विज्ञापन
Story ProgressBack
This Article is From Oct 21, 2020

डिमांड में योगी आदित्यनाथ - नीतीश कुमार के उम्मीदवार भी कराना चाहते हैं प्रचार

यह पहली बार नहीं है जब आदित्यनाथ को रैलियों में भीड़ खींचने और भाजपा के लिए वोटरों को रिझाने के काम में लगाया गया है लेकिन हाथरस में सामूहिक बलात्कार को लेकर प्रशासन पर जनता का गुस्सा इस कदर था कि बहुत कम नेताओं को राज्य के बाहर (बिहार) इस तरह चुनावी सभाओं में लोगों को रिझाने के लिए ड्यूटी पर लगाया गया.

Read Time: 24 mins
डिमांड में योगी आदित्यनाथ - नीतीश कुमार के उम्मीदवार भी कराना चाहते हैं प्रचार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आलोचकों और विरोधियों को हताश करने वाले कारकों में सबसे प्रमुख उनकी आकर्षक और चमकदार लोकप्रिय छवि है, भले ही उनके हालिया कई फैसलों का कोई बेहतर परिणाम न निकला हो, यहां तक कि कई बेताहाशा त्रूटिपूर्ण रहे हों, बावजूद इसके उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है. इसमें उनके साथ अब दूसरे हमराही- भगवा सुपरस्टार और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं. हाथरस त्रासदी (उच्च जाति के चार युवकों द्वारा एक दलित लड़की के सामूहिक बलात्कार और हत्या)  पर बड़े पैमाने पर आलोचनाओं के बावजूद- 48 वर्षीय योगी आदित्यनाथ इकलौते मुख्यमंत्री हैं जिन्हें बिहार चुनावों में भाजपा का प्रचार करने के लिए चुना गया है.

Advertisement

यह पहली बार नहीं है जब आदित्यनाथ को रैलियों में भीड़ खींचने और भाजपा के लिए वोटरों को रिझाने के काम में लगाया गया है लेकिन हाथरस में सामूहिक बलात्कार को लेकर प्रशासन पर जनता का गुस्सा इस कदर था कि बहुत कम नेताओं को राज्य के बाहर (बिहार) इस तरह चुनावी सभाओं में लोगों को रिझाने के लिए ड्यूटी पर लगाया गया.

बिहार में पहले चरण के चुनाव (28 अक्टूबर) से पहले योगी अकेले 20 जनसभाओं को संबोधित करने वाले हैं. उनके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चार चरणों में कुल 12 चुनावी सभाओं को संबोधित करने वाले हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी 15 रैलियां करने वाले हैं. योगी आदित्यनाथ की ही आज तीन-तीन रैलियां हैं.

Advertisement
nitish modi 650

यह मेरा आदित्यनाथ को समर्थन नहीं है, लेकिन कई सोशल मीडिया "एक्टिविस्ट" यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं और इसके बदले में मेरी लानत-मलानत कर सकते हैं- लेकिन यह स्पष्ट तथ्य है कि बिहार चुनावों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की डिमांड ज्यादा है, इसमें न केवल उनकी पार्टी के उम्मीदवार, बल्कि सहयोगी जनता दल यूनाइटेड के उम्मीदवार भी शामिल हैं, जिनका  अनुरोध है कि योगी उनके निर्वाचन क्षेत्रों का दौरा करें.

Advertisement

आदित्यनाथ ऊंची जाति के ठाकुर यानी राजपूत समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. भाजपा और जेडीयू के बीच गठबंधन में इस बात पर सहमति है कि भाजपा उच्च जाति के वोटरों को साधेगी, जबकि जेडीयू अति पिछड़े मतदाताओं को लामबंद करने की कोशिश करेगी. आदित्यनाथ पर जोर थोड़ा हटकर है, क्योंकि अब तक यह माना जाता था कि जाति के प्रति जागरूक बिहार में योगी केवल सिर्फ उच्च जाति के मतदाताओं को ही लुभा सकते थे.

Advertisement

जेडीयू के एक उम्मीदवार ने मुझे बताया, "यह एक कठिन चुनाव है. राज्य में प्रवासियों का गुस्सा उबाल पर है. ऐसे में अगर पीएम मोदी और सीएम योगी भी चुनावी सभाओं को संबोधित करते हैं तो लोगों को यह लगेगा कि इस गठबंधन के पास ऐसे बड़े और शक्तिशाली नेताओं की एक अच्छी शक्ति है."

Advertisement

हालांकि, वह उम्मीदवार अपने पार्टी अध्यक्ष और राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो चौथी बार सत्ता के लिए संघर्ष कर रहे हैं, पर चुप्पी साधे रहता है. इस चुनाव में अंदरखाने- कई लोग जो भाजपा के लिए एकतरफा सोच रखते हैं- इस बात की चर्चा है कि नीतीश कुमार अपने करियर में अभी तक की सबसे खराब सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रहे हैं और यह भाजपा ही है जो उनकी नैया पार लगा सकती है.

यह उन लाखों प्रवासियों के लिए एक सुदूर और दूर  दृष्टिकोण का नतीजा है जो कोरोना वायरस संकट की वजह से बिना किसी योजना और प्रभावी प्रबंधन के लागू किए गए लॉकडाउन में बिहार लौटने के लिए बेताब थे, और ऐसा नहीं करने की नीतीश कुमार की अपील को खारिज कर चुके थे.

पूर्वी उत्तर प्रदेश खासकर गोरखपुर योगी की शक्ति का केंद्र रहा है, जिसका उन्होंने पांच बार संसद में प्रतिनिधित्व किया है और जहाँ वे एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली गोरखनाथ संप्रदाय के प्रमुख पुजारी हैं. पूर्वी यूपी और बिहार के बीच साझा सांस्कृतिक मेलों के साथ हमेशा गहरा संबंध रहा है, इसलिए बिहार के इस विशेष हिस्से पर योगी का गहरा प्रभाव है. लेकिन वास्तविकता यह भी है कि दोनों राज्यों के बीच विभिन्न कारणों से होने वाली आवाजाही के बीच विकास भी एक बड़ा मुद्दा है, जो इस चुनाव में भी हावी है.

यही वजह है कि योगी अपनी चुनावी सभाओं में उनका जिक्र करना नहीं भूलते. वह दशकों की लंबी अदालती लड़ाई के बाद पहली बार अयोध्या में हो रहे राम मंदिर निर्माण के बारे में बात करते हैं. वह इस जटिल मुद्दे को सुलझाने के लिए पीएम मोदी की तारीफ करते हैं. इसके बाद कश्मीर में धारा 370 को निरस्त करने के बाद मचे अनर्गल बवाल पर कहते हैं कि पीएम मोदी ने सबसे ज्यादा विवादित मुद्दों को सुलझाया है. योगी कहते हैं, "हम जो कहते हैं वो करते हैं." योगी स्पष्ट करते हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी में प्रभावी नेतृत्व और कड़े फैसले लेने की दोहरी शक्ति है.

अगस्त में जब अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की आधारशिला (पहली ईंट) रखी जा रही थी, तब योगी ने अपने सभी प्रशंसकों (हिन्दू युवा वाहिनी के लोगों) को आरएसएस- जो संघ परिवार की मातृशक्ति है- के अधिकारियों के साथ मिलवाया था. कुछ वर्ष पहले जब आदित्यनाथ ने हिंदू युवा वाहिनी का गठन किया था, तब आरएसएस इससे नाराज था. हिन्दू युवा वाहिनी कैडर आधारित संगठन है, जिसमें ऐसे स्थानीय युवकों की भर्ती होती है जो जातीय या साम्प्रदायिक हिंसा के शिकार हो चुके होते हैं. स्थापना के कुछ ही समय बाद गोरखपुर और आसपास के इलाकों में कई बार योगी सेना और आरएसएस के साथ टकराव देखने को मिल चुका था, जो खुद को स्वभाविक तौर पर हिन्दुत्व का वास्तविक रक्षक और प्रवर्तक मानता था.

तब से, आदित्यनाथ उन मामलों पर अधिक तत्परता से आगे बढ़े हैं, जिन पर आरएसएस तत्काल संबोधित करना चाहता था. लव जिहाद पर एंटी रोमियो स्क्वाड का गठन और गोकशी पर पूर्ण पाबंदी योगी के ऐसे ही कदमों के उदाहरण हैं. ये ऐसी योजनाएँ हैं जिन्हें लागू करने के लिए ही आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया गया है.

radovip4

कुछ दिनों पहले योगी की हिंदू फर्स्ट पॉलिसी के प्रति अपने अदम्य कदम और साहस व हिन्दू वोटरों से उनकी अपील से आरएसएस भी बौखलाया हुआ था. हालांकि, अब सोशल मीडिया पर हैशटैग YogiRoxx के साथ अभियान चल रहा है जो योगी को मोदी के हिंदुत्व का स्वाभाविक उत्तराधिकारी बता रहा है.

राजनीतिक लाभ पर लेजर की तरह ध्यान केंद्रित करने वाले आरएसएस के लिए सबसे महत्वपूर्ण है कि उत्तर प्रदेश, जहां दो साल बाद अगली सरकार चुनने के लिए चुनाव होने हैं, वहां भी योगी की अहमियत बरकरार रखी जाए. ऐसे में संघ जानता है कि योगी की स्टार पावर को बढ़ाना है तो उसे पोषित करते रहना होगा ताकि यूपी चुनाव तक उसकी फसल फिर से काटी जा सके. और यही वजह है कि योगी इस समर में एकमात्र च्वाइस बनकर उभरे हैं. वह जैसे-जैसे बिहार में मतादाताओं के पास जाएंगे, वैसे-वैसे उनकी इमेज और बड़ी होती जाएगी. यह उनके लिए या आरएसएस के लिए सिर्फ एक महज सुखद संयोग नहीं है.

(स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं…)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTVउनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
डार्क मोड/लाइट मोड पर जाएं
Our Offerings: NDTV
  • मध्य प्रदेश
  • राजस्थान
  • इंडिया
  • मराठी
  • 24X7
Choose Your Destination
Previous Article
चुनाव नतीजों का अनुमान लगाना मुश्किल क्यों होता है...?
डिमांड में योगी आदित्यनाथ - नीतीश कुमार के उम्मीदवार भी कराना चाहते हैं प्रचार
उत्तर में निरुत्तर रही कांग्रेस, तो मुश्किल होगी 2024 की डगर
Next Article
उत्तर में निरुत्तर रही कांग्रेस, तो मुश्किल होगी 2024 की डगर
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com
;