स्कर्ट की लंबाई के भी मायने... नजरिया और निगाह बदलें

स्कर्ट की लंबाई के भी मायने... नजरिया और निगाह बदलें

अमिताभ का पत्र.

सदी उनको अपना महानायक मानती है. मेरे लिए महानायक से बढ़कर रहे हैं. महामानव मानता रहा हूं. जिंदगी से बड़ा जीवन रहा है. ईश्वर का दर्जा तो नहीं दे सकता लेकिन "अराध्या" के दादाजी मेरे "आराध्य" रहे हैं. होंगे "कुमार", "कपूर", "खन्ना", "खान" वगैरह-वगैरह, लेकिन अमिताभ बच्चन जैसा कोई नहीं हुआ और शायद हो भी नहीं. अभिनय की संस्था हैं. वन मैन इंडस्ट्री हैं. बॉलीवुड में नंबर-1 से नंबर-10 अमिताभ ही हैं. उनके बाद ही किसी का नंबर आता है.

"आई कैन टॉक इंग्लिश. आई कैन वॉक इंग्लिश..." के साथ हंसा.
"जब तक बैठने को नहीं कहा जाए तब तक खड़े रहो...." के साथ गुस्सा आया.
"मैं आज भी फेंके हुए पैसे नहीं लेता...." के साथ एटीट्यूड आया.
"हम जहां खड़े होते हैं लाइन वहीं से शुरू होती है....." के साथ दादागिरी आई.
"तुम लोग मुझे ढूंढ रहे हो और मैं तुम्हारा यहां इंतज़ार कर रहा हूं." से व्यवस्था से लड़ना सीखा.


जीवन के हर रंग को जितनी संजीदगी और सजीवता से अमिताभ ने ने पर्दे पर जिया है वह किसी और के वश की बात नहीं. आज 73 साल की उम्र में उनका जोश नौजवानों को मात दे रहा है.

आपको याद होगा "दीवार" में अमिताभ बच्चन और शशि कपूर के बीच पुलिया के नीचे संवाद होता है. अमिताभ पूछते हैं, "मैं जो कहना चाहता हूं, उसके पहले पूछ लूं कि इस वक्त मुझे सुनने वाला कौन है-एक भाई या एक पुलिस ऑफ़िसर?

आज मेरे सामने शशि कपूर तो नहीं हैं लेकिन अमिताभ बच्चन की दो शख्सियतें खड़ीं हैं-खालिस अमिताभ बच्चन और आने वाली फिल्म "पिंक" का "दीपक". दीपक द्विध्रुवी विकार (बायपोलर डिसऑर्डर) का शिकार है. उसका मूड स्विंग होता रहता है. फिल्म पूरा होने के बाद अमिताभ बच्चन ने अपनी पोती अराध्या और नातिन नव्या नवेली को सीख देती एक सार्वजनिक चिट्ठी लिखी है. लेकिन ऐसा लगता है कि खत लिखने के क्रम में में कई बार "अमिताभ बच्चन" पर "दीपक" हावी हो गया है.

"रिश्ते में तो तुम्हारे बाप लगते हैं, नाम है शहंशाह." दिल में रिश्ते की इज्जत है. लेकिन अग्रिम माफी के साथ खत पर चर्चा इसलिए कर पा रहा हूं क्योंकि चिट्ठी सार्वजनिक है.

इस बात से सहमत हूं कि स्कर्ट की लंबाई किसी का चरित्र मापने का पैमाना नहीं हो सकता. "पैमाना" भले ही न हो लेकिन स्कर्ट की लंबाई हमारे देश में "मायने" रखता है.... बहुत ज्यादा. "बच्चन", "नंदा", "गांधी", "अंबानी", या "बिरला" सरनेम के लिए स्कर्ट की लंबाई शायद मायने नहीं रखती हो क्योंकि यह समाज का प्रभावशाली वर्ग है. चौबीसों घंटे सुरक्षा घेरे में रहते हैं. लंबाई मापना तो दूर, गुस्ताख भी नहीं मिलेंगे जो आंख उठाकर इधर ताकें. सही कहा है कि अराध्या और नव्या को "बच्चन" और "नंदा" सरनेम की विरासत को आगे ले जाने की जरूरत है. क्योंकि यह उनके लिए सुरक्षा कवच का काम करेंगे.

देश का मध्य वर्ग भी स्कर्ट की लंबाई को कम करना चाहता है. वह भी अपने लिए "आदर्शलोक" या "यूटोपिया" की कल्पना करता है. लेकिन वह डरता है. यहां आठ महीने की बेटियों के दरिंदे भी हैं और 60 साल की मांओं के भी, जो स्कर्ट तो छोड़िए निगाहों से कपड़ों से ढके तन में भी नग्नता ढूंढते हैं. देश की राजधानी से चंद किलोमीटर दूर कस्बों में "लोग क्या कहेंगे" का लबादा समाज और खासकर महिलाओं पर इतना भारी है कि "अपनी सोच और अपना फैसला" दिल में ही दम तोड़ देता है.

नजरिए और निगाह में जब तक बदलाव नहीं आता तब तक...

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता.
यत्रेतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला क्रिया.

 
वेद में ही सीमित रह जाएगा. हालांकि साक्षी मलिक, गीता फोगट, दीपा कर्मकार, मैरी कॉम जैसी लड़कियां व्यवस्था की जंजीरों को तोड़कर आगे निकली हैं. समाज में सिर्फ सुरक्षित माहौल देकर देखिए, कैसे देश की तस्वीर बदल जाती है.

संजय किशोर एनडीटीवी के खेल विभाग में एसोसिएट एडिटर हैं...

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