शरद शर्मा की खरी-खरी : किसकी फोटो लगाएं?

नई दिल्ली:

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी विज्ञापनों और उन पर लगने वाली तस्वीरों को लेकर एक अहम आदेश दिया। इस आदेश के मुताबिक सरकारी विज्ञापनों में अब केवल राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और देश के मुख्य न्यायधीश के ही फोटो लगाएं जा सकेंगे, जिससे जनता के पैसे का दुरुपयोग रुक सके।

माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पूर्ण सम्मान करते हुए मेरे मन में कुछ सवाल उठ रहे हैं, वो रख रहा हूं। हमारे देश में संघीय ढांचा है, यानि देश में सबसे ऊंचा पद जो जनता चुनकर देती है वो है प्रधानमंत्री का। ठीक वैसे ही राज्यों में मुख्यमंत्री का पद होता है।

केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के अपने-अपने अधिकार क्षेत्र और अपनी-अपनी जिम्मेदारियां हैं। तो जिस प्रकार केंद्र सरकार अपने कामों के बखान और योजनाओं के प्रचार के लिए विज्ञापनों में पीएम के फोटो लगाती है, ठीक वैसे ही राज्य सरकारें प्रचार के लिए सीएम की फोटो लगाती हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कुछ व्यावहारिक समस्याएं हो सकती हैं।

1. पब्लिक कनेक्शन - जनता देश के लिए पीएम और राज्य के लिए अपने सीएम से कनेक्ट करती है। ऐसे में अगर राज्य के सरकारी विज्ञापनों में पीएम का फोटो लगा होगा, तो राज्य सरकार को पब्लिक के साथ कनेक्ट करने में समस्या हो सकती है।

2.अलग पॉलिटिकल पार्टी - मान लीजिए आपके राज्य में किसी पार्टी की सरकार है और देश में दूसरी पार्टी सत्ता में है तो फिर क्या होगा? उदाहरण के तौर पर दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है और देश में बीजेपी की, तो दिल्ली सरकार अपने विज्ञापनों में सीएम अरविंद केजरीवाल की फोटो की बजाय पीएम नरेंद्र मोदी की फोटो कैसे लगाएगी?

3. पर्सनैलिटी पॉलिटिक्स- आज हमारे यहां पर्सनैलिटी पॉलिटिक्स का दौर चल रहा है। हम राज्य या किसी सरकार को उसके प्रमुख के नाम से जानते हैं। जैसे मुझे याद है कि कुछ साल पहले का वक्त जब मैं किसी से मिलता था और वो कहता था कि मैं गुजरात से आया हूं तो, मेरे ज़ेहन में नरेंद्र मोदी का नाम आया करता था, जो गुजरात के सीएम थे। तमिलनाडु का नाम सुनते ही आपके मन में सीएम रहीं जयललिता का नाम आता होगा या दिल्ली सरकार की बात होते ही अरविंद केजरीवाल दिमाग में क्लिक करते होंगे। ऐसे में सीएम के फोटो के बिना किसी भी राज्य सरकार का विज्ञापन कैसा लगेगा?

4. नेता के नाम पर वोट - आज देश में जनता किसी पार्टी पर भरोसा करने की बजाय नेता के नाम पर वोट देती है, जो उनमें एक उम्मीद भरता है कि हां मैं आपकी आकांक्षाएं पूरी करूंगा। लोकसभा चुनाव 2014 में वोट देने वाले बहुत से लोगों से मैं मिला, जिनको ये तक नहीं पता था उनके यहां कौन उम्मीदवार खड़ा है और किस पार्टी से है, क्योंकि वे सिर्फ मोदी को पीएम बनाने के लिए ही वोट दे रहे थे। वे पार्टी नहीं, नेता चुन रहे थे।

दूसरा उदाहरण हाल के दिल्ली चुनाव का है, जिसमें दिल्ली वाले अरविंद केजरीवाल को सीएम बनाने के लिए ही वोट डाल रहे थे, जबकि उम्मीदवार का नाम तक उनको नहीं मालूम था। जनता जिसको चुनती है, वह जीतने का बाद क्या कर रहा है, इसे वह विज्ञापन के जरिए भी बताता है। ऐसे में उसकी तस्वीर अगर उसमें न हो तो संवाद के कमी का अंदेशा है।

5. क्योंकि पीएम भी कभी सीएम थे - अगर सीएम अपने काम का प्रचार नहीं करेंगे, तो उनका आगे बढ़ना बहुत मुश्किल है। अगर राज्य सरकार अपने सीएम की जगह पीएम की फोटो लगाएगी, तो प्रतिस्पर्धा कैसे होगी? पीएम तो पहले ही सबसे बड़े हैं, ऐसे में मुख्यमंत्रियों को अपने कामों का प्रचार करके कल को पीएम के पद तक पहुंचने का मौका मिलना चाहिए। ध्यान रहे कि हमारे पीएम भी कभी सीएम थे और अपने कामों का प्रचार करके ही वह देश का दिल जीतने में कामयाब हुए।

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पूर्ण सम्मान करते हुए मैं मानता हूं कि विज्ञापनों में फिजूलखर्ची रुकनी चाहिए और इसको लेकर भी कोर्ट अगर कोई निर्देश दे तो बहुत बढ़िया होगा। बाकी मंत्रियों के फोटो विज्ञापन में हो य न हो, इस पर लंबी चर्चा हो सकती है और उस पर मैं फिर लिखूंगा, लेकिन मुझे लगता है कि सरकारी विज्ञापनों में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश की फोटो के साथ-साथ अगर राज्यों के सीएम की फोटो भी लगे तो अच्छा रहेगा।