टूट गया भ्रष्टाचार कम होने का भ्रम

इस संकट से निपटने के लिए सरकार को यह ऐलान करना पड़ा था कि इन बैंकों में सरकार की तरफ से रकम डाली जाएगी. बैंको के सामने एमरजेंसी जैसे हालात में इसके अलावा और कोई चारा था भी नहीं, लेकिन अचानक PNB घोटाले ने बैंकों की हालत और भी ज़्यादा सनसनीखेज बना दी है.

टूट गया भ्रष्टाचार कम होने का भ्रम

फाइल फोटो

PNB घोटाले ने देश को सकते में डाल दिया. इस कांड से अब तक सरकार के तरफदार रहे लोग और सरकार का तरफदार मीडिया तक भौंचक है. इसमें कोई शक नहीं कि सरकार कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है कि भ्रष्टाचार को लेकर देश में निराशा और हताशा न फैले, लेकिन इस घोटाले ने देश के विश्वास की नींव तक मार कर दी है. वैसे इस निराशा की सबसे ज़्यादा चोट सरकार की छवि पर हुई. राजनीतिक तौर पर सरकार की उस छवि पर हुई है, जो उसके कार्यकाल के अंतिम दौर में सबसे ज़्यादा संवेदनशील थी. सरकार अपनी छवि की मरम्मत के सारे उपाय अपनाए रही है, लेकिन हालात समेटे में आते दिखते नहीं. सरकार के लिए भले ही यह सिर्फ राजनीतिक संकट हो, लेकिन देश की माली हालात के मद्देनज़र भी यह घोटाला एक साथ कई सायरन बजा रहा है.
 
मामला बैंकों की पोल खुलने का है...
अब तक हमें यही पता था कि बैंक अपने दिए कर्ज़ों के वापस न आने से परेशान हैं. लगभग सारे सरकारी बैंक इतने ज़्यादा परेशान हैं कि आम लोगों की जमा रकम से उनका काम नहीं चल पा रहा है. इस संकट से निपटने के लिए सरकार को यह ऐलान करना पड़ा था कि इन बैंकों में सरकार की तरफ से रकम डाली जाएगी. बैंको के सामने एमरजेंसी जैसे हालात में इसके अलावा और कोई चारा था भी नहीं, लेकिन अचानक PNB घोटाले ने बैंकों की हालत और भी ज़्यादा सनसनीखेज बना दी है. अब सरकार को नए सिरे से हिसाब लगाना पड़ेगा कि बैंकों को सरकार की तरफ से पैसा पहुंचाने पर देश के आम लोग क्या धारणा बनाएंगे.
 
कर्ज़ देने का नहीं, लूट का है यह कांड...
PNB बैंक घोटाला किसी कर्ज़ की वापसी का नहीं है, बल्कि फर्जी तरीके से बैंक से गारंटी का कागज़ हथियाकर दूसरे बैंकों से पैसा निकाल लेने का है. पैसा निकाला जा चुका है. दो दिन पहले बताया गया था कि 11,000 करोड़ रुपये की लूट हो गई. अब पता चला है कि लूट या ठगी का यह आंकड़ा 21,000 करोड़ का है. शेयर बाज़ारों में 'घपले में फंसे सरकारी बैंक' के शेयर खरीदने वाले लाखों लोगों की 10,000 करोड़ से ज़्यादा की रकम डूब चुकी है. इतना ही नहीं, दूसरे सरकारी बैंकों के शेयर भी बुरी हालत में हैं. उन्हें कितनी चोट पहुंची, इसका हिसाब अभी नहीं लगा है, लेकिन इतना तय है कि यह भी 10-20,000 करोड़ से ज़्यादा ही बैठेगी. नवीनतम आकलन के मुताबिक रकम 60,000 करोड़ का आंकड़ा पार करने को है. व्यवस्था पर यकीन करने वाले देश के छोटे-मझोले निवेशकों का यकीन हिल गया. जिन लोगों का पैसा बैंकों में जमा है, उसकी सुरक्षा को लेकर लोगों के मन में डर अलग है. यानी इस घोटाले ने दूर-दूर तक हालत बिगाड़ दी है. ज़ाहिर है, सरकार चिंतित होगी ही, और वह है भी, लेकिन उसकी चिंता इस बात को लेकर है कि वह कठघरे में न आ जाए, और अगले चुनाव की तैयारियों के दिनों में अपनी छवि कैसे बचाए...
 
क्या किया सरकार ने अब तक...?
सरकार सबसे पहले यह कहने में लगी कि यह घोटाला पुरानी सरकार के वक्त का है. इसके लिए ज़रूरी था कि घोटाले को कम से कम पांच साल पुराना बताया जाए, क्योंकि लगभग चार साल से वह खुद ही सरकार में है. दूसरा काम सरकार ने यह किया कि इसे सिर्फ बैंक का घोटाला बताया जाए, लेकिन दिक्कत यह आई कि यह बैंक देश का दूसरा सबसे बड़ा सरकारी बैंक है. तीसरा काम सरकार यह कर रही है कि किसी तरह यह संदेश जाए कि पुरानी सरकार का घोटाला मौजूदा सरकार ने पकड़ा, लेकिन इसमें झोल यह है कि बड़े फर्जीवाड़े की लगभग सारी तारीखें पिछले एक साल की निकलकर आ रही हैं. पुराने कुछ मामले अगर निकलकर आए भी तो सरकार इस सवाल का जवाब कहां से ला पाएगी कि उसकी सरकार बनने के बाद चार साल से हो क्या रहा था. भ्रष्टाचार ही तो वह मुददा था, जिसके सहारे मौजूदा सरकार सत्ता में आई थी. इसीलिए इस घोटाले ने मौजूदा सरकार के भ्रष्टाचारमुक्त शासन के नारे को तहस-नहस कर दिया. जनता को इस बात से क्या मतलब कि घोटाला सीधे सरकार ने किया या सरकार के अफसरों ने किया. उसे यह सुनना भी अच्छा नहीं लगेगा कि ऐसे घोटाले पहले से चल रहे थे, क्योंकि इस बात को तो चार साल पहले सुनाया गया था और जनता ने यकीन किया था कि सरकार बदलने से भ्रष्टाचार के हालात बदल जाएंगे, जो नहीं बदले.
 
देश की वैश्विक छवि कितनी टूटी...?
यह घोटाला अपने आकार के कारण दुनिया में सनसनी फैलाने के लिए काफी था, लेकिन इस घोटाले के आरोपी का कारोबार इतने सारे देशों में है कि घोटाला उजागर होते ही हर देश का मीडिया इस खबर को रात-दिन बजा रहा है. आसानी से माना जा सकता है कि इस कांड को विदेशी निवेशक भी गौर से जान-सुन रहे होंगे. विदेशों में बसा भारतीय समुदाय इस कांड को सुनकर भौंचक रह गया होगा. सबसे ज़्यादा गौर उस अंतरराष्ट्रीय संस्था ने किया होगा, जो दुनिया के तमाम देशों में भ्रष्टाचार की स्थिति का आकलन करती है. 'ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल' नाम की यह संस्था हर साल तमाम देशों में भ्रष्टाचार का आकलन करके उन्हें एक क्रम में लगाती है.

भ्रष्टाचार में भारत की स्थिति जस की तस : क्यों नहीं हुआ सुधार...?
 
'ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल' की इस सूची में कम भ्रष्ट देश से शुरू करने के बाद सबसे भ्रष्ट देश को क्रमवार लगाया जाता है. यह आकलन एक प्रकार से हर देश का भ्रष्टाचार सूचकांक होता है. पिछले दो-तीन साल से हम लोग यह ऐतराज़ कर रहे थे कि हमें ज़्यादा भ्रष्ट देशों की श्रेणी में क्यों डाला जाता है. हमें पता है कि 'ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल' के सर्वेक्षण में नागरिकों से ही पूछा जाता है कि वे घूस देने के लिए कितने बाध्य हैं. इसी से इस बात का आकलन होता है कि किसी देश में घूस लेने की तत्परता का क्या स्तर है. भ्रष्टाचार के मामले में हमें बहुत खराब हालत में बताए जाने से अब तक हमें टीआई के इस सर्वेक्षण पर शक होता था, लेकिन PNB घोटाले ने हमारा भ्रम दूर कर दिया. बहरहाल, इस सनसनीखेज़ घोटाले के उजागर होने के बाद हमारे भ्रष्टाचार सूचकांक का ज़्यादा कबाड़ा होने के आसार बढ़ गए हैं. बेशक अब हमें घरेलू राजनीति के अलावा अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि के प्रबंधन के काम पर भी ज़ोर-शोर से लगना पड़ेगा, बहरहाल, भ्रष्टाचार के मामले में हम और गहरे गड्ढे में पहुंचे दिख रहे हैं.
 
सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्‍त्री हैं...
 
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