मॉब लिंचिंग पर सुप्रीम कोर्ट : कानूनों पर अमल की बजाय सिर्फ दिशानिर्देश

गोरक्षकों की मॉब लिंचिंग से 50 लोग और बच्चा चोरी की अफवाहों से 30 लोगों की हत्या के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने दो साल पुराने मामले में अब 45 पेज का फैसला देते हुए प्रिवेन्टिव, सुधारात्मक और दण्डात्मक कदमों की बात कही है.

मॉब लिंचिंग पर सुप्रीम कोर्ट : कानूनों पर अमल की बजाय सिर्फ दिशानिर्देश

फाइल फोटो

गोरक्षकों की मॉब लिंचिंग से 50 लोग और बच्चा चोरी की अफवाहों से 30 लोगों की हत्या के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने दो साल पुराने मामले में अब 45 पेज का फैसला देते हुए प्रिवेन्टिव, सुधारात्मक और दण्डात्मक कदमों की बात कही है. किसी व्यक्ति, समूह या भीड़ द्वारा इरादतन या गैर-इरादतन हत्या भारतीय दंड संहिता, यानी IPC के तहत अपराध है, जिनका सख्त पालन सुनिश्चित कराने की बजाय सुप्रीम कोर्ट की नई गाइडलाइन्स कितनी प्रभावी होंगी...?

सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश, पुरानी बोतल में नई शराब : सुप्रीम कोर्ट ने गाइडलाइन जारी करते हुए कहा है कि मॉब लिंचिंग की घटना होने पर तुरंत FIR, जल्द जांच और चार्जशीट, छह महीने में मुकदमे का ट्रायल, अपराधियों को अधिकतम सज़ा, गवाहों की सुरक्षा, लापरवाह पुलिसकर्मियों के विरुद्ध कार्रवाई, पीड़ितों को त्वरित मुआवज़े जैसे कदम राज्यों द्वारा उठाए जाएं. इन सभी विषयों पर सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी अनेक फैसले दिए हैं, जिन्हें लागू नहीं करने से मॉब लिंचिंग के अपराधियों का हौसला बढ़ता है. नई गाइडलाइनों से पीड़ित पक्ष को राहत शायद ही मिले, हां, अधिकारियों के कागज-पत्तर और मीटिंगों का सिलसिला बढ़ जाएगा.

मासूका जैसे कानूनों का दुरुपयोग कैसे रुकेगा : मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं को रोकने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) की तर्ज पर मानव सुरक्षा कानून (मासुका) यदि लाया गया, तो इससे अनेक नुकसान हो सकते हैं. राजनीतिक संरक्षण की वजह से कश्मीर घाटी में पत्थरबाजों और हरियाणा में जाट आंदोलन के उपद्रवियों के विरुद्ध दर्ज मामले वापस हो जाते हैं. दूसरी ओर मॉब लिंचिंग जैसे मामलों में यदि मासुका कानून लागू किया गया, तो इसके दुरुपयोग से निर्दोष लोगों को फंसाने की गुंजाइश बढ़ जाएगी.

संसद द्वारा नए कानून के नाम पर मामले को टालना : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मॉब लिंचिंग को पृथक अपराध बनाने के लिए संसद द्वारा नया कानून बनाया जाना चाहिए. IPC की धारा 302, 304, 307, 308, 323, 325, 34, 120-बी, 141 और 147-149 और CRPC की धारा 129 और 153 ऐसे अपराधों के लिए पर्याप्त प्रावधान हैं. इन्हें लागू करने की बजाय संसद द्वारा नया कानून लाने से ज़मीनी हालात में कैसे सुधार होगा...?

राजनीतिक दलों के संरक्षण की वजह से पुलिस कार्रवाई नहीं : केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा के आचरण से स्पष्ट है कि गोरक्षक या मॉब लिंचिंग के अपराधियों को नेताओं का संरक्षण मिलता है, तो फिर पुलिस कार्रवाई कैसे करे...? ऐसे घृणित अपराधों को संरक्षण दे रहे नेताओं को चुनाव के अयोग्य घोषित करते हुए, उनके विरुद्ध सख्त आपराधिक कार्रवाई यदि की जाए, तो फिर छुटभैये नेताओं की मॉब लिंचिंग की दुकान खुद-ब-खुद बंद हो जाएगी.

राज्यों की बजाय नेताओं के विरुद्ध अवमानना की कार्रवाई क्यों नहीं : महात्मा गांधी के पौत्र तुषार गांधी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर, 2017 को राज्यों को मॉब लिंचिंग रोकने का आदेश दिया था. हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करने की वजह से, उनके खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी किया गया है, जिस पर अगले महीने सुनवाई होगी. नेताओं के संरक्षण में मॉब लिंचिंग एक संगठित उद्योग बन गया है, जिसके खिलाफ ठोस कार्रवाई करने की बजाय, राज्यों के खिलाफ अवमानना नोटिस से क्या हासिल होगा...?

व्हॉट्सऐप के लिए भारत में शिकायत अधिकारी की नियुक्ति क्यों नहीं : आईटी एक्ट के तहत इंटरमीडियरी नियमों के अनुसार इंटरनेट और सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा देश में शिकायत अधिकारी की नियुक्ति ज़रूरी है. दिल्ली हाईकोर्ट ने अगस्त, 2013 में सरकार को इस नियम को लागू कराने के आदेश दिए थे. इसके बाद फेसबुक, गूगल और ट्विटर जैसी कंपनियों ने भारत के लिए शिकायत अधिकारी को यूरोप और अमेरिका में बैठा दिया. गोरक्षक, डायन और बच्चा चोरी जैसी अफवाहों को फेसबुक और व्हॉट्सऐप जैसे प्लेटफार्मों से प्रसारित करने से रोकने के लिए पुलिस और सुरक्षाबल लाचार रहते हैं. व्हॉट्सऐप में शिकायत अधिकारी के माध्यम से अफवाहों के संगठित बाज़ार पर लगाम लगाने के साथ पुलिस द्वारा पुराने कानूनों पर सख्त अमल से मॉब लिंचिंग पर यदि प्रभावी अंकुश नहीं लगाया गया, तो देश को भीड़तंत्र बनने से कैसे रोका जा सकेगा...?

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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