क्या गन्ने का जूस बेचेंगे उत्तर प्रदेश के युवा?

पुलिस और निगमों के अधिकारी हर महीने 1000 से अधिक ऐंठ लेते हैं, अगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यह बंद करवा दें तो सारे जूस वाले उनके फैन हो जाएंगे

पकौड़ा तलना भी रोज़गार है. प्रधानमंत्री के इस कथन को राजनीतिक और सामाजिक तौर से बहुतों ने मज़ाक उड़ाया था. मगर 2019 के रिजल्ट ने मज़ाक उड़ाने वालों को नकार दिया. जो लोग अब भी इसका राजनीतिक और सामाजिक मज़ाक उड़ाते हैं उन्हें अपनी राय में संशोधन कर लेना चाहिए. शायद इसी जनसमर्थन से उत्साहित होकर उत्तर प्रदेश सरकार ने 23 जून को एक ट्वीट किया. इस ट्वीट में कहा गया है कि युवाओं को बड़ी संख्या में रोज़गार उपलब्ध कराने की दिशा में अग्रसर यूपी सरकार ने प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के ज़रिए ऋण मुहैया करवाकर नौजवानों को गन्ने के जूस के कारोबार से जोड़ने का फैसला लिया है.

पत्रिका अखबार में इस खबर की और भी कुछ डिटेल है. कहा गया है कि यूपी सरकार गन्ने के जूस के कारोबार के लिए बेरोज़गारों को 50 हज़ार से 15 लाख तक का मुद्रा लोन देगी. गन्ना विकास मंत्री सुरेश राणा ने कहा कि मुख्यमंत्री आदित्यनाथ चाहते हैं कि बेरोज़गार नौजवानों को गन्ना जूस के कारोबार से जोड़कर उन्हें रोज़गार देना है. चीनी मिलों से निकलने वाले गन्ने के जूस की देश विदेश में ब्रांडिंग की जाएगी. मंत्री ने कहा कि गांव में गन्ने के छोटे-छोटे आउटलेट खोलकर गन्ना रोज़गार को बढ़ावा दिया जाएगा और जूस को टेट्रापैक में भरकर देश-विदेश में बेचने की तैयारी की जा रही है. यह बयान हमने पत्रिका अखबार से लिया है. अखबार में यह ख़बर 24 जून को छपी है. इस खबर के बाद हमने गन्ना जूस बेचने वालों पर रिसर्च किया. हमें बहुत सारी अच्छी जानकारिया मिली हैं जो यूपी सरकार और बेरोज़गार नौजवानों और आपके काम आ सकती हैं.

गन्ने के जूस का एक ठेला 50 से 55 हज़ार में बन जाता है जिसके लिए प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत 50 हज़ार से 15 लाख के लोन की बात कही है. 15 लाख की ज़रूरत नहीं होगी अगर आप जूस के ठेले की चेन बनाना चाहते हैं या टेट्रा पैक में भर कर लंदन भेजना चाहते हैं तो ही ज़रूरत पड़ेगी. हम जो अपने मोहल्ले में जूस का ठेला देखते हैं. वह जनरेटर, डीज़ल की टंकी और जूस निकालने की मशीन के साथ 50-55 हज़ार में तैयार हो जाता है. प्लीज़ ठेले पर सलमान कटरीना या अक्षय कुमार दीपिका के पोस्टर लगाना न भूलें. तो हो गया आपका ठेला तैयार. एक गन्ने में दो ग्लास जूस निकल जाता है. छोटे ग्लास जूस दस रुपये में, मझोले ग्लास का जूस 20 रुपये में और बड़े वाले ग्लास में गन्ने का जूस 30 रुपये में आता है. साफ सफाई और ताम झाम जोड़ देंगे तो साउथ दिल्ली वालों को सौ रुपये ग्लास भी गन्ने का जूस पिला सकते हैं. बस उन्हें यह दिखना चाहिए कि ठेले की सफाई बोतल बंद या आरओ वाटर से हो रही है या नहीं. गन्ने के साथ नींबू पुदीना और सेंधा नमक, बर्फ भी लगता है. गन्ना एक क्विंटल 1300-1400 के भाव से खरीदता है. कुछ लोग मेरठ से भी गन्ना लाते हैं जहां 700-800 क्विंटल गन्ना मिलता है. कोई एक गन्ने से दो ग्लास जूस बनाता है तो कोई तीन ग्लास. यह इस पर निर्भर करता है कि किसकी मशीन गन्ने को किस हद तक चूसती है. गाज़ियाबाद के मोहननगर से गन्ने आप खरीद सकते हैं. इतना भाव तो चीनी मिलें गन्ने का नहीं देती हैं. यह जानकारी गन्ना किसानों के भी काम आ सकती है.


जब हम गन्ने के जूस पर रिसर्च करने लगे तो कई दिलचस्प जानकारियां मिलीं. यह भी कि गन्ने की खेती दुनिया में सबसे पहले भारत में ही हुई थी. भारत और ब्राज़ील दुनिया के दो बड़े गन्ना उत्पादक हैं. अगर आज के युवा गन्ने के जूस के कारोबार से जुड़ेंगे तो इसी के साथ भारत की एक दुखद जानकारी मिली कि गन्ने का जूस बेचने वालों से पुलिस और निगमों के अधिकारी हर महीने 1000 से अधिक ऐंठ लेते हैं वर्ना उनका ठेला तोड़ देते हैं. अगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यह बंद करवा दें तो सारे जूस वाले उनके फैन हो जाएंगे. मेरे तो होंगे ही क्योंकि टीवी पर सबसे पहले मैंने ही जूस वालों की संभावना पर रिसर्च के साथ विस्तार से चर्चा की है. क्या यह दुखद नहीं है कि कड़ी धूप में कड़ी मेहनत करने वालों से कोई महीने का एक हज़ार ऐंठ लेता है. कौन अपना ठेला कहां लगाएगा, यह सरकार कभी तय न करें. यह ठेले वाले के विवेक पर छोड़ दें बस वह पुलिस और निगमों को टाइट कर जूस बेचने वालों का एक हज़ार हर महीना बचा दे.

जो अच्छी जानकारी मिली वह यह कि दिल्ली, गाज़ियाबाद, ग्रेटर नोएडा, नोएडा, गुरुग्राम, फरीदाबाद में जूस बेचने वाले 90 फीसदी बहराईच के हैं. हमने कई जूस वालों से पूछा तो ज्यादातर बहराईच के ही निकले, वो भी कैसरगंज़ कस्बे के हैं. किसी ने कहा कि उनके गांव का हर कोई जूस ही बनाता बेचता है. हिसामपुर, प्यारेपुर, हुसैनपुर, सौ गहना, कंडैला, बहरोली और आदमपुर गांव के लोगों ने गुरुग्राम, दिल्ली, गाज़ियाबाद, फरीदाबाद, नोएडा और ग्रेटर नोएडा को जूस पिला कर तरोताज़ा किया हुआ है. इनमें हिन्दू भी हैं, मुसलमान भी हैं. कोई गन्ने का जूस बेच रहा हो तो कोई फलों के किसिम किसिम के जूस बेच रहा है. एक अनुमान के अनुसार बहराईच से कई हज़ार लोग जूस के कारोबार में हैं और इससे अपना काफी भला किया है. परिवार को पाला है, घर बनाया है और बच्चों की शादी की है. बहराईच के लोगों ने यही काम करके बड़ी कामयाबी हासिल की है. शानदार उपलब्धि है बहराईच वालों की. योगी आदित्यनाथ चाहें तो बहराईच ज़िले के जूस बेचने वालों के इस अनुभव का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. इन जूस वालों को इस योजना का नोडल अधिकारी बनाएं. वैसे तो इन जूस वालों ने किसी से ट्रेनिंग नहीं ली है लेकिन यूपी सरकार इनकी मदद लेकर युवाओं को ट्रेनिंग दिलवा सकती है. जो युवा तीन-तीन साल से परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं और सफल नहीं हो पा रहे हैं उन्हें भी सरकार इस तरह के रोज़गार से जुड़ने का प्रस्ताव दे सकती है. उन्हें जूस बेचने के लिए प्रेरित कर सकती है. राज्य सरकार युवाओं को बता सकती है कि गुलशन कुमार एक ज़माने में दरियागंज में जूस ही बेचा करते थे बाद में बड़े कारोबारी हो गए. पर क्या यह हैरानी की बात नहीं है कि बहराईच के लोग कैसे जूस के कारोबार से जुड़ते चले गए. आप भी जूस वाले से पता कीजिएगा कि क्या आप बहराईच के हैं, तो जवाब हां में ही मिलेगा. गन्ने का सीज़न जाएगा तो फिर आम और मोसम्बी का सीज़न आएगा. कुछ लोग गन्ने के सीज़न तक ही जूस बेचते हैं फिर गाड़ी चलाने लगाते हैं या दूसरा काम करने लगते हैं. जूस का ठेला किराये पर भी मिलता है.

कोई अपनी कमाई तो नहीं बताता लेकिन जूस वाले बहुत अच्छे हैं. कुछ लोगों से बात कर पता चला कि सारा खर्चा निकालकर महीने का 8 हज़ार से 15 हज़ार बचा लेते हैं. इन सभी से बात करने पर एक शब्द बार-बार सुनाई दिया कि काम सीखा मुल्तानी के यहां से. जब ये दिल्ली आते हैं तो विभाजन के बाद मुल्तान से आए लोगों के जूस कार्नर में रहकर काम सीखते हैं और फिर अपना ठेला बना लेते हैं. कई बार जो शब्द टीवी और अखबार में नहीं होते हैं वो रोज़ खास लोगों के छोटे से समूह में बोले जा रहे होते हैं. जूस की दुकान और जूस के ठेले दो अलग-अलग होते हैं. जूस की दुकान किनारे होगी तो कई बार नाम जूस सेंटर होता है और जब सेंटर में होती है तो नाम जूस कार्नर भी होता है. उम्मीद है यूपी के गन्ना मंत्री सुरेश राणा ने प्राइम टाइम जितना गन्ने पर रिसर्च किया होगा. नहीं किया होगा तो अब इसका इस्तेमाल कर लें. अगर कोई लोग जूस बेचने को लेकर मज़ाक उड़ा रहे हैं तो उनकी मर्जी, उन्हें याद करना चाहिए कि पकौड़े का मज़ाक उड़ाने पर कैसा करारा जवाब मिला. युवाओं को रोज़गार का वह आइडिया इतना बुरा नहीं लगा था.

हम जानते हैं कि फिर भी कुछ युवा जूस के नाम से ऐतराज़ करेंगे तो वह इस तरह की मशीनें खरीद सकते हैं, इंटरनेट पर तरह-तरह की जूस की मशीनें हैं. इन्हें खरीदने के लिए युवा लोग मुद्रा लोन की मदद ले सकते हैं. हमें शक्ति ब्रांड के बृजमोहन जी ने बताया कि साठ हज़ार की मशीन जीएसटी लगाकर करीब 70 हज़ार की होती है. यह मशीन दिल्ली के मंगोलपुरी में बनती है. इसे बड़े जूस की दुकानों में आपने देखा ही होगा. ठेले पर जो मशीन लगती है वो इसी तरह की होती है मगर 14-15 हज़ार की होती है जो पंजाब में बनती है. इंटरनेट पर कई प्रकार की आधुनिक मशीनें भी दिखीं जिसे युवा मुद्रा लोन के ज़रिए ले सकते हैं. ऐसी मशीनें स्टील की बनी होती हैं और फाइव स्टार होटल, शापिंग मॉल और कैटरिंग में खूब खप रही हैं. गन्ने का जूस वीआईपी आइटम है. जूस बार खुल रहे हैं. आजकल ई रिक्शा में भी गन्ने के जूस की मशीन फिट की जाने लगी है. ई रिक्शे वाली गन्ने की मशीन 54000 की है. किसी ने नहीं सोचा होगा कि ई रिक्शे का इतना इस्तेमाल होगा. ठेले को आम तौर पर रेहड़ी बोला जाता है. ई रिक्शा वाले ठेले को डीलक्स रेहड़ा बोला जा रहा है. इसमें दो कैटगरी हैं. डीलक्स रेहड़ा 52000 का है और सुप्रीम रेहड़ा 60,000 का है. यह चार पहिया जुगाड़ गन्ना मशीन है. फाइन टच मशीन के साथ आती है. काफी बड़ा ठेला है मगर आप इसे कार की तरह चला कर घर भी जा सकते हैं. अगर आप खरीदना चाहें तो नवंबर-दिसंबर में खरीदें तब यह मशीनें 10 परसेंट सस्ती मिल जाती हैं. आप युवा देखिए और प्रेरणा लीजिए. योगी सरकार को बधाई भी दीजिए. जूस के कारोबार को नए सिरे से समझने की ज़रूरत है. बहुत से लोग जूस निकाल रहे हैं और सम्मानित जीवन जी रहे हैं.

युवाओं के लिए इससे अच्छी बात क्या हो सकती है. एक रास्ता था मजाक उड़ाने का जो युवाओं को पसंद नहीं है, दूसरा रास्ता है संभावना तलाशने का जो मुझे पसंद हैं. इसलिए मैंने व्यंग्य नहीं किया क्योंकि व्यंग्य को समझना सबके बस की बात भी नहीं है. अब आप देखिए एक छोटे से बयान पर रिसर्च करते हुए कितनी जानकारियां आ गईं. इतनी तो यूपी सरकार ने भी युवाओं को नहीं बताईं.  मां-बाप भी अपने बच्चों को गन्ने के जूस के कारोबार के लिए प्रेरित कर सकते हैं. फिर से याद दिला दूं कि जिन लोगों ने पकौड़ा तलने को रोज़गार वाले बयान का माखौल उड़ाया था उन्हें बुरी हार का सामना करना पड़ा है. उन्हें नौजवानों ने ही रिजेक्ट किया है. तो अब कम से कम गन्ने के जूस का मजाक न उड़ाएं. विचार बदलिए. 2018 में योगी आदित्यनाथ का ही बयान था कि गन्ना किसान गन्ना न उगाएं इससे डायबिटीज़ होती है. किसान किसी और  फसल को उगाने पर विचार करें. देखिए 2019 में गन्ने के जूस से रोज़गार देने की बात कर रहे हैं.

अलीगढ़ में सीमा टाकीज़ के पास कचौड़ी की इस दुकान की खूब चर्चा है. वाणिज्य कर विभाग की टीम ने जब जांच की तो पता चला कि कचौड़ी के इस छोटे से दुकानदार का सालाना टर्नओवर 60 लाख से अधिक का है. वाणिज्य कर विभाग को लगता है कि टर्नओवर एक करोड़ से भी अधिक हो सकता है. दो पीस कचौड़ी 25-30 रुपये की बिकती है. हमारे सहयोगी अदनान ने बताया कि दुकानदार ने जीएसटी का पंजीकरण नहीं कराया है. कचौड़ी बेचने वाले दुकानदार मुकेश को नोटिस जारी किया गया है. अलीगढ़ में कचौड़ी बेचने वाले खूब हैं. वाणिज्य कर विभाग अलीगढ़ में कचौड़ी वालों की जांच कर रहे हैं. पकौड़ा बेचे या कचौड़ी, गर अच्छी कमाई हो रही है तो उन्हें जीएसटी में पंजीकरण कराना चाहिए. टैक्स देना चाहिए. इतना राष्ट्रवाद तो होना ही चाहिए. अगर राजनीतिक दबाव न हो तो वाणिज्यकर विभाग का काम बहुत अच्छा है. यह उदाहरण उन लोगों को जवाब है कि कचौड़ी और पकौड़ी बेचने से कमाई नहीं होती है. अगर आपको भी लगता है कि कोई चाट वाला टिक्की वाला या जलेबी वाला इस तरह खूब कमा रहा है, और जीएसटी नहीं दे रहा है, टैक्स नहीं दे रहा है तो वाणिज्य कर विभाग को शिकायत करें. यह अच्छा आइडिया है.

rage यानि गुस्सा. किसी बात पर फट पड़े और इस हद तक किसी को मारने लगे कि वह मर ही जाए. आम तौर पर कारों की टक्कर में रेज की बात सामने आती है लेकिन कई बार मामूली झगड़े पर भी ऐसा गुस्सा भड़क उठता है और मामला जानलेवा हो जाता है. कई बार क्रिकेट के खेल में झगड़ा हुआ और एक ने दूसरे की जान ले ली. रेज यानि गुस्सा सिर्फ गुस्सा नहीं होता है. कई बार धर्म जाति और अन्य कारणों से भी यह गुस्सा बड़ा हो जाता है. ऐसी घटनाएं रोज़ हमारे सामने आ रही हैं. इनका इलाज ज़रूरी है. सख्त कानून से और मेडिकल तरीके से. कल आपने देखा कि कैसे तबरेज़ को मार दिया गया. उसे जय श्री राम बोलने के लिए मजबूर किया गया. उसके नाम की वजह से लोगों का गुस्सा बढ़ गया. आज की कहानी बुलंदशहर की है. इस कहानी का एंगल अलग है मगर कारण वही है. रेज यानि गुस्सा.

नेशनल हाइवे 91 पर एक परिवार के साथ गांव वाले धरना दे रहे हैं. धरना सुबह के वक्त का है जो अब नहीं है. ये लोग नया गांव चांदपुर के हैं. अनुसूचित जाति के हैं. इनका कहना है कि गांव के दबंग नकुल ने उनकी बेटी को छेड़ने की कोशिश की, अपनी कार में बैठने के लिए कहा. लड़की ने जब विरोध किया और भला बुरा कहा तो नकुल के दोस्तों को बुरा लगा. झगड़ा सुनकर पीड़िता का रिश्तेदार मौके पर आ गया और उन्होंने नकुल को दो थप्पड़ लगा दिए. नकुल गांव के प्रभावशाली परिवार का लड़का है और ठाकुर है. उसके बाद नकुल अपने दोस्तों के साथ कार में आया और उसने परिवार के लोगों को कुचल दिया. इसके कारण पीड़िता की मां और चाची की मौके पर मौत हो गई. एक भाई और मौसा गंभीर रूप से घायल हो गए. बुलंदशहर से हमारे सहयोगी मनीष शर्मा ने बताया कि जब पुलिस ने इस घटना को एक्सीडेंट बताया तब इसके विरोध में परिवार वालों ने रास्ता जाम कर दिया. पुलिस का कहना है कि परिवारवालों ने ही तहरीर लिखाई थी कि एक्सिडेंट है. पुलिस ने मुख्य आरोपी नकुल को गिरफ्तार कर लिया है. उस पर छेड़छाड़, गैर इरादतन हत्या और एससी-एसटी एक्ट की धाराएं लगाई गईं हैं. यह मामला भी रफा दफा ही हो जाता है. गनीमत है कि एक सीसीटीवी से सब पता चल गया. इसमें साफ दिख रहा है कि एक कार तेज गति से आती है और कुछ लोगों को उड़ाते हुए चली जाती है. इसी वीडियो के आधार पर नकुल को पकड़ा गया है.

पुलिस का कहना है कि आरोपी नकुल शराब के नशे में था. पुलिस ने पहले कहा कि छेड़छाड़ नहीं थी, अब पुलिस ने आरोपी को गिरफ़्तार कर लिया है. इस तरह का गुस्सा हवा में पैदा नहीं होता है. कई बार कहासुनी से किसी बात से भी पैदा होता है मगर कई बार जातिगत और धार्मिक कारणों से भी भड़कता है. इस मनोरोग का ठीक से इलाज हुआ नहीं लिहाज़ा आए दिन यह किसी न किसी रूप में किसी की जान लेता रहता है. नफरत और गुस्से से इसीलिए सावधान रहना चाहिए. जाति और धर्म को लेकर हिंसा बीमारी की हद तक फैल गई है. यह राजनीतिक बीमारी भी है और सामाजिक बीमारी भी है.

अब इस युवक की पिटाई क्यों हो रही है. पीटने वाले कौन हैं. जिसकी पिटाई हो रही है वह अनुसूचित जाति का है. इस युवक ने खेत में काम करने और पशुओं को पानी पिलाने से मना कर दिया तो दबंग जाति के युवकों ने इसे मारना शुरू कर दिया. मारने वालों का नाम जितेंद्र और मोहित है. आप देखिए कि हम किस समाज में रह रहे हैं. आप इसी में तबरेज़ को भी देख सकते हैं, इसी में भरत यादव को भी देख सकते हैं. 19 साल का यह लड़का किसी फैक्ट्री में काम करता था. गांव आया था तो इसे खेतों में काम करने के लिए कहा गया. देखिए किस तरह से मारा जा रहा है. यह सिर्फ गुस्सा नहीं है, इसमें जाति भी है. चार घंटे तक उसे कब्ज़े में रखा गया. घटना एक महीने पहले की है. सोचिए मारने वाले वीडियो भी बना रहे थे. अब जाकर यह वीडियो सामने आया है. आरोपी फरार हैं. एफआईआर दर्ज हो गई है. सोचिए जब यह युवक मारा जा रहा होगा तो किसे याद कर रहा होगा. मारने वालों को क्या संवैधानिक व्यवस्था का कोई डर नहीं रहा होगा. डर होता तो कानून हाथ में नहीं लेते. सोचिए मार खाने वाले युवक के मन पर कितनी गहरी छाप पड़ी होगी. यह सिर्फ शारीरिक चोट नहीं है, मानसिक चोट भी है. रोज़ इस तरह की घटनाएं सामने आती जा रही हैं. यह घटना हरियाणा के सोनीपत ज़िले की है.

किसी से इतनी उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि चोरी हुई साइकिल दिलाने का भार मुझ पर डाला जाने लगे जो साइकिल चोरी हुई है वो हर्क्यूलिस साइकिल है. दिनेश शर्मा जी चंडीगढ़ की छोटी सी दुकान से इसे खरीद लाए थे. 2018 की साइकिल है. बताइए बिल्कुल नई वो भी एसयूवी कार से एक साइकिल चोरी होती है. उसे दिलाने की अपील मुझसे की जाती है. व्हाट्सऐप पर मैसेज देखने के बाद मैंने जवाब लिखा कि जी हम बिल्कुल मदद नहीं करेंगे. साइकिल चोरी और जेब काटने की कहानी कहने की योग्यता मुझमें नहीं है. आप पुलिस से संपर्क करें. इस पर शर्मा जी ने लिखित डांट लगाई और लिखा कि ये स्टोरी नहीं है, शेम शेम. फिर मुझे शर्म आ गई और मैंने अपनी गलती सुधार ली.

एसयूवी वाले भाई साहब अगर आप प्राइम टाइम देख रहे हैं तो प्लीज़ शर्मा जी की साइकिल लौटा दें. ऐसा कर आप देश के पर्यावरण में योगदान भी करेंगे. कई बार लोग मुझे पड़ोसी के झगड़े में भी मेसेज कर देते हैं कि प्राइम टाइम पर दिखाइए. बहुत से लोग ज़मीन कब्ज़ा हो जाने के मामले में भी पत्र लिखते हैं, हम उनसे सहानुभूति रखते हैं. अवैध खनन की तो खूब तस्वीरें आती हैं. बालू माफिया लगता है खूब मौज कर रहा है. लोग चाहते हैं कि मैं बालू माफिया पर लगाम लगा दूं. निवेदन है कि यह प्राइम टाइम है, थाना नहीं है. हमने आठ साल पहले नहीं सोचा था कि आगे चलकर प्राइम टाइम इतना उपयोगी हो जाएगा. शुक्रिया दिनेश शर्मा जी का, उनकी डांट के कारण पहली बार दुनिया के इतिहास में प्राइम टाइम पर साइकिल चोरी की घटना कवर हुई है. आप दर्शकों की सक्रियता न्यूज़ चैनलों को बदल सकती है. ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है. ज़रा उन चैनलों को भी बदलें जो बदलते ही नहीं है. इसे मेरा पत्र समझिए. आपका अपना रवीश कुमार.

अब आते हैं जल सकंट पर. बारिश शुरू होते ही इस संकट पर बात खत्म हो जाएगी मगर यह संकट तब भी रहता है. हाथरस के एक सज्जन हैं. वो काफी अच्छे हैं. उन्होंने न सिर्फ अपनी समस्या का मेसेज हमें भेजा बल्कि अपनी बाइक लेकर उस समस्या पर रिपोर्टिंग भी की. जब से चैनलों ने जनता की परेशानी कवर करना बंद कर दिया और फालतू विषयों पर डिबेट करना शुरू किया है तब से दर्शक टू इन वन हो गया हैं. वो देख भी रहा है और रिपोर्टिंग भी कर रहा है. टीवी पर नहीं आता है तो व्हाट्सऐप में दोस्तों को मेसेज करता है. तब भी कुछ नहीं होता है तो आजकल टिक टॉक करने लगता है. हाथरस के चंदपाल सिंह नंगला मैया गांव के रहने वाले हैं. इनके गांव में खारे पानी की समस्या विकराल हो गई है. नल में जल तो आता है मगर पानी इतना खारा है कि पीने लायक नहीं है. यहां के लोग दूसरे गांव पानी लाने के लिए जाते हैं. स्थानीय अखबारों में कई दिनों से छप भी रहा है कि गांव के लोग पानी की समस्या से त्रस्त हैं. चुनाव में भी इन्होंने जल नहीं तो वोट नहीं का नारा दिया था मगर अंत में सब वोट दे आए, जल नहीं आया. चंदपाल सिंह प्रधानमंत्री को पत्र लिख चुके हैं. उनका कहना है कि तब तक पत्र लिखते रहेंगे जब तक प्रधानमंत्री नहीं सुनेंगे. अच्छा है प्रधानमंत्री का मेरी तरह नंबर पब्लिक नहीं हुआ है वर्ना लोग उन्हें भी साइकिल चोरी के लिए मेसेज कर देते कि आपके राज में यह सब हो रहा है. लेकिन यह खबर बता रही है कि स्थानीय प्रशासन किस तरह अपना काम नहीं कर रहा है. एक मामूली समस्या के लिए किसी को प्रधानमंत्री तक को पत्र लिखना पड़ रहा है. प्रशासन ने दौरा तो किया है लेकिन पानी की समस्या का समाधान जल्दी होना चाहिए.

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चंदपाल सिंह ने अपनी बाइक से उस रास्ते को कवर किया है और बताया है कि कैसे वे इतनी लंबी दूरी तय कर पानी लाने जाते हैं. गांव के लोगों का जीवन पानी लाने में ही बीत रहा है. काश प्राइम टाइम के कारण इस गांव में पानी आ जाता. टीवी के एंकर भी एक ही बात को बार-बार बोलते रहते हैं चंदपाल सिंह भी अपनी बात को रिपीट कर रहे हैं लेकिन आप उन एंकरों को प्यार से देखते ही हैं तो गुज़ारिश करूंगा कि आप चंदपाल सिंह की रिपोर्टिंग की भी प्यार से देखें. पानी आएगा.