अब तो भारत में उत्पादन के अनुमान भी शक के घेरे में हैं...

अब तो भारत में उत्पादन के अनुमान भी शक के घेरे में हैं...

चीनी उत्पादन के लिए अक्टूबर से सितंबर के बीच के 12 महीनों को गिना जाता है...

अब तक मौसम का अनुमान लगाने में गड़बड़ी हो जाती थी, लेकिन अब देश में उत्पादन के अनुमान भी गड़बड़ाने लगे हैं. दाल और गेहूं उत्पादन का हिसाब लगाने में हुई गफलत हम हाल ही में भुगत चुके हैं. अब पता चल रहा है कि चीनी के उत्पादन का अंदाज़ा गड़बड़ा गया है. यह अनुमान इतनी सनसनीखेज़ मात्रा में गलत हुआ कि खुद केंद्रीय खाद्य मंत्रालय के अफसर बुरी तरह परेशान हैं. इस बार हद यह हुई है कि केंद्रीय खाद्य मंत्रालय को राज्य सरकारों से कहना पड़ा कि अनुमान का हिसाब फिर से चेक करें. देश में उत्पादन के आंकड़ों में इतनी गफलत पहली बार सुनने में आ रही है.

कितने अहम होते हैं ये आंकड़े...?
किसी भी देश में जरूरी चीजें की आपूर्ति की सुचारु व्यवस्था बनाने के लिए देश में उत्पादन का हिसाब-किताब जानते रहना ज़रूरी होता है. उसी से पता चलता है कि आने वाले दिनों में मांग क्या होगी. ऐन मौके पर अगर कोई चीज़ कम पड़ जाती है तो वह चीज़ महंगी होने लगती है. प्याज़, दाल, सब्जियों के भाव अचानक बढ़ने से कई बार सरकारें डूबती देखी जा चुकी हैं. लिहाज़ा ऐसी हालत से बचने के लिए हर सरकार उत्पादन और भविष्य की मांग का हिसाब ज़रूर लगाती रहती है. यह ऐसा मामला है कि अनुमान को बड़ी बारीकी से लगाया जाता है. अनुमान में गलती से महंगाई और मंदी के बेकाबू हो जाने में देर नहीं लगती, इसीलिए सही-सही आंकड़े जमा करने में कहीं भी, कोई भी, कभी भी कोताही नहीं बरतता.

कितना गलत बैठा चीनी उत्पादन का अनुमान...?
चीनी उत्पादन के लिए अक्टूबर से सितंबर के बीच के 12 महीनों को गिना जाता है. चीनी मिलों के संघ के मुताबिक 2015-16 में चीनी का उत्पादन दो करोड़ 51 लाख टन हुआ था. इस साल, यानी 2016-17 के लिए अनुमान लगाया गया था कि इस साल उत्पादन घटकर दो करोड़ 34 लाख टन रहने वाला है, लेकिन दो ही दिन पहले इस संघ ने उत्पादन स्थिति की समीक्षा करने के बाद कहा है कि यह अनुमान और भी घटकर दो करोड़ 13 लाख टन रहने वाला है. द्वितीयक स्रोतों के मुताबिक यह आंकड़ा सरकार के अपने अनुमान दो करोड़ 25 लाख टन से भी 12 लाख टन कम है. बस, यहीं से चीनी उत्पादन के आंकड़ों में शक पैदा होना शुरू हो गया.

केंद्रीय खाद्य मंत्रालय के अफसरों ने क्या कहा...?
देश की प्रतिष्ठित समाचार एजेंसियों के मुताबिक केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने राज्यों से कहा है कि वे कृषि मंत्रालय के गन्ना उत्पादन के आंकड़ों पर भरोसा किए न बैठे रहें. राज्यों से कहा गया है कि खेत के आंकड़ों का विश्लेषण करें. यह भी कहा गया है कि चीनी उद्योग, जो उपग्रहीय चित्रों के ज़रिये आंकड़े इकट्ठा करता है, उस पर भी गौर करें, और उसके बाद गन्ना उत्पादन के आंकड़ों को फिर से जांचें. आंकड़ों के मामले की गंभीरता इस बात से पता चलती है कि केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने यह अंदेशा भी जताया है कि कहीं चीनी मिलें कम उत्पादन का आंकड़ा पेश न कर रही हों. इसके लिए यह सुझाव दिया गया है कि हर चीनी मिल में उत्पादन का हिसाब लगाकर बताएं. यानी खाद्य मंत्रालय ने उत्पादन के संदेहास्पद आंकड़ों की जांच-पड़ताल का जिम्मा राज्य सरकारों के ऊपर डाल दिया है.

दरअसल लिया जाना है आयात-निर्यात का फैसला...
अपना देश चीनी उत्पादन में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है, और अपनी आबादी के कारण चीनी की खपत के मामले में अपना देश दुनिया के सबसे बड़े देशों में एक है. इसीलिए दूसरे देशों की निगाह यहां के बाज़ार पर भी रहती है. ज़ाहिर है, आने वाले दिनों में अगर देश में चीनी का उत्पादन कम रहता है तो दाल और गेहूं के बाद चीनी को भी विदेश से खरीदने का अंदेशा मंडरा सकता है. यह एक तथ्य है ही कि खुदरा बाज़ार में कुछ ही महीनों में चीनी के दाम 30 से बढ़कर 40 रुपये प्रति किलो हो चुके हैं. बहुत संभव है कि इसीलिए सरकारी लिखा-पढ़ी की भाषा कुछ इस तरह की है कि नीतिगत फैसले लेने के लिए उत्पादन के सही आंकड़ों की ज़रूरत है, और अगर विदेशों से चीनी खरीदने की हालत बनी तो देश में इस साल यह एक और बड़ी दुर्घटना मानी जाएगी. भविष्य में देश के गन्ना किसानों पर जो आफत आएगी, सो अलग.

मसला महज़ चीनी का ही नहीं है...
चीनी उत्पादन के आंकड़ों के बहाने एक बात तो साफ हो गई कि हर क्षेत्र में सुचारु व्यवस्था के लिए आंकड़ों को जमा करने के अलावा कोई और विकल्प है ही नहीं, इसीलिए हमें यह जान लेना चाहिए कि इन दिनों सांख्यिकीय तथ्यों का मज़ाक उड़ाकर जो सिर्फ शाब्दिक वक्तव्यों का ज़ोर बढ़ रहा है, उस पर भी गौर करने का वक्त आ गया है. मसलन, पिछले साल के मुकाबले इस साल हमारी आबादी दो करोड़ और बढ़ जानी है. यानी हर मामले में हमें अपना इंतज़ाम कम से कम पांच फीसदी बढ़ाना ही है. ज़ाहिर है, इसीलिए हर साल बजट में हर मद में 10 फीसदी खर्च बढ़ाने का चलन रहा है. इसके बाद जिस भी क्षेत्र पर ज़ोर देना हो, उस पर जब तक 20 फीसदी खर्च न बढ़ता हो, तो मानकर चलना चाहिए कि वह लगभग यथास्थिति ही है. वास्तविकता को ईमानदारी से देखने के लिए आंकड़े इसीलिए इतने महत्वपूर्ण होते हैं.

सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्‍त्री हैं...

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