सोचा आपको चिट्ठी लिखी जाए। मुझे पता है ख़त लिखने के मामले में मैं आपका मुकाबला नहीं कर पाऊंगा। 'आपके प्रति घटता हुआ सम्मान आज समाप्त हो जाता है।' अंग्रेज़ी में आपके वाक्य का हिन्दी तर्जुमा जम तो नहीं रहा पर काश आपकी तरह लिखने का फ़न हासिल होता। बेशक आप प्रतिभाशाली हैं मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी को लिखे ख़त से लगता है कि आप मोहब्बत भी कर सकते हैं। आपका दिल टूट गया है। एक टूटे हुए आशिक की तरह आपने उचित ही व्यवहार किया है। वकालत के लिए देश दुनिया में शोहरत हासिल करने वाला 91 साल की उम्र में वैसे ही टूट जाता है जैसे 17 साल की उम्र में कोई आशिक।
17 साल की उम्र में ही आपने कराची के कॉलेज से वकालत की डिग्री ले ली थी, सोचिये आज के दौर में हासिल की होती तो क्या पता आप भी जितेंद्र सिंह तोमर की तरह किसी फ़ैज़ाबाद या मलीहाबाद के लिए ले जाए जा रहे होते। किसकी मजाल कि राम की ऐसी हालत कर दे। मालूम नहीं कि आपने राजीव गांधी से पहले किसी को चिट्ठी लिखी या नहीं, लेकिन इसी कारण मैं आपके बारे में जान पाया। ज़ाहिर है तब बहुत छोटा रहा होगा। जब टीवी पर देखा कि पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के घर के बाहर कुछ लोगों ने आपके साथ हाथापाई की, तब बहुत गुस्सा आया था। पर आपको नहीं आया।
इतिहास जब पढ़ेगा तो देखेगा कि आपने धारा के ख़िलाफ़ जाकर दो-दो प्रधानमंत्रियों की हत्या के आरोपियों का केस लड़ा। यह वाकई एक साहसिक कदम था। आज कई वकील तो आतंकवाद के आरोपियों को केस नहीं लड़ने जाते, बल्कि जो जाता है उसकी भी पिटाई कर देते हैं। आपके बारे में इतिहास यह भी देखेगा कि वही जेठमलानी आगे चलकर जेसिका लाल मर्डर केस में मनु शर्मा की वकालत करते हैं। शेयर बाज़ार में हुए घोटाले के आरोपी हर्षद मेहता, डान हाजी मस्तान, कांग्रेस नेता अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी का केस लड़ते हैं। सोहराबुद्दीन केस में अमित शाह का बचाव किया। 2-जी केस में कणिमोई का मुकदमा लड़ा। लालू प्रसाद यादव का मुकदमा लड़ा।
इस बायोडेटा को पढ़ते हुए अगर किसी इतिहासकार ने लिखा कि बाद में जेठमलानी की छवि ऐसी बन गई कि वे किसी भी केस से बड़े लोगों को बचा सकते हैं। मैंने यह सारी जानकारी विकीपीडिया से ली है। ज़ाहिर है आपने गिनती के मुकदमे तो लड़े ही नहीं पर विकीपीडिया में होना चाहिए था कि राम जैसे वकील ने कितने ग़रीब और कमज़ोर लोगों का भी मुकदमा लड़ा और उन्हें इंसाफ़ दिलाया। मुझे यकीन है कि आपने ग़रीबों मज़लूमों का भी केस लड़ा ही होगा।
इसमें कोई दो राय नहीं कि मैं आपकी अंग्रेज़ी और वकालत का क़ायल रहा हूं। मुझे अंग्रेज़ी पसंद नहीं, लेकिन अच्छी अंग्रेज़ी पसंद है। वकालत की पढ़ाई करने वाले दोस्तों से कहा करता था कि यार वकील बनना तो नानी पालखीवाला या राम जेठमलानी की तरह। वह भी क्या दौर रहा होगा, जब आपातकाल के ख़िलाफ़ आप लड़ा करते थे। आपके ख़िलाफ़ मुकदमा हुआ तो पालखीवाला और 300 वकीलों ने आपका केस लड़ा। लगता था कि देश मे वकीलों की कोई पहचान है तो वह राम जेठमलानी है। आपके असर के कारण कई वकीलों का सम्मान नहीं कर सका क्योंकि मुझे उनमें राम जेठमलानी नहीं दिखा। फिल्मों में तो कोई भी काला चोंगा पहनकर मेरे क़ाबिल दोस्त, क़ाबिल दोस्त बोलने लग जाता है, लेकिन असली ज़िंदगी में राम की जगह कोई और नहीं ले सका।
कांग्रेस के विरोध ने आपको स्वाभाविक रूप से ग़ैर कांग्रेस पाले की तरफ़ धकेले रखा। बहुत दिनों तक आपने चिट्ठी लेखन बंद कर दिया। जिस वाजपेयी ने आपको मंत्री बनाया, उन्हीं के ख़िलाफ़ 2004 में चुनाव लड़ने चले गए। बीजेपी छोड़ दी तो बीजेपी में आ गए। 2012 में आपने ही तो तब के बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी को खत लिख दिया कि बीजेपी यूपीए के भ्रष्टाचार पर चुप क्यों हैं। आप निकाल दिए गए। अभी तक अंदर नहीं आ सके। इसके बावजूद आपकी प्रीति प्रधानमंत्री मोदी से बनी रही। दो व्यक्ति की इस प्रीति में क्या हुआ कोई नहीं जानता। ख़त का जवाब तो कभी आएगा नहीं इसलिए कुछ कहना मुश्किल है।
दरअसल राजनीतिक भ्रष्टाचार के मामले में आप दल देखकर बोलते हैं और फिर उन्हीं दलों के नेताओं के केस भी लड़ते हैं। कई बार क्यों लगता है कि आपका बोलना किसी ख़ास मौके के हिसाब से होता है। आप प्रशांत भूषण भी नहीं है, वैसे मुझे नहीं पता कि प्रशांत ने कभी घोटालेबाज़ों और हथकंडे करने वाले लोगों का केस लड़ा है या नहीं, मगर कणिमोई, लालू और जयललिता का केस लड़ते हुए भी आप प्रधानमंत्री में यकीन बनाए रखते हैं कि वे भ्रष्टाचार के लिए कुछ करें, इसकी सराहना की जानी चाहिए। आपने एतराज़ किया कि जो केंद्रीय सतर्कता आयुक्त नियुक्त हुए हैं उनका रिकॉर्ड दाग़दार है। कौन जाने आप उन्हीं चौधरी साहब का केस लड़ते हुए नज़र आ जाएं।
दरअसल राम आपकी प्रतिभा भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ने वालों के कभी काम नहीं आ सकी। उनके ही काम आई जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। राजनीतिक समीकरणों के बाहर आप खुद को कभी देख नहीं पाए। आपने वकालत से राजनीति को साधा, राजनीति ने कई और वकील खड़े कर लिए। आप क़ाबिल वकील तो हैं मगर क्रूसेडर नहीं हैं। चतुराई आपकी पहचान हो गई है। मुझे संतोष है कि आपको इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता। कम से कम मीडिया में राम बेबाक ही बोलते हैं। दरअसल आप हमेशा बेबाक नहीं होते। तब बेबाक होते हैं जब वही राजनीति अवाक कर देती है जिस पर आप जैसा मासूम भरोसा करने लगता है। इसके बावजूद आपकी आवाज़ में खनक और ठनक मुझे काफी प्रभावित करती है। रौब से आप बोलते हैं। रौब के सामने आप नहीं भी बोलते हैं।
91 साल की उम्र में भी आपका बेहतर स्वास्थ्य देश में कानून की पढ़ाई करने वाले लाखों छात्रों के लिए प्रेरणा का काम करेगा। वे समझ सकेंगे कि प्रतिभा का जेठमलानीय उपयोग से शोहरत, साधन और सत्ता सब हासिल किया जा सकता है। मैं शुक्रगुज़ार हूं कि आप चिट्ठी लिखते हैं। यह चिट्ठी ही वो स्पेस हैं जहां मेरे पसंदीदा राम दिख जाते हैं। एक गुज़ारिश है कि आप एक चिट्ठी उस राम जेठमलानी को भी लिखिए जो अपने जेठमलानी होने और न हो पाने का राज़ जानता है। दोनों के कश्मकश को आसानी से जी लेता है। यह भी लिखिएगा कि राम जेठमलानी कुछ मुद्दों पर बोल देते या मुकदमा लड़ लिए होते तो देश की राजनीति का इतिहास क्या होता। कुछ लोगों का मुकदमा लड़ने से मना कर देते तो आज देश की राजनीति कहां होती।
2004 में जब आप लखनऊ से वाजपेयी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ रहे थे, तो एक बेकार से मकान की पहली मंज़िल पर मैंने आपका इंटरव्यू किया था। मेरी आख़िरी पंक्ति पर आप मुस्कुरा कर रह गए थे। 'शुक्रिया रामजेठमलानी। आपने वकालत में जो कमाया, सियासत में गंवा दिया।' मुझे आपकी न हंसने सी वह हंसी आज भी याद है। मैं आज भी नए छात्रों से कहूंगा कि वकील बनना तो राम जेठमलानी जैसा मगर वकालत उनके जैसा मत करना।
आपका,
रवीश कुमार