...तो हर इंग्लैंड दौरे में कुछ ऐसा ही हाल होगा!

साल 2011 के बाद से किसी भारतीय टीम की इंग्लैंड की जमीं पर टेस्ट में लगातार तीसरी सीरीज हार

...तो हर इंग्लैंड दौरे में कुछ ऐसा ही हाल होगा!

इंग्लैंड के खिलाफ हालिया संपन्न पांच टेस्ट मैचों की सीरीज के आखिरी टेस्ट की दूसरी पारी में केएल राहुल और ऋषभ पंत ने अपनी शतकीय पारियों से सीरीज की स्कोर लाइन 3-2 करने की भरपूर कोशिश की, लेकिन आखिर में भारत को 4-1 से हार का कलंक वहन करने पर मजबूर होना पड़ा.  दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि कप्तान विराट कोहली और कोच रवि शास्त्री अपने बचाव में इस हार की तुलना पिछली सीरीजों के साथ कर रहे हैं. यह कुछ ऐसा ही है-...बर्बादियों का जश्न मनाता चला गया!! यह साल 2011 के बाद से किसी भारतीय टीम की इंग्लैंड की जमीं पर टेस्ट में लगातार तीसरी सीरीज हार रही. हालिया और पिछली दो सीरीज में मिली हार में एक बड़ा अंतर यह रहा कि इस बार टीम विराट इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज में आईसीसी रैंकिंग में बतौर नंबर-1 मैदान पर उतरी थी. राहत की बात यह है कि करारी शिकस्त के बाद भी भारत की पायदान पर कोई असर नहीं पड़ने जा रहा. लेकिन करोड़ों भारतीय क्रिकेटप्रेमियों के दुख और मलाल लगातार बढ़ रहा है.

सीरीज की शुरुआत से लेकर ही आखिरी टेस्ट तक महान सुनील गावस्कर लगातार अपनी कमेंट्री और कॉलमों में इस बात की चर्चा करते रहे कि बर्मिंघम में खेले गए पहले टेस्ट से पहले भारतीय टीम को पर्याप्त मैच प्रैक्टिस नहीं मिली. इसने भारत को बहुत नुकसान पहुंचाया. बर्मिंघम में भारतीय टीम जीत के लिए 194 के लक्ष्य का पीछा करते हुए 162 पर ऑलआउट हो गई थी. और भारत को सिर्फ 31 रन से हार का मुंह देखना पड़ा था. सनी गावस्कर की बात बहुत ही तार्किक है. जब कोई भी टीम किसी टेस्ट सीरीज खासतौर पर विदेशी में मुश्किल हालात में खेलती है, तो पहले टेस्ट मैच से पहले पर्याप्त मैच प्रैक्टिस अंतर पैदा करती है. और जब टीम पहला टेस्ट जीत जाती है, तो इसके मायने अलग ही होते हैं. यह जीत पांच मैचों की सीरीज के बाकी मैचों के लिए बेहतरीन मनोदशा, आत्मविश्वास, मनोवैज्ञानिक लाभ सहित कई जरूरी तत्व प्रदान करता है.

ऐसे में सवाल यह है कि क्या बीसीसीआई ने पहले टेस्ट मैच से पहले कम से दो स्तरीय अभ्यास मैचों के इंतजाम के प्रयास किए? क्या इस बाबत विराट कोहली और कोच रवि शास्त्री के विचार लिए गए थे? आखिर यहां जिम्मेदार और जवाबदेही किसकी है क्योंकि वर्तमान व्यवस्था में कागज पर तो कोई दौरा एवं कार्यक्रम निर्धारण कमेटी नजर नहीं आती. क्या इस करारी हार के लिए भारतीय टीम मैनेजमेंट जिम्मेदार है या फिर क्रिकेट प्रशासकीय कमेटी (सीओए)? सुप्रीम कोर्ट द्वारा व्यव्स्था संभालने से पहले तक हालिया सालों में बीसीसीआई को तीखी आलोचना का सामना करना पड़ता रहा है. लेकिन अब करोड़ों भारतीय क्रिकेटप्रेमी सहित मीडिया भी बहुत हद तक भ्रमित है कि आखिर बीसीसीआई है कहां?
 
बहरहाल सुनील गावस्कर का टीम इंडिया को पर्याप्त मैच प्रैक्टिस न मिल पाने का तर्क साउथंप्टन में चौथे टेस्ट में मिली 60 की हार के बाद दम तोड़ता दिखाई पड़ता है. कारण यह है कि नॉटिंघम में तीसरे टेस्ट में 203 रनों से मिली भारी भरकम जीत के बाद टीम इंडिया के पास अगली लड़ाई के लिए सबकुछ था. जरूरी आत्मविश्वास, सीरीज बराबर करने की प्रेरणा..सबकुछ!! आखिर जीत से बेहतर दवा और क्या हो सकती थी. ऐसे में सवाल यह है कि आखिरकार बल्लेबाजों को कितनी मैच प्रैक्टिस की जरुरत थी. यह तो यही बताता है कि इस टीम को पहले टेस्ट से पहले अगर दो या तीन प्रैक्टिस मैच भी मिल जाते, तो भी हालात कमोबेश कुछ ऐसे ही होते! युवा विकेटकीपर ऋषभ पंत भारत “ए” टीम के लिए इंग्लैंड दौरे में पर्याप्त मैच खेल चुके थे, तो वह तीसरे और सबसे जरूरी मौके पर चौथे टेस्ट की पारियों में क्यों फ्लॉप साबित हुए. और क्यों उन्हें लय उनके खेले तीसरे टेस्ट की दूसरी पारी में मिली, जब भारत के हाथ से सबकुछ निकल गया?

वहीं, चौथे टेस्ट में टीम इंडिया का बुरा हाल उस मोईन अली ने मैच में नौ विकेट लेकर किया, जो सीरीज का पहला टेस्ट मैच खेले. क्या इस प्रदर्शन को अपवाद मान लिया जाए, या मोईन अली ने इशारा कर दिया कि अब खेल के दीर्घकालिक फॉर्मेट में स्पिनर खेलने की कला में  भारतीय बल्लेबाज कमजोर हो चले हैं?  वैसे यह संयोग ही था कि चौथे और पांचवें टेस्ट के बीच तमिलनाडु में आयोजित हुई देश की दूसरी सबसे प्रतिष्ठित घरेलू दलीप ट्रॉफी के फाइनल की दूसरी पारी में इंडिया ब्लू के दो स्पिनरों (??), इनमें से एक पार्टटाइमर दीपक हूडा ने मिलकर इंडिया रेड सभी दस विकेट चटकाए. क्या यह नहीं इंगित करता कि आईपीएल ने स्पिनरों के खिलाफ डिफेंसिव तकनीक को कमजोर करने का काम किया है?

वास्तव में इंग्लैंड दौरे में बहुत ही खराब प्रदर्शन से जुड़ी समस्या कहीं ओर ही दिखाई पड़ती है! घरेलू क्रिकेट देखने वाली क्रिकेट कमेटी कहां है? हालिया सालों में इस कमेटी ने क्या किया है? क्रिकेट सुधार के नाम पर इस कमेटी ने कार्यक्रम में पुनर्निधारण और फेर-बदल जरूर किया है. उदाहरण के तौर पर सत्र की शुरुआत दलीप ट्रॉफी मैचों से हो और इसमें गुलाबी रंग की गेंद का इस्तेमाल, सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी (टी-20) में लीग दौर के मैचों के बाद सेमीफाइनल और फाइनल, वगैरह..वगरैह. सवाल यह है कि क्या ये कदम वास्तव में टीमों का खेल का स्तर ऊंचा ले जाने, या वह स्तर हासिल करने के लिए काफी हैं, जिसकी विदेशी जमीं पर टीम इंडिया को जरुरत पड़ती है?  क्या दर्शक और यहां तक की मीडिया मैदान के बाहर से वास्तव में रणजी और दलीप ट्रॉफी के मुकाबले में खेल के स्तर में अंतर ढूंढ सकते  हैं? अब जबकि जस्टिस लोढ़ा कमेटी की सिफारिशें लागू होने के बाद 2018-19 सेशन में रणजी ट्रॉफी में 37 टीमें हिस्सा ले रही हैं, तो खेल के स्तर और इसमें रुची को बरकरार रखना बीसीसीआई (?) के लिए बड़ी चुनौती साबित होना जा रहा है. ऐसे में खेल के स्तर के ऊपर जाने के बारे में ही सोचना बेमानी है.

टीम इंडिया के विदेश में लड़ाई लड़ने में आने वाली समस्या का इलाज घरेलू क्रिकेट में ही निहित है! घरेलू क्रिकेट में खेल का स्तर ऊंचा उठाने की तत्काल प्रभाव से जरुरत है. निश्चित ही, यह कार्यक्रम में फेरबदल करने और गुलाबी रंग की गेंद के इस्तेमाल जैसी बातों से तो बिल्कुल होने नहीं जा रहा. तो इलाज क्या है?  इलाज यह है कि गैरपारंपरिक और रचनात्मक रास्ते तैयार करने होंगे. मसलन  दिलीप ट्रॉफी मैचों के अनिवार्य रूप से तेज पिचों पर आयोजन से फिल्टर लगाया जा सकता है. सर्दियों में ज्यादा मुकाबले धर्मशाला जैसे ठंडे और हवादार इलाकों में आयोजित किए जा सकते हैं..वगैरह..वगैरह.

भारत को अपने शीर्ष क्रम को विदेशी हालात में बेहतर करने के लिए और ज्यादा साहसी, अनुकूल, विश्वसनीय और निर्णायक बनाने की जरुरत है. मोईन अली को चौथे टेस्ट में अपवाद मान लिया जाए, तो वास्तव में विराट एंड कंपनी की 4-1 की शिकस्त के लिए यह शीर्ष बैटिंग क्रम ही जिम्मेदार रहा. विराट कोहली को छोड़कर जेम्स एंडरसन एंड  कंपनी ने शिखर धवन, केएल राहुल, चेतेश्वर पुजारा और अजिंक्य रहाणे का जीना दूभर कर कर दिया. पूरी सीरीज में शुरू से लेकर आखिर तक ये चारों एक ईकाई के रूप में नहीं ही चले.

इंग्लैंड में भारत ने अगर अपनी सर्वकालिक सबसे नजदीकी हार (पहले टेस्ट में 31 रन, चौथे टेस्ट में 60 रन) हार झेलीं, तो उसके लिए शीर्ष क्रम ही जिम्मेदार रहा क्योंकि ये “घरेलू शेर” स्विंग और सीम के आगे बार-बार पस्त होते रहे. ऐसे में बीसीसीआई (?)  को न केवल इन बल्लेबाजों बल्कि अपने सभी बल्लेबाजों के लिए घरेलू क्रिकेट ढांचे के जरिए विदेशी हालात पैदा करने के प्रयास करने होंगे. एक बात पूरी तरह से साफ है कि विदेशी जमीं पर पहले टेस्ट से पहले दो या तीन प्रैक्टिस मैच स्थायी इलाज बिल्कुल भी नहीं है.

 घरेलू मैचों के कार्यक्रम में फेरबदल या पिछले सेशन में किए गए बदलाव भला नहीं ही करने जा रहे. लेकिन सवाल यहां यह भी है कि सुधार के लिए रुचि कौन लेगा? क्या यह क्रिकेट सलाहकार कमेटी है, जो हर बात पर पल्ला झाड़ती दिखाई पड़ रही है. और आखिर पल्ला झाड़े भी क्यों न. इस बात का जवाब कौन देगा कि राहुल द्रविड़ और जहीर खान को क्रमश: बैटिंग और बॉलिंग कोच के रूप में इस कमेटी के चयन और सिफारिश को क्यों खारिज किया गया? आखिर टीम मैनेजमेंट में कौन है? क्या यह सिर्फ रवि शास्त्री और विराट कोहली तक ही सिमट कर रह गया है? क्या टीम मैनेजमेंट में उप-कप्तान शामिल है या नहीं, या उसकी राय को अहमियत दी भी जाती है?

वास्तव में यहां सवालों की अंतहीन सूची है और यह करोड़ों भारतीय क्रिकेटप्रेमियों का हक है कि उन्हें इन तमाम सवालों के जवाब मिलें. इन तमाम सवालों के बीच एक बात पूरी तरह साफ है कि जब तक सबक नहीं सीखे जाते और गंभीर सुधार लागू नहीं किए जाते, तो इंग्लैंड में सिर्फ साल 2021 में होने वाले अगले दौरे में ही नहीं, बल्कि आगामी हर इंग्लैंड दौरे में कुछ ऐसी ही दुर्गति होती रहेगी, जैसी पिछले तीन दौरों में हुई. और भारतीय बल्लेबाज कभी भी उस रेखा को पार करने में सक्षम नहीं ही हो पाएंगे, जिसके बारे में चौथे टेस्ट में शिकस्त के बाद विराट कोहली ने बोला था. मतलब पहले टेस्ट में 194 जैसा स्कोर...और चौथे टेस्ट में 245 जैसा स्कोर...!! निश्चित ही विराट कोहली एंड कंपनी के साल 2018 में इंग्लैंड दौरे को अवसर गंवाने के रूप में याद किया जाएगा, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि कोहली और शास्त्री एक अलग ही “राग” अलाप रहे हैं.


(मनीष शर्मा Khabar.NDTV.com में डिप्‍टी न्यूज एडिटर हैं...)

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