सेना को राजनीतिक रोटियां सेंकने का जरिया न बनाएं...

सेना को राजनीतिक रोटियां सेंकने का जरिया न बनाएं...

प्रतीकात्मक फोटो

सर्जिकल आपरेशन न हुआ मानो किसी राजनीतिक दल का घोषणा-पत्र हो गया जिस पर हर ‘ऐरा-गैरा नत्थू खैरा’ सवाल खड़े कर रहा है. अलग-अलग अंदाज में पूरे ऑपरेशन पर प्रश्नचिह्न लगाए जा रहे हैं और उस पर जुमला यह कि ‘हम पूरी तरह से सरकार और सेना के साथ हैं.’ क्या साथ ऐसा होता है जिससे विश्वास से ज्यादा अविश्वास की बू आए?

दरअसल मसला न तो सेना है और न ही सर्जिकल आपरेशन,असली मुद्दा वह राजनीति है कि कौन किसको कितना नीचे गिरा सकता है. अपने पाठकों की जानकारी के लिए यह दोहराना जरूरी है कि ''भारतीय सेना ने सर्जिकल हमले करते हुए पाकिस्तान में आतंकवादियों की घुसपैठ की कोशिशों को नाकाम कर दिया. दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी थल सेना के डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल रणवीर सिंह ने 29 सिंतबर को पूरी दुनिया के सामने यह ऐलान किया कि “सेना का यह अभियान इस पर केन्द्रित था कि आतंकवादी किसी भी सूरत में अपने मंसूबों में कामयाब न हो पाएं.आतंकवादियों के खिलाफ इस अभियान के दौरान आतंकवादियों को तो नुकसान पहुंचाया ही गया साथ ही उनको समर्थन देने वालों को भी बख्शा नहीं गया है. आतंकवादियों को निष्क्रिय करने के उद्देश्य से इस काम को अंजाम दिया गया. इसे आगे जारी रखने की कोई योजना नहीं है.''
 
आम लोगों की जानकारी के लिए मैं बताना चाहता हूं कि 11 लाख की थल सेना जो भी ऑपरेशन करती है उसका प्रमुख डायरेक्टर जनरल मिलेट्री ऑपरेशन (DGMO) होता है. अब सरकार के कंधे पर बंदूक रखकर सेना से कहा जा रहा है कि वह इस ऑपरेशन का सबूत दिखाए. हालांकि सेना ने अधिकारिक तौर पर इस पर कुछ नहीं कहा है लेकिन उससे जुड़े सूत्र बता रहे हैं कि सेना को नहीं लगता है कि कोई सबूत दिखाने या बताने की जरूरत है. डीजीएमओ ने जो कहा है क्या नेताओं को उस पर भरोसा नहीं है? क्या कभी सेना ने देश की जनता के सामने झूठे दावे किए हैं? रही बात सबूत की, तो रणनीतिक तौर पर दिखाने और न दिखाने का फैसला सरकार को करना है क्योंकि इस ऑपरेशन का दुनिया के सामने ऐलान का फैसला भी सरकार ने ही लिया था.
 
इसमें कोई दो राय नहीं है कि सेना के पास सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत हैं. मेरी पक्की जानकारी है कि उस वक्त सेटेलाइट,यूएवी और कमांडो के हेलमेट में थर्मल इमेजिंग और नाइट विजन कैमरे से वीडियो और तस्वीरें ली गई हैं. इन तस्वीरों और वीडियो को सेना के आला अधिकारियों के साथ सरकार के सुरक्षा से जुड़े अधिकारियों ने भी देखा है. सूत्रों की मानें तो सेना ने पूरे ऑपरेशन पर केन्द्रित 90 मिनट के वीडियो फुटेज बतौर सबूत सरकार को दे भी दिए हैं. ऐसा भी नहीं है कि सेना ने पहली बार एलओसी पार जाकर सर्जिकल स्ट्राइक किया हो. पहले भी सेना छोटे स्तर पर ऐसी कार्रवाई को अंजाम देती रही है, लेकिन पहली बार इतने बड़े स्तर पर और डंके की चोट पर इसका ऐलान किया गया है.
 
सेना के सूत्रों की मानें तो सेना इस ऑपरेशन से जुड़े वीडियो या चित्र रिलीज करने के पक्ष में नहीं है, वजह है इससे जुड़ी जानकारी सार्वजनिक होते ही सारी जानकारी दुश्मनों को मिल जाएगी. मसलन कमांडो ने किस जगह से एलओसी पार की, लांचिंग पैड तक कैसे पहुंचे, हेलमेट में कौन-कौन से डिवाइस लगे थे, कौन-कौन से हथियार लिए हुए थे कमांडो. और तो और जवानों की पहचान सबके सामने आ जाएगी जो शायद राजनीतिक तौर पर तो सही हो सकता है लेकिन रणनीतिक तौर पर तो कतई सही नहीं ठहराया जा सकता. इसे अगर सबके सामने लाया जाता है तो न सिर्फ हमारे ऑपरेशन करने के तरीके दुश्मन जान जाएगा बल्कि भविष्य में इसका इस्तेमाल बखूबी हमारी सेना के खिलाफ भी कर सकता है.      

सेना से जुड़े लोग बता रहे हैं कि क्या दुनिया में कही भी ऐसे ऑपरेशन होते हैं, उसके सबूत सामने आते हैं क्या? अमेरिका ने दुनिया के सबसे बड़े आतंकी ओसामा बिन लादेन को मारा लेकिन आज तक उसकी न तो ऑपरेशनल डिटेल्स आई और न ही कोई तस्वीर. बस एक तस्वीर आई जिसमें व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति इस ऑपरेशन को टीवी पर देख रहे हैं. तो फिर हमारी सेना को अपनी राजनीति की रोटियां सेंकने के लिए क्यों घसीटा जा रहा है? और वैसे भी पाकिस्तान तो क्या कोई भी देश यह कैसे स्वीकार कर सकता है कि उसके घर में घुसकर उसकी पिटाई की गई है! यदि वह स्वीकार कर लेता है तो यह बात भी ससबूत स्पष्ट हो जाएगी कि वह आतंकियों की पनाहगाह है इसलिए उसके सामने तो यहां कुआं और वहां खाई वाली स्थिति है. यही कारण है कि वह इसे पुरजोर तरीके से झूठा साबित करने में जुटा है. तो क्या हमारे नेता पाकिस्तान की संतुष्टि के लिए सर्जिकल आपरेशन के सबूत मांग रहे हैं या उन्हें भी अपनी सेना-सरकार पर भरोसा नहीं है? वैसे सरकारी सूत्रों से हमें यह भी जानकारी मिली है कि सरकार विपक्ष के नेताओं और कुछ वरिष्ठ पत्रकारों को इस ऑपरेशन से जुड़े कुछ चुनिंदा वीडियो और तस्वीरें दिखा सकती है लेकिन इस बारे में अभी तक अंतिम फैसला नही लिया गया है.
 
दुःख की बात तो यह है राजनीतिक गुणा-भाग के चक्कर में उस भारतीय सेना की विश्वसनीयता को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है जो देश में बाढ़ से लेकर तूफान तक और विदेश में युद्ध से लेकर आपदा के दौरान तक भारतीय लोगों के प्राणों की रक्षा के लिए बेझिझक अपने प्राण न्यौछावर करने में एक मिनट के लिए भी पीछे नहीं हटती. जहां तक कश्मीर में उस पर पत्थर फेंकने वाले और फिंकवाने वाले भी जब बाढ़ की विकरालता की चपेट में आते हैं तो वह बिना भेदभाव के उनके प्राण बचाकर अपने आदर्श को और भी मजबूती से स्थापित कर दिखाती है.
 
न तो देश की आम जनता में और न ही दुनिया में इस सर्जिकल ऑपरेशन को लेकर किसी तरह का संदेह है. अब जरा उन लोगों की बात कर लेते हैं जो इस ऑपरेशन का सबूत मांग रहे हैं. इनमें सबसे प्रमुख हैं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जिन्होंने अपने वीडियो में सीधे तौर पर तो नहीं लेकिन इशारों में तो सवाल उठा ही दिए हैं. आज की तारीख में दिल्ली के मुख्यमंत्री कितने विश्वसनीय हैं.. उनकी बातों पर कितना यकीन करें..शायद अब यह बताने की भी जरूरत नहीं. एक वक्त था जब उनकी बातों पर हम जैसे कई लोगों को भरोसा था लेकिन वक्त के साथ यह भरोसा टूटता चला गया. इसलिए अब ऐसा तो नामुमकिन है कि सेना की बात छोड़कर केजरीवाल की बात पर यकीन करें. केजरीवाल के बाद, अपनी आदत से मजबूर कुछ कांग्रेसी नेता भी सवाल उठा रहे हैं लेकिन अच्छी बात है कि कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी और पार्टी के प्रवक्ताओं ने ही ऐसे लोगों को आइना दिखाते हुए स्पष्ट कर दिया है  कि देश की सेना पर उन्हें भरोसा है.  
 
मेरा मानना है कि अभी जरूरत यह है कि पूरा देश न केवल एकजुट रहे बल्कि एकजुट दिखे भी क्योंकि राजनीति करने के लिए तो और भी मौके मिलेंगे परन्तु सेना की छवि को हमने अपने चंद फायदे के लिए धूमिल कर दिया तो उसे सुधारने-संवारने में सालों लग जाएंगे. नेता तो अपनी करतूतों से जनता का विश्वास लगभग खो ही चुके हैं लेकिन कम से कम सेना को तो अपनी राजनीति का मैदान न बनाएं.

राजीव रंजन एनडीटीवी में एसोसिएट एडिटर हैं.

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