'नए मास्टर', 'दीवार' और 'जम्बो' यहां हैं... लेकिन वीरू कहां हैं

'नए मास्टर', 'दीवार' और 'जम्बो' यहां हैं... लेकिन वीरू कहां हैं

कोहली और रहाणे ने खुद टीम टीम इंडिया के भरोसेमंद बल्‍लेबाजों में स्‍थापित कर लिया है (फाइल फोटो)

क्या वाकई इंदौर टेस्ट में ऐसे लम्हे थे, जिन्हें टर्निंग पॉइंट कहा जाए? इंदौर के टर्निंग पॉइंट वो तिकड़ी थी, जिसने मैच जिता दिया और सीरीज में क्लीन स्वीप करा दिया. बल्लेबाजी की मुफीद पिच पर टॉस जीतते ही पहले बल्लेबाजी के साथ विराट कोहली का काम वैसे ही आसान हो गया था. विराट-रहाणे ने अपना काम किया. उसके बाद बचाखुचा काम अश्विन ने कर डाला. तिकड़ी ने मैच पर कब्जा कर लिया.

बस, मैच में सिर्फ एक मौका था, जब न्यूजीलैंड टीम पकड़ बनाती दिख रही थी. जब 60 रन पर भारत के दो विकेट गिरे, उस वक्त. लेकिन उसके बाद कभी ऐसा नहीं लगा कि मेहमान इस मैच पर असर दिखा सकते हैं. एक और मौका था, जब मैच बचाने की उम्मीद कीवियों को दिखी होगी. जब भारत के पांच विकेट पर 557 रन के जवाब में उन्होंने बगैर किसी नुकसान के 118 रन बना लिए थे. इन दो लम्हों के अलावा मेहमान टीम कहीं नहीं थे. पहली पारी में 299 और दूसरी में 153... यानी 321 रन से भारत की जीत.

यकीनन विपक्षी टीम ने पूरी सीरीज में वैसा जुझारूपन नहीं दिखाया, जिसकी उम्मीद थी. लेकिन इससे भारतीय टीम के प्रदर्शन को कम नहीं आंक सकते. खासतौर पर इस मैच में रहाणे-विराट की जोड़ी बल्लेबाज के तौर पर और गेंदबाजी में अश्विन. पिछले समय में भारत के लिए सबसे बड़ा नाम सचिन तेंदुलकर थे, जिन्हें 'मास्टर ब्लास्टर' कहा जाता था. राहुल द्रविड़ को 'द वॉल' या 'दीवार' कहते थे और अनिल कुंबले 'जम्बो' कहे जाते थे. क्या विराट, रहाणे और अश्विन ने उस तिकड़ी के नामों को अपना लिया है.

विराट और रहाणे की जोड़ी
भारत की पहली पारी में कप्तान के 211 और रहाणे के 188 रन. चौथे विकेट के लिए 365 रन की साझेदारी. इंदौर में जिस तरह की साझेदारी विराट कोहली और अजिंक्य रहाणे ने की है, उसके बाद क्या हम इस जोड़ी की तुलना सचिन तेंदुलकर और राहुल द्रविड़ की जोड़ी से कर सकते हैं. भले ही हम सब दिल ही दिल में जानते हों कि तुलना का कोई मतलब नहीं. लेकिन ऐसा हर शख्स तुलना करता भी है. हम भी कर लेते हैं। पहले विराट और सचिन. विराट ने 48 टेस्ट खेले हैं. इनमें 3326 रन हैं. सचिन ने 48 टेस्ट में 3328 रन बनाए थे. इससे समझ सकते हैं कि किस कदर करीब हैं. औसत में जरूर विराट के 45 के मुकाबले 49 पर सचिन आगे खड़े हैं. लेकिन शतकों के मामले में विराट इस समय सचिन से आगे हैं. सचिन ने 11 शतक जमाए थे 48 टेस्ट में, विराट के 13 हैं. इंग्लैंड छोड़ दिया जाए, तो करीब करीब हर देश में विराट ने कमाल किया है.

इसी तरह अजिंक्य रहाणे की बात है, जो हर रोज पिछले दिन से बेहतर दिख रहे हैं. 29 टेस्ट में 2209 रन हैं, 51 से ज्यादा औसत से. जी हां, विराट से बेहतर औसत. घर और बाहर दोनों जगह लगभग बराबर औसत है. अब राहुल द्रविड़ से तुलना, द्रविड़ विदेश में औसत के मामले में मीलों आगे थे. 29 टेस्ट के बाद 67 से ज्यादा का औसत. लेकिन कुल औसत 54.43 था, जो लगभग रहाणे के आसपास है.

बेजोड़ रविचंद्रन अश्विन
अश्विन और जडेजा की जोड़ी ने पूरी सीरीज में मेहमानों को बेबस दिखाया. जडेजा अपने घर में खासतौर पर खतरनाक हैं. लेकिन अश्विन ने जैसा सुधार दिखाया है, संभव है कि उन्हें देश का सर्वकालिक श्रेष्ठतम ऑफ स्पिनर शुमार किया जाए. किसी भी गेंदबाज का औसत अगर 25 से कम हो, तो वो विश्व स्तरीय माना जाएगा. अगर काफी टेस्ट खेल चुका हो, तो शक की कोई गुंजाइश ही नहीं. अश्विन के 39 टेस्ट हो गए हैं. रिकॉर्ड से ज्यादा उनका पूरा रवैया प्रभावित करता है. उनकी गेंदबाजी में वेरायटी हर रोज बढ़ रही है. इस मैच में भी उनके नाम 13 विकेट रहे. अनिल कुंबले के आने से अगर कोई सबसे ज्यादा फायदा ले सकता है, तो वो अश्विन हैं. ...और वो फायदा लेते दिख रहे हैं. उनका पूरा रवैया कुंबले जैसा ही है. अड़ियल, कुछ भी आसानी से नहीं देने वाला, लगातार खुद में सुधार लाने वाला. नेचुरल टैलेंट में वो यकीनन कुंबले से आगे हैं. बल्लेबाजी में भी वो ऑलराउंडर की तरह नजर आते हैं. नजर क्या आते हैं, उन्हें ऑलराउंडर मानना ही चाहिए.

बेंच स्ट्रेंथ और साहा
बेंच स्ट्रेंथ बेहतर होना और साहा का बल्लेबाजी में प्रदर्शन भी टीम इंडिया के लिए पॉजिटिव खबर है. सीरीज शुरू होने से पहले खबर आई थी कि इशांत शर्मा को चिकनगुनिया हो गया है. फिर भुवनेश्वर कुमार चोटिल हुए. कोई टेस्ट ऐसा नहीं रहा, जिसमें कप्तान विराट को बदलाव न करना पड़ा हो. ओपनर लगातार बदलते रहे. केएल राहुल, मुरली विजय, शिखर धवन और गौतम गंभीर. इन सबके बावजूद मैच के नतीजों पर कोई फर्क नहीं पड़ा. इंदौर में तो ऋद्धिमान साहा को बल्लेबाजी का मौका ही नहीं मिला. लेकिन कोलकाता के दूसरे टेस्ट में जो प्रदर्शन किया था, वो उन्हें काफी आगे लेकर जाएगा. विकेटकीपर वो बेहतरीन हैं ही लेकिन बल्ले का अच्छा प्रदर्शन उनके भरोसे में इजाफा करता दिख रहा है.

ओपनर का संकट
सीरीज में भारतीय बल्लेबाजों का प्रदर्शन देखें, तो टॉप ऑर्डर में चार नाम सबसे नीचे दिखाई देते हैं. ये चारों ओपनर के नाम हैं. गौतम गंभीर और मुरली विजय के नाम एक-एक अर्धशतक जरूर रहा. लेकिन इसे प्रभावशाली नहीं माना जा सकता. ऐसा प्रदर्शन तब है, जब विराट टॉस जीत रहे थे. भारत पहले बल्लेबाजी कर रहा था. ..और पिच बल्लेबाजी के लिए सबसे अच्छी हालत में थी. सही है कि भारत को अभी काफी समय अपने घर में ही खेलना है. लेकिन अगर खुद को हर माहौल में बेस्ट साबित करना है, तो यह ओपनर्स का साथ मिले बगैर नहीं हो सकता.

अगली टीम इंग्लैंड है, जिसे नवंबर में भारत आना है. वो न्यूजीलैंड से बेहतर होगी. हमें न्यूजीलैंड पर क्लीन स्वीप के जश्न के बीच इस समस्या पर ध्यान देना होगा. जश्न कम न हो, लेकिन कमजोरी को अनदेखा न करें. अगर वाकई मास्टर, दीवार और जम्बो मिल गए हैं, तो एक नाम की जरूरत शिद्दत से महसूस की जाती रहेगी. वो नाम है वीरू यानी वीरेंद्र सहवाग. ओपनर के तौर पर उस नाम के विकल्प का इंतजार है. विश्व विजेता बने रहने के लिए.

शैलेश चतुर्वेदी वरिष्‍ठ खेल पत्रकार और स्तंभकार हैं...

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