शरद शर्मा की खरी-खरी : केजरीवाल, जनसभा और भीड़

नई दिल्ली:

मंगलवार शाम को मैं आम आदमी पार्टी के सीएम उम्मीदवार अरविंद केजरीवाल की एक जनसभा कवर करने के लिए पटपड़गंज विधानसभा क्षेत्र में गया। यहां से पिछली बार आप के बड़े नेता मनीष सिसोदिया ने चुनाव जीता था और इस बार भी यहां से चुनाव मैदान में है।

लेकिन इस जनसभा में अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया तय वक्त से लेट पहुंचे और उनके आने के बाद वहां पर कुछ अव्यवस्था दिखी। दरअसल ये अव्यवस्था थी भीड़ के मैनेजमेंट की जिसकी वजह से धक्का-मुक्की हो रही थी और मुझे लग रहा था कि किसी भी पल तंबू गिर सकते हैं और भगदड़ भी मच सकती है। लेकिन फिर मैने चारों तरफ़ घुमाई और महसूस किया कि असल में हो क्या रहा है... केजरीवाल की जनसभा में पहली बार ये स्थिति आ गई थी भीड़ को काबू करना मुश्किल था। खैर किसी तरह सबकुछ ठीकठाक निपट गया लेकिन फिर मेरे मन में जो बात आई वह मैं बताने के लिए यह सब लिख रहा हूं।

मैं वैसे तो आम आदमी पार्टी की पहले भी बहुत सी जनसभाएं कवर कर चुका हूं, लेकिन इस बार मैं दिसंबर महीने से केजरीवाल की जनसभा कवर कर रहा हूं। किसी एक जनसभा को देखकर या उसमें मौजूद जनता की संख्या को देखकर मैं कोई धारणा नहीं बनाना चाहता और ना कुछ मानकर बैठ जाना चाहता हूं, लेकिन दो महीने में केजरीवाल का प्रचार कवर करने के बाद जो लग रहा है वह बता रहा हूं।

केजरीवाल की जनसभा में भीड़ ना सिर्फ लगातार बरकरार है, बल्कि बढ़ती हुई देखी जा रही है। केवल लोअर क्लास इलाके में ही नहीं, बल्कि मिडल और अपर मिडिल क्लास इलाके में भी संख्या अच्छी खासी दिख रही है। लेकिन जब जनसभा देहात और लोअर क्लास के इलाके में होती है तो संख्या बहुत बढ़ जाती है।

खास बात यह भी है कि भीड़ केवल सुनती ही नहीं, बल्कि केजरीवाल के बोलने पर बीच-बीच में नारे लगाती है। एक बड़ी संख्या ऐसे लोगों की दिखती है, जो केवल केजरीवाल को देखने आते हैं, जिससे केजरीवाल की लोकप्रियता की तस्दीक ज़मीनी स्तर पर होती है।

एक उदाहरण देकर बात करता हूं। बीते शुक्रवार 23 जनवरी की बात है। छत्तरपुर विधानसभा के अंदर मुझे भाटी माइंस इलाके में अरविंद केजरीवाल की जनसभा कवर करने के लिए भेजा गया। मैं तय वक्त से कुछ पहले पहुंच गया। मैने वहां जाकर जो देखा उसको देखकर मुझे आयोजकों और पार्टी के लोगों से फोन करके ये पूछने की ज़रूरत पड़ गई कि क्या वाकई जनसभा हो रही है या होगी? मुझे जवाब मिला कि होगी ही। मैं सोच में पड़ गया।

असल में वहां सारा कीचड़ ही कीचड़ था, क्योंकि उससे पहले दिन वहां खूब बारिश हुई थी और मैने आसमान देखा तो लग रहा था कि बादल अब बस कभी भी बरस सकते हैं। वहां सभा के लिए इंतज़ाम हो ही नहीं पाए थे और मुझे डर था कि कहीं मेरा इतना दूर आना व्यर्थ ना हो जाए, क्योंकि जब आए हैं तो कम से कुछ देखकर ही जाएं। ऐसे ही आकर ऐसे ही चले तो समय का इतना नुकसान बहुत दुखेगा दिल को।

खैर फिर मैंने सोचा कि ठीक है जो होना होगा हो जाएगा। लेकिन मेरे देखते ही देखते वहां पर सारे इंतज़ाम हो गए और एक समय जहां पर सभा होना भी मुश्किल लग रहा था, सभा भी हुई और तस्वीरें देखिए और अंदाज़ा लगा लीजिए..... (वहां इतना कीचड़ था कि आज ये लिखते हुए भी वह कीचड़ पूरी तरह से मेरे जूतों से गया नहीं)

लेकिन क्या इन तस्वीरों से या फिर लगातार जनसभाओं में बढ़ती भीड़ से ये सीधा मान लेना चाहिए कि आम आदमी पार्टी चुनाव जीत ही जाएगी?

मुझे याद आता है कि लोकसभा चुनाव के समय में भी केजरीवाल को सुनने बहुत भीड़ आया करती थी, खासतौर से दिल्ली की सभाओं में। लोकसभा चुनाव में पार्टी को विधानसभा चुनाव से ज़्यादा वोट मिले लेकिन पार्टी बीजेपी के मुकाबले दिल्ली में सभी सीटों पर दूसरे नंबर रही।

लेकिन फिर वहीं लोकसभा चुनाव के समय पीएम मोदी की रैली में होने वाली भीड़ याद आती है। भीड़ भी हुई और 30 साल बाद पहली बार किसी एक पार्टी ने अपने दम पर बहुमत पा लिया। यानी भीड़ का सीधा मतलब चुनाव जीतना तो नहीं माना जा सकता लेकिन हां माहौल का एक मोटा अंदाज़ा ज़रूर होता है।

आज दिल्ली में यह बात हर कोई कह रहा है कि बीजेपी और आम आदमी पार्टी में कांटे की लड़ाई है, लेकिन कुछ महीनों पहले हर कोई ये कह रहा था कि कल चुनाव हो जाएं, तो 70 सीटों की विधानसभा में बीजेपी 50-60 सीटें ले आएगी यानी यह बात साफ है कि धारणा में और जनसभा में भीड़ से ये ट्रेड दिख रहा है कि लगातार आम आदमी पार्टी आगे बढ़ती जा रही है।

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यही नहीं ज़मीनी स्तर होने वाले प्रचार में भी आम आदमी पार्टी अभी तक बीजेपी से आगे दिख रही है, जबकि चुनाव को अब गिनती के दिन बाकी रह गए हैं। यह एहसास शायद अब बीजेपी को भी है, इसलिए अगले कुछ दिनों में बीजेपी पूरा मंत्रिमंडल दिल्ली में उतारने जा रही है। प्रधानमंत्री चार रैलियां करेंगे, 13 मंत्री अलग-अलग विधानसभाएं देखेंगे, 70 सांसद अलग-अलग ज़िम्मा संभालेंगे, संघ से प्रचारक आएंगे और मध्य प्रदेश से मंत्री आएंगे। जाहिर है, केजरीवाल की बेहद मज़बूत होती चुनौती बीजेपी को डरा रही है।