यह ख़बर 17 दिसंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

ऋचा जैन की कलम से : कहीं 'टू लिटल टू लेट' न साबित हो पाकिस्तान की सख्ती

पेशावर के आर्मी स्कूल का ऑडिटोरियम

नई दिल्ली:

मासूम स्कूली बच्चों पर हुए वहशियाना हमले के जवाब में पाकिस्तान ने आतंकियों को फांसी की सज़ा देने का रास्ता खोल दिया है। पाकिस्तान सरकार कड़े कदम उठाकर आतंकियों से सख्ती से पेश आने के संकेत दे रही है, और वर्ष 2008 से फांसी पर लगी रोक को हटाते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ ने साफ कर दिया है कि फांसी की सज़ा पाए कैदियों को सूली पर लटकाने के ब्लैक वॉरंट एक-दो दिन में जारी होंगे। सजायाफ्ता 800 आतंकियों को सूली पर लटकाने का रास्ता आने वाले दिनों में इससे साफ हो सकता है।

यह ऐलान प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ ने बुधवार को सभी राजनीतिक दलों की बैठक में किया, जिसमें पीएमएल-एन, पीटीआई,पीपीपी, एएनपी और एमक्यूएम जैसे दलों के साथ साथ जमात-ए-इस्लामी भी शामिल हुई। फांसी पर लगी रोक हटाने के साथ-साथ आतंक से जुड़े मामलों के जल्द निपटारे की भी बात नवाज़ शरीफ ने रखी।

लेकिन खुद मरने-मारने पर उतारू तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान पर क्या इसका कोई असर होगा। आतंक की जड़ें पाकिस्तान में इतनी गहरी हो चुकी हैं कि ऐसे कदमों से आत्मघाती हमलावरों के हौसले पस्त नहीं होंगे। उन्हें पस्त और खत्म करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति चाहिए। शरीफ ने आज खुद माना कि एक नहीं, उनके सत्ता में आने के बाद कम से कम दो बार आतंकियों को रास्ते पर लाने के लिए बातचीत हुई, लेकिन बेनतीजा रही।

भारत को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानने वाले पाकिस्तान को आज सबसे बड़ा खतरा चरमपंथी और कट्टरपंथी ताकतों से है, जिनकी सरपरस्ती में आतंक का नासूर पाकिस्तान की नई पीढ़ी पर कल कहर बनकर टूटा। जवाब इमरान खान जैसे पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के नेताओं से पूछा जाना चाहिए, जिनकी कट्टरपंथियों और आतंकी तन्ज़ीम के लिए हमदर्दी किसी से छिपी नहीं है। जब दूसरों के लिए लगाई आग की लपटें अपनी ही चादर को पकड़ लें तो समझ लेना चाहिए कि आग को ज़मीन पर ही नहीं, दिमाग में भी शांत करना ज़रूरी है।

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जिस पड़ोसी अफगानिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता और आतंक के जाल को पाकिस्तान ने शह दी, अब वहीं से पाकिस्तान की ज़मीन पर मासूमों के नरसंहार की ज़मीन तैयार हो रही है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक अफगानिस्तान में बैठे तालिबान के नेता मुल्ला फजलुल्लाह ने दिल दहला देने वाले हमले की साज़िश रची। उसे सौंपने की मांग के साथ पाकिस्तान के सेना प्रमुख मेजर जनरल रहील शरीफ अफगानिस्तान रवाना हो रहे हैं। रेडियो मुल्ला के नाम से मशहूर इस कुख्यात तालिबानी का हाथ कल के पेशावर हमले में माना जा रहा है। कभी अफगानिस्तान में धमाकों और हमलों को शह दे पाकिस्तान की सेना ने तालिबान को यहां फलने-फूलने की खुराक दी, सिर छिपाने के लिए वज़ीरिस्तान और नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस में शरणगाह दी, आज वही तालिबान अफगानिस्तान में डेरा जमाकर पाकिस्तान को आंखें दिखा रहा है। आतंक की फसल बोई है तो काटनी तो पड़ेगी... हाथ अब कांटों से छलनी हो रहे हैं तो पाकिस्तान को खुद के बनाए नासूर से छुटकारा चाहिए। पाकिस्तान सरकार की सख्ती और सेना का ताज़ा रुख इस दिशा में अच्छा कदम है, लेकिन कहीं यह 'टू लिटल टू लेट' न साबित हो।