वंदना की नजर से : सिल्क स्मिता, परवीन बॉबी, जिया के बाद अब अवसाद की शिकार दीपिका

नई दिल्ली:

मायानगरी की चमक के पीछे का अंधेरा गाहे-बगाहे उजागर होता ही रहता है। हालिया उदाहरण हैं, दीपिका पादुकोण, जिन्होंने हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान बताया कि वह 'हैप्पी न्यू ईयर' की शूटिंग के दौरान अवसाद में थीं और इससे बाहर आने के लिए उन्हें मनोचिकित्सक से संपर्क करना पड़ा।

यहां बात उस दीपिका की हो रही है, जो इन दिनों बॉलीवुड में शीर्ष अभिनेत्रियों की फेहरिस्त में शुमार हैं, गाड़ी, बंगला, ऐशो-आराम, सफल लोगों का जमावड़ा, वह सब कुछ, उनके पास है, जिसकी आम आदमी को तमन्ना रहती है।
 
दीपिका ने एक इंटरव्यू में कहा, इस मामले को लेकर उन्होंने अपने माता-पिता और मनोचिकित्सक दोस्त की सलाह ली, जिसने उन्हें इस अवसाद से बाहर आने में मदद दी। दीपिका के मुताबिक, लोग हैरान थे कि इतना सफल होने के बावजूद डिप्रेशन था, लेकिन लोग किसी की मेंटल हेल्थ का अंदाजा नहीं लगा पाते।

खैर, दीपिका भाग्यशाली रहीं कि उनकी फैमिली और दोस्तों ने उन्हें इस अवसाद से बाहर आने में मदद की, सबसे जरूरी चीज, उन्होंने अपनी समस्या को पहचानकर उसका सही समय पर उपचार लिया, लेकिन हर कोई उनके जैसा लकी नहीं होता। बहुतों को तो पता ही नहीं होता कि वे अवसाद में हैं और उन्हें इलाज की जरूरत है। बढ़ते-बढ़ते ऐसे लोगों की बीमारी इतनी बड़ी हो जाती है कि बात खुदकुशी तक जा पहुंचती है।

अब जिया खान को ही लीजिए, 'निशब्द' नाम की फिल्म से महानायक अमिताभ बच्चन के साथ बॉलीवुड में एंट्री, उसके बाद छोटे-मोटे रोल और फिर धीरे-धीरे गुमनामी के अंधेरे की ओर बढ़ते जाना, जिया भी जिंदगी के अप-डाउन्स में फंस कर रह गईं, उससे निकल नहीं पाईं। पुलिस और उनके परिवार के लोगों का कहना है कि वह मौत से पहले लगातार ऑडिशन दे रही थीं, लेकिन कामयाब जिंदगी की कल्पना ने उन्हें ऐसे ढर्रे पर पहुंचा दिया, जहां से निकलकर आ पाना बेहद मुश्किल होता है।

वहीं अभिनेत्री सिल्क स्मिता की बात करें तो साउथ में एक समय अपने ग्लैमर्स और बोल्ड अंदाज से सबको दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर करने वाली विजयलक्ष्मी (सिल्क स्मिता) के करियर की शुरुआत बहुत अच्छी हुई, लेकिन बाद में वह गुमनाम होती गईं, जिसे वह बर्दाश्त नहीं कर पाईं और निराशा व अकेलेपन के बाद एक दिन मृत पाई गईं। उधर, 1997 में मिस इंडिया यूनिवर्स का ताज अपने नाम करने वाली नफीसा जोसेफ 2004 में मात्र 26 साल की उम्र में फंदे पर झूल गईं।

70-80 के दशक में सलवार-सूट में लिपटी हीरोइनों के बीच खुले बाल, हाथ में सिगरेट और मिनी स्कर्ट पहने ग्लैमर्स अंदाज की मल्लिका परवीन 'बॉबी अमर अकबर एंथोनी' और 'नमक हलाल' और 'शान' जैसी सुपरहिट फिल्मों से चर्चा में आईं। लेकिन जीवन में अकेलेपन और निराशा ने उन्हें अपना जल्दी ही शिकार बना लिया। सफलता के चरम पर वह मनोरोग का शिकार हो गईं। उन्हें इलाज के लिए विदेश भी जाना पड़ा, लेकिन वह अपनी बीमारी से पूरी तरह से बाहर नहीं निकल पाईं।

परवीन जितना पर्दे पर बोल्ड और बिंदास थीं, उतनी ही निजी जीवन में अकेली। डैनी, महेश भट्ट, कबीर बेदी जैसे दिग्गज कलाकारों के साथ उनकी करीबी रही, मगर परवीन की जिंदगी में ऐसा कोई नहीं आया, जो हमेशा उनका साथ देता, इसी अकेलेपन ने धीरे-धीरे परवीन बॉबी को अंदर से खाना शुरू कर दिया और पर्दे पर धूम मचाने वाली बोल्ड गर्ल, दुनिया से ऐसे विदा हुई कि किसी को कुछ पता ही नहीं चला। 2005 में वह मुंबई स्थित अपने फ्लैट में एक तन्हा मौत मर गईं। लोगों को उनकी मौत के बारे में दो दिन बाद पता चला।

मनोचिकित्सक की राय - कामयाबी में ही खुशी को देख रहे हैं लोग

फाउंडेशन होप के मनोचिकित्सक डॉ. दीपक रहेजा के मुताबिक, आजकल की भागदौड़-भरी जिंदगी में लोग ऐसी होड़ में हैं, जिसका कोई अंत नहीं। इसकी वजह से वे अपने मूल से जुदा होते जाते हैं। अध्यात्म का अंश खोखला होता जाता है और वे स्पिरिचुअली हीनता की तरफ बढ़ते जाते हैं। लोग उस समय खुशी का सही मायना समझ नहीं पाते। उनके दिमाग में एक ही बात घर कर जाती है कि खुश होने के लिए कामयाबी की जरूरत है, लेकिन वह यह नहीं समझते कि जो खुश होते हैं, कामयाबी उन्हें मिलती है और उनकी कामयाबी लंबे समय तक टिकती भी है। हालांकि क्लीनिकल डिप्रेशन में आपके एनवायरमेंट का रोल नहीं होता, इसमें जेनेटिक रोल भी होता है।

सो अवसाद से बचने के लिए सबसे जरूरी है, वर्क लाइफ को बैलेंस करना। हर चीज का जीवन में अपना योगदान होता है, फिर चाहे परिवार हो, ऑफिस, त्योहार या फिर हॉबीज। सबको बैलेंस करके चलना चाहिए ताकि जीवन में नीरसता न आए।

साथ ही जिस तरह व्यायाम करते हैं, उसी तरह दिमाग को लेकर भी कुछ सावधानियां बरतें। कोशिश करें कि अपने जीवन को नीरस न होने दें। हॉबीज पर ध्यान दें, खुश रहें। हीन भावना और जीवन के खालीपन से बचें। अवसाद से बचने के लिए आजकल पैट्स थैरेपी, म्यूजिक, डांस और आर्ट थैरेपी कारगर साबित हो रही हैं।

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अवसाद की समस्या उन लोगों के साथ बढ़ जाती है, जो इसे समझने और डॉक्टरी सलाह लेने के बजाय इसे छुपाकर अंदर-ही-अंदर घुटते रहते हैं। उन्हें लगता है कि डॉक्टरी सलाह लेने पर कोई उन्हें पागल न कहने लगे। सही समय पर डॉक्टरी सलाह लेने पर कई जिंदगियों को बचाया जा सकता है।