पिंड नहीं छूट रहा नोटबंदी कांड से

नोटबंदी के एक साल गुज़रने के दिन यानी आठ नवंबर को विपक्ष काला दिवस मनाएगी और सरकार जश्न. जनता इस विवाद की चश्मदीद बनेगी. वैसे शुरू से ही भुक्तभोगी जनता इस प्रकरण में मुख्य पक्ष है.

पिंड नहीं छूट रहा नोटबंदी कांड से

नोटबंदी के दौरान लाइन में खड़े लोग.. (फाइल फोटो)

सालभर होने को आया लेकिन अब तक पुराने नोटों की गिनती का काम चालू बताना पड़ रहा है. पुराने नोटों के असली नकली होने के सत्यापन का काम भी अधूरा है. जब आंकड़े ही न हों तो नोटबंदी की सफलता विफलता की बात कैसे हो? सरकार अपने फैसले के सही होने का प्रचार कर रही है. और विपक्ष इस फैसले के भयावह असर होने के तर्क दे रही है. नोटबंदी के एक साल गुज़रने के दिन यानी आठ नवंबर को विपक्ष काला दिवस मनाएगी और सरकार जश्न. जनता इस विवाद की चश्मदीद बनेगी. वैसे शुरू से ही भुक्तभोगी जनता इस प्रकरण में मुख्य पक्ष है. सो उसे नोटबंदी के फायदे और नुकसान का हिसाब लगाने में ज्यादा दिक्कत आएगी नहीं. मसला इतना लंबा चौड़ा है कि जनता लाखों करोड़ की संख्या का अनुमान तक नहीं लगा सकती. इसीलिए इस हफ्ते कालादिवस और जश्न के दौरान होने वाले तर्क वितर्क के दौरान उसे जागरूक होने का मौका एकबार फिर मिलेगा.

काला दिवस किस तरह से
यह तर्क दिए जाएंगे कि सरकार के इस फैसले ने देश की अर्थव्यवस्था का भट्टा बैठा दिया. नोटबंदी के कारण देश में बहुसंख्य मज़दूरों, और दिहाड़ी कर्मचारियों के रोज़गार चौपट होने को याद दिलाया जाएगा. किसानों को भी याद दिलाया जाएगा कि वे किस तरह परेशान हुए थे. साथ में यह भी बताने की कोशिश होगी कि सरकार के इस फैसले से फायदा किसे हुआ. विपक्ष साबित करेगा कि नोटबंदी से अमीरों को फायदा हुआ. नोटबंदी से अमीरों को फायदा पहुंचने के यही तर्क सबसे सनसनीखेज और दिलचस्प होंगे. वैसे सबसे ज्यादा यह याद दिलाने की कोशिश होगी कि नोटबंदी का ऐलान करते समय जो मकसद बताया गया था वह कितनी बार बदला गया और क्यों बदलना पड़ा.

जश्न का पक्ष
नोटबंदी का जश्न किस तरह मनाया जाएगा इसका अंदाजा अभी लगाना मुश्किल है. वैसे भी सरकारी जश्न नोटबंदी को लेकर काला दिवस मनाने की प्रतिक्रिया में है सो जाहिर है कि नोटबंदी को घातक बताने के जो तर्क दिए जाएंगे, उनके काट के लिए सरकार की तरफ से वितर्क दिए जाएंगे. हालांकि न तो नोटबंदी के घातक साबित होने के तथ्य छुपे हुए हैं और न उसके फायदे के दावे अनसुने हैं. लिहाज़ा सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि वह नोटबंदी का कौन सा नया फायदा सोचकर लाती है. वैसे उसके पास एक तरीका यह भी है कि वह नोटों की गिनती और सत्यापन के काम का चालू होने की बात कहकर समीक्षा की तारीख को आगे खिसका दे.

जनता के लिहाज़ से
जनता यानी बहुसंख्य गरीब जनता ने तो नोटबंदी को सहा ही इसलिए था कि कुछ अमीरों को मारा जा रहा है. सो जनता को यह जानने का बड़ी बेसब्री से इंतजार है कि नोटबंदी से कितने अमीर पिटे. जनता की इस आकांक्षा को अगर सरकार या विपक्ष देख समझ रहे हों तो उन्हें भी इस मामले में अपने अपने तर्क बनाकर रख लेना चाहिए. बहुत संभव है कि जनता की आंकाक्षा के हिसाब से विपक्ष यह तर्क पेश करे कि मेहनतकश दिहाड़ी मज़दूर, किसान और छोटे कारोबारी किस बेरहमी से पिटे. और इसके जवाब में सरकार के पास बना बनाया तर्क है ही कि नोटबंदी से सिर्फ वही परेशान हुए जो बेईमान थे. इतना ही नहीं सरकार यह भी दावा कर रही है कि जो नोटबंदी के फैसले की मुखालफत करता है वह बेईमानों का तरफदार और खुद बेईमान है. इतने जबर्दस्त दावे का काट ढूंढना ही मुश्किल काम है. लेकिन सरकार का यह तर्क सुनते हुए मूक जनता नोटबंदी से बेईमानों के परेशान होने के सबूत जरूर देखना चाहेगी. बस यहीं दिक्कत है. क्योंकि एक बार यह एलान हो ही चुका है कि कुल पुराने नोटों में 99 फीसद यानी सारे पुराने नोट बदल ही गए. रही बात विपक्ष रूपी जनता की तो उनके नेता हरचंद कोशिश करेंगे कि जनता को याद दिलाया जाए कि खुद उनका क्या हाल हुआ है.

क्या कह रहे हैं जानकार और विद्वान लोग
वैसे बदले माहौल में ये लोग चुप रहना ही पसंद कर रहे हैं फिर भी इशारों में तो बोल ही लेते हैं. तटस्थ भाव से किसी फैसले की समीक्षा मिलना दुर्लभ होता जा रहा है. फिर भी कुछ घंटों पहले एक समीक्षा पूर्व योजना आयोग के सदस्य रहे अरुण मायरा ने की है. उन्होंने कहा है कि जनता ने नोटबंदी के मामले में सरकार को माफ़ कर दिया. यानी मायरा ने नोटबंदी को घातक माना लेकिन सरकार को राहत दी कि सरकार को ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं क्योंकि जनता ने माफ़ कर दिया है. जनता की ओर से मायरा के जरिए सरकार को माफी के क्या मायने हैं यह खुद में एक समीक्षा की मांग करता है. लेकिन उनके इस जजमेंट में एक सुझाव तो है ही कि सरकार अगर चाहे तो नोटबंदी से जनता को हुए नुकसान के लिए माफी मांगने की मुद्रा अपना सकती है. इस तरह से नोटबंदी का जश्न मनाए जाने के दौरान हमें यह देखने को भी मिल सकता है कि सरकार नोटबंदी से तबाह हुए गरीबों और ईमानदारों को धन्यवाद ज्ञापित कर रही हो और नोटबंदी के अनुष्ठान में उनके बलिदान का महिमामंडन करके उन्हें प्रसन्न कर रही हो.

सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्‍त्री हैं...

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