाद चुनाव आयोग ने 9 सीटों के लिए प्रचार 20 घंटे पहले रोक दिया. झगड़ा बीजेपी और तृणमूल के बीच हुआ था लेकिन सज़ा कांग्रेस को भी मिली, सीपीएम को भी मिली और उन निर्दलीय उम्मीदवारों को भी मिली जिनका इस घटना से कोई लेना देना नहीं था. आखिर चुनाव आयोग ने सभी का प्रचार 20 घंटे पहले क्यों रोका.

बंगाल को लेकर बीजेपी भी चुनाव आयोग पर आरोप लगा रही है. बीजेपी का कहना है कि बंगाल के मामले में चुनाव आयोग निष्पक्ष नहीं है. बीजेपी को बताना चाहिए और चुनाव आयोग को भी कि उसकी सभाओं में धार्मिक नारे लगाने की अनुमति किसने दी. जय श्री राम का नारा क्या धार्मिक नारा नहीं था.

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अगर चुनाव आयोग है तो क्या चुनाव आयोग को नहीं बताना चाहिए कि अमित शाह का रोड शो धार्मिक रोड शो है या राजनीतिक रोड शो. क्या चुनाव के समय में धार्मिक झांकियों के साथ रोड शो निकालने की इजाज़त दी जा सकती है. क्या मुख्य चुनाव आयुक्त ने बंगाल के पर्यवेक्षक से पूछा कि किसकी अनुमति से ये धार्मिक यात्रा निकल रही थी.क्या अमित शाह के रोड शो का कोई और मकसद था. क्या इस तरह का रोड शो निकालने की अनुमति किसी और दल को दी जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि धार्मिक भावना और प्रतीकों का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए था. जब कोर्ट ने आयोग से पूछा था तब धार्मिक बयान देने के कारण आज़म खान और योगी आदित्यनाथ, मेनका गांधी पर प्रचार करने से रोक लगी थी. क्या आयोग भारत की जनता को एजुकेट कर सकता है बता सकता है कि ये धार्मिक रैली किसकी इजाज़त से निकल रही है. क्या सुप्रीम कोर्ट संज्ञान ले सकता है. बात है कि इस पर बात क्यों नहीं हो रही है. हम चुनाव में हैं या रामलीला मैदान में हैं.