महेंद्र सिंह धोनी का संन्यास : मैं पल दो पल का शायर हूं...

आखिर क्यों धोनी 7 नंबर को भाग्यशाली मानते हैं. दरअसल धोनी का जन्मदिन 7/7/1981 है. इस तारीख में भी 2 जगह 7 है. बाद में धोनी ने शादी की तो सातवें महीने में. यहां तक कि उनकी बाइक और गाड़ियों के नंबर में भी 7 अंक ज़रूर रहता है.

महेंद्र सिंह धोनी का संन्यास : मैं पल दो पल का शायर हूं...

7 अगस्त, 2007... एक खास खिलाड़ी के कारण यह तारीख खास बन गई. सचिन तेंदुलकर और राहुल द्रविड़ की सलाह पर BCCI ने 26 साल के एक लंबे बालों वाले विकेटकीपर-बल्लेबाज़ को भारत की टी-20 टीम का कप्तान बनाए जाने का ऐलान किया. तब कम ही लोगों ने गौर किया होगा कि इस तारीख में 7 की संख्या 2 बार आ रही है. अब इसे इत्तेफाक मानिए या उस खिलाड़ी की किस्मत, जो 7 को अपना लकी नंबर मानता है. 7 नंबर की जर्सी पहन एक छोटे शहर रांची का नौजवान महेंद्र सिंह धोनी क्रिकेट की दुनिया में धूम मचाने के लिए तैयार था.

आखिर क्यों धोनी 7 नंबर को भाग्यशाली मानते हैं. दरअसल धोनी का जन्मदिन 7/7/1981 है. इस तारीख में भी 2 जगह 7 है. बाद में धोनी ने शादी की तो सातवें महीने में. यहां तक कि उनकी बाइक और गाड़ियों के नंबर में भी 7 अंक ज़रूर रहता है.

लेकिन क्या सिर्फ किस्मत के बल पर नया इतिहास लिखा जा सकता है...?

"मेरे पीछे मेरी किस्मत होगी, डावर साहब...!," फ़िल्म 'दीवार' में अमिताभ बच्चन का यह मशहूर डॉयलाग शायद आपको याद हो. धोनी ने बतौर कप्तान अगले 10 साल तक कामयाबियों को जो कहानी लिखी, उसके बाद किस्मत उनके पीछे चलती नज़र आई. माही का 'मिडास टच' सफलता की गारंटी बन गया.

एक बार फिर लौटते हैं फ्लैशबैक में. कप्तान बनने के बाद महेंद्र सिंह धोनी को सीधे ICC वर्ल्ड टी-20 के लिए भेज दिया गया. ICC वर्ल्ड टी-20 से पहले भारत ने सिर्फ एक टी-20 मैच खेला था, लेकिन तब भी जोखिम भरे फैसले लेने में उन्हें ज़रा भी हिचक नहीं हुई. फाइनल में आखिरी ओवर में पाकिस्तान को 13 रन बनाने थे, जबकि विकेट सिर्फ एक बचा था. धोनी ने गेंद जोगिंदर शर्मा को धमा दी. उनके इस निर्णय से जानकार हैरान रह गए. जोगिंदर ने पहली ही गेंद वाइड फेंक दी. अगली गेंद पर कोई रन नहीं बना. दूसरी गेंद पर मिस्बाह-उल-हक ने छक्का मार दिया. अब चार गेंद पर 6 रन चाहिए थे. तीसरी गेंद पर मिस्बाह आउट हो गए. कामयाबी उन्हीं के कदम चूमती है, जो साहसिक निर्णय लेते हैं. धोनी के एक फैसले ने भारत को टी-20 का वर्ल्ड चैम्पियन बना दिया.

"गिरते हैं शह-सवार ही मैदान-ए-जंग में,
वो तिफ़्ल क्या गिरें, जो घुटनों के बल चलें..."

शायद महेंद्र सिंह धोनी का यही फलसफा रहा. उनकी किस्मत पर रश्क करने वालों को यह भी जान लेना चाहिए कि किस्मत भी उन्हीं का साथ देती है, जिनमें हौसला और हिम्मत हो.

वर्ष 2011 में भारत 28 साल बाद दोबारा वर्ल्ड चैम्पियन बना, तो इसमें भी धोनी के लीक से हटकर हैरान करने वाले फैसलों का अहम योगदान रहा. धोनी ने हमेशा वही किया, जो उन्हें ठीक लगा. यूसुफ पठान और सुरेश रैना के बीच जब फैसले की बारी आई, तो माही ने रिकॉर्ड्स की बजाय अपने आप पर भरोसा किया. क्वार्टर फाइनल में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ और उसके बाद सेमीफाइनल में पाकिस्तान के विरुद्ध भी सुरेश रैना ही खेले. नतीजा सबके सामने था. दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ आशीष नेहरा का प्रदर्शन फीका रहा. लगा कि उनका करियर यहीं खत्म हो जाना चाहिए, लेकिन पाकिस्तान के खिलाफ सेमीफाइनल में धोनी ने फिर जोखिम लिया और आशीष नेहरा पर ही भरोसा किया. नेहरा ने कप्तान की उम्मीदें नहीं तोड़ीं. उनका बॉलिंग फिगर रहा 10 ओवर, शून्य मेडन, 33 रन और 2 विकेट.

कप्तान का मास्टरस्ट्रोक रहा, वर्ल्ड कप फाइनल में इनफार्म बल्लेबाज़ युवराज सिंह से पहले बल्लेबाज़ी करने आना. हालांकि धोनी ने इसका सेहरा कोच गैरी कर्स्टन को दिया, लेकिन धोनी के इस फैसले और उनके छक्के से भारत वर्ल्ड चैम्पियन बन गया. बचपन में पेंट से माही खुद अपने बल्ले पर MRF लिख रखा था, क्योंकि तब सचिन तेंदुलकर इसी ब्रांड के बैट से खेलते थे. तब धोनी को भी अहसास नहीं था कि वह अपने बचपन के हीरो के साथ वर्ल्ड कप जीतेंगे.

चेन्नई सुपरकिंग्स अगर तीन बार IPL चैम्पियन बना, तो इसमें भी धोनी की कप्तानी और उनके अहम फैसलों का बड़ा योगदान रहा है. IPL 2011 में धोनी ने पांच बार अश्विन के हाथों में नई गेंद दी और लगभग हर बार अश्विन कप्तान के भरोसे पर खरे उतरे. पूरे टूर्नामेंट में अश्विन को खुद पर यकीन हो न हो, लेकिन धोनी को उन पर पूरा यकीन था.

दिसंबर, 2009 में उनकी कप्तानी में भारतीय टीम टेस्ट में नंबर-1 बनी. ICC के सभी तीन वर्ल्ड खिताब जीतने वाले धोनी पहले कप्तान हैं. 2007 में ICC वर्ल्ड टी-20, 2011 में ICC वर्ल्ड कप और 2013 में ICC चैम्पियंस ट्रॉफी. चैम्पियंस ट्रॉफी में जीत के साथ ही धोनी की कप्तानी में टीम इंडिया ने वह मुकाम हासिल कर लिया, जो उनसे पहले किसी भी भारतीय कप्तान के लिए सिर्फ सपना था. टेस्ट, वन-डे और टी-20 के फॉरमैट में माही ने टीम इंडिया को शिखर पर लाकर रख दिया. 2010 और अब 2016 में टीम एशिया कप चैम्पियन बनी. धोनी के प्रदर्शन का सम्मान ICC ने उन्हें 2008 से 2011 तक लगातार पांच बार वन-डे वर्ल्ड इलेवन में शामिल कर किया.

दिसंबर, 2014 में अचानक टेस्ट से संन्यास लेकर उन्होंने सबको हैरान कर दिया था. 2015 उनके लिए अच्छा नहीं रहा. सीमित ओवर्स में भी वह मिडास टच नज़र नहीं आया. ऑस्ट्रेलिया में ट्राई सीरीज़ में महेंद्र सिंह धोनी की टीम एक भी मैच नहीं जीत पाई. वर्ल्ड कप में 'कैप्टन कूल' की टीम ने पाकिस्तान को हराकर ज़बरदस्त शुरुआत की. सेमीफाइनल तक पहुंचते-पहुंचते वर्ल्ड कप में लगातार 11 जीत का रिकॉर्ड बन चुका था. मगर फिर ऑस्ट्रेलिया ने विजय रथ रोक दिया. 28 साल बाद जीता खिताब छीन गया. आाखिरी कील दक्षिण अफ्रीकी टीम ने ठोक दी. पहली बार प्रोटियाज़ ने भारतीय पिच पर वन-डे सीरीज़ जीती.

2019 वर्ल्ड कप के बाद से ही उनके संन्यास के कयास लगाए जा रहे थे. हालांकि उन्होंने खुद को छुट्‌टी पर बताया. शायद उन्हें इस साल अक्टूबर में होने वाले वर्ल्ड टी-20 का इंतज़ार था, लेकिन कोराना के कारण टूर्नामेंट टल गया. उसके बाद IPL के आयोजन का रास्ता साफ हो गया. 14 अगस्त से चेन्नई सुपरकिंग्स के खिलाड़ी चेन्नई में टीम कैम्प के लिए जुटने लगे. धोनी अपने सबसे करीबी साथी सुरेश रैना के साथ चेन्नई पहुंचे. पीली टी-शर्ट और कैमोफ्लाज का मास्क पहने.

अगले दिन देश ने 74वां स्वतंत्रता दिवस मनाया. 15 अगस्त, 2020 की शाम सुहानी थी. महेंद्र सिंह धोनी अपने साथियों के साथ चेन्नई में IPL के पहले अभ्यास सेशन के बाद होटल लौटे थे. साथियों तक को नहीं मालूम था कि अगले पल क्या भूचाल आने वाला है. 7 बजकर 29 मिनट पर धोनी के इंस्टाग्राम हैंडल पर एक वीडियो पोस्ट होता है. उसमें उनके करियर के कुछ खास लम्हे थे. बैकग्राउंड में गाना बज रहा था - 'मैं पल दो पल का शायर हूं... पल दो पल मेरी कहानी है...' इसे साहिर लुधियानवी ने वर्षों पहले फिल्म 'कभी-कभी' के लिए लिखा था. वीडियो के साथ संदेश था - 'इस सफर के लिए, आपके प्यार और समर्थन के लिए बहुत शुक्रिया... आज 19:29 बजे से मुझे रिटायर्ड समझा जाए...' धोनी अपने करियर के दौरान अपने फैसलों से हैरान करते रहे. अंतरराष्ट्रीय करियर के आखिरी फैसले से भी चौंका गए.

2007 में टीम इंडिया की कप्तानी मिलने के बाद धोनी ने कहा था कि कप्तानी मिलना किसी परीकथा से कम नहीं है. 2004 में करियर की शुरुआत करने के 16 साल बाद जब वह क्रिकेट को अलविदा कह रहे हैं, तो सचमुच उनकी कामयाबी चमत्कार लगती है. प्रेरणादायक भी है और उनकी कहानी में कभी उम्मीद नहीं छोड़ने की सीख भी है. दौलत और शोहरत कभी उनके सिर चढ़कर नहीं बोल पाई. भावनाएं कभी उनके चेहरे पर आने की हिमाकत नहीं कर पाईं. महेंद्र सिंह धोनी की शख्सियत की सबसे बड़ी खासियत रही, दबाव और विपरीत हालात में भी खुद को शांत और संयमित रखना. तभी तो उन्हें 'कैप्टन कूल' कहा गया.

हमारी पीढ़ी खुशकिस्मत रही कि हमने दुनिया के सबसे बड़े बल्लेबाज़ सचिन तेंदुलकर और दुनिया के सबसे सफल कप्तानों में से एक महेंद्र सिंह धोनी को खेलते देखा. आप हमेशा हमारे कप्तान रहेंगे, 'रांची के राजकुमार...'

संजय किशोर NDTV इंडिया के खेल डेस्क पर डिप्टी एडिटर हैं...

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