ठीकरा मत फोड़िए, पदक पाने के लिए सही वजहों को ढूंढिए

ठीकरा मत फोड़िए, पदक पाने के लिए सही वजहों को ढूंढिए

रियो में सिंधु और साक्षी के मेडल के अलावा जिमनास्‍ट दीपा कर्मकार का प्रदर्शन ही भारत के लिए उल्‍लेखनीय रहा

करीब दस दिन बीत चुके हैं.सिंधु, साक्षी, दीपा के लिए समारोहों का दौर अब थमने लगा है.खेल फेडरेशनों ने मीटिंग शुरू कर दी हैं.ओलिंपिक में शूटिंग की निराशा के बाद फेडरेशन ने कमेटी बनाई थी.उसकी मीटिंग का दौर शुरू हो चुका है.तीरंदाजी कोच को निकाले जाने की खबर आ रही है.और भी तमाम विदेशी कोचेज से सवाल-जवाब की तैयारी है.लेकिन अभी दौर भावुकता का है.ठीकरा फोड़ने का है.भावुकता ही तो है कि 2015 के प्रदर्शन के लिए दिया जाने वाला राजीव गांधी खेल रत्न 2016 के प्रदर्शन पर दे दिया जाता है! ... और दूसरी तरफ यह भी भावुकता ही है कि हर विदेशी कोच के सिर पर तलवार लटका दी जाए.इन दोनों के बीच कहीं देखे जाने की जरूरत है.सबसे आसान है कोच को निशाना बनाना.खिलाड़ियों के लिए आम जनता की, जबकि फेडरेशन में ताकतवर लोगों की भावनाएं जुड़ी होती है.

सबसे पहले फेडरेशन की जिम्मेदारी
हम हर बार बात करते हैं कि फेडरेशनों में राजनेताओं का बोलबाला है.हम बात करते हैं कि खिलाड़ियों को कमान देनी चाहिए.हम बात करते हैं कि प्रोफेशनल सेट-अप कितना जरूरी है.जिन दो खेलों में भारत को पदक मिले हैं, दोनों के अध्यक्ष राजनेता हैं.कुश्ती और बैडमिंटन, दोनों संघों पर प्रोफेशनल तरीके से न चलने के आरोप लगते रहे हैं.लेकिन पदक इन्हीं दोनों में आए हैं.पिछली बार शूटिंग, बैडमिंटन और कुश्ती के अलावा बॉक्सिंग में पदक आया था.दिलचस्प है कि वहां भी उस वक्त राजनेता ही फेडरेशन पर काबिज थे।

सबसे प्रोफेशनल तरीके से जो फेडरेशन चल रही हैं, उनमें राइफल एसोसिएशन और हॉकी इंडिया हैं.राइफल एसोसिएशन यानी एनआरएआई के अध्यक्ष रणिंदर सिंह खुद शूटर रहे हैं.इसी खेल से सबसे ज्यादा उम्मीद थी.लेकिन सबसे ज्यादा निराशा यहीं से आई है.दूसरा खेल हॉकी इंडिया है, जहां सीईओ भी है और हाई परफॉर्मेंस डायरेक्टर भी.विशेषज्ञ मानेंगे कि टीम लगातार बेहतर हुई है.लेकिन पदक की आस वहां भी पूरी नहीं हुई है.वहां पदक की उम्मीद थी नहीं.बेहतर होने की उम्मीद थी.बस, पोस्ट मॉर्टम के नाम पर कहीं आठवें स्थान को विफलता मानकर भावुकता के चलते नया सिस्टम लागू करने का फैसला न कर लिया जाए।

दरअसल, हमें समझना पड़ेगा कि फेडरेशन के प्रोफेशनल होने के साथ सही फैसले जरूरी हैं.बॉक्सिंग में जब पदक आया था, तब वहां मुरलीधरन राजा महासचिव थे, जिन्होंने बॉक्सिंग की बेहतरी के लिए शानदार काम किया था.लेकिन स्पोर्ट्स कोड की वजह से उन्हें हटना पड़ा.बैडमिंटन में अच्छे नतीजे आए हैं, तो यहां गोपीचंद एकेडमी है.राजा के हटने और बॉक्सिंग फेडरेशन में झगड़ों के बाद इस खेल में क्या हुआ है, नतीजा सबके सामने हैं.बैडमिंटन में भी गोपीचंद एकेडमी को हटा दीजिए.उसके बाद नतीजा समझने की कोशिश कीजिए.यह समझना चाहिए कि फेडरेशन का अध्यक्ष राजनेता है या ब्यूरोक्रैट, इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता.फर्क इससे पड़ता है कि उस व्यक्ति विशेष के अलावा आसपास कौन हैं, जो फैसला लेने में अहम रोल अदा करते हैं।

शूटिंग में निराशा की क्या रही वजह
शूटिंग में इस बार यकीनन पर्सनल कोच के नियम ने खासा नुकसान पहुंचाया है.लेकिन क्या यह फेडरेशन की जिम्मेदारी नहीं है कि नेशनल कोच हो? उसके अलावा, टीम का चयन सवालों में रहा है.गगन नारंग की पीठ की तकलीफ हर किसी को पता है.उसके बावजूद उन्हें तीन इवेंट में हिस्सा लेने की छूट मिली.जबकि संजीव राजपूत का कोटा किसी और को दे दिया गया.फेडरेशन के एक अधिकारी के मुताबिक, वे नारंग को नाराज नहीं करना चाहते थे.नाराज होते ही नारंग मीडिया में चले जाते हैं जहां खिलाड़ियों का ही पक्ष लिया जाता है.क्या वाकई ओलिंपिक में ऐसे समझौते होने चाहिए? इस तरह के फैसलों की जिम्मेदारी कौन लेगा? क्या फेडरेशन को नहीं लेनी चाहिए?

खिलाड़ियों की जिम्मेदारी
हमें अब समझना पड़ेगा कि खिलाड़ियों को भी सिर्फ भावनात्मक कारणों से नहीं बख्शा जा सकता.सही है कि निशाने पर वही होते हैं.लेकिन उनके निशाने भी सही होने चाहिए.साई की टॉप्स स्कीम के तहत खिलाड़ियों को इस बार सीधे पैसा मिला.तमाम खिलाड़ियों ने इस पैसे का अपनी तरीके से इस्तेमाल किया.उसमें एक इस्तेमाल पर्सनल कोच का भी रहा है.हीना सिद्धू, सीमा पूनिया, विकास गौड़ा से लेकर तमाम खिलाड़ी पर्सनल कोच के साथ रहे, जो उनके परिवार के सदस्य हैं.परिवार का सदस्य साथ हो, तो आसानी जरूर होती है.लेकिन सदस्य इस वजह से रहे ताकि टॉप्स स्कीम में कोच के लिए पैसा भी घर में आ जाए, तो यकीनन प्राथमिकताएं गड़बड़ हैं.टिंटू लूका पिछले दस साल  से प्रतिभाशाली हैं. पीटी उषा की शिष्या हैं.दस साल से वे एक ही तरह की गलती कर रही हैं.लेकिन गलती कैसे सुधारी जाए, किसी को नहीं पता.यहां भी मामला पर्सनल कोच का है.

क्वालिफाइंग के तरीकों पर सवाल
16 साल पहले की बात है.सिडनी ओलिंपिक के क्वालिफाइंग चल रहे थे.दिल्ली के नेहरू स्टेडियम में सलवान मीट थी.चार गुणा 100 मीटर रिले शुरू होने वाली थी.अचानक वीआईपी और मीडिया बॉक्स से सबसे दूर वाला लाइट का टावर बुझा.एक सीनियर जर्नलिस्ट ने हम लोगों से कहा कि नीचे चलते हैं.एक जर्नलिस्ट को बुझे टावर के आसपास भेज दिया गया.शायद उन्हें अंदाजा था कि क्या होने वाला है.हालांकि उन्होंने कभी इसका दावा नहीं किया.उसी बुझे हुए टावर के पास एथलीट ने अपनी लेन बदली और अंदर की लेन में आ गया.राष्ट्रीय रिकॉर्ड बन गया.हालांकि सारे जर्नलिस्ट थे.शायद इसलिए चोरी पकड़ी गई.हर किसी ने इसे बेहद शर्मनाक बताया.लेकिन चंद रोज के बाद एक और मीट में इसी रिले टीम ने क्वालिफाइ किया और उन्हें सिडनी भेजा गया.वहां उन्हें न कुछ करना था, न उन्होंने किया.सवाल यही है कि क्या किसी भी तरह से क्वालिफाई करना ही लक्ष्य है?

इस बार भी आप तमाम नतीजे देखें.पाएंगे कि क्वालिफाइंग के मुकाबले प्रदर्शन किस कदर गिरा है.एथलेटिक्स में अपने देश में ‘मीटर छोटे’ होने के आरोप लगते रहे हैं.नहीं पता कि सच्चाई क्या है.रंजीत माहेश्वरी क्वालिफाइंग से करीब एक मीटर कम कूदे.मीरा बाई चानू अगर वेटलिफ्टिंग में उतना वजन उठा पातीं जो प्रैक्टिस में उठा रही थीं, तो भारत को रजत मिलता.रिले टीम ने तो साल में दुनिया का दूसरा बेस्ट परफॉर्मेंस दिया था.लेकिन यह प्रदर्शन रियो में नहीं दोहराया जा सका. रियो में चौकड़ी डिस्क्वालिफाई हो गई.

ये सब बातें हैं, जिन पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है.फेडरेशन में नेता हैं.. सब चोर हैं.... कल्चर नहीं है.... ये सारी बातें बचपन से सुनते आ रहे हैं.बड़ी बातों को बदलने से पहले छोटी बातों पर ध्यान देना जरूरी है.छोटी-छोटी बातें कई बार बड़े नतीजों के लिए जरूरी होती हैं...

शैलेश चतुर्वेदी वरिष्‍ठ खेल पत्रकार और स्तंभकार हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

इस लेख से जुड़े सर्वाधिकार NDTV के पास हैं। इस लेख के किसी भी हिस्से को NDTV की लिखित पूर्वानुमति के बिना प्रकाशित नहीं किया जा सकता। इस लेख या उसके किसी हिस्से को अनधिकृत तरीके से उद्धृत किए जाने पर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी।


Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com