प्राइम टाइम इंट्रो : राज्यों पर कर्ज़ माफ़ी का दबाव, केंद्र का कर्ज़ माफ़ी से इनकार

वेंकैया नायडू को यह सुझाव चुनाव से पहले देना चाहिए था. यूपी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को वे अब भी कह सकते हैं कि फैशन बंद कीजिए.

प्राइम टाइम इंट्रो : राज्यों पर कर्ज़ माफ़ी का दबाव, केंद्र का कर्ज़ माफ़ी से इनकार

प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

ये भी एक फैशन हो गया है, लोन लिया तो लोन वेभर करो. ये उस बयान का हिस्सा है जो केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू ने मुंबई में दिया है. किसानों की कर्ज़ माफ़ी फ़ैशन हो गया है. मुंबई में यह बयान दिया है कि कहीं इससे प्रभावित होकर उनकी पार्टी के मुख्यमंत्री देवेंद फडणवीस कर्ज़ माफ़ी का अपना फ़ैसला वापस न ले लें. किसानों की कर्ज़ माफ़ी को फैशन कहने से पहले लगता है कि उन्हें यूपी चुनाव का ध्यान नहीं रहा जब ख़ुद प्रधानमंत्री कहा करते थे कि हमारी सरकार बनी तो उसकी कैबिनेट की पहली बैठक में किसानों की कर्ज़माफी होगी और यह बकायदा बीजेपी के घोषणापत्र का हिस्सा था.

वेंकैया नायडू को यह सुझाव चुनाव से पहले देना चाहिए था. यूपी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को वे अब भी कह सकते हैं कि फैशन बंद कीजिए. यूपी में सरकार बनते ही कर्ज़ माफी सबसे बड़ा फैसला था. महाराष्ट्र इनकार करता रहा लेकिन किसान आंदोलनों ने मुख्यमंत्री फडणवीस को मजबूर कर दिया कि कर्ज़ माफी करें. पंजाब को ऐलान करना पड़ा क्योंकि कांग्रेस ने वहां चुनावों में जनता से वादा किया था. फिर कर्नाटक से ख़बर आई कि वहां भी फ़सली ऋण माफ करने का ऐलान हुआ है. मध्य प्रदेश ने भी कर्ज़ माफी की एक योजना बनाकर 1000 करोड़ का प्रावधान किया है. 9 साल पहले 2008 में यूपीए सरकार ने कर्ज़माफी का ऐलान किया था लेकिन दोनों में अंतर है. 2008 में केंद्र सरकार ने कर्ज़ माफी की थी लेकिन इस बार राज्य सरकारें कर रही हैं. वित्त मंत्री जेटली ने साफ-साफ कहा है कि कर्ज़ माफी नहीं करेंगे. एक हिसाब देखते हैं कि यूपीए के समय कितना ऐलान हुआ था और इस वक्त कितने करोड़ माफ होने का ऐलान हो चुका है.

- उत्तर प्रदेश ने 36,359 करोड़ की कर्ज़माफ़ी का ऐलान किया है
- महाराष्ट्र ने 30,000 करोड़ की कर्ज़माफी का ऐलान किया है
- कर्नाटक ने 8,165 करोड़ की फसली ऋण माफ करने का ऐलान किया है
- पंजाब में 21000 करोड़ की कर्ज़माफी का ऐलान हुआ है मगर प्रावधान 1500 करोड़ का ही किया
- तेलंगाना ने 17,000 करोड़ की कर्ज़माफी का ऐलान किया है
- आंध्र प्रदेश ने 22000 करोड़ की कर्ज़माफी का ऐलान किया है
- तमिलनाडु सरकार ने 5,780 करोड़
- सात राज्यों का कुल योग होता है 140,304 करोड़ रुपया

2008 में यूपीए ने 60,000 करोड़ की कर्ज़माफी का ऐलान किया था. 2016 और 2017 की कर्ज़ माफी का कुल योग है करीब 1 लाख 40 हज़ार करोड़. कहीं भी पूर्ण माफी नहीं हुई है. कहीं ऐलान ही हुआ है, कहीं ऐलान होने के बाद आधा काम हुआ है, कहीं प्रक्रिया चल ही रही है और कहीं प्रक्रिया इतनी जटिल कर दी गई है कि उससे कुछ लाभ भी नहीं. बिजनेस स्टैंडर्ड की खबर के अनुसार तेलंगाना ने 17000 करोड़ की कर्ज़माफी का वादा पूरा कर दिया है. आध्र प्रदेश ने 22,000 करोड़ की माफी का वादा किया था मगर फाइनेंशियल एक्सप्रेस की खबर के अनुसार आधा पैसा ही बैंकों को दिया है. क्या आप जानते हैं कि किसानों पर कर्ज़ कितना है. सितंबर 2016 में राज्यसभा में कृषि राज्य मंत्री ने बताया था कि भारत के किसानों पर 30 सितंबर 2016 तक 12 लाख 60 हज़ार करोड़ रुपये का कर्ज़ा है. इनमें से 9 लाख 57 हज़ार करोड़ का कर्ज़ा व्यावसायिक बैंकों ने किसानों को दिया है. 12 लाख 60 हज़ार करोड़ में से 7 लाख 75 हज़ार करोड़ कर्ज़ा फसलों के लिए लिया गया है. तब पुरुषोत्तम रूपाला ने कहा था कि सरकार कर्ज़ा माफ नहीं करेगी. रिज़र्व बैंक ने कहा है कि इससे कर्ज़ वसूली पर नकारात्म असर पड़ेगा.

12 लाख 60,000 करोड़ का कर्ज़ा है और सात राज्यों में माफी का ऐलान हुआ है एक लाख 40 हज़ार करोड़. यह कितना हुआ, मात्र 12 प्रतिशत. क्या 12 प्रतिशत कर्ज़ माफी का ऐलान फैशन है.

वेंकैया नायडू के बयान में चार बिंदु हैं. पहला कि कर्ज़माफी फैशन होता जा रहा है. दूसरा कि कर्ज़ माफी अंतिम समाधान नहीं है, ये कोई नहीं कहता कि कर्ज़ माफी अंतिम समाधान है. तीसरा बिन्दु यह है कि किसान के हाथ में पैसा कैसे पहुंचे इसके लिए क्या कदम उठाया जाए तो इसकी समीक्षा उन्हें ही करनी चाहिए कि क्योंकि सरकार उनकी है और सरकार ने कदम तो उठाये ही होंगे. चौथा बिन्दु यह है कि कर्ज़ माफी एक्सट्रीम सिचुएशन में होनी चाहिए. ये एक्स्ट्रीम सिचुएशन यानी चरम स्थिति यानी अंतिम अवस्था क्या है. 22 जून को मध्य प्रदेश के दो किसानों ने आत्महत्या कर ली.

सागर के बसारी गांव के किसान गुलई कुरमी पर 8 लाख रुपये का कर्ज़ था. 11 एकड़ ज़मीन के इस किसान के पास कर्ज़ के कारण खुदकुशी करने की कोई वजह नहीं होनी चाहिए थी. लेकिन कर्ज़ चुकाते चुकाते गुलई कुर्मी की 5 एकड़ ज़मीन बिक भी गई. जो 7 एकड़ ज़मीन बची थी उस पर भी महानज की नज़र पड़ गई थी. ज़ाहिर है किसान कर्ज़ से दबा हुआ था और अपनी ज़मीन नहीं बचा पा रहा था. उस पर सेंट्रल बैंक से ट्रैक्टर का लोन लिया था जिसकी किश्त नहीं दे पा रहा था. गुलई की जेब से एक सुसाइड नोट भी मिला है. उस पत्र को सुनकर आप समझ सकते हैं कि किसानों की जान कौन लोग ले रहे हैं. 3 बच्चों के पिता गुलई लिखते हैं कि शंकर बऊदेनियां महाराज ने धोखाधड़ी से बेनामा करा लियो. ज़मीन गिरवी रखी थी, ब्याज द्वारा रखी. हम इनका ब्याज देते रहे, हमेशा देते रहे, इनकी नीयत ख़राब होने लगी. हमको जे धमकी देने लगे. हम ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर लेंगे. एक लाख रुपये लिए जिसमें से लिखा पढ़ी के पैसे काटे, एक लाख में से काटे, बाकी 2 लाख 50000 रुपया पहुंचे. इनका हमारा हिसाब हो चुका था फिर भी जे हमसे और पैसा मांग रहे हैं. जान मारने की धमकी देने को तैयार हैं. शंकर पिता परसराम शंकर ने अपनी पत्नी के नाम से लिखा-पढ़ी करी थी, शंकर महाराज पत्नी का नाम कमलाबाई है. धन्नालाल जान से मारने की धमकी देने को तैयार है. हमें किसी भी प्रकार से फंसा देंगे.

सूदखोर 20 से 24 प्रतिशत तक का ब्याज़ वसूलते हैं. किसानों को ज़रूरत का सारा पैसा बैंक से नहीं मिलता है. मध्य प्रदेश में 15 दिन में 20 किसानों ने खुदकुशी की है. 13 जून को मध्य प्रदेश के गृहमंत्री ने कहा था कि पिछले एक साल में सिर्फ चार किसानों ने कर्ज़ के कारण आत्महत्या की है. ये वही मंत्री हैं जिन्होंने कहा था कि पुलिस की गोली से किसान नहीं मरे हैं फिर तीन दिन बाद माना कि पुलिस की गोली से मरे हैं. 3 मई को सुप्रीम कोर्ट में सेंटर ने जो हलफनामा दिया है उसमें बताया है कि 2015 में मध्य प्रदेश में 581 किसानों ने आत्महत्या की थी. उसमें कहीं नहीं कहा है कि इन किसानों ने कर्ज के कारण आत्महत्या नहीं की है बल्कि यही कहा है कि खेती में सकंट के कारण तनाव है और सरकार उनकी आमदनी बढ़ाने का प्रयास भी कर रही है. हमने मंगलवार के प्राइम टाइम में मध्य प्रदेश के अपने सहयोगी अनुराग द्वारी से पूछा था कि इन महाजनों के पीछे ज़रूर राजनीतिक ताकत होती होगी. इसकी ठीक से जांच होनी चाहिए कि किसान किन महाजनों से 20 से 24 फीसदी पर ब्याज़ ले रहा है और वो कौन लोग हैं. किसान बैंक से परेशान है या इन महाजनों के चंगुल से. बुदनी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सिहोर ज़िले की तहसील का नाम है, यहां 22 जून की सुबह 55 साल के शत्रुघ्न मीणा ने सल्फास खाकर आत्महत्या कर ली.

परिवार के लोग होशंगाबाद के निजी अस्पताल भी ले गए मगर शत्रुघ्न ने दम तोड़ दिया. परिवारवालों के अनुसार शत्रुघ्न पर दस लाख का कर्ज़ था. अपने खेत में बिजली का स्थाई कनेक्शन लेने के लिए वे 22 जून को तहसील कार्यालय गए. वहां पता चला कि जिस सात एकड़ ज़मीन को वो अपना मान रहे हैं वो उनके नाम नहीं है. बस वहां से लौट कर सल्फास खा ली और आत्महत्या कर ली. बेटे का आरोप है कि बीजेपी के स्थानीय नेता अर्जुन मालवीय ने उनकी ज़मीन हड़प ली है. बीजेपी के प्रवक्ता ने माना है कि अर्जुन मालवीय पार्टी के नेता हैं मगर आरोप की जांच होनी चाहिए. वैसे हमारे सहयोगी अनुराग द्वारी ने अर्जुन मालवीय से भी उनका पक्ष लिया है.

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अगर चाहेंगे तो आसानी से पता कर सकते हैं कि शत्रुघ्न मीणा की ज़मीन किसी ने अपने नाम की है या नहीं, अगर की है तो तहसील कार्यालय में कौन कौन लोग शामिल रहे हैं. प्रवक्ता का यह बयान अजीब है कि अर्जुन मालवीय बीजेपी के नेता हैं लेकिन उनके भाई कांग्रेसी हैं.

पंजाब के तरणतारण में भी दो किसानों ने 22 जून को खुदकुशी की है. तरणतारण के कोट सिवया के किसान जोगिन्दर सिंह और खडूर साहिब के पड़ते गांव आलोवाल के किसान दलबीर सिंह ने आत्महत्या कर ली. जोगिन्दर सिंह पर सात लाख का कर्ज़ था. इसमें पांच लाख कर्ज बैंक का था, दो लाख आढ़ती से लिए थे और ढाई एकड़ ज़मीन थी. दलबीर सिंह ने भी रात को सोते वक्त ज़हर पी लिया.  दलबीर सिंह ने 4 लाख आढ़ती से लिये थे. दो लाख जालंधर के दूसरे आढ़तियों से लिये थे. एक लाख बैंक का कर्ज था और चार एकड़ ज़मीन थी. साठ साल की उम्र में कोई किसान आत्महत्या कर रहा है तो इसका मतलब है कि किसान एक्सट्रीम सिचुएशन में है.

कर्ज़ का डिटेल इसलिए बताया ताकि आपको पता चले कि किसान कहां कहां से कर्ज़ ले रहा है. माफी कितने की हो रही है एक लाख या दो लाख. वो भी ऐलान ही हुआ है. 22 जून को चार किसानों ने आत्महत्या की है. शिवसेना ने वेंकैया नायडू के बयान की आलोचना की है.

निखिल पांधी हमारे सहयोगी हैं. उन्होंने पंजाब के फतेहगढ़ साहिब के रैलों गांव के एक किसान से बात की. 35 साल से खेती कर रहे हैं. कहते हैं कि हर साल कर्ज़ बढ़ता ही जा रहा है. खेती की लागत बढ़ती जा रही है. जो लागत है उसके हिसाब से दाम नहीं मिल रहा है. परिवार में पांच लोग हैं. दो बेटियां और एक बेटा. सबकी शादी होनी है लेकिन शादी करने के पैसे नहीं हैं. अब वे खेती छोड़ने का विचार कर रहे हैं. कहते हैं कि अब खेती करूंगा तो खेती ही किसान को खा जाएगी, किसान क्या खेती से खायेगा. 6 बीघा के जोतदार कंवल सिंह पर 4 लाख का कर्ज़ा है.

पिछले साल लुधियाना के साहिबान गांव के जसविंदर सिंह ने अपने पांच साल के बेटे को सीने से लगाया और नहर में कूदकर जान दे दी. जसविंदर पर दस लाख का बैंक लोन था. डेढ़ एकड़ की ज़मीन थी. क्या ये एक्सट्रीम सिचुएशन नहीं है. क्या ऐसे एक्स्ट्रीम सिचुएशन वाले किसानों के दस लाख लोन माफ करेगी सरकार? कहीं भी एक लाख या दो लाख से ज़्यादा का लोन माफ नहीं हो रहा है. फिर ये फैशन कैसे हो गया.

कई साल पहले मैंने रवीश की रिपोर्ट में भिवानी से एक रिपोर्ट की थी वहां कई अस्पताल मिले जिनके बाहर लिखा था ज़हर खाये मरीज़ों का अस्पताल. आज मैंने भिवानी से अपने सहयोगी से उन अस्पतालों की तस्वीर मंगाई. ये अस्तपाल आज भी मौजूद हैं. एक अस्पताल के बाहर तो स्प्रे भी लिखा है, ज़हर भी लिखा है. क्या आपने सल्फास खाए मरीज़ों के इलाज के अस्तपाल के बोर्ड दिल्ली मुंबई में देखे हैं. सल्फास खाने के अलग अलग कारण हैं मगर इनके भीतर खेती के भीतर का आर्थिक संकट भी है. भारत का किसान जान भी देता है और लाज भी बचा लेना चाहता है. 2015 के राष्ट्रीय अपराध शाखा ब्यूरो की रिपोर्ट बताती है कि हरियाणा में खेती के सेक्टर से जुड़े 162 लोगों ने आत्महत्या की और 28 किसानों ने आत्महत्या की.

ठीक है कि भारत की राजनीति को भरोसा है कि वो किसानों को धर्म और जाति में बांट देगी, और चुनाव के वक्त किसान खुशी खुशी बंट भी जाते हैं लेकिन यह भी एक तथ्य है कि आत्महत्याएं हो रही हैं. तेलंगाना में हर दिन छह किसान आत्महत्या करते हैं. इसी साल 3 मई को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया है कि खेती के सेक्टर में हर साल 12000 किसान आत्महत्या करते हैं. एक साल में 12,000 किसानों का आत्महत्या करना क्या एक्स्ट्रीम सिचुएशन नहीं है. अब आते हैं राजस्थान की एक ख़बर पर. ग़रीब के साथ सरकार ही अच्छा मज़ाक करती है.

मैं ग़रीब परिवार से हूं और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम यानी एनएफएसए के तहत राशन लेता हूं. लाभार्थी राजबाई, पुत्र, प्रभुदयाल, बीपीएल नंबर 641941. सरकार कहती है कि कई लोग ऐसे इस योजना में शामिल हो गए थे जो बीपीएल के हकदार नहीं थे इसलिए लिखा गया है. दौसा ज़िले के इस गांव में अगर आप आएं और कुछ घरों पर ऐसा लिखा देखें तो क्या आपके मन को ठेस नहीं पहुंचेगी. ठीक है कि आप दिल्ली मुंबई में रहने लगे हैं लेकिन कुछ दशक पहले तक आपके घर में भी तो राशन का सामान आता था, सोचिये कि सरकार बाहर लिखवा देती तो आपको कैसा लगता. सरकार अपने रिकॉर्ड में हिसाब रखे, गरीब के घर के बाहर क्यों लिखा गया है कि मैं ग़रीब परिवार से हूं और राशन लेता हूं. हमारी सहयोगी हर्षा कुमारी सिंह ने बताया है कि दौसा ज़िले में 52,164 परिवार बीपीएल हैं यानी ग़रीबी रेखा से नीचे के लोग हैं. सरकार ने डेढ़ लाख से अधिक घरों के बाहर की दीवार पर मैं ग़रीब परिवार से हूं लिखवा दिया है.

मैं ये नहीं कह रहा कि ऐसा लिखना 'दीवार' फिल्म के उस सीन की तरह है जिसमें विजय के हाथ पर लिख दिया गया था कि मेरा बाप चोर है. उस तरह का मामला तो नहीं है फिर भी ग़रीब के घर के बाहर ग़रीब लिखते वक्त इतना तो सोचना चाहिए कि उसकी भी कुछ मान मर्यादा है. ग़रीब का भी स्वाभिमान होता है. एक चीज़ समझ लेनी चाहिए कि सब्सिडी ख़ैरात नहीं है, न ही भीख है बल्कि यह अधिकार है जिसे देते समय सरकारें संसद में कानून बनाती है, मंत्रिमंडल में फैसला होता है. राजस्थान में राशन कार्ड धारकों को जब आधार से जोड़ दिया गया है तब दीवार पर लिखने की क्या ज़रूरत थी कि मैं ग़रीब हूं. फिर आधार को बंद कर दीवार पर ही लिखना चाहिए कि मैं ग़रीब हूं और राशन लेता हूं.

ये रिपोर्ट 201 की है हमारी पूर्व सहयोगी रुबीना ख़ान शापू ने की थी. दीवार है मध्यप्रदेश की. यहां के गोपालगंज के गांवों में परिवार वालों की मंज़ूरी के बिना दीवार पर ग़रीब लिख दिया गया है. तब भीखम ने रूबीना ख़ान शापू से कहा था कि अपने घर के बाहर इस तरह से लिखा देख पीड़ा होती है. अब सबको पता चल गया कि हम ग़रीब हैं. बेटी की शादी होने में मुश्किल आएगी. जब मीडिया में यह बात आई तो प्रशासन ने इसे मिटा दिया. मगर अनुसूचित जनजाति के लोग इस बात से काफी नाराज़ हुए थे क्योंकि उनके साथ पहली बार ऐसा नहीं हुआ था. 2009 के साल में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में शिकायत भी की थी कि इस तरह की निशानदेही से उनका अपमान होता है.

राजस्थान और मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार है मगर 2008 में हरियाणा में जब कांग्रेस की सरकार थी तब भी राज्य सरकार ने फैसला लिया था कि बीपीएल परिवारों की दीवारों पर बीपीएल नंबर पेंट करेगी. उस समय भी खूब विवाद हुआ था. राजस्थान के पंचायती राज मंत्री ने कहा कि पिछली कांग्रेस सरकार का 2009 आदेश था उसी के तहत लिखा गया है. कमाल है 2013 से राजस्थान में बीजेपी की सरकार है. यह चौथा साल है और 2009 के आदेश लागू हो रहे हैं. गनीमत है मंत्री जी इसे सही नहीं मानते हैं और हटवाने की बात कह रहे हैं. वैसे भी सरकार के पास अगर यही दलील है कि अमीर या जो ग़रीब नहीं हैं वो बीपीएल योजना का लाभ ले लेते हैं तो उनके घरों की दीवार पर लिखा होना चाहिए कि मैं अमीर हूं और बीपीएल की योजना का लाभ लेता हूं.


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