कुछ घटनाएं हमारे सिस्टम की परतें उड़ा देती हैं, जिस सिस्टम के बारे में हम नेताओं के स्लोगन सुनकर निश्चिंत हो जाते हैं, एक बार उसके करीब जाकर देखियेगा, किस किस स्तर पर आम जन के साथ सिस्टम के भीतर बैठे लोग क्या करते हैं. किस तरह उसकी असुरक्षा या लाचारी का लाभ उठाकर उसे नोचते हैं. आप तभी तक सुरक्षित हैं जब तक आप सिस्टम से दूर हैं. राज्य कोई भी है, आप किसी से भी पूछ लीजिए जिसका कोई पुलिस थाने गया हो, कोर्ट गया है, नेताओं के पास गया हो. इस हकीकत को जान लेंगे तो फिर जयगान करने से पहले दो बार सोचेंगे. मोबाइल फोन पर ऐप बना देने से सिस्टम ठीक नहीं होता है. सिस्टम के भीतर जो लोग बैठे हैं, उनकी जीवन दृष्टि ही अलग होती है. वो एक ऐसे तंत्र से जुड़े होते हैं जहां हर कोई अपना हिस्सा आपसे मांग रहा होता है. आप बर्बाद हो जाते हैं और आपकी बर्बादी से तंत्र के भीतर बैठा हर स्तर का अधिकारी आबाद हो जाता है.
अगर कोई कहता है कि उसने यह बदल दिया है तो वह पिछले दस हज़ार साल का सबसे बड़ा झूठ है. वरना एक सीनियर आईएएस अफसर को यह नहीं कहना पड़ता कि हमारी मंशा है कि अपराधियों को सज़ा मिले. उनके परिवारों और रिश्तेदारों को नुकसान पहुंचाने की हमारी कोई इच्छा नहीं है. मैं जानता हूं कि ये एक आसान संघर्ष होने नहीं जा रहा. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि हमें परेशान किए जाने, हमारे पीछे पड़ने, हमें धमकी देने और शारीरिक नुकसान पहुंचाने की आशंका है. रसूख वाले परिवार कई बार शिकायतकर्ताओं को नाकाम करने के लिए उन्हें बदनाम करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं. हो सकता है हम अति साहसिक हो रहे हों. समझदार दोस्त हमें आगे की कार्रवाई के बारे में सुझाव दे सकते हैं.
आप सोचिये एक आईएएस अफसर को जिसने इस सिस्टम के भीतर अपनी ज़िंदगी के कई साल गुज़ारे, जिसे ठीक करने के उसने सपने देखे, उन्हें यह बात लिखनी पड़ी. अपनी बेटी के लिए जैसे ही एक बाप सिस्टम के सामने खड़ा होता है, वो वैसे ही निहत्था लाचार हो जाता है जैसे हम और आप. शुक्र मनाइये कि वीरेंद्र कुंडू अपनी बेटी के लिए हर हाल में खड़े होना चाहते हैं. हम उम्मीद करते हैं कि उस सिस्टम में बैठे दूसरे आईएएस अफसरान भी उनका साथ देंगे. वो भी आगे आएंगे और राजनीतिक निष्ठा के लिए अपनी आवाज़ गंवा चुके वो अफसर भी वीरेंद्र की बेटी के लिए बोलेंगे.
आप जानते हैं कि शुक्रवार रात जब वीरेंद्र कुंडू की बेटी चंडीगढ़ के सेक्टर सात से अपने घर के लिए निकलीं तो सफेद टाटा सफारी पीछा करने लगती है. वर्णिका ने आरोप लगाया है कि टाटा सफारी ने उसकी कार का लंबे समय तक पीछा किया. एक जगह उनकी कार के सामने अपनी कार खड़ी कर दी और रास्ता ब्लॉक कर दिया. कार से उतकर विकास बराला का दोस्त आशीष आता है और वर्णिका की कार की खिड़की पर ज़ोर से मारता है. दरवाज़ा खोलने के लिए कहता है. वर्णिका ने अपनी कार पीछे ली और दूसरे रास्ते से भागी. उसके हाथ पांव ठंडे हो गए थे. पुलिस से शिकायत करती है और पुलिस आती भी है. पुलिस ने खुद देखा और लड़कों को पकड़ कर थाने ले आई. दोनों लड़के नशे में थे. बाद में पता चला कि लड़की एक आईएएस अफसर की बेटी है और लड़कों में एक हरियाणा बीजेपी अध्यक्ष का बेटा है.
यहीं से सबकुछ बदल जाता है. अपनी बेटी के लिए लड़ने आया एक पिता फेसबुक पर लिखने का फैसला करता है. शायद वो जान गया है कि क्या पता गोदी मीडिया के इस काल में कोई मीडिया भी न आए. इसलिए पिता वीरेंद्र कुंडू फेसबुक पर लिखते हैं...
'दो बेटियों का पिता होने के नाते मैं ये अपनी ज़िम्मेदारी समझता हूं कि इस मामले को इसकी तार्किक परिणति तक पहुंचाया जाए. गुंडों को हर हाल में सज़ा मिलनी चाहिए और क़ानून को अपना काम करना चाहिए. ये गुंडे प्रभावशाली परिवारों से हैं. हम सब जानते हैं कि ऐसे अधिकतर मामलों में दोषियों को सज़ा नहीं होती और कई मामलों में तो रिपोर्ट तक नहीं होती. अधिकतर लोग प्रभावशाली परिवारों के ऐसे गुंडों का सामना करने से बचते हैं. मुझे लगता है कि अगर हम जैसे कुछ विशेषाधिकार वाले लोग भी ऐसे अपराधियों के सामने नहीं खड़े होंगे तो भारत में कोई खड़ा नहीं हो पाएगा. इससे भी ज़्यादा अगर मैं इस मामले में पूरी तरह अपनी बेटी के साथ खड़ा नहीं होऊंगा तो उसका पिता होने के अपने फ़र्ज़ में नाकाम रहूंगा. मैं दो वजहों से ये मामला आपके साथ साझा कर रहा हूं. एक तो जो हुआ उसकी साफ़ और सच्ची तस्वीर देने के लिए और दूसरा अगर ज़रूरत पड़ी तो आपके समर्थन के कुछ आश्वासन के लिए.'
आईएएस अफसरों का एक एसोसिएसन भी है. इसने ट्वीट कर खानापूर्ति कर दी है. सहारनपुर में जब एसएसपी के घर राजनीतिक भीड़ घुस आई, और काफी देर तक एसएसपी का परिवार असुरक्षित महसूस करने लगा तब आईपीएस एसोसिएशन को प्रतिक्रिया देने में कई घंटे लग गए. शायद वहां यह फैसला हो रहा होगा कि हम राजनीतिक वफादारी दिखाएं या फिर अपने पेशे के प्रति वफादारी दिखाएं. उन्हें भी पता है कि अब कुछ बदलना नहीं है. क्यों भावुकता में प्रतिक्रिया दें, इससे अच्छा है अपनी राजनीतिक वफादारी के साथ रहें. कुछ तो है कि सिस्टम न तो भीतर वालों के लिए है या न बाहर वालों के लिए है. सिस्टम में भी सब उन्हीं के लिए है जो सत्ता के साथ हैं. हमारी नौकरशाही पिछले कई दशकों में सड़ती रही है. अब वह इतनी सड़ गई है कि दीवार से काई दरक कर गिर रही है.
आईएएस वीरेंद्र कुमार ने अपनी बेटी का साथ देने का फैसला किया है. आरोपी बेटे के साथ आईएएस वीरेंद्र कुमार से ज्यादा लोग हैं. मीडिया ट्रायल से बचना चाहिए. लेकिन सिस्टम का मीडिया ट्रायल तो होना ही चाहिए. आप नहीं जानते, एक बार किसी मुकदमे में उलझिये, पता चलेगा कि किस किस मेज़ पर आपकी गर्दन दबोची जाती है. इसीलिए किसी को ऐलान करना पड़ता है कि वह लड़ेगा. जैसे ही वह कहता है कि वह लड़ेगा, हर हाल में लड़ेगा इस मतलब यही है कि वो जानता है कि यह सिस्टम उसे तोड़ने की हद तक पहुंचा देगा, फिर भी लड़ेगा. इस ऐलान की अपनी कीमत है. वकीलों की फीस, तारीखों का इंतज़ार. इंसाफ और न्याय पर भरोसा सिर्फ बात नहीं है, लागत है. इस भरोसे को जीतने के लिए पैसा लगता है. आप किसी भी अदालत के बाहर जाकर इस भरोसे को जीतने आए लोगों से मिलिये. आप भी ऐलान करने लगेंगे कि चाहे जो हो जाए, मैं सत्य के लिए लड़ूंगा.
हमारे सहयोगी चैनल से हरियाणा बीजेपी के उपाध्यक्ष ने बात करते हुए जो कहा वो भी सुना जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि सरकार हर नागरिक को सुरक्षा नहीं दे सकती. हम और आप अभी तक इसी भरम में थे कि सरकार हर नागरिक को सुरक्षा देने का वादा करती है लेकिन यह भी भरम टूट गया कि सरकार हर नागरिक को सुरक्षा नहीं दे सकती है. अब यह सवाल पूछने का मौका नहीं मिला कि जब हर नागरिक को सुरक्षा नहीं दे सकती तो क्या कुछ चुनिंदा नागरिकों के लिए यह सुरक्षा व्यवस्था है, क्या आम लोगों के लिए है, राजनीतिक लोगों के लिए है या प्रशासन के लोगों के लिए सुरक्षा है. दूसरी बात उन्होंने कही है कि मां बाप अपने बच्चों का ख़्याल रखें, उन्हें रात में घूमने फिरने नहीं देना चाहिए. बच्चे समय से घर आ जाएं, रात में घूमने से क्या फायदा. इस बात पर एक फैसला हो ही जाए. रात होते ही पूरे भारत को बंद कर देना चाहिए. कोई शाम के बाद घर से ही न निकले. आगे आप उनका बयान सुन लीजिए.
हरियाणा बीजेपी के उपाध्यक्ष रामवीर जी ने कहा है कि चंडीगढ़ पुलिस दबाव में नहीं आएगी. हिमाचल की घटना का कितनी बार ज़िक्र है इनके बयान में. ठीक भी है लेकिन यही राजनीति है. मुख्यमत्री खट्टर ने कहा है कि कानून अपना काम करेगा. पुत्र की गलती की सज़ा पिता को क्यों मिलनी चाहिए. पिता से इस्तीफा मांगने वाले भी सिस्टम का हाल जानते हैं. उन्हें पता है कि इस मामले में इंसाफ मिलते मिलते साल गुज़र जाएंगे इसलिए विरोधी की राजनीति भी वही है जो सत्ता पक्ष की राजनीति है. इसीलिए इस्तीफे पर ज़ोर है. ताकि राजनीतिक दल अपना विक्ट्री कप लेकर चलते बनें और लड़की और उसके पिता उसी चौराहे पर खड़े रहेंगे.