यह पहली बार नहीं है जब आदित्यनाथ को रैलियों में भीड़ खींचने और भाजपा के लिए वोटरों को रिझाने के काम में लगाया गया है लेकिन हाथरस में सामूहिक बलात्कार को लेकर प्रशासन पर जनता का गुस्सा इस कदर था कि बहुत कम नेताओं को राज्य के बाहर (बिहार) इस तरह चुनावी सभाओं में लोगों को रिझाने के लिए ड्यूटी पर लगाया गया.
बिहार में पहले चरण के चुनाव (28 अक्टूबर) से पहले योगी अकेले 20 जनसभाओं को संबोधित करने वाले हैं. उनके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चार चरणों में कुल 12 चुनावी सभाओं को संबोधित करने वाले हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी 15 रैलियां करने वाले हैं. योगी आदित्यनाथ की ही आज तीन-तीन रैलियां हैं.
यह मेरा आदित्यनाथ को समर्थन नहीं है, लेकिन कई सोशल मीडिया "एक्टिविस्ट" यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं और इसके बदले में मेरी लानत-मलानत कर सकते हैं- लेकिन यह स्पष्ट तथ्य है कि बिहार चुनावों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की डिमांड ज्यादा है, इसमें न केवल उनकी पार्टी के उम्मीदवार, बल्कि सहयोगी जनता दल यूनाइटेड के उम्मीदवार भी शामिल हैं, जिनका अनुरोध है कि योगी उनके निर्वाचन क्षेत्रों का दौरा करें.
आदित्यनाथ ऊंची जाति के ठाकुर यानी राजपूत समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. भाजपा और जेडीयू के बीच गठबंधन में इस बात पर सहमति है कि भाजपा उच्च जाति के वोटरों को साधेगी, जबकि जेडीयू अति पिछड़े मतदाताओं को लामबंद करने की कोशिश करेगी. आदित्यनाथ पर जोर थोड़ा हटकर है, क्योंकि अब तक यह माना जाता था कि जाति के प्रति जागरूक बिहार में योगी केवल सिर्फ उच्च जाति के मतदाताओं को ही लुभा सकते थे.
जेडीयू के एक उम्मीदवार ने मुझे बताया, "यह एक कठिन चुनाव है. राज्य में प्रवासियों का गुस्सा उबाल पर है. ऐसे में अगर पीएम मोदी और सीएम योगी भी चुनावी सभाओं को संबोधित करते हैं तो लोगों को यह लगेगा कि इस गठबंधन के पास ऐसे बड़े और शक्तिशाली नेताओं की एक अच्छी शक्ति है."
हालांकि, वह उम्मीदवार अपने पार्टी अध्यक्ष और राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो चौथी बार सत्ता के लिए संघर्ष कर रहे हैं, पर चुप्पी साधे रहता है. इस चुनाव में अंदरखाने- कई लोग जो भाजपा के लिए एकतरफा सोच रखते हैं- इस बात की चर्चा है कि नीतीश कुमार अपने करियर में अभी तक की सबसे खराब सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रहे हैं और यह भाजपा ही है जो उनकी नैया पार लगा सकती है.
यह उन लाखों प्रवासियों के लिए एक सुदूर और दूर दृष्टिकोण का नतीजा है जो कोरोना वायरस संकट की वजह से बिना किसी योजना और प्रभावी प्रबंधन के लागू किए गए लॉकडाउन में बिहार लौटने के लिए बेताब थे, और ऐसा नहीं करने की नीतीश कुमार की अपील को खारिज कर चुके थे.
पूर्वी उत्तर प्रदेश खासकर गोरखपुर योगी की शक्ति का केंद्र रहा है, जिसका उन्होंने पांच बार संसद में प्रतिनिधित्व किया है और जहाँ वे एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली गोरखनाथ संप्रदाय के प्रमुख पुजारी हैं. पूर्वी यूपी और बिहार के बीच साझा सांस्कृतिक मेलों के साथ हमेशा गहरा संबंध रहा है, इसलिए बिहार के इस विशेष हिस्से पर योगी का गहरा प्रभाव है. लेकिन वास्तविकता यह भी है कि दोनों राज्यों के बीच विभिन्न कारणों से होने वाली आवाजाही के बीच विकास भी एक बड़ा मुद्दा है, जो इस चुनाव में भी हावी है.
यही वजह है कि योगी अपनी चुनावी सभाओं में उनका जिक्र करना नहीं भूलते. वह दशकों की लंबी अदालती लड़ाई के बाद पहली बार अयोध्या में हो रहे राम मंदिर निर्माण के बारे में बात करते हैं. वह इस जटिल मुद्दे को सुलझाने के लिए पीएम मोदी की तारीफ करते हैं. इसके बाद कश्मीर में धारा 370 को निरस्त करने के बाद मचे अनर्गल बवाल पर कहते हैं कि पीएम मोदी ने सबसे ज्यादा विवादित मुद्दों को सुलझाया है. योगी कहते हैं, "हम जो कहते हैं वो करते हैं." योगी स्पष्ट करते हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी में प्रभावी नेतृत्व और कड़े फैसले लेने की दोहरी शक्ति है.
अगस्त में जब अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की आधारशिला (पहली ईंट) रखी जा रही थी, तब योगी ने अपने सभी प्रशंसकों (हिन्दू युवा वाहिनी के लोगों) को आरएसएस- जो संघ परिवार की मातृशक्ति है- के अधिकारियों के साथ मिलवाया था. कुछ वर्ष पहले जब आदित्यनाथ ने हिंदू युवा वाहिनी का गठन किया था, तब आरएसएस इससे नाराज था. हिन्दू युवा वाहिनी कैडर आधारित संगठन है, जिसमें ऐसे स्थानीय युवकों की भर्ती होती है जो जातीय या साम्प्रदायिक हिंसा के शिकार हो चुके होते हैं. स्थापना के कुछ ही समय बाद गोरखपुर और आसपास के इलाकों में कई बार योगी सेना और आरएसएस के साथ टकराव देखने को मिल चुका था, जो खुद को स्वभाविक तौर पर हिन्दुत्व का वास्तविक रक्षक और प्रवर्तक मानता था.
तब से, आदित्यनाथ उन मामलों पर अधिक तत्परता से आगे बढ़े हैं, जिन पर आरएसएस तत्काल संबोधित करना चाहता था. लव जिहाद पर एंटी रोमियो स्क्वाड का गठन और गोकशी पर पूर्ण पाबंदी योगी के ऐसे ही कदमों के उदाहरण हैं. ये ऐसी योजनाएँ हैं जिन्हें लागू करने के लिए ही आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया गया है.
कुछ दिनों पहले योगी की हिंदू फर्स्ट पॉलिसी के प्रति अपने अदम्य कदम और साहस व हिन्दू वोटरों से उनकी अपील से आरएसएस भी बौखलाया हुआ था. हालांकि, अब सोशल मीडिया पर हैशटैग YogiRoxx के साथ अभियान चल रहा है जो योगी को मोदी के हिंदुत्व का स्वाभाविक उत्तराधिकारी बता रहा है.
राजनीतिक लाभ पर लेजर की तरह ध्यान केंद्रित करने वाले आरएसएस के लिए सबसे महत्वपूर्ण है कि उत्तर प्रदेश, जहां दो साल बाद अगली सरकार चुनने के लिए चुनाव होने हैं, वहां भी योगी की अहमियत बरकरार रखी जाए. ऐसे में संघ जानता है कि योगी की स्टार पावर को बढ़ाना है तो उसे पोषित करते रहना होगा ताकि यूपी चुनाव तक उसकी फसल फिर से काटी जा सके. और यही वजह है कि योगी इस समर में एकमात्र च्वाइस बनकर उभरे हैं. वह जैसे-जैसे बिहार में मतादाताओं के पास जाएंगे, वैसे-वैसे उनकी इमेज और बड़ी होती जाएगी. यह उनके लिए या आरएसएस के लिए सिर्फ एक महज सुखद संयोग नहीं है.
(स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं…)
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