यह ख़बर 16 दिसंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

सुशांत सिन्हा की कलम से : धोनी क्यों, कोहली क्यों नहीं...?

विराट और धोनी का फाइल चित्र

नई दिल्ली:

एडिलेड टेस्ट इतिहास का हिस्सा बन चुका है, लेकिन भारत ने भविष्य के एक अहम हिस्से की तरफ बढ़ने का मौका गंवा दिया। ब्रिस्बेन टेस्ट से महेंद्र सिंह धोनी बतौर कप्तान वापसी कर रहे हैं, जो भारत की बल्लेबाज़ी को भी मज़बूत करेगा और बतौर कप्तान धोनी का अनुभव भी टीम के काम आएगा। लेकिन सवाल यह है कि क्या विराट कोहली को कप्तान बनाए रखते हुए बोर्ड को भविष्य की तरफ नहीं देखना चाहिए था...? इसमें कोई दो राय नहीं कि यह पहले से तय था कि विराट कोहली पहले टेस्ट में सिर्फ धोनी की अनुपस्थिति में कप्तान की भूमिका निभाएंगे और धोनी की वापसी पर उन्हें जगह खाली करनी ही थी, लेकिन कुछ बातें हैं, जो बतौर कप्तान कोहली के साथ ही आगे बढ़ने के सवाल को उठाती हैं।

मसलन...

  • धोनी पहले ही साफ कर चुके हैं कि वह खेल के तीनों फॉर्मेट में एक साथ आगे नहीं बढ़ पाएंगे और ऐसे में खेल के सबसे लंबे संस्करण, यानि टेस्ट क्रिकेट से उनकी विदाई मुहाने पर खड़ी है। क्या यह सबसे अच्छा मौका नहीं था, जब कोहली ऑस्ट्रेलिया में कप्तानी जारी रखते और धोनी की मौजूदगी में ही खुद को इसके लिए तैयार कर पाते। कोहली के पास कप्तानी का लंबा अनुभव नहीं है, लेकिन धोनी के पास है और ऐसे में इससे बेहतर क्या होता कि धोनी के मैदान पर रहते हुए कोहली कप्तानी करते और जहां कहीं भी उन्हें सीखने या पूछने की ज़रूरत महसूस होती, उनके पास धोनी की तरफ मुड़ने का मौका होता। वैसे, कल धोनी के बाद कोहली का कप्तान बनना तय है, तो ऐसे में इससे बेहतर परिस्थिति क्या हो सकती थी। धोनी के खेल को अलविदा कहने के बाद कोहली को कप्तानी सौंपने का मतलब है, उनका एक युवा टीम को लीड करना, जिसमें किसी के पास भी टेस्ट में कप्तानी का कोई अनुभव नहीं होगा और कोहली के पास इस बात का मौका नहीं होगा कि वह किसी सीनियर खिलाड़ी के अनुभव या मशविरे का फायदा ले सकें मैदान पर। कुछ लोग कह सकते हैं कि कोहली ऐसा उप-कप्तान रहते हुए भी तो कर सकते हैं, लेकिन यकीन मानिए, टेस्ट क्रिकेट में कप्तान होने और उप-कप्तान होने में ज़मीन-आसमान का फर्क होता है।
  • दूसरी अहम बात यह कि कोहली फॉर्म में हैं और उनका मनोबल ऊंचा है इस वक्त। एडिलेड टेस्ट में भले ही भारत को हार मिली हो, लेकिन बतौर कप्तान कोहली को ढेरों तारीफ मिली। उन्होंने दोनों ही पारियों में शतक भी बनाए। यानि इससे बेहतर परिस्थिति क्या होगी कि उनका बल्ला भी चल रहा है और हार के बावजूद बतौर कप्तान उनका मनोबल भी ऊंचा है। दुनिया मानती है कि ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट क्रिकेट खेलना आपके खेल को एक अलग स्तर पर ले जाता है। उछाल और तेज़ पिचों की चुनौती के साथ-साथ ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों की स्लेजिंग से भी जूझना होता है। ऐसे में कोहली का ऑस्ट्रेलिया में अच्छे फॉर्म में रहते हुए टीम को लीड करना उन्हें भविष्य के एक बेहतर कप्तान के सांचे में ढालने जैसा होता।
  • इतना ही नहीं, ऑस्ट्रेलियाई टीम भी 25 साल के स्मिथ की कप्तानी में मैदान पर उतरेगी। यानि, अगर कोहली की कप्तानी के साथ टीम आगे बढ़ती तो कोहली को क्लार्क के अनुभव की चुनौती से नहीं जूझना होता। दोनों ही कप्तान कमोबेश हमउम्र भी होते और हमअनुभवी भी।

लेकिन भारतीय बोर्ड ने भविष्य की तैयारियों की तरफ देखने की बजाए वही किया, जिसकी उससे उम्मीद थी। धोनी अगर बोर्ड के सामने कोहली की कप्तानी जारी रखने की बात करते हुए बड़ा दिल दिखाते तो भी बात बन सकती थी, लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ। नतीजा सिर्फ इतना कि ब्रिस्बेन टेस्ट में टीम धोनी की कप्तानी में उतरेगी और कोहली की भूमिका बतौर बल्लेबाज़ होगी टीम में।

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कहते हैं, वर्तमान में जीना अच्छा होता है, लेकिन अमूमन भविष्य की नींव भी उसी वर्तमान में रख दी जाती है और इस बार उस नींव को रखने का मौका शायद हाथ से चला गया है।